बढ़ते जा रहे पाखण्डी

अब कोई भी धर्म अपने मूल रूप में नहीं दिखता। हर धर्म के लोग व्यावहारिकता के स्वरूप को अंगीकार करते जा रहे हैं। अर्थात् जिस समय जिस धर्म में जो प्रचलन में होता है, उस धर्म के लोग उसी को धर्म समझकर उसे स्वीकार करते हैं। यही कारण है कि एक ही धर्म के मानने वालों के धार्मिक क्रिया-कलापों में भिन्नता दिखती है। अर्थात् एक ही धर्म के लोग कई अलग-अलग पगडंडियों पर चलते नज़र आते हैं। सबकी अपनी-अपनी मान्यताएँ और धारणाएँ हैं। यह मान्यताओं और धारणाओं पर क्रिया-कलापों के नित नये कलेवर चढ़ते जा रहे हैं। इन्हीं क्रिया-कलापों में धीरे-धीरे नित नये पाखण्ड और नये आडम्बर प्रवेश करते जा रहे हैं।

इस दौर में इन्हीं पाखण्डों और आडम्बरों के अनुरूप चलने वालों की बहुतायत है। लोग इन्हीं पाखण्ड और आडम्बरयुक्त रीतियों, विधियों को धर्म समझने लगे हैं। विडम्बना यह है कि पाखण्ड और आडम्बर को धर्म समझने वाले ऐसे लोगों की संख्या हर धर्म में बढ़ती ही जा रही है। पाखण्डियों की इस भीड़ में हर कोई बढ़चढक़र आडम्बर करने को तत्पर है, ताकि इस भीड़ के बा$की लोग सबसे बड़ा धार्मिक समझने की भूल कर सकें।

मेरा मानना है कि अगर धर्म आडम्बर और पाखण्ड में पूरी तरह भर गये हों, तो ऐसे धर्मों को अपनाने से बेहतर है कि आदमी नास्तिक बने। जिन धर्मों के लोग, विशेषकर धर्माचार्य ही भटते हुए हों, उन धर्मों में जाने से क्या फ़ायदा? ऐसे किसी धर्म में अगर आप सही रूप से धार्मिक बने भी रहे, और पाखण्डी लोग आपको अपने आडम्बर-जाल में फँसाकर भटकाकर ढोंगी न भी बना पाये, तो भी आपकी आने वाली पीढिय़ाँ उस धर्म के पाखण्डों, आडम्बरों में ज़रूर फँस जाएँगी। जिस तरह ग़लत रास्ता अनजान राही को भटका देता है। यह तब और ज़्यादा होता है, जब ग़लत रास्ते को सही कहने और उस पर चलने वाले संख्या में ज़्यादा हों। वैसे भी ग़लत परम्पराओं की नींव पर खड़ा धर्म अपने अनुयायियों को किसी भी छोर पर भटकाएगा-ही-भटकाएगा। यह तब और तय हो जाता है, जब धर्माचार्य भटके हुए हों। हर धर्म के लोगों को अपने-अपने धर्मों के ऐसे भटके हुए तथाकथित धर्माचार्यों का विरोध करके उन्हें धर्मों से ही निष्कासित कर देना चाहिए। तभी उनका धर्म भी बच सकेगा और धर्म को मानने वाले लोग भी सच्चे धर्मानुयायी होकर सुख से रह सकेंगे और उनका ईश्वर को पाने का ध्येय साकार हो सकेगा।

आजकल तो कई तथाकथित धर्माचार्य कई अनैतिक, असामाजिक गतिविधियों में लिप्त पाये जाने के उपरान्त भी एक बड़ी भीड़ के पूज्यनीय बने रहते हैं। बलात्कार और गुण्डागर्दी करके भी मूर्ख लोग उन्हें पूज्यनीय बनाये रहते हैं। ऐसे मूर्खों की एक बड़ी भीड़ आजकल हर धर्म में है। यह भीड़ उनके तथाकथित धर्मगुरु पर किसी भी सामाजिक टिप्पणी और क़ानूनी कार्रवाई का विरोध करने लगती है। हिंसा और तोडफ़ोड़ पर आमादा हो जाती है।

सही मायने में यह भीड़ सदियों से धर्म के नाम पर भटकी हुई है। इस तरह के लोगों को जिन तथाकथित धर्मगुरुओं के द्वारा जितना ज़्यादा भटकाया जा रहा है, ये उनके उतने ही ज़्यादा मुरीद होते जाते हैं। ये भीड़ सच्चाई को देखना ही नहीं चाहती। इन्हें धर्म का चोला ओढ़े बैठे इन पापी और पाखण्डी लोगों में भी अपने-अपने भगवान दिखायी देते हैं। इसी के चलते इन तथाकथित पाखण्डी धर्माचार्यों के भटके हुए अनुयायी इनके एक इशारे पर धर्म के विरुद्ध कोई भी अनुचित और अनैतिक काम करने से भी नहीं चूकते।

अगर हर धर्म के लोग वास्तविक धर्म को समझ लें, तो उन्हें कोई नहीं भटका सकता। लेकिन ऐसा नहीं है। यही हाल आजकल राजनीति का है। राजनीति में मठाधीश बने आपराधिक प्रवृत्ति के लोग जनता को धर्म, जाति, भाषा और क्षेत्र को लेकर पड़े बिखण्डन का सहारा लेकर उलझाये रखते हैं। राजनीति के क्षेत्र में भी लोगों को जागरूक होना चाहिए, ताकि इस महत्त्वपूर्ण क्षेत्र से गन्दगी छँट सके। यह तभी सम्भव है, जब धर्म पर लोग होंगे। धर्म पर लोग तब होंगे, जब उन्हें सही धर्मगुरु मिलेंगे। धर्मों को पढ़ाया जाएगा। लेकिन आजकल के तथाकथित धर्माचार्य स्वयं भी धर्म की सही जानकारी नहीं रखते और अगर कोई सही जानकारी है, तो उसे आगे प्रसारित नहीं करना चाहे। ज़्यादातर धर्माचार्य मठाधीश बने रहना चाहते हैं। इस मठाधीशी को पाने के लिए राजनीति करते हैं। राजनेताओं के तलवे चाटते  हैं। उनसे मिलकर नंबर-2 के धन्धे करते-कराते हैं। अपने प्रतिद्वंद्वी धर्माचार्यों और सच्चे धर्माचार्यों से लड़ते हैं। लोगों को समझना चाहिए कि जिन धर्माचार्यों को धर्म का सही रास्ता दिखाने के लिए चुना गया हो, अगर वही धर्म भटकाने लगें, तो उन्हें धर्म से निकाल देना ही बेहतर है। ऐसे लोगों को हर धर्म के सभी अनुयायियों द्वारा एकजुट होकर तिरस्कृत और त्यक्त कर देना चाहिए। अगर कोई धर्माचार्य अनैतिक काम करे, तो उसे सामान्य व्यक्ति की तरह ही दण्डित भी करना चाहिए।