महिलाओं के हाथ ज्य़ादा सुरक्षित है विश्व अर्थव्यवस्था: गेलार्ड

दुनिया 2008 की आर्थिक मंदी को भूली नहीं है। 15 सितंबर 2008 को अमेरिका के दिग्गज निवेश बैंक लीमैन बद्रर्स के दिवालिया होने के कारण वैश्विक मंदी का जो दौर शुरू हुआ, उसका असर दुनिया भर में देखा गया। इस वैश्विक आर्थिक मंदी के दस साल पूरे होने के मौके पर इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड (आईएमएफ) की प्रमुख क्रिस्टीन लेगार्ड ने विश्व को आगाह किया है कि बैंकिग क्षेत्र में पुरुषों के वर्चस्व के कारण फिर से आर्थिक मंदी आ सकती है। उन्होंने कहा है कि 10 साल पहले लीमैन ब्रदर्स के दिवालिया होने की बड़ी वजह यही थी। अपने ब्लॉग में उन्होंने लिखा कि अगर लीमैन ब्रदर्स की जगह लीमैन सिस्टर्स होतीं तो आज दुनिया कुछ और होती।

दरअसल आईएमएफ की एमडी क्रिस्टीन लेगार्ड ने इस सवाल को फिर से उठाकर दुनिया की दिग्गज अर्थव्यवस्थाओं और नीति निर्माताओं का ध्यान इस ओर खींचा है कि अर्थव्यवस्था/बाजार में पुरुषों के वर्चस्व का खमियाजा क्यों आम आदमी को चुकाना पड़े। लिहाजा उनका जोर इस बात पर है कि मर्दाना छवि को तोडऩे व अर्थव्यवस्था में निरंतर सुधार के लिए फाइनैंस सेक्टर में महिला नेतृत्व को बढ़ाना होगा। कॉरपोरेट सेक्टर में भी महिलाओं का नेतृत्व उल्लेखनीय नहीं होने पर चिंता जताई है। वैश्विक आर्थिक मंदी के दस साल के बाद भी यह मुद्दा प्रासगिंक है, जिसने सितंबर 2008 के फौरन बाद अंतरराष्ट्रीय मीडिया में सुर्खियां बटोरी व शोध संस्थाओं ने इस पर अध्ययन कराने के लिए लाखों डॉलर जुटाए। स्विट्जरलैंड की राजधानी दावोस में 2009 में आयोजित विश्व आर्थिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) की सालाना बैठक में ‘विश्व अर्थव्यवस्था के पुनर्निमाण में महिला शक्ति का इस्तेमालÓ नामक विषय पर एक रिपोर्ट पेश की गई, जिसमें यह राय व्यक्त की गई कि यद्यपि मौजूदा (2008) वित्तीय संकट का कोई तात्कालीक हल नहीं हो सकता लेकिन निश्चित तौर पर एक दीर्घकालिक हल हो सकता है। इसके लिए महिलाओं को नेतृत्व के पद हासिल करने और बदलती अर्थव्यव्स्था के दौर में नए दृष्टिकोण को सुनने के लिए उचित माहौल मुहैया कराने की ज़रूरत है। विश्व आर्थिक फोरम के संस्थापक सदस्य व चेयरमैन क्लॉस श्वाब ने भी इस मौके पर कहा कि सरकारी संस्थाओं व वित्तीय संस्थाओं में महिलाओं को वरिष्ठ पदों पर कंमाड संभालने के मौके देना न सिर्फ मौजूदा आर्थिक उथल-पुथल के हल तलाशने के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि भविष्य में भी आर्थिक मंदी के आसार होने पर मददगाार साबित होंगे। महत्वपूर्ण वित्तीय संस्थानों में प्रभावशाली पदों पर महिलाओं की तादाद को बढ़ाने के पीछे एक दलील यह भी दी जाती है कि महिलाएं कम जोखिम वाले फैसले लेती हैं, नुकसान के प्रति अधिक गंभीर होती हैं, पुरुषों की तरह अतिविश्वासी नहीं होती और उनका रुझान लंबी अवधि वाली योजनाओं के प्रति ज़्यादा होता है। वैसे भी यह देखा गया है कि अधिक विविधता सोच को गहरा करती है। ब्रिटेन के चार दिग्गज बैंकों के सीईओ पुरुष हैं। द फाइनेंसिइल टाइम्स स्टॉक एक्सचेंज में शामिल 100 बड़ी कंपनियों के बोर्ड में महिला निदेशकों का अनुपात गिरता जा रहा है। फॉर्चून 500 कंपनियों में 2018 में महिला सीईओ की संख्या 28 रह गई है जबकि 2017 में इनकी संख्या 32 थी। महिलाओं को शीर्ष पदों के लिए चुनने वाले संस्थानों का मैनेजमेंट अच्छा है लेकिन इस सब के बावजूद वित्तीय संस्थानों में प्रमुख पदों पर दो फीसद से भी कम महिलाएं हैं। बोर्ड में उनका प्रतिनधित्व 20 फीसद से भी कम है। वैश्विक मंदी के बाद बैकिंग में बड़े सुधार करने के लिए महिला नेतृत्व की भूमिका वाला मुद्दा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खूब जोर-शोर से तो उठा मगर एक दशक के बाद भी पुरुषों के दबदबे वाले क्षेत्र में महिला नेतृत्व को लेकर कई ‘किंतु-परंतुÓ बरकरार हैं। इससे निपटने के लिए अर्थशास्त्र की पढ़ाई के लिए अधिक से अधिक लड़कियों को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ बोर्ड रूम में अधिक से अधिक सक्रिय महिला निदेशकों पर केंद्रित करना होगा।

हाल में 21-22 सितंबर को कनाडा के मॉन्ट्रियल में महिला विदेश मंत्रियों का सम्मेलन हुआ। इसमें ग्वाटेमाला, इंडोनेशिया, कीनिया, नमीबिया, नार्वे, पनामा, रवांडा, सेंट ल्यूसिया, रिपब्लिक ऑफ साउथ अफ्रीका, स्वीडन, कनाडा, अंडोरा, बुल्गारिया, कोस्टारिका, क्रोशिया, घाना आदि देशों की महिला विदेश मंत्रियों ने भाग लिया। दुनिया में यह अपनी तरह का पहला सम्मेलन था। इस सम्मेलन में वैश्विक शांति, समृद्धि और सुरक्षा सरीखे मुद्दों पर चर्चा हुई। इस सम्मेलन की विशेषता यह है कि महिला विदेश मंत्रियों ने दुनिया के पुरुष वर्चस्व वाले कूटनीति के क्षेत्र में यह संदेश पहुंचा दिया कि हम उन सभी चुनौतियों, जिनका समाज सामना कर रहा है, का हल तलाशने में एक अनिवार्य अहम कड़ी हैं। मुल्कों के कूटनीतिक, आर्थिक, सामाजिक रिश्तों का ब्लूप्रिंट बनाते वक्त उसके नारीवादी परिप्रेक्ष्य पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए। दरअसल दुनिया की महिला विदेश मंत्रियों के सम्मेलन की घोषणा कनाडा के टोंरटो में इस साल आयोजित जी-7 के विदेश मंत्री सम्मेलन के दौरान की गई थी और इस पहल के पीछे कनाडा सरकार की शुरू की गई फस्ट फेमिनिस्ट इंटरनेशनल असिस्टेंस पॉलिसी है, जिसका मकसद विदेश व सुरक्षा नीति में नारी परिप्रेक्ष्य को लाना है। कनाडा की विदेश मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने इस सम्मेलन के उद्घाटन भाषण में कहा – हम सब जानते हैं कि समृद्धि,शांति और सुरक्षा होने की संभावना वहां ज़्यादा होती हैं,जहां महिलाएं व समाज के लोग राजनीतिक जिं़दगी में सक्रिय हिस्सा लेते हैं और जहां लोगों के बुनियादी हकों का सम्मान किया जाता है। जब हम सब फैसला लेने की प्रक्रिया से जुड़े होते हैं तो हमारा समाज और मजबूत बनता है, हमारी अर्थव्यवस्था व मध्यम वर्ग अधिक समृद्ध होता है और हमारे देश पहले से अधिक सुरक्षित हो जाते हैं। फ्रीलैंड ने अपने मुल्क की मिसाल देते हुए कहा कि कनाडा की कैबिनेट में लैंगिक संतुलन है। शीर्ष पदों को सभांलने वाली महिलाएं मुल्क की महत्वपूर्ण नीति-निर्धारण फैसलों को प्रभावित करने व उन्हें आकार देने में अपने अनुभवों का इस्तेमाल करती हैं। महिलाएं नीतियों में ऐसे ज्ञान को भी जोड़ सकती हैं,जिससे नीतियों का लड़कियों व महिलाओं पर अलग तरह से प्रभाव पड़ सकता है।

दरअसल मॉन्ट्रियल में आयोजित महिला विदेश मंत्री सम्मेलन में मुख्यत: नीति निर्माण, विश्व शांति, महिला हिंसा की रोकथाम और वैश्विक समृद्धि में महिलाओं के योगदान पर चर्चा हुई। महिलाओं को, राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक दृष्टि से सशक्त करना ज़रूरी है और इसके साथ ही उन्हें शीर्ष स्तर पर नेतृत्व के मौके देना भी। संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य राष्ट्रों में से 30 की विदेश मंत्री महिलाएं हैं, भारत भी उनमें शमिल है। भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इस सम्मेलन में हिस्सा नहीं लिया, मगर दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक मुल्क की महिला विदेश मंत्री के वहां नहीं जाने से बिरादरी में अच्छा संदेश नहीं गया। बहरहाल मॉन्ट्रियल में यूरोपीय,लैटिन अमेरिकी व कैरिबन ,अफ्रीकी ,एशियाई मुल्कों की महिला विदेश मंत्रियों ने विश्व शांति,वैश्विक समृद्धि, सुरक्षा, आंतकवाद के खात्मे, महिला हिंसा की रोकथाम, महिला नेतृत्व और लोकतंत्र को मजूबती प्रदान करने में महिलाओं की भूमिका को केंद्र में रखने पर जो विशेष बल दिया है उसका असर वैश्विक नीतियों पर कितना पड़ता है, यह तो आना वाला वक्त ही बताएगा। फिलहाल महिला विदेश मंत्रियों की इस मीटिंग को महिला मंत्रियों के बीच आपसी सहयोग वाले संवाद की परंपरा की शुरूआत के रूप में देखा जा रहा है।