लुटती आबरू, सोती व्यवस्था

दिन-भर के थकाऊ काम के बाद शाम को घर लौटते हुए तेलंगाना में राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे 26 वर्षीय सरकारी पशु चिकित्सक के साथ सामूहिक दुष्कर्म और उसकी जघन्य हत्या ने देश को शर्मसार कर दिया है। घटना की भयावहता संकेत करती है कि देश में महिलाओं की सुरक्षा अभी भी एक कठिन लड़ाई है। हम महिलाओं को एक सामान्य और सम्मानजनक जीवन जीने के लिए एक सुरक्षित वातावरण प्रदान करने में विफल रहे हैं। देश भर में इस घटना के विरोध में उभरे शोक, आक्रोश और विरोध प्रदर्शनों के कारण रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को संसद में कहना पड़ा कि सरकार रेप से जुड़े कानून में और सख्त प्रावधान जोडऩे के लिए तैयार है। संसद में बहुत से सदस्यों की माँग थी कि रेप रोकने के लिए मृत्यु-दण्ड ही एकमात्र उपाय है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने भी आरोपियों को जल्द सज़ा के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट गठित करने का आदेश दिया है।

यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि हम कड़े कानून के बारे में बात तभी करते हैं, जब इस तरह की लोमहर्षक घटनाएँ हमारे सामने आती हैं। हैदराबाद की घटना की शिकार चिकित्सक उस समय एक नाबालिग रही होगी, जब 16 दिसंबर, 2012 को दिल्ली में सामूहिक बलात्कार और हत्या की घटना हुई थी और जिसने हमारी अंतरात्मा को झकझोरा था। लेकिन फिर भी हम महिलाओं का जीवन सुरक्षित बनाने में असफल रहे हैं। हमारे पास अभी भी कानून को कड़ाई से लागू करने की कुशल प्रणाली का अभाव है और पुलिस की नाक के नीचे आज भी देश-भर में बलात्कार और हत्यायाएं हो रहीं हैं। कानून लागू करने वाली एजेंसियाँ अपराध की दोषी हैं; क्योंकि वे महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने में असमर्थ रही हैं। दुष्कर्म के ऐसे अनगिनत मामले हैं, जिनमें पुलिस परिवार की शिकायत पर तेज़ी से कार्रवाई करने में विफल रही। वह कार्य क्षेत्र और इस तरह के अनेक बहाने बनाती रही, बजाय इसके कि लडक़ी को तलाशें और बचाये। बहुत दु:खदायी है कि डॉक्टर द्वारा अपनी बहन को फोन करने पर सवाल उठाया गया कि उसने अपनी बहन की जगह पुलिस को फोन क्यों नहीं किया? जबकि सवाल उठते हैं कि क्या यह पुलिस की ढिलाई नहीं है? क्या इतने गम्भीर अपराध के लिए पुलिस •िाम्मेदार नहीं है?

थॉमसन रॉयटर्स फाउण्डेशन की पिछले साल की रिपोर्ट में महिलाओं के मुद्दे पर 548 विशेषज्ञों का सर्वेक्षण किया गया था। उन्होंने महिलाओं के यौन उत्पीडऩ मामलों की घटनाओं के आधार पर भारत को सबसे •यादा असुरक्षित देश के रूप में रेखांकित किया था। इसके बाद पुलिस और अधिकारियों को अपनी मानसिकता बदलकर जागना चाहिए था; लेकिन अपराध नहीं रुके और नतीजा वही ढाक के तीन पात ही रहा। समस्या यह है कि हम विषाक्त मर्दानगी और पितृसत्ता वाली मानसिकता से अभी छुटकारा नहीं पा सके हैं। महिला सुरक्षा प्रदान करने के लिए राज्य और समाज की अक्षमता ने महिलाओं को एक तरह से दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया है, जिनके मौलिक अधिकारों का लगातार चीरहरण हो रहा है। ऐसे में पुलिस को कार्य क्षेत्र में सवालिया भूमिका से बाहर निकलकर अपराध के प्रति शून्य सहिष्णुता वाला सिस्टम तैयार करके पुलिस को अधिक कुशल और •िाम्मेदार बनना होगा। हम भारत को महिलाओं के लिए खतरनाक नहीं होने दे सकते। हैदराबाद की पशु चिकित्सक के साथ जो हुआ, वह हममें से किसी एक के भी साथ घटित हो सकता है। क्या हमारा आक्रोश लम्बे समय तक रहेगा या फिर नये एजेंडे के साथ गन्दी राजनीति होगी? हमारी हार, हमारे अपने लिए जोखिम के नये क्षेत्र खोलने जैसी होगी!