वकीलों और पुलिस के बीच खूनी संघर्ष

पुलिस सडक़ पर, तो वकील हड़ताल पर

दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट में शुरू हुआ दिल्ली पुलिस और वकीलों का विवाद 2 नवंबर की दोपहर तक इस तरह खूनी संघर्ष में बदल गया कि किसी ने सोचा भी नहीं था। दरअसल यह खूनी संघर्ष पार्किंग को लेकर शुरू हुआ। इसमें दस पुलिस कर्मियों को चोंटें आयीं, तो आठ वकील भी घायल हुए। मामला इस कदर तूल पकड़ता गया कि अब यह देश व्यापी मुद्दा पुलिस और वकीलों के बीच बन गया है। वकीलों ने हड़ताल कर दी, तो पुलिस ने भी अपनी सुरक्षा की माँग को लेकर 5 नवंबर को आई.टी.ओ. स्थित पुलिस मुख्यालय पर प्रदर्शन कर शासन-प्रशासन को चौंका दिया। सोशल मीडिया के युग में पुलिस वालों का अपनी सुरक्षा को लेकर दस घंटे तक का प्रदर्शन करना छोटी बात नहीं है। हालाँकि पुलिस के आला अधिकारियों के आश्वासन के बाद पुलिसकर्मियों ने 5 नवंबर को देर रात प्रदर्शन समाप्त तो कर दिया, परन्तु पुलिस की इस तरह की बगावत पूरे देश में चर्चा का विषय बन गई।

पुलिस बनाम वकील की बात तो अलग दिखी, इस प्रदर्शन में पुलिस बनाम पुलिस मामला भी दिखा। पुलिसकर्मी अपने मानवाधिकारों की सुरक्षा को लेकर प्रदर्शन करते रहे। इस प्रदर्शन में पुलिसकर्मियों के परिजनों ने भी भाग लिया और कहा कि वर्दी की हिफ़ाजत के लिए हमें सडक़ों पर उतरने को मजबूर होना पड़ा और कहा कि पुलिस वाले नौकरी देश सेवा के लिए करते हैं, न कि पिटने के लिए।

बताते चलें शायद यह मामला इतना तूल न पकड़ता अगर इसमें राजनीति न होती; क्योंकि घायल वकीलों को देखने तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल सेंट स्टीफंस अस्पताल गए, उनका हालचाल भी जाना और हर सम्भव मदद का आश्वासन भी दिया। जबकि दिल्ली पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनाटक घायल पुलिस जवानों को देखने अरुणा आसफ अली अस्पताल तक देखने नहीं गए; यह कहना है प्रदर्शनकारी पुलिसकर्मियों का। ऐसे में पुलिसकर्मियों में हताशा और निराशा बढ़ी है। पुलिस जवान के बगावती तेवर को लेकर पुलिस के आला अधिकारी मामले को शांत करने में लगे रहे; पर प्रदर्शनकारी पुलिसकर्मी अपनी माँगों को लेकर अड़े रहे। बाद दिल्ली पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक ने प्रदर्शनकारियों को सम्बोधित कर मामले को शांत करना चाहा, तभी किरण बेदी जैसे अफसरों की ज़रूरत जैसे नारे लगने लगे कि आज पुलिस को किरण बेदी जैसे अफसरों की ज़रूरत है। ऐसे में आयुक्त अपनी बात न रख सके। तमाम आश्वासन के बाद ही पुलिस जवानों ने प्रदर्शन को समाप्त किया।

िफलहाल जाँच प्रक्रिया कई स्तर पर गंभीरता से चल रही है। ऐसे में 5 नवंबर को बग़ावती तेवर से देर रात पीएमओ और गृह मंत्रालल मामले की पल-पल की जानकारी लेता रहा। सूत्रों का कहना है कि गृह मंत्रालय दिल्ली पुलिस की इस घटना से काफी खफ़़ा है; क्योंकि पुलिस ही अपनी माँगों को लेकर हड़ताल करने लगे, तो सरकार के प्रति देशवासियों का नज़रिया क्या होगा? गृह मंत्रालय शीघ्र ही कोई ठोस फैसले ले सकती है।

अगर पुलिस और वकील के बीच यह बखेड़ा हुआ है, तो उसकी जड़ में सोशल मीडिया है। पार्किंग विवाद के दौरान जब पुलिस वाले ने गोली चलाई और घायल होकर वकील गिरा पड़ा, तो तीस हजारी कोर्ट में मामला एकदम इस कदर भयावह हो गया कि अफरा-तफरी और भागो और मारो की आवाों आने लगीं। मामला यहाँ तक बढ़ा कि जिसको देखा, वही हिंसक बातें करता मिला। पुलिस और वकील के बीच जो मारपीट हो रही थी, उसको देखकर अपनी तारीख पर सुनवाई के लिए मुवक्किल व लोगों ने बताया कि मामला भयंकर गर्म था। उन्हें कोर्ट परिसर से बाहर निकलने तक में दिक्कत हुई। घटना स्थल पर मौज़ूद लोगों का कहना था कि दर्जनों की संख्या में पुलिस और सैकड़ों की संख्या में वकीलों के बीच जो खूनी संघर्ष चला उसको देखकर लगा कि ये कानून के रखवालों की अहम् की लड़ाई है; जिसमें मारने वाला भी रो रहा है और पिटना वाला भी। क्योंकि जब खूनी संघर्ष चल रहा था, तब वकीलों के कई ग्रुप हिंसक फोटो वायरल करने में लगे थे।

सोशल मीडिया की देन है कि एक ओर पुलिस और वकील भिड़ रहे, तो एक ओर वकीलों के कई ग्रुप खूनी संघर्ष की फोटो वायरल कर वकीलों को संगठित करने में लगे थे। दिल्ली के कडक़डड़ूमा कोर्ट, साकेत कोर्ट और द्वारका कोर्ट के वकीलों ने वकील एकता का परिचय दिया और हड़ताल कर दी। सोशल मीडिया के ज़रिये वायरल होकर जैसे ही यह मामला दूसरे राज्यों में पहुँचा, तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के वकीलों ने भी हड़ताल कर दी और देखते ही देखते कानपुर, इलाहाबाद से भी हड़ताल की खबरें आने लगीं; वहां भी पुलिस और वकीलों के बीच हिंसक झड़पें हुईं।

दिल्ली के उप राज्यपाल अनिल बैजल ने दोनों पक्षों से आपसी सौहार्द रखने की बात कही। उन्होंने मामले को गंभीरता से लेते हुए कहा कि दिल्ली पुलिस और वकील आपस में मिलकर मामले को निपटा लें; क्योंकि वकील और पुलिस दोनों ही कानून के रखवाले हैं। ऐसे में दोनों के बीच का विवाद ठीक नहीं है।

घटना में एडिशनल डी.सी.पी. हरेन्द्र कुमार व एस.एच.ओ. सहित 10 पुलिसकर्मिर्यों को चोटें आयीं। आठ वकील घायल हुए। वहीं 17-18 वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया, जिसमें एक पुलिस की जिप्सी भी वकीलों द्वारा जलायी गयी।

वकीलों का आरोप है कि पुलिस ने गोली चलायी, जिससे विजय शर्मा नामक वकील घायल हो गया। वकीलों का कहना है कि जब तक इस मामले में दोषी पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार और बर्खास्त नहीं किया जाता है, तब तक हड़ताल जारी रहेगी। दिल्ली बार एसोसिएशन के सीनियर वाइस प्रेसीडेंट इक्रांत शर्मा ने कहा कि वकीलों हड़ताल तब तक जारी रहेगी, जब तक दोषी पुलिस वालों के िखलाफ कार्रवाई नहीं होती। उन्होंने कहा कि पुलिस ने जो वकीलों पर गोली चलाई और अत्याचार किया है, उसको माफ नहीं किया जा सकता है। उन पुलिसकर्मियों को बर्खास्त करना चाहिए। उनके िखलाफ मुकदमा दर्ज होना चाहिए। वकीलों के अधिकारों के लिए संघर्षरत कडक़डड़ूमा कोर्ट के जाने-माने वकील पीयूष जैन का कहना है कि वकालत ही एक ऐसा पेशा है, जिसमें न्याय दिलाने के लिए हम लोग मेहनत करते हैं और संघर्षरत रहते हैं। उनका कहना है कि कितना दु:खद है कि आज पुलिस गोली भी वकीलों को मार रही है और अपनी सुरक्षा के लिए रो रही है। उन्होंने भी दोषी पुलिसकर्मियों के बर्खास्त होने तक हड़ताल जारी रहने की बात कही। दिल्ली हाई कोर्ट सीनियर एडवोकेट आनंद महेश्वरी का कहना है कि कानून के मंदिर में न्याय और अधिकारों के लिए संघर्ष होता है; पर पुलिस ने वकील पर गोली चलाकर ग़लत किया है, जो निंदनीय है। दोषी पुलिस वालों के िखलाफ कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि आगे से ऐसी घटना न हो सके।

बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा का कहना है कि तीस हजारी कोर्ट में जो भी हुआ वो निन्दनीय और शर्मनाक है। काउंसिल वकीलों के अधिकारों के साथ है और दोषी पुलिस वाले के िखलाफ कार्रवाई तक संघर्ष करेगी। उन्होंने कहा कि वकीलों को भी अपनी गरिमा बनाये रखना होगा। उन्होंने कहा कि उपद्रवी वकीलों को चिन्हित किया जायेगा ताकि फिर से ऐसी घटना न हो सके ।

ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर देवेश श्रीवास्तव ने बताया कि दिल्ली पुलिस के जो भी जवान घायल हुए हैं, उनका बेहतर इलाज करवाया जाएगा और जो भी माँगें हैं उन पर भी विचार किया जा रहा है। क्योंकि पुलिस का काम शांति बनाये रखना है, ऐसे में पुलिस के प्रदर्शन से मैसेज सही नहीं जा रहा है। ऐसे में पुलिस वाले अपनी नैतिकता व िज़म्मेदारी के साथ ड्यूटी पर जाएँ।

प्रदर्शनकारी पुलिस जवान राजीव भारद्वाज ने बताया कि दिल्ली पुलिस के जवान दिल्ली के नागरिकों की सुरक्षा के लिए अपनी जान की बाज़ी तक लगा देते हैं; ऐसे में पुलिस के साथ मारपीट की जाए और सरेराह गाली-गलौज और अपमानित किया जाए, तो मनोबल भी गिरेगा और भय भी पनपेगा।

दिल्ली पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनाटक ने दिल्ली के पुलिस जवानों से अपील की है कि वे किसी प्रकार के उकसावे में न आएँ और अपनी गरिमा को बनाए रखें। उन्होंने कहा कि हम सब देश के प्रतिष्ठित पुलिस बल का हिस्सा हैं। इसलिए अपनी प्रतिष्ठता को कायम रखें और किसी प्रकार से बहकावे में न आएँ। उन्होंने बताया कि रिव्यू पिटीशन के माध्यम से हमने जो मुद्दा उठाया था, उसमें भी हमें न्यायोचित राहत मिली है। आशा है कि आगे भी न्याय होगा।

दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल संजय ने बताया कि वकीलों ने जो पुलिस वालों के साथ किया है, वो यूनियन के दम पर किया है; क्योंकि वकीलों की यूनियन पूरे देश में हिंसक झड़पों के लिए जानी जाती है। हमारी भी यही माँग है कि पुलिस वाले अपनी माँगों को रखने के लिए एक यूनियन का गठन करें, ताकि वे भी अपने अधिकारों की बात को यूनियन के माध्यम से रख सकें। क्योंकि आए दिन अदालतों में वकीलों और पुलिस के बीच हिंसक झड़पें आम बात हो गयी है।

मुवक्किल रहे परेशान

वकीलों की हड़ताल से सबसे ज़्यादा अगर असर मुवक्किलों पर पड़ रहा है। मुवक्किलों का कहना है कि उनको वैसे ही अदालत में बार-बार आने-जाने में दिक्कत होती है। इस झगड़े से जो फैसले होने वाले थे, वे प्रभावित हुए हैं। वकीलों की हड़ताल के चलते चैक बाउंस का केस लड़ रहे रमन कुमार ने बताया कि तीन साल से केस लड़ रहे थे, उन्हें उम्मीद थी कि 4 या 5 नवंबर को मामला निपट जाएगा; पर हड़ताल के चलते ऐसा नहीं हो सका। लक्ष्मी नगर निवासी सुनील शर्मा ने बताया कि परिवारिक मामले का निपटारा होना था, पर इस झगड़े के चलते लटक गया।

72 साल में पहली बार पुलिस माँग रही सुरक्षा : कांग्रेस

कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि आज कानून के रखवाले ही अपनी माँगों को लेकर सडक़ों पर हैं। दिल्ली में 72 वर्षों में पहली बार देखा गया है कि आज पुलिस वाले अपनी सुरक्षा की माँग कर रहे हैं; जिन पर देश की सुरक्षा की जि़म्मेदारी है। ऐसे में आम नागरिकों की सुरक्षा की बात कैसे की जा सकती है। उन्होंने कहा कि देश के गृह मंत्री अमित शाह अपनी बात रखें, ताकि जो भय का माहौल बन चुका है, उससे राहत मिले। क्योंकि उत्तर भारत में क़ानून के स्तर में जो गिरावट आयी है। इससे पहले कभी भी नहीं देखी गयी है।