बीमार होते बैंक

यस बैंक में हालिया मुसीबत इस बात का गम्भीर संकेत है कि देश की बैंकिंग प्रणाली अब भी धोखाधड़ी मुक्त नहीं है और लम्बे समय से इसे ठीक करने की ज़रूरत रही है। बैंकिंग संकट की वास्तविकता पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव (पीएमसी) बैंक में आये एक घोटाले से सामने आती है। यह घोटाला एकल क्लाइंट-रियल-एस्टेट फर्म हाउसिंग डेवलपमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (एचडीआईएल) पर भारी पड़ा, जो खुद दिवालियापन की कार्यवाही का सामना कर रही थी। लेकिन ऐसा लगता है कि पीएमसी की घटना से कोई सबक नहीं लिया गया। यह राजनेता, बैंकर और कॉरपोरेट साठगाँठ का एक अनोखा मामला था, जिसमें शासन और हितों की रक्षा करने वालों की विफलता उजागर हुई है।

इससे पहले भी नीरव मोदी, मेहुल चोकसी और विजय माल्या के मामलों ने बैंकिंग प्रणाली को हिलाकर रख दिया था, जहाँ बिना बैंक गारंटी के कर्ज़ लिया गया था। अब बैंकिंग प्रणाली में धोखाधड़ी की पुनरावृत्ति ने बैंकों की कार्यप्रणाली पर संदेह पैदा किया है। इससे वित्तीय संस्थानों पर से जनता का भरोसा कम हुआ है। विडम्बना यह है कि यस बैंक का मामला सरकार के सार्वजनिक क्षेत्र के 10 बैंकों को चार मेगा स्टेट-स्वामित्व वाले ऋणदाताओं में समेकित करके सरकार की योजनाओं को लागू करने के लिए निर्धारित किये जाने से कुछ हफ्ते पहले आया है। वास्तव में बैंकिंग प्रणाली में सुधार का रास्ता काफी मुश्किल लग रहा है।

यस बैंक की कहानी भी बड़ी अजीब है। यह बैंक अनेक कर्ज़दारों द्वारा कर्ज़ न चुका पाने के बावजूद वित्तीय वर्ष 2014 और 2019 के बीच 334 फीसदी बढ़त के साथ कर्ज़ देने की होड़ में शामिल हो गया। बैंक की सकल गैर-निष्पादित परिसम्पत्ति (एनपीए) 7.39 फीसदी तक देखी गयी, जो दूसरे बैंकों की तुलना में सबसे अधिक है। सबसे पहले, यस बैंक ने खराब ऋणधारकों की संख्या को बढऩे दिया, कई नये ऋणों को मंज़ूरी भी दी। फिर जब संकट आया, तो उसका समाधान करने और अपना मुनाफा बढ़ाने में पूरी तरह विफल रहा। हालाँकि, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जमाकर्ताओं को भरोसा दिलाया है कि उनका पैसा सुरक्षित है। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने भी यस बैंक को संकट से उबारने तथा उसके ग्राहकों को राहत देने के लिए कदम बढ़ाया है। बता दें कि एसबीआई की यस बैंक में अधिकतम 49 फीसदी हिस्सेदारी है और इसके लिए वह लगभग 11,760 करोड़ रुपये इस संकट से उबारने में लगाएगा।

जाँच एजेंसियाँ अब यस बैंक के संस्थापक राणा कपूर की भूमिका की जाँच कर रही हैं। इन सबके बावजूद संकट घटता नहीं दिखता। वित्त मंत्रालय और आरबीआई दोनों के लिए यह जानना समझदारी होगी कि बैंकिंग क्षेत्र में घोटालों का कोई अन्त नहीं है, क्योंकि अक्सर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों, निजी बैंकों और सहकारी बैंकों के अलावा गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियाँ भी धोखाधड़ी करते हुए पकड़ी गयी हैं। यदि बैंकिंग प्रणाली पर जनता का भरोसा बनाये रखना है, तो बैंकों की कार्यप्रणाली में निहित खामियों को प्रभावी ढंग से दुरुस्त करना होगा। बैंक, अर्थ-व्यवस्था के पहियों की महत्त्वपूर्ण धुरी हैं और अगर भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर अर्थ-व्यवस्था हासिल करनी है, तो बैंकिंग व्यवस्था और कार्यप्रणाली की खामियाँ हमेशा के लिए खत्म करनी होंगी।