महाराष्ट्र का अगला चीफ मिनिस्टर शिवसेना से!

‘भाजपा से युति अवश्य है लेकिन शिवसेना अपने तेवर वाला संगठन है एक संकल्प लेकर शिवसेना आगे बढ़ी है। इस संकल्प के आधार पर हम कल विधानसभा को ‘भगवा’ कर के छोडेंगे और शिवसेना के 54 वें वर्धापन दिवस समारोह में शिवसेना का मुख्यमंत्री विराजमान होगा। चलिए यह संकल्प लेकर काम शुरू करें!’ – सामना

आज 19 जून को शिवसेना की 53 वीं वर्षगांठ है। इस वर्ष की वर्षगांठ पर शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे के निमंत्रण पर चीफ मिनिस्टर देवेंद्र फडणवीस उपस्थित रहेंगे। पहली दफा शिवसेना की वर्षगांठ पर कोई पार्टी का मुख्यमंत्री आमंत्रित किया गया है। 70के दशक में बाल ठाकरे ने दशहरा रैली में शरद पवार और जॉर्ज फर्नांडिस को आमंत्रित किया था।
अपने मुखपत्र ‘सामना’ में शिवसेना ने लिखा है ‘शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के निमंत्रण पर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस वर्षगांठ पर उपस्थित कार्यकर्ताओं का मार्ग दर्शन करेंगे।’
सामना में दो बातें अलग-अलग पन्नों पर हैं। भले ही शिवसेना ने चीफ मिनिस्टर देवेंद्र फडणवीस आमंत्रित किया है और कहा है कि वह भी शिव सैनिकों का मार्गदर्शन करेंगे लेकिन अपने एडिटोरियल में शिवसेना ने यह भी साफ कर दिया है कि अगली दफा सूबे के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस नहीं रहेंगे!
ग़ौर करें….’ शिवसेना के 54 वें वर्धापन दिवस समारोह में शिवसेना का मुख्यमंत्री विराजमान होगा।’
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव महज 4 महीने की दूरी पर है । शिवसेना-बीजेपी गठबंधन ने लोकसभा चुनाव में जबर्दस्त जीत हासिल की। हालांकि लोकसभा चुनाव से पहले शिवसेना और बीजेपी के बीच कड़वाहट चरम पर थी।गठबंधन सरकार का हिस्सा होते हुए भी शिवसेना ने विपक्ष पार्टी से भी बेहतर भूमिका इस दौरान निभाई। नीतियों को लेकर मोदी को भी नहीं बख्शा गया।लेकिन मामला सुलझा लिया गया गया।
जीतने के बाद शिवसेना को आशा थी कि उन्हें केन्द्रीय मंत्रिमंडल में अच्छी खासी जगह मिलेगी लेकिन निराशा ही हाथ लगी। राज्य में भी शिवसेना को अपनी जगह बनाने के लिए खासी मेहनत करनी पड़ी। विधानसभा चुनाव में भले शिवसेना-बीजेपी गठबंधन मिलकर चुनाव लड़ रही है फिर भी सीटों के बंटवारे को लेकर शिवसेना को बीजेपी की शर्त माननी ही पड़ी है। विजई होने पर महाराष्ट्र के अगले चीफ मिनिस्टर को लेकर भी खूब बहस हुई।
शिवसेना को यह दुख हमेशा सालता रहा है कि जिस बीजेपी ने राज्य में शिवसेना का हाथ थाम कर अपनी जमीन मजबूत की ,अब वही बीजेपी, शिवसेना के साथ शर्तों की राजनीति करने पर उतर आई है। जहां तक महाराष्ट्र में बीजेपी- शिवसेना गठबंधन की बात है, शिवसेना खुद को ‘बड़े भाई’ के तौर पर ही मानती रही थी लेकिन अब बीजेपी खुद को ‘छोटा भाई’ मानने को तैयार नहीं है। शिव सेना के संस्थापक व सुप्रीमो बाल ठाकरे के निधन के बाद स्थिति बदली है साथ ही साथ बीजेपी का ग्राफ राज्य ही नहीं देश में भी बढ़ा है। पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज होने के बाद बीजेपी के तेवर भी बदले बदले से हैं। शिवसेना किसी भी हालत में नहीं चाहती कि राज्य की सत्ता की धुरी से वह दूर रहे। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई, मुंबई महानगर पालिका शिव सेना के कब्जे में है। नगर निगम चुनाव के दौरान बीजेपी ने इसे भी अपने कब्जे में लेने की कोशिश की थी। शिव सेना बिसरी नहीं है।
वैसे शिवसेना एक दफा राज्य सत्ता का सुख भोग चुकी है। शिवसेना के मनोहर जोशी और नारायण राणे सूबे के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। लेकिन उस वक्त ठाकरे परिवार किंग मेकर और रिमोट कंट्रोल की भूमिका में था। सत्ता का असली केंद्र बाल ठाकरे का निवास स्थान ‘मातोश्री’ था। बीजेपी के आला नेताओं को भी मातोश्री आना पड़ता था। अब शिवसेना चाहती है एक बार फिर महाराष्ट्र की सत्ता की चाभी उसके हाथ में आए। लेकिन अब की दफा ठाकरे परिवार की मंशा है कि यह चाभी सिर्फ शिवसेना ही नहीं बल्कि ठाकरे परिवार के हाथ में संवैधानिक तौर पर आए। इसकी तैयारियां शिवसेना में शुरू हो चुकी है! ठाकरे परिवार की तीसरी पीढ़ी के आदित्य जो शिवसेना की युवा विंग के चीफ़ हैं, विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं ।और शिवसेना चाहती है कि महाराष्ट्र चीफ मिनिस्टर की कुर्सी पर युवा आदित्य ठाकरे बिराजे, जहां आज बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस विराजमान हैं।