मदरसों पर टेढ़ी नज़र?

असम सरकार ने मदरसों के बारे में जो नीति बनायी है, उसे लेकर अभी तक हमारे धर्म-निरपेक्षतावादी क्यों नहीं बौखलाये? इस पर मुझे आश्चर्य हो रहा है। असम के शिक्षा मंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने जो कदम उठाया है, वह तुर्की के विश्व विख्यात नेता कमाल पाशा अतातुर्क की तरह है। उन्होंने अपने मंत्रिमंडल से यह घोषणा करवायी है कि अब नये सत्र से असम के सारे सरकारी मदरसे सरकारी स्कूलों में बदल दिये जाएँगे। राज्य का मदरसा शिक्षा बोर्ड अगले साल से भंग कर दिया जाएगा। इन मदरसों में अब कुरआन शरीफ, हदीस, उसूल-अल-फिका, तफसीर फरियाद आदि विषय नहीं पढ़ाये जाएँगे; हालाँकि भाषा के तौर पर अरबी ज़रूर पढ़ायी जाएगी। जिन छोटे-बड़े मदरसों को स्कूल नाम दिया जाएगा, उनकी संख्या 189 और 542 है। इन पर हर साल खर्च होने वाले करोड़ों रुपयों का इस्तेमाल सरकार अब आधुनिक शिक्षा देने में करेगी।

इस कदम से ऐसा लगता है कि यह इस्लाम-विरोधी घनघोर साम्प्रदायिक षड्यंत्र है; लेकिन वास्तव में यह सोच ठीक नहीं है। इसके कई कारण हैं। पहला, मदरसों के साथ-साथ यह सरकार 97 पोंगापंथी संस्कृत केंद्रों को भी बन्द कर रही है। उनमें अब सांस्कृतिक और भाषिक शिक्षा ही दी जाएगी; धार्मिक शिक्षा नहीं। अब से लगभग 70 साल पहले जब मैं संस्कृत-कक्षा में जाता था, तो वहाँ मुझे वेद, उपनिषद् और गीता नहीं, बल्कि कालिदास, भास और बाणभट्ट को पढ़ाया जाता था। दूसरा, जो गैर-सरकारी मदरसे हैं, उनमें मौलवी जो चाहें, सो पढ़ाने की छूट रहेगी। तीसरा, इन मदरसों और संस्कृत केंद्रों में पढऩे वाले छात्रों की बेरोज़गारी अब समस्या नहीं बनी रहेगी। वे आधुनिक शिक्षा के ज़रिये रोज़गार और सम्मान दोनों अर्जित करेंगे। चौथा, असम सरकार के इस कदम से प्रेरणा लेकर जिन 18 राज्यों के मदरसों को केंद्र सरकार करोड़ों रुपये की मदद देती है, उनका स्वरूप भी बदलेगा। सिर्फ चार राज्यों में 10 हज़ार मदरसे और 20 लाख छात्र हैं। धर्म-निरपेक्ष सरकार इन धार्मिक मदरसों, पाठशालाओं या गुरुकुलों पर जनता का पैसा खर्च क्यों करे? हाँ, इन पर किसी तरह का प्रतिबन्ध लगाना भी सर्वथा अनुचित है। असम सरकार ने जिस बात का बहुत ध्यान रखा है, उसका ध्यान सभी प्रान्तीय सरकारें और केंद्रीय सरकार भी रखे; यह बहुत ज़रूरी है। असम के मदरसों और संस्कृत केंद्रों के एक भी अध्यापक को बर्खास्त नहीं किया जाएगा। उनकी नौकरी कायम रहेगी। वे अब नये और आधुनिक विषयों को पढ़ाएँगे। असम सरकार का यह प्रगतिशील और क्रान्तिकारी कदम देश के गरीब, अशिक्षित और अल्पसंख्यक वर्गों के नौजवानों के लिए नया विहान लेकर उपस्थित हो रहा है।