राहुल परिवारवाद के खिलाफ कार्यसमिति में उनका इस्तीफा खारिज!

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पार्टी में बढ़ते परिवारवाद से बहुत नाराज़ हैं। कांग्रेस पर परिवारवाद के आरोप भी लगते रहे हैं। राहुल खुद नेहरू-गांधी परिवार की विरासत  हैं। आम चुनाव-2019 में आए जनादेश का सम्मान करते हुए उन्होंने खुद को नतीजों के लिए जिम्मेदार माना था। शनिवार (25 मई) को हुई कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में उन्होंने अपने इस्तीफे की पेशकश की। हालांकि कार्यसमिति ने एक सुर से उनके इस्तीफे को खारिज कर दिया। उन्हें पार्टी में पूर्ण बदलाव और पार्टी में हर स्तर की समीक्षा करने और बदलाव का फैसला लेने का अधिकार भी सौंपा गया। हालांकि अभी उन्होंने अपना रुख जाहिर नहीं किया है।

सोनिया गांधी ने कांग्रेस कार्यसमिति के नजरिए से अपनी सहमति तो जताई लेकिन उन्होंने राहुल के फैसले पर भी ज़ोर दिया। जानकारों के अनुसार जब एक मुख्यमंत्री और एक वरिष्ठ सदस्य ने बैठक में यह कहा कि राज्य के नेताओं को ज्य़ादा अधिकार मिलने चाहिए तो राहुल ने कहा, उन्होंने राज्य स्तरीय नेताओं को हमेशा ज्य़ादा अधिकार दिए हैं। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि एक मुख्यमंत्री और दूसरे राज्य के एक वरिष्ठ नेता दिल्ली में तब तक जमे रहे जब तक उनके बच्चों को टिकट नहीं मिल गया। जबकि उन्हें तब अपने राज्य में चुनाव प्रचार करना चाहिए था। लेकिन मुख्यमंत्री महोदय अड़े ही नहीं रहे बल्कि उन्होंने तो इस्तीफा देने की धमकी भी दी।

आम चुनाव-2019 के चुनावी नतीजों का जायजा लेने के लिए हुईं कार्यसमिति की इस बैठक में ही एक वरिष्ठ नेता को अपने आंसू पोंछते हुए भी देखा गया। राहुल ने कहा कि कांग्रेस में गांधी परिवार से अलग लोगों को भी अध्यक्ष होने का मौका मिला है। खास तौर पर आज़ादी की लड़ाई के दौरान भी और बाद में भी।

जानकारों के अनुसार यदि राहुल इस्तीफे पर अड़े रहते हैं तो पंजाब के मुख्यमंत्री और वरिष्ठ नेता अमरिंदर सिंह को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष पद सौंपा जा सकता है।

कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक तकरीबन चार घंटे चली। इसमें हार की प्रमुख वजहों का जायजा लिया गया। चंूकि जल्दी ही तीन प्रदेशों में चुनाव होने हैं इसलिए पार्टी अध्यक्ष को ही संगठन को प्रभावी, चुस्त और कामयाब बनाने के लिए तैयारी करने की जिम्मेदारी भी सौंपी। कार्य समिति ने उनसे अनुरोध किया कि वैचारिक लड़ाई में देश के युवाओं को साथ लेते हुए वे समाज की अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग, गरीबों और अल्पसंख्यकों को पार्टी में सक्रिय करें और उनके लिए संघर्ष करें।

पार्टी अध्यक्ष पद से हटने पर ज़ोर दे रहे राहुल गांधी ने कहा कि पहले भी पार्टी के अध्यक्ष वे लोग होते रहे हैं जो कभी गांधी परिवार से जुड़े हुए नहीं थे। लेकिन उनके तर्क को कांगे्रस कार्यसमिति ने स्वीकार नहीं किया। पार्टी अध्यक्ष बनने से सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी इंकार कर दिया था।

कांग्रेस कार्यसमिति में बोलते हुए प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा कि आज इस्तीफे देने का समय नहीं है। हार की वजहों का पता लगाया जाना चाहिए और पार्टी में संगठनात्मक बदलाव और फेरबदल का अधिकार पार्टी अध्यक्ष को दिया जाना चाहिए जिससे भाजपा जैसी समर्थ पार्टी का समुचित मुकाबला किया जा सके।

कार्य समिति की बैठक में तकरीबन सभी लोगों ने अपनी बात कही। कुछ ने ईवीएम मशीनों से छेड़छाड़, देश की सीमाओं की रक्षा, बालाकोट जैसे मुद्दों पर जनता में भाजपा के हावी होने की बात कही। हालांकि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, आनंद शर्मा, आरपीएम सिंह और रणदीप सुरजेवाला ने कहा भाजपा ने राष्ट्रवाद और हिंदुत्व पर चुनाव लड़ा। जबकि कांग्रेस ने आर्थिक मुद्दों, बेरोज़गारी, महंगाई आदि पर चुनाव लड़ा। हो सकता है कि हम न्याय की अवधारणा जन-जन तक न पहुंचा पाए हों और एएफएस पीए और देश विरोधी कानूनों को हल्का करने की जो बात चुनावी मैनीफेस्टों में कही गई है उसे समझा पाने में विपक्षी दल कामयाब रहे हों। कुछ बूथ स्तर पर बनी कमेटियों के सदस्यों की गैरहाजि़री बता रहे थे जिसके कारण देश की विशालता के अनुरूप पार्टी के कार्यकर्ताओं की सक्रियता नहीं दिखी।

जानकारों के अनुसार राहुल गांधी ने कहा कि तीन राज्यों में जीत के बाद कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं में सुस्ती का दौर-दौरा छाया जिसका असर चुनावी प्रचार पर साफ दिखा।

राहुल गांधी ने यह भी कहा कि यह चुनावी जंग सिर्फ वैचारिक नहीं बल्कि धार्मिक भी थी। मल्लिकार्जुन खडग़े ने जो प्रस्ताव पेश किया उसमें यह कहा गया कि कांगे्रस कार्यसमिति एक सुर से राहुल गांधी के त्यागपत्र की पेशकश को खारिज करती है और उनसे अनुरोध करती है कि पार्टी उनके नेतृत्व और मार्गदर्शन में चुनौतीपूर्ण तरीके से मुकाबला कर सकेगी।

कांगे्रस कार्य समिति पूरी तौर पर चुनौतियों, नाकामियों और अपनी कमियों को अच्छी तरह जानती-समझती है। जो कुछ भी गड़बडिय़ां पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं से हुई हैं उनकी निजी तौर पर अच्छी तरह से छानबीन की जाए और कांगे्रस अध्यक्ष को यह पूरा अधिकार है कि वे पार्टी में पूरी तौर पर जहां भी ज़रूरी समझें, बदलाव करें। वे पार्टी में हर स्तर पर आमूल चूक बदलाव करें और इसे नई सदी की युवा पार्टी के तौर पर भी बदलें।

रायबरेली सीट से उत्तरप्रदेश में अकेली जीतीं सोनिया गांधी ने कहा कि वे कार्यसमिति के नज़रिए से सहमत है। लेकिन राहुल यदि अध्यक्ष पद पर नहीं रहना चाहते तो यह उनका फैसला है। प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा कि राहुल को अध्यक्ष पद पर बने रहना चाहिए। अभी आगे और भी चुनौतियां हैं जिनका अच्छा मुकाबला किया जाना चाहिए।

राहुल जब से कांग्रेस के अध्यक्ष बने तब से लगातार वे चुनावों की विभिन्न चुनौतियों का सामना करते रहे। कांग्रेस के अध्यक्ष बनते ही गुजरात में जो कामयाबी रही। मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जिस तरह उन्होंने कांगे्रस के लोगों के साथ संगठन के काम को देखा-संभाला उसे उनके धुर विरोधी भी सराहते हैं। उनके नेतृत्व में लोकसभा में कांगे्रस पार्टी को जो सीटें मिली हैं वे पिछली लोकसभा में हासिल 44 सीटों से कुछ बढ़ कर 51 तो तो हुई ही हैं। यह सही है कि पार्टी का संगठन बहुत निराशाजनक अवस्था में था। कम से कम इस लोकसभा चुनाव में इस कमी को दूर किया जा सकेगा।

यह सही है कि कांगे्रस इस बार लोकसभा में दस फीसद सीट न पाने के चलते विपक्ष की नेता के रूप में नही आएगी। लेकिन आने वाले दिनों में भी ऐसी ही स्थिति होगी यह संभावना निश्चय ही कम है। प्रियंका गांधी वाड्रा आखिरी समय में काफी देर में सक्रिय हुईं। लेकिन अब वे भी पार्टी में सक्रिय हैं। इससे संभावनाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

कांग्रेस से भी ज्य़ादा खराब हालत उन छोटी पार्टियों की हुई जिनके बारे में यह सोचा नहीं जा सकता था कि वे इस तरह मुंह की खाएगी। उत्तरप्रदेश बिहार, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र में विपक्ष की जो स्थिति है उस पर पुनर्विचार और नई योजना बनाने और संगठन मज़बूत करना बेहद ज़रूरी है। मजबूत विपक्ष होने से ही मजबूत लोकतंत्र पनप सकता है।