बदल रहा है बद्रीनाथ, चार धाम महामार्ग परियोजना से धार्मिक पर्यटन को लगे पंख

हम ठहरे मैदानी इलाक़े में रहने वाले। अचानक बद्रीनाथ जाने का कार्यक्रम तय हुआ। बिना देरी किये रात 2:00 बजे हम हरिद्वार से चार लोग (तीन महिलाएँ और एक ड्राइवर) अपनी गाड़ी से चल पड़े। रात के सन्नाटे में ऋषिकेश में प्रवेश किया। चारों तरफ़ टिमटिमाती रोशनी, चौड़ी सडक़ें और शान्त वातावरण। यात्रा को लेकर मन में एक कौतूहल। ऋषिकेश निकलते ही मुनि की रेती से घुमावदार रास्ते के साथ ही पहाड़ चढऩे का सिलसिला शुरू हो गया। अभी सुबह नहीं हुई थी। पहाड़ी क्षेत्र में चल रहे थे, यह तो महसूस हो रहा था कि पहाड़ों की ऊँचाई का अनुमान नहीं है। पौ फटते ही हमारी गाड़ी एक लंगर स्थल के पास खड़ी हो गयी, जहाँ हमें नाश्ता मिल गया।

उसके बाद हम श्रीनगर पहुँचे। यहाँ आकर महसूस हुआ कि हम किसी आम पहाड़ की यात्रा पर नहीं थे। आध्यात्मिक क्षेत्र की जैसे पहली सीढ़ी का अहसास हुआ।

देवप्रयाग के बाद आया रुद्रप्रयाग, जहाँ से रास्ता बदला। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर पर्वत शृंखला। ऊँचे, नीचे और तंग रास्तों से होते हुए 11:00 बजे के क़रीब हम जोशीमठ पहुँचे। यहाँ की सडक़ें काफ़ी अच्छी बन गयी हैं। ऐसा लगा, मानो बद्रीनाथ पास ही हो। लेकिन चारों तरफ़ आसमान छूते पर्वत सीधी और कठिन चढ़ाई वाले देख अचम्भा हो रहा था। मानो यही पर्वत धरती का शिखर हैं। लेकिन यह सच न था। न जाने कितने पर्वत पार किये। हम दोपहर 1:30 बजे बद्रीनाथ पहुँच चुके थे।

भारत के प्रमुख धामों में उत्तराखण्ड में बद्रीनाथ धाम सबसे प्राचीनतम क्षेत्र है, जिसकी स्थापना सतयुग में हुई मानी जाती है। बद्रीनाथ को विशालपुरी और बद्री विशाल भी कहा जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि आदि युग में नर और नारायण त्रेता में भगवान राम, द्वापर में भगवान वेदव्यास और कलियुग में शंकराचार्य ने बद्रीनाथ में शान्ति पाकर धर्म और संस्कृति का शंखनाद किया। तभी से यह क्षेत्र बद्रीनाथ के नाम से प्रसिद्ध हो गया। यह यात्रा बहुत समय पहले काफ़ी कठिन थी। बड़े बुज़ुर्ग बताते हैं कि लोग यात्रा से पहले अपना अन्तिम संस्कार करवा लेते थे। ऊबड़-खाबड़ रास्ते होने के कारण लोग पैदल चलते थे। बड़ी मुश्किल से 500 या 600 के क़रीब यात्री ही पहुँच पाते थे। लेकिन चारधाम महामार्ग की चौड़ी सडक़ें बन जाने से यात्री अब काफ़ी ख़ुश दिखायी देते हैं। कई तपस्वी आज भी पैदल यात्रा करते दिखायी देते हैं।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की परिकल्पना के अनुसार, बद्रीनाथ धाम को और अधिक विकसित करने की परियोजना पर काम चल रहा है। उत्तराखण्ड के पर्यटन विभाग के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, राज्य सरकार द्वारा भारत सरकार के सहयोग से सामाजिक उत्तरदायित्व के ज़रिये 277 करोड़ रुपये की लागत से बद्रीनाथ धाम का विकास कार्य करवाया जा रहा है। 9 फरवरी, 2022 को देहरादून में एक कार्यक्रम में बोलते हुए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का कहना था कि पहले चार धाम यात्रा छ: महीने ही होती थी। ज़मीन खिसकने के कारण हादसे होते रहते थे। उन्होंने स्विट्जरलैंड से कंसलटेंट बुलाकर चारधाम सडक़ परियोजना पर चर्चा की। इसके बाद उत्तराखण्ड की 12,500 करोड़ रुपये की लागत से चार धाम ऑल वेदर रोड परियोजना बनी। वर्तमान में 563 किलोमीटर की सडक़ बनकर तैयार हो चुकी है और उम्मीद है कि दिसंबर, 2022 तक यह परियोजना पूरी हो जाएगी।

इस परियोजना को उत्तराखण्ड की जीवन रेखा बताते हुए गडकरी का कहना था कि ऋषिकेश से बद्रीनाथ धाम 253 किलोमीटर की दूरी पर है। रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, चमोली से माना गाँव तक 128 किलोमीटर सडक़ का काम 1,735 करोड़ रुपये की लागत से किया जा रहा है। पर्यावरण और पारिस्थितिकी को महत्त्वपूर्ण मानते हुए मंत्री का कहना था कि इसमें पेड़ काटे नहीं जाएँगे, बल्कि प्रत्यारोपित किये जाएँगे। बद्रीनाथ धाम सनातनियों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान होने के साथ-साथ साहित्य और इतिहास की साधना के लिए भारत-तिब्बत सीमा का प्रहरी भी रहा है। शंकराचार्य ने इसे सुनियोजित सैनिक शिविर का रूप दिया था। इसलिए इस स्थान का सैनिक महत्त्व भी है। क्योंकि हिमालय के दो दर्रे माना और नीति यहीं आकर निकलते हैं। पुस्तक ‘भारत के तीर्थ स्थान’ में जानकारी मिलती है कि समुद्र तल से 3,133 मीटर की ऊँचाई पर नारायण पर्वत के मूल में बद्रीनाथ धाम स्थित है। बेर के घने जंगल होने के कारण इसका नाम बद्री पड़ा। यहाँ नर और नारायण दो पर्वत हैं।

नारायण पर्वत से भारी भरकम ब$र्फ की शिलाएँ खिसकती रहती हैं; लेकिन मन्दिर को कभी कोई नुक़सान नहीं होता है। अलकनंदा नदी के दायें तट पर नारायण का 45 फीट ऊँचा मन्दिर है। पूर्व दिशा में इसका मुख्य द्वार है, जिसे सिंहद्वार भी कहते हैं। जो बेहद सुन्दर और प्राचीन नागर वास्तु शैली में बना हुआ है। मन्दिर में भगवान नारायण की पद्मासन में बैठी हुई मूर्ति है, जो काले शालिग्राम पत्थर की बनी हुई है। दायीं ओर नर-नारायण, बायीं ओर गरुड़ और कुबेर की मूर्ति है। मन्दिर के गुम्बद के ऊपर रानी अहिल्याबाई होलकर द्वारा भेंट किया गया कलश चढ़ा है। गढ़वाल राइफल्स द्वारा भेंट किया गया एक बड़ा घंटा लटक रहा है। गर्भ ग्रह के दरवाज़े चाँदी के हैं। मन्दिर के प्रमुख पुरोहित को रावल कहते हैं कि बद्रीनाथ धाम के बारे में अलग-अलग मिथका, कथाएँ और प्रसंग मिलते हैं। लेकिन यह मान्यता है कि यह पवित्र स्थल भगवान विष्णु की तपस्या का गवाह रहा है, जिसके आध्यात्मिक आकर्षण का वर्णन स्वामी विवेकानंद ने भी अपनी लेखनी में किया है। इस बारे में बुद्ध से जुड़ी तिब्बती दंतकथा भी मिलती है।

कैसे और कब जाएँ बद्रीनाथ?

बद्रीनाथ धाम की यात्रा करने का उचित समय मई से नवंबर तक का रहता है। बरसात के दिनों में थोड़ा-सा मुश्किल होता है। बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग-58 पर स्थित है। इस पर राज्य परिवहन की बसें चलती हैं। इसके अलावा प्राइवेट वाहन और टैक्सियाँ भी चलती हैं। ऋषिकेश से बद्रीनाथ की दूरी 297 किलोमीटर है। बद्रीनाथ से सबसे नज़दीक देहरादून हवाई अड्डे का जौली ग्रांट है, जहाँ से बस और प्राइवेट टैक्सी से जाया जा सकता है।

10 वर्षों में बद्रीनाथ पहुँचे यात्रियों की संख्या (पर्यटन विभाग, देहरादून से मिली जानकारी के अनुसार)
वर्ष 2012 9,41, 092
वर्ष 2013 4,97,386
वर्ष 2014 1,50,060
वर्ष 2015 3,66,455
वर्ष 2016 6,54,355
वर्ष 2017 9,20,466
वर्ष 2018 10, 48, 051
वर्ष 2019 11,74,013
वर्ष 2020 1,55,055
वर्ष 2021 1,99, 409