महँगाई और दलबदल के साये में उत्तराखण्ड चुनेगा पाँचवीं सरकार

 किसी भी दल की लहर नहीं        मतदाता उत्सुक, नेता बेचैन

 वापसी को लेकर कांग्रेस बेचैन            देवभूमि पर 85,000 करोड़ के क़र्ज़

उत्तराखण्ड की ख़ूबसूरत सर्द वादियों में अगले महीने तापमान बढ़ जाएगा। यह इसलिए नहीं कि जाड़ा चला जाएगा, बल्कि फरवरी में होने वाले विधानसभा चुनावों में सभी राजनीतिक दलों की अचानक तेज़ हुई सरगर्मियों से देवभूमि इस वक़्त पूरे देशवासियों के लिए जिज्ञासा का केंद्र बना हुआ है। गोवा, मणिपुर, पंजाब और उत्तर प्रदेश के साथ उत्तराखण्ड में भी मार्च तक नयी सरकार का गठन होना है।

22 वर्ष पूर्व उत्तर प्रदेश से अलग हुए छोटे से इस हिमालयी राज्य में कहने को तो कुल 70 विधानसभा सीटें हैं; लेकिन प्रधानमंत्री के पसन्दीदा आस्था केंद्र केदारनाथ धाम के कारण उत्तराखण्ड इस वक़्त राजनीति की दृष्टि से वीआईपी राज्य बना हुआ है। यही कारण है कि स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस नेता राहुल गाँधी, ख़ुद आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया समेत इन दलों के वरिष्ठ नेताओं के दो से तीन दौरे और जनसभाएँ हो चुकी हैं। सत्ता में आने पर मुफ़्त की बिजली और बेरोज़गारी भत्ता जैसी गारंटी के लुभावने वादों के साथ आम आदमी पार्टी ने विपक्षी दलों पर तीखे प्रहार करते हुए स्वयं को देशभक्ति की राह पर चलने वाली पार्टी बताया है।

देवभूमि वासी अगले महीने पाँचवीं विधानसभा के लिए अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। क़रीब 54 वर्ग किलोमीटर में फैले इस पहाड़ी राज्य का 71 फ़ीसदी भाग वन क्षेत्र में आता है। लेकिन पहाड़ी और मैदानी विधानसभाओं की दृष्टि से देखा जाए, तो 70 में से आधी पर्वतीय और आधी मैदानी क्षेत्र की विधानसभा गिनी जाती हैं। इनमें से 41 सीटें गढ़वाल और 29 सीटें कुमाऊँ से हैं। राज्य बनने के बाद से भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस बारी-बारी से दो-दो बार सत्ता पर क़ाबिज़ रही हैं। इस बार वैसे तो किसी भी दल के पक्ष में एक तरफ़ा लहर नहीं दिख रही; लेकिन पिछली बार 11 सीटों पर सिमटने वाली कांग्रेस सत्ता में आने को काफ़ी बेचैन है। दिग्गज कांग्रेसी नेता स्व. नारायण दत्त तिवारी को छोड़कर दोनों राष्ट्रीय दलों के किसी भी मुख्यमंत्री को पाँच साल का कार्यकाल पार्टी के अंतर्कलह और भितरघात ने पूरा नहीं करने दिया। जैसे उत्तराखण्ड का मौसम हमेशा अप्रत्याशित रहता है, उसी तरह नेताओं की भी आदत बन चुकी है। अवसरवादिता और मौक़ापरस्ती के राजनीतिक वायरस से अमूमन यहाँ के नेता संक्रमित हो ही जाते हैं।

कुछेक ठेठ भाजपाइयों या कांग्रेसियों को छोड़कर यहाँ अवसरवादी राजनीति की पैदावार इतनी अच्छी हुई कि जिसके फलस्वरूप भ्रष्टाचार की फ़सलों को जिसे भी मौक़ा मिला वह बोने और काटने से नहीं चूका। नतीजा यह रहा कि 10 से 15 साल के भीतर ऐसे विधायकों की माली हैसियत में 20 गुना इज़ाफ़ा हो गया। नया राज्य और कमायी / कमीशनख़ोरी के अथाह अवसरों ने नेताओं के ज़मीर को तार-तार करके रख दिया। इसका जीता-जागता उदाहरण यह है कि शुरू से लेकर अब तक सभी मुख्यमंत्रियों के नाम के साथ विकासशील, ऊर्जावान और समर्पित शब्द पोस्टरों और बैनरों में तो ज़रूर देखने को मिले; लेकिन ईमानदार लिखने का साहस कोई भी मुख्यमंत्री नहीं जुटा पाया।

राज्य में राजनीतिक अस्थिरता उसके विकास में सबसे बड़ा रोड़ा है, क्योंकि नेताओं को दलबदल की बीमारी से छुटकारा नहीं मिल रहा है। सन् 2016 में पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा और हरक सिंह रावत के नेतृत्व में 10 विधायकों ने बग़ावत कर मुख्यमंत्री हरीश रावत को छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया था। हालाँकि यह बात अलग है कि कांग्रेसी गोत्र के इन 10 विधायकों को भाजपा में अपना वजूद बनाये रखने के लिए पिछले 5 साल से प्रेशर पॉलिटिक्स के हथकंडे अपनाने पड़े, उधर भाजपा ने भी इन पर कभी दिल से भरोसा नहीं किया और यह कहकर सन्तोष कर लिया कि अपना तो अपना ही होता है।

शिक्षा जगत के मानचित्र पर यूँ तो देहरादून, हल्द्वानी और रुड़की का नाम प्रमुखता से गिना जाता है, बावजूद इसके राज्य की महिला साक्षरता दर अभी भी केवल 69 फ़ीसदी पर अटकी हुई है। यहाँ के ग्रामीण क्षेत्रों में तो और भी बुरा हाल है। दिल्ली के सरकारी स्कूलों में शिक्षा क्रान्ति लाने के लिए आम आदमी पार्टी को जो सफलता मिली, शायद उत्तराखण्ड के सरकारी स्कूलों की बदहाली इसके सापेक्ष उनको उपजाऊ भूमि नज़र आ रही है और उत्साहित आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की तर्ज पर यहाँ की शिक्षा में भी क्रान्ति लाने का वादा कर दिया है। दिल्ली में तीन बार से लगातार सत्ता पर क़ाबिज़ आम आदमी पार्टी अबकी बार उत्तराखण्ड में होने जा रहे चुनावों में राज्य के कुछ ऐसे ही बुनियादी मुद्दों पर मतदाताओं के साथ विकास और भावनात्मक जुड़ाव बनाने की कोशिश कर रही है। उनकी इस सियासत ने कांग्रेस और भाजपा की बेचैनी बढ़ा दी है। केजरीवाल ने अपनी तीन जनसभाओं में 300 यूनिट मुफ़्त बिजली, हर बेरोज़गार को 5,000 रुपये बेरोज़गारी भत्ता और हर महिला या युवती को 1,000 रुपये का व्यक्तिगत ख़र्च देने की घोषणा गारंटी के तौर पर अपनी सभाओं से कर दी है।

इन लोकलुभावन घोषणाओं पर सवाल खड़े करते हुए जब कांग्रेस और भाजपा के नेता भड़के कि मुफ़्त की बिजली के लिए पैसा कहाँ से आएगा, तो केजरीवाल अपनी जनसभाओं में इस पर भी पलटवार करते हुए बोल गये कि जो करोड़ों रुपया रिश्वत का नेताओं के घरों में जा रहा है, उसे हम जनता पर लुटाने में गुरेज़ नहीं करेंगे।

आम आदमी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता नवीन पिरशाली का मानना है कि भाजपा और कांग्रेस ने पिछले 21 साल में प्रदेश को एक दर्ज़न मुख्यमंत्री तो दे दिये; लेकिन एक स्थायी राजधानी नहीं दे पाये। पिरशाली कहते हैं कि इन 21 साल में भाजपा और कांग्रेस ने उत्तराखण्ड पर क़र्ज़ का पहाड़ लाद दिया है और स्वास्थ्य के क्षेत्र में हिमालयी राज्यों में यह राज्य सबसे निचले पायदान पर लुढ़ककर आ गया है। नवीन पिरशाली ने कहा कि जहाँ एक ओर भाजपा कांग्रेस राज्य में मुद्दा विहीन हो चुके हैं और जनता के मुद्दों की बात न करके पैसे की चमक व सत्ता के प्रभाव से आकर्षण पैदा करके राज्य की जनता को बरगलाने का प्रयास कर रहे हैं, वही आम आदमी पार्टी इस राज्य की अवधारणा को पुनर्जीवित कर इस नववर्ष में उत्तराखण्ड नव-निर्माण के लिए नव-परिवर्तन और जनहित के मुद्दों पर काम कर रही है। उनका दावा है कि उत्तराखण्ड की जनता को गारंटी की जो सौगात अरविंद केजरीवाल ने दी है, उनके प्रयासों और जनता के भारी समर्थन की बदौलत 27 लाख से ज़्यादा राज्य की जनता सीधे तौर से आम आदमी पार्टी से जुड़ चुकी है। बुज़ुर्गों को तीर्थ यात्रा और पूर्व सैनिकों को सरकारी नौकरी देने सहित शहीदों की शहादत की सम्मान राशि एक करोड़ रुपये कर देने का संकल्प भी आम आदमी पार्टी ने लिया है। पिरशाली का मानना है कि जहाँ भाजपा कांग्रेस की राजनीति अपनों को समृद्ध बनाने की है, वहीं आम आदमी पार्टी की राजनीति ज़रूरतमंदों व समाज के अन्तिम छोर में बैठे उपेक्षित लोगों को राहत देने की है। कांग्रेस और भाजपा के चुनाव कैंपेन पर प्रहार करते हुए नवीन प्रशाली ने बताया कि आम आदमी पार्टी का चुनाव कैंपेन चमक-दमक से दूर रहकर, लोगों को समझाकर शिक्षित करके जनहित के लिए सहमति बनाना है।

भारतीय जनता पार्टी की सरकार में तीसरे मुख्यमंत्री के तौर पर बदले गये पुष्कर सिंह धामी ने पार्टी की छवि को काफ़ी हद तक सँभाल लिया वरना भाजपा के लिए यह दाग़ होना, मुश्किल हो गया था कि पार्टी ने पाँच साल में तीन मुख्यमंत्री बदल दिये। मुख्यमंत्री धामी की पारदर्शी कार्यप्रणाली के आगे विपक्ष भी उस समय नि:शब्द हो गया, जब उन्होंने अपने ही ओएसडी को एक मामले में 24 घंटे के भीतर निलम्बित कर दिया। ओएसडी नंदन सिंह बिष्ट ने मुख्यमंत्री के लेटर हेड पर परिवहन विभाग से सीज हुए वाहनों को छुड़वाने के लिए सिफ़ारशी पत्र लिख दिया था। इसके अलावा नरेंद्र मोदी, राजनाथ सिंह और अमित शाह भी धामी को राजनीति का एक अच्छा बॉलर और धाकड़ बल्लेबाज़ बता चुके हैं।

वर्तमान सदन में भाजपा का 57 विधायकों का प्रचण्ड बहुमत है, जिसमें से आठ बार विधायक रहे हरबंस कपूर का निधन हो गया। उधमसिंह नगर से पिता पुत्र विधायक यशपाल आर्य और संजीव आर्य भाजपा छोड़कर कांग्रेस में सम्मिलित हो चुके हैं। कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत और विधायक उमेश शर्मा काऊ समेत कांग्रेसी गोत्र के अन्य विधायकों के प्रति इसी कारण भाजपा का रुख़ कुछ नरम रहता है कि कहीं वह भी पासा न पलट लें। हालाँकि भाजपा के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को बदलने के बाद पार्टी ने केंद्र से सांसद तीरथ सिंह रावत को कमान सौंपी थी, लेकिन उन पर भी भरोसा न करके पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बना दिया, लेकिन संघ में अच्छी पैठ की वजह से आज भी भाजपा के शीर्ष नेता लगातार त्रिवेंद्र सिंह रावत के अच्छे सम्पर्क में हैं।

कांग्रेस के हैवीवेट नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के लिए भी यह चुनाव करो या मरो वाली स्थिति बन चुका है। मीडिया और चैनलों पर कई मर्तबा वह इस बात को दोहरा चुके हैं कि या तो मुख्यमंत्री बनूँगा या घर बैठूँगा। इतने दिग्गज राजनीतिज्ञ हरीश रावत के साथ ख़ुद उनकी कांग्रेस पार्टी राजनीति खेल रही है। पार्टी हाईकमान ने उनको मुख्यमंत्री का चेहरा तो नहीं घोषित किया, लेकिन चुनाव उनके संचालन में कराने की घोषणा कर दी। इसके बावजूद कांग्रेस अभी भी राज्य में धड़ों में बँटी हुई है।

भारतीय जनता पार्टी को भी सत्ता वापसी से ज़्यादा चिन्ता इस बात की है कि राज्य में कहीं कांग्रेस के सारे धड़े एकजुट न हो जाएँ। कांग्रेस की पिछली सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे और प्रदेश अध्यक्ष रह चुके प्रीतम सिंह का भी पार्टी में अच्छा-ख़ासा वजूद है। इन चुनावों में कांग्रेस अगर सरकार बनाने लायक बहुमत ले आती है, तो प्रीतम सिंह की मुख्यमंत्री के लिए दावेदारी प्रबल मानी जाएगी। अपनी चाहत और मन की बात को भी प्रीतम सिंह ने पार्टी हाईकमान के समक्ष हमेशा अनुशासित स्वर में रखा है। ऐसा माना जाता है कि हरीश रावत की सहमति के बिना कांग्रेस का नेता नहीं चुना जाएगा; लेकिन पार्टी में आंतरिक अस्थिरता न पनपे इसके लिए भी राहुल गाँधी ख़ासे चिन्तित हैं।

बहराल भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी, पलायन, प्राकृतिक आपदाओं और राजनीतिक अस्थिरता से त्रस्त उत्तराखण्ड वर्तमान में तक़रीबन 85,000 करोड़ रुपये के क़र्ज़ में डूबा हुआ है। इसकी भरपाई कैसे होगी? कैसे चुकाया जाएगा यह क़र्ज़? न तो किसी दल को इसकी चिन्ता है, न ही सत्तारूढ़ किसी दल ने कभी अपने चुनावी घोषणा-पत्र में इस क़र्ज़ से निजात पाने का ज़िक्र भी किया। इसलिए यही कहा जा सकता है कि देवी-देवताओं की भूमि में सरकारें और जनता भी दैवीय-कृपा पर ही निर्भर हैं।