यूरोपीय संघ में सीएए : भारत की कूटनीतिक जीत

यूरोपीय संसद में भारत के लिए यह बड़ी कूटनीतिक जीत रही कि वहाँ नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के िखलाफ एक संयुक्त प्रस्ताव पर होने वाले मतदान को मार्च 2020 तक टलवाने में सफल रहा। सीएए के िखलाफ वोटिंग का प्रस्ताव यूरोपीय पीपुल्स पार्टी के सदस्य माइकल गहलर द्वारा लाया गया। 751 सदस्यीय यूरोपीय संसद के 483 सदस्यों में से 271 सदस्य ने स्थगन के पक्ष में अपना मत दिया। यूरोपीय संसद में वोटिंग में देरी किये जाने का विरोध करने वाले 199 सदस्य थे, जिनमें 13 ने मतदान नीं किया।

पाकिस्तान की ओर से की गयी इस पैरवी को विफलता के रूप में देखा गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी 13 मार्च को भारत-यूरोपीय संघ के शिखर स मेलन में शिरकत करने वाले हैं और भारत ब्रसेल्स यूरोपीय द्विपक्षीय व्यापार संघ का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। भारत के साथ कारोबार की बात करें तो 2018 में 92 अरब यूरो का कुल व्यापार हुआ।

यूरोपीय संसद में छ: सांसदों ने प्रस्ताव के ज़रिये भारत पर विवादास्पद सीएए को लेकर तीखे हमले किये थे। साथ ही इसे भेदभावपूर्ण कानून करार दिया। इसके साथ ही राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के लिए माँगी जा रही जानकारी से उत्पन्न होने वाली मुश्किलों से अवगत कराया। कहा गया कि यदि यह सह लागू किया जाता है, तो आशंका है कि करोड़ों भारतीय, जिनमें ज़्यादातर गरीब होंगे और अपने ही देश की नागरिकता खो देने को मजबूर होंगे। आलोचना का सबसे अहम प्रस्ताव यूरोपी संघ के दूसरे सबसे बड़े पॉलिटिकल ग्रुप प्रोग्रेसिव अलायंस ऑफ सोशलिस्ट्स एंड डेमोक्रेट्स द्वारा लाया गया, जिसमें कहा कि गया इससे सीएए से दुनिया में सबसे बड़ा शरणार्थी (गैर नागरिकता) संकट पैदा हो सकता है।

अब सवाल यह उठता है कि हमने ऐसी स्थिति क्यों बनायी, जिससे दूसरों को हमारे देश की छवि धूमिल करने का अवसर मिला? कई विशेषज्ञों का कहना है कि एनपीआर, सीएए और एनआरसी के लिए सरकार को इतनी जल्दबाज़ी क्यों पड़ी है? जबकि दूसरी ओर बढ़ती बेरोज़गारी और घटती जीडीपी जैसे परेशान करने वाले मुद्दे सामने हैं। सीएए और एनआरसी को लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, जिससे हजारों आदमी काम पर नहीं जा रहे हैं। यह विरोध प्रदर्शन पिछले साल 15 दिसंबर को शुरू हुआ था, लेकिन सब व्यर्थ का ही है। ऐसा स्वस्थ लोकतंत्र में होना ही नहीं चाहिए।

सत्ताधारियों के जनप्रतिनिधियों को एनपीआर, सीएए और एनआरसी को मामले में विरोध करने वालों से सम्पर्क करना ही चाहिए और उनकी शिकायतों को सुनना चाहिए। किसी ने नागरिकता देने के इस कदम का विरोध नहीं किया, जिसमें धार्मिक आधार सताये गये पाँच साल पहले आ चुके अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के नागरिकों के लिए ऐसी व्यवस्था करने का केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अपने भाषण में उल्लेख किया। समस्या की जड़ यह है कि सताये गये लोगों की पहचान धर्म देखकर की जाती है। यह स्पष्ट रूप से भारतीय संविधान के िखलाफ, जिसके मूल में धर्मनिरपेक्षता है।

जैसा कि प्रख्यात गीतकार और चिंतक जावेद अख्तर ने कुछ दिन पहले कहा था कि देश के संविधान के संस्थापकों सर्वधर्म समभाव का सम्मान ऐसे समय में करने का फैसला किया था, जब उस समय देश साम्प्रदायिकता की लाग में जल रहा था। 1947 में देश विभाजन के बाद भारत की छवि एक अच्छे आगे बढ़ते हुए राष्ट्र के शान के रूप में प्रस्तुत करने की भी थी। अन्तर ने इशारा किया यह हमें विरासत में मिला कि हमारी सुरक्षा को कोई खतरा नहीं है।

संविधान के संस्थापक का कद तब और बढ़ जाता है, जब हमें पता चलता है कि उन्होंने यह सुनिश्चित करने का फैसला किया कि विभाजन के तत्काल बाद भी देश में धर्मनिरपेक्षता बनी रहे। यह उनका भारत को लेकर विचार था कि भारत में किसी व्यक्ति को धर्म के आधार या आस्था, जाति, रंग, पंथ, भाषा, क्षेत्र आदि को लेकर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। इस तरह भारत की छवि दुनिया में लोकतंत्र की बनी।

यहाँ कुछ बेहद मर्मस्पर्शी घटनाएँ हैं, जो मेरे दिमाग में चल रही हैं। तीन दशक पहले हमें ऊपर वाले के करम से एक बेटी का पिता बनने का उपहार मिला, वह महज़ कुछ महीने ही जीवित रह सकीं। जब उसकी मृत्यु हो गयी, तो हम उसकी नमाज़-ए-जनाज़ा अदा कर रहे थे, तो मेरे पास में एक शख्स खड़े थे। गैर-मुस्लिम होने के नाते उसे नहीं पता था कि नमाज़ का तरीका क्या है? लेकिन दु:ख की इस घड़ी में वह तमाम क्रियाकलापों में हमारे साथ था। यह हमारे भारतीय होने का सुबूत थे कि हम कैसे साथ रहते हैं और वर्षों से सुख और दु:ख की घड़ी दूसरे से साझा करते रहे हैं।

ऐसा ही हमारा भारत रहा है। हमने एक बगीचे में विभिन्न फूलों की तरह रहना सीख लिया है। सीएए-एनपीआर-एनआरसी हमारी मातृभूमि के चरित्र को डाँवाडोल नहीं कर सकते हैं। ऐसे विभाजनकारी कदमों को इससे पहले कि देर हो जाए, तत्काल खत्म कर दिये जाने चाहिए। इस तरह से हम अपने मुल्क के दुश्मनों और देश पर उँगली उठाने वालों को रोक सकते हैं।