भूख से तीन बच्चों की देश की राजधानी में मौत!

जब संसद में कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच ‘जुमलाबाजी’ और जफ्फी की राजनीति गरमा रही थी, ठीक उसी वक्त वहां से 12 किलोमीटर दूर देश की राजधानी में तीन मासूम बहनें भूख से मर रही थी। उनकी उम्र थी आठ साल, चार साल और दो साल। भूख से ये मौतें हमें याद दिलाती हैं कि जब आप रात को भोजन कर पूरी तरह तृप्त हो जाते हैं, उस समय देश के 20 करोड़ लोग बिना रोटी खाए सो जाते हैं।

यह घटना किसी दूरदराज की नहीं, झारखंड या छतीसगढ़ की नहीं बल्कि देश की राष्ट्रीय राजधानी की है जहां बच्चों की मौतें भूख से हुईं। ये मौतें उस देश में हुईं जो खुद को दुनिया की सबसे तेज अर्थव्यवस्था का देश कहलाता है। यहां हर मिनट पांच लोग भूख से मरते हैं। विकास का हमारे दावे का मखौल बन गया। दुनिया के एक तिहाई भूखे लोग भारत में हैं। राष्ट्रीयसंघ के फूंड एड एग्रीक्लचरल ऑरगेनाइजेशन के अनुसार बीस करोड़ भारतीय रोज भूखे रहते हैं और वे कुपोषण के शिकार हैं।

हालांकि हमारा दावा है कि देश में फूड सिक्यूरिटी एक्ट बना हुआ है भोजन हर जीव का प्राथिमक अधिकार है और केंद्र और राज्य सरकारों की यह जिम्मेदारी है कि हर नागरिक को जो भूखा है वे उसके खाने-पीने की व्यवस्था करें। पर अब मानसी, शिखा और पारूल की मौतों पर एक दूसरे पर दोष मढऩे, राजनीति करने और जांच कराने का पुराना सिलसिला अब चल रहा है।

दिल्ली सरकार ने मौतों की जांच के आदेश दे दिए हैं। लेकिन हम सभी जानते हैं कि इस तरह की जांच और उसकी रपटों का क्या हश्र होता रहा है। कोई उनकी परवाह नहीं करता। वे किसी कोने में धूल फांकती रहती हैं। हम सब लोगों के लिए यह शर्म की बात है जो राजधानी में रह रहे गरीब परिवारों के दुख दर्द को नहीं समझ पाते। जहां बच्चों को आठ दिनों से भोजन नहीं मिला।

यह कितने अफसोस की बात है कि दिल्ली में मंडावली इलाके में जहां यह परिवार रहता था उससे कुछ ही दूरी पर आंगनवाड़ी केंद्र है जिसके बारे में कहा जाता है कि वे बच्चों को मुफ्त खाना और शिक्षा देते हैं। इस देश में हर किसी का पेट भरने के लिए पर्यात्य भोजन है। लेकिन हर साल 88,800 रु पएकरोड़ का या उसका 40 फीसद बर्बाद हो जाता है।

यह बेहद शर्मनाक है कि हम उन परिवारों को राशन नहीं मुहैया कराते जिनके पास राशनकार्ड नहीं हंै। इस परिवार के साथ भी ‘राशनकार्ड नहीं तो राशन नहीं’, का सिद्धांत दुकानदार और अफ सरों ने अपनाया जिसके कारण यह अनर्थ हुआ। इस परिवार की साथी भूख थी। क्या प्रशासन घर की दहलीज तक राशन नहीं पहुंचा सकता था। लेकिन सच्चाई बहुत तकलीफ देह होती है। हर दिन 7000 भारतीय भूख से मरते हैं। ग्लोबल हंगर इंडेक्स, की 119 देशों की सूची में भारत का स्थान 100वां है।

लेकिन हमारे देश में यह अजब सा चलन है कि भाजपा जिम्मेदार ठहराती है ‘आप’ को। ‘आप’ जिम्मेदार ठहराती है भाजपा को। और कंाग्रेस जिम्मेदार ठहराती हैं ‘आप’ और भाजपा को। आरोप-प्रत्यारोप चलते रहते हैं। मगर सच्चाई यही है कि भूख से ही हुई हैं मौतें। यानी 21वीं सदी के भारत का सच यही है।

इस संपादकीय को पढऩे के बाद अपने कुछ मिनट उन तीन बच्चियों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर भी लगाइए। उसमें साफ  लिखा है कि इनके पेट में एक ग्राम भी भोजन नहीं था। हम नहीं चाहते कि बच्चे मानसी, शिखा और पारूल की तरह भूखमरी के शिकार हों।