लड़ने से कोई फायदा नहीं

इन दिनों फेसबुक पर एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें एक माँ अपने नवजात बच्चे को देशभक्ति गीत सुना रही है- ‘सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा-हमारा।’ दुधमुँहा बच्चा माँ के मुँह से यह गीत सुनकर, अपनी माँ की तरफ देख-देखकर, मुस्कुराकर गाने की कोशिश कर रहा है। यह वीडियो इतना प्यारा लग रहा है कि अगर आप इसे एक बार देखें, तो पूरा देखे बगैर रह नहीं सकेंगे। इस वीडियो पर बहुत कम समय में हज़ारों लाइक और टिप्पडिय़ाँ आ चुकी हैं। आज सभी माता-पिता अगर बचपन से ही ऐसी शिक्षा बच्चों को दें कि उनके मन में देश के साथ-साथ भाईचारे और इंसानियत पैदा हो, तो शायद आने वाला समय नफरत से मुक्त हो। अगर ऐसा हो गया, तो केवल एक-दो देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया नफरत से मुक्त हो जाएगी और दंगे-फसाद, युद्ध, साज़िशें सब कुछ खत्म हो जाएगा। लेकिन ऐसा होना आसान नहीं है; क्योंकि कुछ लोग यह कभी नहीं चाहते कि लोग चैन से जीएँ। कहने को अक्सर कहा जाता है कि नफरत से यह दुनिया नहीं चलती, दुनिया प्यार से चलती है। लेकिन यह भी सच है कि नफरतें आजकल लोगों के दिल-ओ-दिमाग पर इस कदर हावी होती जा रही हैं कि इसका नतीजा अनेक भयावह घटनाओं के रूप में हमारे सामने आये दिन आता रहता है। दरअसल नफरत की आग बड़ा नुकसान कर देती है और यह अगर एक बार लग गयी, तो फिर लाख बुझाने पर भी हमेशा के लिए बुझी नहीं रह सकती। क्योंकि नफरत की एक छोटी-सी ङ्क्षचगारी कभी भी भयंकर आग का रूप ले सकती है। रहीमदास जी ने कहा है-

 ”रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय,

टूटे तो फिर न जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ जाय’’

आज के दौर में यह प्रेम का धागा जगह-जगह से टूटता जा रहा है, जिसे आने वाली नस्लें जोड़ नहीं पाएँगी। क्योंकि हम उनके दिलों में नफरत की आग सुलगा रहे हैं, और जो लोग यह आग सुलगा रहे हैं, वे सोचते हैं कि उनके पास पैसे और ताकत की ऐसी दीवारें हैं कि उनके घर कभी इस आग की चपेट में नहीं आएँगे। लेकिन यह गलत-फहमी है। आग नफरत की हो या असलियत की; उसका काम है कुछ-न-कुछ जलाना। इसलिए ऐसे लोगों को समझना चाहिए कि वे चाहे जितनी भी दौलत बटोर लें, चाहें कितनी भी सुरक्षा में रह लें; लेकिन एक दिन वे भी इस आग की चपेट में आएँगे-ही-आएँगे। दरअसल, ये नफरत फैलाने वाले लोग संसार को जीतना चाहते हैं, उस पर शासन करना चाहते हैं। लेकिन इतिहास गवाह है कि नफरत और युद्ध से संसार जीतने की कोशिश करने वालों का अन्त बुरा हुआ है और आज भी लोग उनका नाम आदर से नहीं लेते। मेरा एक दोहा है-

 ”वाणी निर्मल कीजिए, सबसे करिए प्यार,

कड़ुवाहट से ‘प्रेम जी’ किन जीता संसार?’’

वास्तव में कड़ुवाहट से तो हम किसी एक व्यक्ति का दिल भी नहीं जीत सकते, तो फिर संसार को कैसे जीत सकते हैं? कड़ुवी भाषा इंसान तो क्या, पशु-पक्षी भी स्वीकार नहीं करते।

हमें किसी से नफरत इसलिए भी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि नफरत से ङ्क्षनदा यानी मज़मत (किसी की बुराई करने के पाप) को जन्म देता है। इससे सामने वाले का नहीं, हमारा ही कद नीचा होता है।

संत कबीर दास कहते हैं-

 ”तिनका कबहू न ङ्क्षनदिये, जो पाँवन तर होय

कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय’’

अर्थात् तिनके की भी अवहेलना (ङ्क्षनदा) कभी मत कीजिए, उसे भी तुच्छ मत समझिए; जो कि पैरों के नीचे होता है। क्योंकि अगर कभी तिनका उड़कर आँख में पड़ गया, तो बहुत पीड़ा (दर्द) देगा। कहने का मतलब यह है कि कभी भी छोटे-से-छोटे इंसान या किसी प्राणी को भी कष्ट मत पहुँचाइए, उसका अपमान या शोषण मत कीजिए। क्योंकि यह मत सोचिए कि आप उससे शक्तिशाली हैं; वक्त बदला तो वही छोटा आदमी या प्राणी (जो तिनके के समान दिख रहा है) आपको भी विकट कष्ट पहुँचा सकता है।

बहुत-से लोग इस बात को नहीं समझते और वे अपने से छोटे लोगों या जीवों को हमेशा पैरों तले रौंदते रहने का काम करते रहते हैं। वे दूसरों को कभी मज़हब के नाम पर लूटते-पीटते हैं, तो कभी जातिवाद के नाम पर। ये वही लोग होते हैं, जिन्होंने मज़हबी दीवारों को खड़ा किया होता है; जो लगातार जातिवाद की विषबेल को सींचने का काम करते हैं। मगर ऐसे लोग भूल जाते हैं कि ईश्वर ने सभी को एक बनाया है और एक दिन उनको भी इस दुनिया से खाली हाथ विदा होना है। वे भूल जाते हैं कि जिस गलत काम को वे ज़िन्दगी भर करते हैं और जिस दौलत को पाने के लिए करते हैं, वह उनका साथ नहीं देगी। वे यह भी भूल जाते हैं कि वे जितनी महब्बत बाँटेंगे, उतने ही सम्मान और दु:ख के साथ लोग उन्हें विदा करेंगे।

ऐसे लोगों को समझना होगा कि मरने के बाद सोने की चादर में लपेटकर किसी को दुनिया से विदा नहीं किया जाता। चाहे कोई अमीर हो, चाहे गरीब, हर किसी को वही दो गज़ का सफेद कपड़ा यानी कफन ही ओढ़ाया जाता है। ऐसा नहीं है कि यह बात वे लोग नहीं जानते, जो दूसरों को तुच्छ समझते हैं और नफरतें फैलाते हैं। सब जानते हैं; लेकिन अपनी आदतों से बाज़ नहीं आते।

हाल के समय में यह सब खूब देखने को मिल रहा है। क्योंकि सत्ता और दौलत का नशा और लालच इन लोगों पर इस कदर हावी हुआ है कि वे इसके अलावा कुछ और देख ही नहीं पा रहे हैं। यही कारण हैं कि इसका अंजाम भी वे भूल बैठे हैं।

कुछ भी हो, ये ज़िम्मेदारी दुनिया के हर अच्छे इंसान की है कि वह इस नफरत की आग को न फैलने दे; ताकि ऐसे स्वार्थी और सत्ता के लालची लोग कामयाब न हो पाएँ। क्योंकि ऐसे लोग जितनी अधिक नफरतें हमारे बीच फैलाते जाएँगे, हम उतने ही कमज़ोर और दु:खी होते जाएँगे और हमारा जीवन नरक बनता जाएगा। क्या हमें ऐसा जीवन मंज़ूर होगा? नहीं। इसलिए आपस में लडऩे से कोई फायदा नहीं।