मानसिक रोगों में अवसाद सबसे ज़्यादा

तंदुरुस्ती के लिए वैकल्पिक चिकित्सा हो रही सफल

डॉक्टर ने मानसिक रोगी सुमेधा से कहा- ‘कितनी दवा खाएँगी आप? पहले भी खा रही हैं। मैं भी लिख दूँ? मैं बिना दवा के ठीक कर रहा हूँ तुम्हें।’ अवसाद (डिप्रेशन) की शिकार सुमेधा एक्यूप्रेशर से डर रही थी और दवा खाने को तैयार थी। उसकी माँ डॉक्टर से कहती हैं कि इसके अन्दर डर बहुत है। अन्दर से बात तो निकालती ही नहीं न! बाहर से या तो बिलकुल चुप रहती है या फिर हमारे कुछ कह देने से बुरी तरह चिल्लाती है। पहले पतली थी। पिछले छ: साल से तनाव के कारण दवाइयाँ बहुत खायी हैं इसने, इसीलिए मोटापा काफ़ी बढ़ गया है। हालाँकि थायराइड भी नहीं है। देखने में अच्छी-ख़ासी सुमेधा मानसिक रूप से अस्वस्थ है।
‘मन रोगी, तो तन रोगी’ यह कहावत आज के समय में काफ़ी चरितार्थ हो रही है। लोगों में शरीर से ज़्यादा मन की बीमारियाँ बढ़ी हैं। ऐसे रोगियों की संख्या अधिक हो रही है, जो अस्वस्थ जीवन-शैली के चलते अवसाद, तनाव और रुग्णता का शिकार हो रहे हैं। विडंबना यह है कि हमारे समाज में मानसिक स्वास्थ्य की तरफ़ ध्यान नहीं दिया गया। इससे शारीरिक रोग तो बढ़े ही हैं, मानसिक रोग और भी ज़्यादा बढ़े हैं। डॉक्टर्स (चिकित्सकों), मनोवैज्ञानिकों और मनो-चिकित्सकों का कहना है कि अगर हम अपने मानसिक मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहें, तो शारीरिक रोगों से बचा जा सकता है। इसके लिए वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियाँ अधिक कारगर सिद्ध हो रही हैं। एक अनुमान के मुताबिक, विश्व में अवसाद पहले स्थान पर है, जिसकी शिकार अधिकतर महिलाएँ हुई हैं।

देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार में ‘मानसिक स्वास्थ्य देखभाल में आध्यात्मिकता, आयुर्वेद और वैकल्पिक उपचार’ विषय पर 9 से 11 जुलाई तक तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया। इसमें चिकित्सकों, मनोवैज्ञानिकों और इस विषय से जुड़े विशेषज्ञों ने आधुनिक जीवन शैली से बढ़ी मन के रोगों और वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों पर चर्चा की।

देव संस्कृति विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर डॉ. चिन्मय पंड्या ने इस अवसर पर कहा कि आदमी की असल समस्या उसका मन है, जिसमें असन्तोष, ईष्र्या और क्रोध जैसी दुर्भावनाएँ हैं; जबकि समाधान भी इसी मन में छिपा है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में ही अंत:करण की समझ है। इसकी विभिन्न ऐसी प्राचीन विधाएँ हैं, जो आध्यात्मिकता की मदद से आदमी के मन में सकारात्मक भावनाएँ जगाती हैं, साथ ही व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक स्तर पर स्वस्थ बनाती हैं।

21वीं शताब्दी में वैकल्पिक चिकित्सा

इसी विश्वविद्यालय के कंप्लीमेंट्री एंड अल्टरनेटिव थेरेपी विभाग के डॉ. अमृत लाल गुरवेंदर एक्यूप्रेशर का हवाला देते हुए बताते हैं कि अगर नींद न आ रही हो या फिर कोई टेंशन हो, तो अँगूठे के ऊपरी भाग पर नीला रंग लगाएँ। इससे ब्लड प्रेशर भी नीचे आ जाएगा और नींद भी आ जाएगी। इसे रंग चिकित्सा कहा जाता है। उन्होंने कुछ महिलाओं के हाथ में एक्यूप्रेशर किया। उन महिलाओं को घुटने और सिर दर्द से आराम मिलने लगा। डॉ. अमृत का कहना है कि आदमी की जीभ इतनी महत्त्वपूर्ण है, जिसे देखकर अलग-अलग रोगों (हो चुके और होने वाले रोगों) का पता लग सकता है। जैसे लकवा (पैरालाइसिस) का अटैक होने से एक या छ: महीने पहले जीभ टेढ़ी होने लग जाती है; लेकिन घर वालों को इसका पता नहीं चलता। क्योंकि परिवार में इस तरह की कोई जागरूकता नहीं होती।

अवसाद से बढ़ीं आत्महत्याएँ

हमारे समाज में बहुत-से लोगों को पता नहीं कि मानसिक स्वास्थ्य होता क्या है? उसके लक्षण क्या हैं? अक्सर देखा जाता है कि बाहर से अच्छा-ख़ासा तगड़ा व्यक्ति मन से दु:खी रहता है। हमने कई बार देखा, सुना और पढ़ा होगा कि फलाँ आदमी बड़ा गुमसुम रहता है; और एक दिन पता चलता है कि उसने आत्महत्या कर ली। अगर उसके लक्षणों का घर में किसी को पता होता, तो उसकी ज़िन्दगी बचायी जा सकती थी। यूनिवर्सिटी ऑफ राजस्थान, जयपुर के डिपार्टमेंट ऑफ साइकोलॉजी की प्रो. डॉक्टर प्रेरणा पुरी कहती हैं कि हमारे समाज में एक कलंक है। अगर कोई अपने मन की पीड़ा को लेकर मनोचिकित्सक के पास जाता है, तो लोग उसे पागल समझने लगते हैं। लोग अपने मन की समस्याओं पर बात नहीं करना चाहते। अवसाद के कारण विश्व में आत्महत्याएँ बहुत बढ़ी हैं। कोरोना के समय में भी बहुत सारे लोग हृदयाघात (हार्ट अटैक) से मर गये। हालाँकि उन्हें कोरोना वायरस का अटैक नहीं भी आया; लेकिन उसके डर से ही हार्ट अटैक आ गया। डॉक्टर प्रेरणा का कहना है कि पहले हमारा संयुक्त परिवार था, जिसमें एक-दूसरे से संवाद होता रहता था, जिससे मन भी तंदुरुस्त रहता था। अब हर आदमी अपने आप में केंद्रित है। वह अपने मन की बात किसी से नहीं कर सकता। यही कारण है कि शरीर के रोग कब आकर पकड़ लेते हैं? उसे पता ही नहीं चलता। शारीरिक कष्ट होते ही आदमी तुरन्त चिकित्सक के पास जाता है। अगर मन उदास रहता है, तो उसे रोना आता है; या किसी और चीज़ से परेशान रहता है, तो वह चिकित्सक या मनोचिकित्सक के पास जाने से बचता है। इसीलिए आज सकारात्मक मनोविज्ञान (पॉजिटिव साइकोलॉजी) पर अधिक काम हो रहा है। वर्ष 2017 में विश्व स्वास्थ्य दिवस पर डब्ल्यूएचओ की थीम भी डिप्रेशन लेट्स टॉक थी।
जयपुर में कई अस्पतालों में सेवाएँ दे चुकीं डॉक्टर प्रेरणा बताती हैं कि वहाँ के चिकित्सकों ने उन्हें बताया कि अस्पताल में 80 फ़ीसदी ऐसे रोगी हैं, जिनका मेडिकल टेस्ट करने से कुछ नहीं निकला, केवल मानसिक बीमारी है। ऐसी स्थिति में भारतीय वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियाँ अधिक कारगर लगती हैं; जैसे योग, अध्यात्म और ध्यान (मेडिटेशन) आदि। इनका आदमी के दिमाग़ पर काफ़ी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। तिहाड़ जेल में उन्होंने कुछ क़ैदियों पर ध्यान का अभ्यास कराया, जिससे उन्हें काफ़ी अच्छा परिणाम मिला।

शुड और मस्ट से बचें

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में साइकोलॉजी डिपार्टमेंट की प्रो. उर्मिला रानी श्रीवास्तव ने पॉजिटिव ऑर्गेनाइजेशनल बिहेवियर एंड रिसोर्स मैनेजमेंट एंड ऑक्यूपेशनल हेल्थ विषय पर काम किया है। उनका कहना है कि धर्म और अध्यात्म अलग-अलग हैं। हमें अध्यात्म का सहारा लेना चाहिए, जो आदमी के मन को स्वस्थ रखने में काफ़ी भूमिका निभाता है। कर्मचारी और कम्पनी के मालिक और प्रबंधन में अच्छा तालमेल होना चाहिए। एक-दूसरे को ख़ुश रखने में और कार्यस्थल पर अच्छा वातावरण बनाये रखने की कोशिश करनी चाहिए। इससे जहाँ कम्पनी का प्रोडक्ट भी अच्छा रहता है और कर्मचारियों में काम करने के प्रति उत्साह बना रहता है। आजकल के कारपोरेट कल्चर में काम करने का समय लम्बा होता है, शिफ्ट में होता है। इसलिए कर्मचारी को चाहिए कि प्राथमिकताएँ तय करें। काम को आनन्दित होकर करें। तनाव व दबाव लेने से बचें और अपने मन को तंदुरुस्त रखने के लिए अच्छे विचार मन में लाएँ। जैसे दूसरे का भला कैसे करूँ? मंत्र जाप, संगीत चिकित्सा आदि थेरेपी का इस्तेमाल करें। उसे शुड और मस्ट (होगा और चाहिए) से बचना चाहिए; क्योंकि इसी से व्यक्ति में नकारात्मक भाव पैदा होता है। व्यक्ति को अपनी भावना, चिन्तन और क्रिया को सकारात्मक बनाने की कोशिश करनी चाहिए। आम आदमी को छोटी-छोटी बातों से ही अध्यात्म का मर्म समझाया जा सकता है। जब हम अन्दर से ख़ुश हैं, तो सांसारिक वस्तुओं का होना बहुत मायने नहीं रखता।

वैकल्पिक चिकित्सा के विकल्प

सुगन्ध चिकित्सा : इसमें विभिन्न प्रकार के सुगन्धित तेल अलग-अलग प्रकार के मानसिक रोगों की चिकित्सा में उपयोगी हैं।
संगीत चिकित्सा एवं मस्तिष्क खेल : निष्ष्क्रिय एवं शुष्क मस्तिष्क में नयी ऊर्जा का संचार करने एवं विश्रान्ति (रिलैक्सेशन) के लिए त्राटक एवं ध्यान के द्वारा मन को एकाग्र करके परामर्श एवं अन्य मानस उपचार के लिए तैयार किया जाता है।

प्राण चिकित्सा यानी प्राणिक हीलिंग

प्राण ऊर्जा के संचार द्वारा मन को उपचार के लिए तैयार किया जाता है।
 मंत्र चिकित्सा : विभिन्न मंत्रों के माध्यम से मन को नियंत्रित किया जाता है।
 हवन चिकित्सा : विभिन्न प्रकार की हवन सामग्री, गोबर के उपले आदि के द्वारा औषधियुक्त धुएँ को सही मात्रा में नाक के रास्ते से नाड़ी चैनल तक पहुँचाया जाता है। इससे अवसाद और अनिद्रा दूर होते हैं।
 स्वाध्याय : विशिष्ट तकनीकों का उपयोग करके हानिकारक विचारों के स्थान पर विभिन्न पुस्तकों के माध्यम से मन में रचनात्मक विचार भरे जाते हैं।
 दर्पण चिकित्सा : स्व: निर्देश एवं अन्य पद्धतियों में दर्पण चिकित्सा का उपयोग किया जाता है।
 योग एवं रिलैक्सेशन : प्राणायाम आदि यौगिक चिकित्सा पद्धतियों एवं रिलैक्सेशन तकनीकों के द्वारा मन को अन्य मानस उपचार के लिए तैयार किया जाता है।