‘लहू से मेरी पेशानी पे हिन्दुस्तान लिख देना’

इसे कोरोना वायरस जैसी महामारी फैलने का बहाना कहें या सन् 2020 की त्रासदी? इस साल के शुरू से अब तक दुनिया भर में लाखों लोग काल के गाल में समा गये। कई बड़ी हस्तियाँ भी विस्मित कर देने वाली दशा में चल बसीं। ऐसी ही मशहूर-ओ-मकबूल हस्ती, अज़ीम शाइर राहत इंदौरी ने भी 11 अगस्त के दिन दुनिया को अलविदा कह दिया। उनके दुनिया से चले जाने की खबर से दबिस्तान-ए-अदब को एक झटका-सा लगा है। झटका यूँ भी लगा, क्योंकि किसी को भी इसकी कतई उम्मीद नहीं थी कि राहत इंदौरी यूँ अचानक उठकर चले जाएँगे।

उनसे मेरी कुछेक मुलाकातें यूँ ही मुशायरों में शाइर और सामयीन की तरह चलते-फिरते दुआ-सलाम की तरह ही हुई थीं। लेकिन नवंबर, 2019 में जब मैंने ‘तहलका’ में ज़िम्मेदारी सँभाली, तब अपने सम्पादकीय वरिष्ठों से ‘साहित्य’ नाम से साहित्यिक सामग्री प्रकाशित करने की इजाज़त माँगी; जो मुझे सहर्ष मिल भी गयी। तब मैंने निर्णय लिया कि कुछ बड़े शाइरों-कवियों के साक्षात्कार प्रकाशित किये जाएँ। इस फेहरिश्त में दुनिया भर में मशहूर शाइर राहत इंदौरी का नाम भी था। मेरे पास उनका फोन नम्बर नहीं था, जो मैंने उनके अज़ीज़ दोस्त मशहूर शाइर मुनव्वर राणा से लिया। जब मेरी फोन पर मुहतरम राहत इंदौरी से बात हुई, तो मुझे उम्मीद ही नहीं थी कि वह मुझे मेरे नाम से पुकारेंगे।

हो सकता है कि यह मोबाइल एप ट्रू-कलर का कमाल हो या फिर मुमकिन है कि उन्हें उनके साक्षात्कार की मेरी ख्वाहिश के बारे में मुनव्वर राणा साहब ने बता दिया हो। फोन उठते ही आवाज़ आयी- ‘जी, प्रेम भाई! नमस्कार।’ मैंने हैरत भरे अंजाज़ में बड़े अदब से उन्हें सलाम किया और हालचाल पूछने के बाद अपने दिल की बात उनके सामने रखी।

उन्होंने बड़ी मुहब्बत और आत्मीयता से कहा- ‘प्रेम भाई! इंशा अल्लाह जल्द ही दिल्ली आऊँगा और आपसे मिलूँगा।’ ‘ठीक है हुज़ूर! मैं इंतज़ार करूँगा।’ -मैंने कहा और उन्होंने जैसे मुस्कुराते हुए कहा- ‘आपकी मुहब्बतें प्रेम भाई! अल्लाह ने चाहा, तो जल्द मुलाकात होगी। नमस्कार’ मेरे मुँह से निकला- ‘नमस्कार हुज़ूर! अल्लाह हाफिज़।’ उधर से आवाज़ आयी- ‘अल्लाह हाफिज़ प्रेम भाई!’ मेरे कानों में पड़े यह उनके आखरी अल्फाज़ थे, जो 11 अगस्त को उनके दुनिया से अलविदा कह देने की खबर के साथ अचानक मेरे कानों में फिर से गूँज गये। राहत इंदौरी के इंतकाल फरमा जाने की खबर से मैं सन्न था, मेरे मुँह से सिर्फ इतना निकला- ओह! यह क्या हो गया?

राहत इंदौरी ऐसी शिख्सयत थे, जिन्हें दुनिया भर में बेहद मुहब्बत मिली; लेकिन हिन्दुस्सान में ही कुछ लोगों की वजह से उन्हें विवादों का सामना भी करना पड़ा। खैर, मैं उस मामले में नहीं जाना चाहता, लेकिन इतना ज़रूर कहूँगा कि राहत इंदौरी अपने देश और देशवासियों से बहुत मुहब्बत करते थे। यह उनकी शाइरी में कई जगह साफ देखने को मिलता है। हर बात को शाइरी में ढाल देना और गम्भीर-से-गम्भीर बात को हँसते-हँसते बड़े लाजवाब अंदाज़ में कह देना इस अज़ीम शाइर का सबसे बड़ा फन था। वह कहते हैं :-

‘मैं मर जाऊँ तो मेरी एक अलग पहचान लिख देना।

लहू से  मेरी पेशानी पे हिन्दुस्तान लिख देना।।’

‘दो गज़ सही मगर ये मेरी मिल्कियत तो है।

ऐ मौत  तूने  मुझको ज़मींदार कर दिया।।’

‘जनाज़े पर मेरे लिख देना यारो,

मोहब्बत करने वाला जा रहा है।’

मैं उन्हें गलत ठहराने वालों से इतना ही कहना चाहूँगा कि जिसने आपको कभी नफरत नहीं बाँटी, उससे आप नफरत क्यों और कैसे कर सकते हैं? लिखने को बहुत कुछ है और उन पर कई दीवान लिखे जा सकते हैं; लेकिन जगह का अभाव है। अन्त में इतना ही कहना चाहूँगा कि राहत इंदौरी का जिस्म सुपुर्द-ए-खाक हुआ है, पर राहत इंदौरी हिन्दुस्तान की आब-ओ-हवा, हिन्दोस्तानियों के दिलों में ज़िन्दा हैं, ज़िन्दा रहेंगे और दुनिया रहने तक उनकी शाइरी लोगों को उनकी याद दिलाती रहेगी। अंत में :-

नाम हमेशा रहता है, जो लोगों को अज़बर है।

खाक सुपुर्द-ए-खाक हुई, ‘राहत’ दिल के अन्दर है।।