मौत के रन-वे!

देश के बहुत-से हवाई अड्डों पर सम्भावित दुर्घटना के खतरों को लेकर विशेषज्ञों और विभिन्न समितियों ने समय-समय पर वहाँ की खामियों को दूर करने की सिफारिशें की हैं; लेकिन ज़्यादातर सिफारिशों की फाइलें अलमारियों में धूल फाँक रही हैं। अगर ज़िम्मेदार लोगों ने 10 साल पहले 160 लोगों की जान लेने वाले मंगलूरु के टेबल टॉप हवाई अड्डे के विमान हादसे से सबक लिया होता, तो शायद कोझिकोड का यह हादसा टल सकता था। यदि भविष्य में देश के हवाई अड्डों पर से हादसों के खतरे को टालना है, तो कोझिकोड विमान हादसे से सबक लेने की ज़रूरत है। प्रस्तुत है कोझिकोड विमान हादसे पर विशेष संवाददाता राकेश रॉकी की रिपोर्ट :-

कोझिकोड विमान हादसे ने इस बात को एक बार फिर साबित कर दिया है कि कैसे हमारे देश में आपात मामलों में भी आपराधिक लापरवाही बरती जाती है। वहाँ के डाउनस्लोप (ढलान) वाले टेबल टॉप रन-वे पर गम्भीर खतरे को इंगित करते हुए 10 साल पहले इसके रन-वे के कम बफर एरिया को बढ़ाने की सिफारिश और खतरे की चेतावनी के बावजूद इस पर कुछ नहीं हुआ।

इस हवाई अड्डे का निरीक्षण करने के बाद डीजीसीए ने एक साल पहले कारण बताओ नोटिस जारी किया था। इसमें कहा गया था कि वहाँ का रखरखाब तय पैमानों के मुताबिक नहीं है। डीजीसीए ने वहाँ रबर डिपॉजिट की बात कही थी। तहलका की जानकारी के मुताबिक, देश भर में 11 हवाई अड्डों को हाई रिस्क की श्रेणी में रखा गया है। फिर भी वहाँ रन-वे के मामलों में पिछले वर्षों में कुछ खास काम नहीं हुआ है। हैरानी की बात यह है कि भारत में आज तक जो बड़े विमान हादसे हुए हैं, उनमें से ज़्यादातर एयर इंडिया या तत्कालीन इंडियन एयरलाइंस के रहे हैं।

तहलका के द्वारा जुटायी जानकारी के मुताबिक, 2010 में जब मंगलूरु में एयर इंडिया एक्सप्रेस विमान हादसे का शिकार हुआ था, तो देश के सभी टेबल टॉप रन-वे को लेकर खतरों को सूचीवद्ध करने की कवायद हुई थी। इस हादसे में 160 लोगों की जान चली गयी थी। लेकिन यह सारी कवायद कागज़ों में ही सीमित रह गयी और उन पर कोई काम नहीं हुआ।

रन-वे के इस खतरे के कारण ही कई अंतर्राष्ट्रीय एयरलाइंस, जिनमें बोइंग 777 और एयरबेस ए-330 जेट विमान शामिल हैं; ने कोझिकोड को अपनी ऑपरेशन स्टेशन्स की सूची से बाहर कर दिया था। केरल में जो चार हवाई अड्डे हैं, उनमें कोझिकोड का रन-वे सबसे छोटा, खतरनाक है, जो दोनों तरफ से खुला है।

देश में कुछ हवाई अड्डे ऐसे हैं, जो पहाड़ी के ऊपर बने हैं। इन हवाई अड्डों पर पट्टी के दोनों या एक तरफ खाई (ढलान) होती है, लिहाज़ा इन टेबल टॉप रन-वे में लैंडिंग का बहुत ज़्यादा जोखिम होता है। करीब 9 साल पहले एयर सेफ्टी एक्सपर्ट और तब सुरक्षा सलाहकार समिति के सदस्य कैप्टन मोहन रंगनाथन ने अपनी रिपोर्ट में साफ कहा था कि कोझिकोड (उस समय कालीकट) का हवाई अड्डा लैंडिंग के लिए बिल्कुल सुरक्षित नहीं है। लेकिन उनकी चेतावनी और सिफारिशों को नज़रअंदाज़ कर दिया गया।

तहलका की जानकारी के मुताबिक, ठीक एक साल पहले जुलाई, 2019 में भी इसी हवाई अड्डे पर एक बड़ा हादसा होने से टल गया था। तब एयर इंडिया एक्सप्रेस का ही विमान लैंडिंग के दौरान हादसे का शिकार होते-होते बचा था। स्ट्रिप पर उतरते ही विमान का पिछला हिस्सा रन-वे को छू गया था। हालाँकि विमान और सभी यात्री सुरक्षित बच गये थे।

कालीकट हवाई अड्डे पर पहले भी दुर्घटनाएँ हुई हैं। रिकॉर्ड के मुताबिक, 9 जुलाई, 2012 को एयर इंडिया एक्सप्रेस उड़ान बोइंग 737-800 लैंडिंग के दौरान रन-वे पर फिसल गयी। उस दिन भी भारी बारिश हुई थी। हालाँकि हादसे में किसी सवारी को कोई नुकसान नहीं हुआ। इसके बाद 4 अगस्त, 2017 को लैंडिंग के दौरान स्पाइसजेट का विमान रन-वे पर फिसल गया। इससे विमान का आईएलएस बीकन क्षतिग्रस्त हो गया।

यदि लोबल विमान ट्रैकर की वेबसाइट देखें, तो उस पर दर्शाया गया है कि केरल के कोझिकोड हवाई अड्डे के रन-वे पर हादसे के शिकार एयर इंडिया एक्सप्रेस विमान को कम-से-कम दो बार लैंड कराने की कोशिश की गयी थी। हादसे के बाद नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) ने कहा कि विमान लैंडिंग के बाद रन-वे पर रोका नहीं जा सका और रन-वे को पार करके घाटी में गिर गया। जानकारी के मुताबिक, इस हवाई अड्डे की बनावट के कारण ही पिछले दिनों लगातार बारिश के कारण भी रन-वे को काफी नुकसान पहुँचा था।

यह बड़ा सवाल है कि जब नौ साल पहले इस हवाई अड्डे पर खतरे को लेकर चेतावनी जारी की गयी थी, तो क्यों उसमें सुधार नहीं किया गया? कोझिकोड में डाउनस्लोप वाला टेबलटॉप रन-वे है। रन-वे के आिखर में बफर एरिया (सुरक्षा की दृष्टि से अतिरिक्त क्षेत्र) पर्याप्त रूप से होना चाहिए, जो वहाँ नहीं है।

नियमों के मुताबिक, इस तरह के हवाई अड्डे में रन-वे के बाद 240 मीटर का ऐसा बफर एरिया होना चाहिए, जो आपातकाल में काम आये। जानकारी के मुताबिक, कोझिकोड के हवाई अड्डे पर यह मात्र 90 मीटर है। हैरानी की बात यह है कि इसे डीजीसीए की मंज़ूरी मिली थी, जिसने खुद एक साल पहले हवाई पट्टी पर रबर डिपॉजिट को लेकर सवाल खड़े किये थे। यही नहीं, वहाँ रन-वे के दोनों तरफ भी स्थान बहुत सँकरा है। वहाँ अनिवार्य रूप से 100 मीटर जगह होनी चाहिए, जो इससे कहीं कम 75 मीटर ही है।

विशेषज्ञों के मुताबिक, हवाई अड्डों पर बारिश के समय टेबल टॉप रन-वे पर जहाज़ों के परिचालन को लेकर कोई दिशा-निर्देश नहीं है। नागर विमानन सचिव और महानिदेशक नागरिक उड्डयन को 17 जून, 2011 को नागर विमानन सुरक्षा सलाहकार समिति (सीएएसएसी) के अध्यक्ष को लिखे पत्र में कैप्टन मोहन रंगनाथन ने कहा था कि रन-वे एंड सेफ्टी एरिया (आरईएसए) की कमी को देखते हुए रन-वे 10 अप्रोच (जहाँ हादसा हुआ) को अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। साथ ही 240 मीटर के आरईएसए को तुरन्त शुरू किया जाना चाहिए और परिचालन को सुरक्षित बनाने के लिए रन-वे की लम्बाई को कम करना होगा।

कोझिकोड के हवाई अड्डे को लेकर सुरक्षा सलाहकार समिति ने कहा था कि यदि कोई विमान रन-वे के भीतर रुकने में असमर्थ है, तो अन्त तक वहाँ कोई आरईएसए नहीं है। आईएलएस स्थानीयकरण एंटीना को एक ठोस संरचना पर रखा गया है और इसके आगे का क्षेत्र ढलान वाला है। इसके मुताबिक, मंगलूरु में एयर इंडिया एक्सप्रेस दुर्घटना ने रन-वे की स्थिति को सुरक्षित बनाने के लिए एएआई को सचेत किया है। हम सीएएसएसी की प्रारम्भिक उप-समूह बैठकों के दौरान आरईएसए का मुद्दा उठा चुके हैं। हमने विशेष रूप से उल्लेख किया था कि आईसीएओ अनुलनक 14 के आवश्यक अनुपालन के लिए दोनों रन-वे के लिए घोषित दूरी को कम करना होगा।

एक साल पहले कोझिकोड हवाई अड्डे का निरीक्षण करने के बाद वहाँ गड़बडिय़ों को देखते हुए डीजीसीए ने बाकायदा हवाई अड्डे को कारण बताओ नोटिस जारी किया था। इस नोटिस में साफ कहा गया था कि हवाई अड्डे पर रखरखाब ज़रूरी पैमानों के मुताबिक नहीं है। तहलका की जानकारी के मुताबिक, कोझिकोड के कालीकट हवाई अड्डे के खिलाफ डीजीसीए ने यह कारण बताओ नोटिस 4 जुलाई, 2019 को जारी किया था। डीजीसीए की टीम ने अपने निरीक्षण के दौरान पाया था कि हवाई अड्डे /रन-वे पर बहुत-सी खामियाँ हैं।

जानकारी के मुताबिक, डीजीसीए की जाँच टीम ने इन खामियों को लेकर हवाई अड्डे  प्रशासन से जवाब तलब किया था। हालाँकि उन्हें कोई सन्तोषजनक जवाब नहीं मिला था।

इस तरह देखा जाये तो एक तरह से डीजीसीए टीम ने इस हवाई अड्डे पर को खामियाँ देखी थीं, वे लैंडिंग के लिहाज़ से खतरनाक थीं। अर्थात् वहाँ लैंडिंग रिस्की थी। लेकिन इसके बावजूद इन खामियों को दूर करने की कोई कोशिश नहीं हुई।

इन खामियों को देखते हुए और हवाई अड्डे प्रशासन की तरफ से असन्तोषजनक उत्तर के बाद उसे 5 जुलाई को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। यह पता नहीं कि इसके जवाब में कोझिकोड हवाई अड्डे प्रशासन ने क्या कहा? लेकिन उसमें यह ज़रूर कहा गया था कि इन कमियों को सुधारने की कोशिश की जाएगी। लेकिन इस दिशा में कुछ खास हुआ नहीं।

डीजीसीए के कारण बताओ नोटिस में जो बिन्दु उठाये गये थे, उनके मुताबिक इस हवाई अड्डे पर बारिश में जलभराव (वाटर लॉगिंग) की गम्भीर समस्या है। ज़रूरी रखरखाव न होने से पट्टी पर दरारें (क्रैक्स) हैं। यही नहीं जहाज़ों की लैंडिंग से रन-वे पर बड़ी मात्रा में रबर डिपॉजिट हो गया है। इसे हटाया जाना ज़रूरी होता है।

हालाँकि लैंडिंग के लिहाज़ से जो सबसे गम्भीर बिन्दु उठाया गया था, वह रन-वे के आिखर में ढलान (स्लोप) का था। अर्थात् रन-वे पर जहाज़ के किसी कारण आिखर तक चले जाने की स्थिति में उसकी सुरक्षा का गम्भीर रिस्क है।

यही 7 अगस्त के हादसे के मामले में भी हुआ है जब जहाज़ लैंडिंग के बाद रन-वे के आिखर तक चले जाने कारण खाई में लुढक़ गया। बफर जोन में ज़रूरी सुरक्षित क्षेत्र होता, तो हादसा टल सकता था। उस समय जाँच के दौरान हवाई अड्डे पर डिजिटल मेट डिस्प्ले और डिस्टेंट इंडिकेशन विंड इक्यूपमेंट भी आउट ऑफ ऑर्डर पाये गये थे। ज़ाहिर है इस हवाई अड्डे पर इस कार्य के लिए ज़िम्मेदार स्थानीय विभाग सुरक्षा व्यवस्था से जुड़े कदम नहीं उठा पाया था।

कोझिकोड का हादसा

दुबई से आ रहा एयर इंडिया का विमान 7 अगस्त को हादसे का शिकार हो गया। इसमें यह रिपोर्ट लिखे जाने तक 20 लोगों की मौत हो गयी, जिसमें दोनों पायलट भी शामिल हैं। भारी बारिश के चलते रन-वे पर पानी भरा था और लैंडिंग के समय विमान फिसलकर लगभग 35 फीट गहरी खाई में जा गिरा। हादसे में 127 लोग घायल हुए। विमान दुर्घटना जाँच ब्यूरो ने विमान से डिजिटल विमान डेटा रिकॉर्डर और कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर बरामद किये हैं, जिनकी छानबीन से हादसे को लेकर कुछ खुलासे होंगे।

नागरिक उड्डयन मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने भी कोझिकोड हवाई अड्डे का दौरा किया। उन्होंने विमान हादसे में मुआवज़े का भी ऐलान किया है। पीडि़तों को अंतरिम राहत के रूप में मृतकों के परिजन को 10-10 लाख रुपये, गम्भीर रूप से घायलों को दो-दो लाख रुपये और मामूली चोटों का सामना करने वालों को 50-50 हज़ार रुपये की सहयोग राशि देने का ऐलान किया है। साथ ही केरल के मुख्यमंत्री की ओर से मारे गये लोगों के परिजनों को 10-10 लाख रुपये का मुआवज़ा देने की घोषणा की गयी है। दुर्घटना में मारे गये या घायलों की कोरोना टेस्ट रिपोर्ट में एक रिपोर्ट पॉजिटिव आयी है।

हादसे के समय हवाई अड्डे पर तैनात एएसआई अजीत सिंह के मुताबिक, वह 7.30 पर तीसरे राउंड के लिए निकले और इमरजेंसी फायर गेट पर पहुँचे। वह एएसआई मंगल सिंह से बात करने लगे। तभी उन्होंने देखा कि ऊपर से एयर इंडिया एक्सप्रेस की एक विमान डिस्बैलेंस होकर नीचे पैरामीटर रोड की तरफ गिर रहा है। उन्होंने तुरन्त कंट्रोल रूम को सूचित किया, तब तक विमान नीचे गिर चुका था। ड्यूटी पर तैनात जवान ने मीडिया से बातचीत में कहा कि उन्होंने इसके बाद शिफ्ट आईसी को कॉल किया, लाइन में कॉल किया, उसके बाद हवाई अड्डे अथॉरिटी, फायर, हमारी सीआईएसएफ की टीम और लाइन मेंबर्स रेस्क्यू के लिए आ गये।

नियमों का पालन नहीं

देश भर में हवाई अड्डों की समस्याएँ भीतर ही नहीं हैं। हवाई अड्डों के बाहर भी बहुत-से नियमों का उल्लंघन होता है। हवाई अड्डों निर्माण की नियमावली देखें तो रन-वे की दिशा में हवाई अड्डे के छ: किलोमीटर क्षेत्र में कोई बूचडख़ाना नहीं हो सकता है। लेकिन कुछ हवाई अड्डों के पास बूचडख़ाने और मीट-मांस की दुकानें धड़ल्ले से चल रही हैं। जम्मू का हवाई अड्डा भी इनमें से एक है। बूचडख़ाने इसलिए नहीं बनाने दिये जाते, ताकि उस क्षेत्र में पक्षी जमा न हों। पक्षी हादसे का बड़ा कारण बन सकते हैं।

इसके अलावा हवाई अड्डों के पास ऊँचे भवन बनाने को लेकर भी मनाही है। इसके बावजूद देश के कई हवाई अड्डों के नज़दीक ऊँची इमारतें हैं। सबसे ज़्यादा नियम छोटे हवाई अड्डों के आसपास तोड़े जाते हैं। हवाई अड्डों के पास ऊँची इमारतें हादसों का कारण बन सकती हैं या इमरजेंसी लैंडिंग के दौरान हादसे को न्यौता दे सकती हैं।

विस्तार के काम में दिक्कतें 

हादसे के बाद कालीकट हवाई अड्डे के डायरेक्‍टर के. जनार्दन ने कहा कि टेबल टॉप हवाई अड्डे में चौड़ाई वाले विमानों के संचालन में बाधा थी। उनके मुताबिक, रन-वे की लम्बाई को मौज़ूदा 2,850 मीटर से बढ़ाकर 3,150 मीटर तक किया जाना चाहिए, ताकि बड़े विमानों का संचालन किया जा सके।

हालाँकि देश में हवाई अड्डों के विस्तार के लिए अब तक जो सबसे बड़ी बाधा देखी गयी है, वह ज़मीन का इंतज़ाम करना है। बहुत-से हवाई अड्डों के आसपास बस्तियाँ या घर हैं। वहाँ ज़मीन लेना आसान काम नहीं। हालाँकि इसके लिए अच्छी-खासी कीमत अदा की जाती है; लेकिन इसके बावजूद इस काम में बहुत बाधाएँ आती हैं।

खुद जनार्दन भी मानते हैं कि रन-वे का विस्तार करने में बड़ी बाधा भूमि अधिग्रहण में देरी होना है। उनके मुताबिक, रन-वे और सम्बन्धित सुविधाओं के विस्तार के लिए कुल 385 एकड़ ज़मीन की ज़रूरत होती है। जनार्दन के मुताबिक, राज्य सरकार को यह काम मुश्किल लग रहा है; क्योंकि इसमें हवाई अड्डे के आसपास रहने वाले 1,500 परिवारों को हटाने की ज़रूरत है।

कोझिकोड हवाई अड्डे की ही बात की जाए तो यह 13 अप्रैल, 1988 को खुला था। दरअसल, यह अर्थात् कालीकट हवाई अड्डा एयर इंडिया एक्सप्रेस का एक ऑपरेटिंग बेस भी है। वहाँ से मक्का मदीना और जेद्दा को हज की तीर्थयात्रा की हवाई सेवाएँ संचालित होती हैं। इसे एक व्यस्त हवाई अड्डा माना जाता है। इसे 2 फरवरी, 2006 को अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे का दर्जा मिला था। इसे देश के सबसे व्यस्त हवाई अड्डों में एक माना जाता है।

क्या होते हैं टेबल टॉप हवाई अड्डे

पहाड़ी की ऊँचाई पर बने हवाई अड्डे को टेबल-टॉप हवाई अड्डा कहा जाता है। ऐसे  हवाई अड्डों पर उड़ान भरने और लैंडिंग के लिए पायलटों को अतिरिक्त सावधानी की ज़रूरत होती है। साथ ही इसके लिए खास दक्षता भी होनी चाहिए। यह एक तरह से युद्धाभ्यास की तरह ही होती है। ऐसे हवाई अड्डों पर उड़ान तब और कठिन काम बन जाता है, जब मौसम खराब या बारिश वाला हो।

देश में शुद्ध रूप से तीन टेबलटॉप हवाई अड्डे हैं, जहाँ से अनुसूचित उड़ानें संचालित होती हैं। इनमें मंगलूरु, कोझिकोड और लेंगपुई शामिल हैं। हालाँकि हिमाचल प्रदेश के शिमला में जुब्बड़हट्टी हवाई अड्डा भी टेबल टॉप हवाई अड्डा ही है; जहाँ दोनों और खुली जगह है, जो खाई की तरफ ले जाती है। ऐसे हवाई अड्डों पर अंडर शूटिंग और ओवर शूटिंग दोनों का खतरा रहता है। ऐसे में वहाँ थोड़ी-सी असावधानी हादसे का कारण बन सकती है। मंगलूरु हादसे में यही हुआ था।

देश के कमोवेश सभी टेबल टॉप हवाई अड्डों में रन-वे के आसपास लिंकिंग रोड्स (सम्पर्क सडक़ों) की काफी कमी है। इससे हादसे की सूरत में दिक्कत आती हैं। जो सडक़ें हैं, वह या तो बहुत संकीर्ण हैं या सीधी नहीं हैं।

इमरजेंसी में इन सडक़ों में वक्त जाया होता है और बचाव कार्यों में बाधा आती है। वैसे मंगलूरु हवाई अड्डे पर जो नया रन-वे बना है, उसकी लम्बाई 2,450 मीटर है, जो बोइंग 737-800 और एयरबस 320 जैसे विमानों के परिचालन की सुविधा देता है। नया रन-वे 24/06 रात्रि लैंडिंग की सुविधा प्रदान करता है और पहले वाले ऑफसेट आईएलएस से एक आईएलएस कैट वन प्रदान करता है।

बचाव और अनिशमन सेवाओं को भी वहाँ श्रेणी 7 में अपग्रेड किया गया है। लेकिन बरसात इन हवाई अड्डों में अनेक दिक्कतें लेकर आती हैं। इनमें से कुछ जगह बरसात के मौसम में धुन्ध भी रहती है, जो स्थितियों को और कठिन बना देती है। धुन्ध और तेज़ बारिश में वहाँ दृश्यता की समस्या रहती है। मिज़ोरम की राजधानी अज़ावी से 32 किलोमीटर की दूरी पर स्थित, लेंगपुई भी एक टेबलटॉप हवाई अड्डा है। वहाँ 2,500 मीटर लम्बा रन-वे एक पठार के ऊपर स्थित है, जिसके दोनों छोर पर गहरी खाई हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, वहाँ ऑप्टिकल भ्रम बनता है, जो लैंडिंग के समय थोड़ी-सी चूक होने पर ही हादसे का कारण बन सकता है। वैसे यही चीज़ मंगलूरु और कोझिकोड के हवाई अड्डों में भी है।

हिमाचल प्रदेश के शिमला के जुब्बड़हट्टी हवाई अड्डे पर एक समय में दो छोटे विमान रखने की जगह है। वहाँ कुछ साल पहले भूमि कटाव के कारण यह तीन साल से अधिक समय तक बन्द रहा। बाद में इसे शुरू किया गया; लेकिन इसका रन-वे सिकुड़ गया।

सोर्ड ऑफ ऑनर से सम्मानित थे साठे

कोझीकोड विमान हादसे में एयर इंडिया एक्सप्रेस के शहीद पायलट कैप्टन दीपक वसन्त साठे और को-पायलट अखिलेश कुमार का ट्रैक रिकॉर्ड बेहतर था। दीपक साठे तो देश के बेहतरीन पायलट में एक गिने जाते थे। एयर इंडिया के यात्री विमान से पहले साठे 22 साल तक एयरफोर्स में विंग कमांडर के रूप में सेवा दे चुके थे। उन्होंने अपनी इस सेवा के दौरान मिग-21 जैसे लड़ाकू विमान भी उड़ाये। यही नहीं वे सोर्ड ऑफ ऑनर से सम्मानित पायलट थे। उनके भाई पाकिस्तान से कारगिल युद्ध के दौरान शहीद हो गये थे, जबकि पिता सेना में ब्रिगेडियर रिटायर हुए थे। साठे ने 11 जून, 1981 में एयरफोर्स वाइन किया और कई महत्त्वपूर्ण पदों पर रहे। कैप्टन साठे को नेशनल डिफेंस एकेडमी के 58वीं कोर्स में गोल्ड मेडल मिला था। इसके बाद उन्होंने एयरफोर्स एकेडमी वाइन की। वहाँ 127वें पायलट कोर्स में उन्होंने टॉप किया और इसके लिए उन्हें सोर्ड ऑफ ऑनर से सम्मानित किया गया। वह काफी समय तक गोल्डन एरो 17 स्क्वार्डन का हिस्सा रहे, जिसे हाल ही में राफेल फाइटर प्लेन की ज़िम्मेदारी दी गयी है। वे 30 जून 2003 को वायुसेना से सेवानिवृत्त हो गये और एयरलाइन कम्पनियों को अपने अनुभव से मदद करनी शुरू की। वह एयर इंडिया एक्सप्रेस की बोइंग 737 फ्लाइट उड़ाने से पहले एयरबस 310 भी उड़ा चुके हैं। हिन्दुस्तान एयरोनॉटिकल के वह टेस्ट पायलट भी रहे। उनकी शानदार परफॉरमेंस के चलते एयरफोर्स एकेडमी ने भी उन्हें सम्मानित किया था। सह-पायलट अखिलेश कुमार के चचेरे भाई बासुदेव ने बताया कि वह बहुत विनम्र और अच्छे व्यवहार वाले व्यक्ति थे। उनकी पत्नी अगले 15-17 दिनों में बच्चे को जन्म देने वाली हैं। वह 2017 में एयर इंडिया में शामिल हुए थे और लॉकडाउन से पहले घर आये थे।

देश के 11 हाई रिस्क हवाई अड्डे

देश में 11 ऐसे हवाई अड्डे हैं, जिन्हें हाई रिस्क की सूची में रखा गया है। जब 2010 मंगलूरु में एयर इंडिया का विमान टेबल टॉप हवाई अड्डे पर हादसे का शिकार हुआ था, उसके बाद नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डी.जी.सी.ए.) ने इन हवाई अड्डों की एक सूची तैयार की थी। इस सूची का मकसद इन हवाई अड्डों पर खतरों को टालने वाले उपाय करना था, ताकि हादसों के खतरे को कम या खत्म किया जा सके। लेकिन इन दस वर्षों में इन हवाई अड्डों पर कुछ काम नहीं हुआ, या नाम मात्र को ही हुआ। इन हवाई हड्डों में केरल के कोझिकोड का हवाई अड्डा भी शामिल है। हाई रिस्क चिह्नित इन हवाई अड्डों में कोझिकोड के अलावा, लेह, भुंतर (कुल्लू, हिमाचल प्रदेश), जुब्बड़हट्टी (शिमला, हिमाचल प्रदेश), पोर्ट ब्लेयर (अंडमान निकोबार), अगरतला (त्रिपुरा), लेंगपुई (मिजोरम), मैंगलोर (कर्नाटक), सतवारी जम्मू (जम्मू कश्मीर), पटना (बिहार) और लातूर (महाराष्ट्र) शामिल हैं। हाई रिस्क श्रेणी में होने के नाते वहाँ कुछ न्यूनतम सुरक्षा उपाय ज़रूरी होते हैं; लेकिन इस स्तर पर कुछ खास नहीं हुआ है या जो हो रहा है, वह कछुए की चाल से हो रहा है।

भारत में विमान हादसे

-7 जुलाई, 1962 – सिडनी से आ रहा विमान मुम्बई के उत्तर पूर्व में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। हादसे में कम-से-कम 94 लोगों की मौत हुई थी।

-पहली जनवरी, 1978 – दुबई से मुम्बई के लिए उड़ान भरने वाले एयर इंडिया के विमान के बांद्रा के पास दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से 213 लोगों की मौत हो गयी थी।

-21 जून, 1982 – कुआलालंपुर से चेन्नई आ रहे एयर इंडिया के विमान के मुम्बई के सहारा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर दुम्र्घटनाग्रस्त हो जाने से 99 लोगों की मौत हो गयी थी।

-23 जून, 1985 – मॉट्रियल से लंदन और दिल्ली के रास्ते मुम्बई आ रहा एयर इंडिया का विमान आयरिश हवाई क्षेत्र में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। हादसे में 329 लोगों मौत हुई थी।

-19 अक्टूबर, 1988 – इंडियन एयरलाइंस का मुम्बई से आ रहा विमान अहमदाबाद हवाई अड्डे पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। हादसे में 130 लोगों की मौत हुई थी।

-14 फरवरी, 1990 – इंडियन एयरलाइंस का मुम्बई से उड़ान भरने वाला विमान बेंगलूरु हवाई अड्डे पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। हादसे में 92 लोगों की मौत हो गयी थी, जबकि 54 को बचा लिया गया था।

-16 अगस्त, 1991 – कोलकाता से उड़ान भरने वाला इंडियन एयरलाइंस का विमान इम्फाल से 40 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में एक पहाड़ी से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। हादसे में 69 लोगों की मौत हो गयी थी।

-26 अप्रैल, 1993 – दिल्ली से जयपुर और उदयपुर के रास्ते मुम्बई जा रहा इंडियन एयरलाइंस का विमान औरंगाबाद के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। इस हादसे में 63 लोगों की मौत हो गयी थी, जबकि पाँच को बचा लिया गया था।

-12 नवंबर, 1996 – यह हादसा बेहद अजीब था, क्योंकि ये आसमान में हुआ था। नई दिल्ली में हवाई अड्डे के निकट हरियाणा के चरखी दादरी के ऊपर 4000 मीटर की ऊँचाई पर सउदी एयरलाइंस के बोइंग 747 और कज़ाकिस्तान के इल्यूशिम आईएल 76 की टक्कर हो गयी थी। बोइंग पर सवार 312 और इल्यूशिन पर सवार 37 लोगों की मौत हो गयी थी। इस हादसे में कुल 349 लोगों की मौत हुई थी।

-17 जुलाई, 2000 – एलायंस एयर का विमान पटना हवाई अड्डे के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। हादसे में 60 लोगों की मौत हो गयी थी।

-भारत के बड़े प्लेन हादसों में सन् 2010 में हुआ मंगलूरु प्लेन हादसा शामिल है। एयर इंडिया का एक विमान मंगलूरु एयरपोर्ट पर लैंडिंग के दौरान चट्टान से टकरा गया। हादसे की वजह से 160 लोगों की मौत हो गयी थी।

-साल 2010 में ही जुलाई में बिहार के पटना में एक प्लेन क्रैश हो गया था। ये प्लेन एयरपोर्ट से दो किलोमीटर दूर एक रिहायशी इलाके में क्रैस हुआ, जिसमें 55 लोगों क मौत हो गयी थी।

-जून, 2018 में मुम्बई के भीड़भाड़ वाले एक इलाके में 12 सीटों वाले एक विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने से दोनों पायलटों, दो विमान रखरखाव इंजीनियरों और एक पदयात्री की मौत हो गयी।

यह विमान घाट कोपर टेलीफोन एक्सचेंज के समीप ओल्ड मलिक एस्टेट में दुर्घटनाग्रस्त हुआ।

-कोझिकोड में 7 अगस्त, 2020 को हुए हादसे में यह रिपोर्ट लिखे जाने तक 18 लोगों की मौत हुई, जिसमें दोनों पायलट भी शामिल हैं।

नागरिक उड्डयन महानिदेशालय को साल 2015 में रन-वे के साथ कुछ दिक्कत थी, लेकिन उसे सुलझा लिया गया था। बाद में साल 2019 में इसे मंज़ूरी भी दे दी गयी थी। एयर इंडिया के जंबो जेट्स को भी वहाँ उतारा गया है। हादसे का शिकार विमान उस रन-वे पर किसी कारण से नहीं उतर पाया था, जहाँ उसे उतरना था।

अरविंद सिंह, चेयरमैन, ए.ए.आई.