प्राकृतिक सम्पदा के दुश्मन

अवैध कारोबार के खेल में मज़ाक़ बनकर रह गया जल, जंगल, ज़मीन बचाओ का नारा

15 नवंबर, 2000 को बिहार से अलग हुआ झारखण्ड खनिज सम्पदा के कारण देश में प्रसिद्ध है। लेकिन अकूत प्राकृतिक सम्पदा के मालिक इस राज्य की एक बड़ी आबादी आज तक ग़रीब है। ये ग़रीब लोग आज भी जल, जंगल, ज़मीन की सुरक्षा को लेकर अपने नारों के साथ विकास की कल्पना में डूबते-उतरते रहते हैं। हक़ीक़त इससे परे है। उनके पैरों तले ये जल, जंगल, ज़मीन कब और कितने खिसक गये, इसकी जानकारी उन्हें है ही नहीं।

दरअसल यही खनिज सम्पदा उसके लिए अभिशाप बन गयी है। बड़े पैमाने पर माफ़िया, बिचौलिये और दुनिया भर के पूँजीपति इस राज्य की सम्पदा का इतनी बेदर्दी से दोहन कर रहे हैं कि यहाँ का नैसर्गिक सौंदर्य ख़त्म होता जा रहा है। अवैध कारोबार माफ़िया का ख़ूख़ार खेल है, जिसमें आड़े आने वालों की हत्या करने तक से कोई नहीं हिचकता। पत्थर के कारोबार के कारण पहाड़ विलुप्त होते जा रहे हैं। ज़मीन के भीतर से कोयला, लौह अयस्क और बेशक़ीमती पत्थर निकालने के लिए पेड़-पौधे, यहाँ तक कि जंगल-झाड़ भी साफ़ होते जा रहे हैं। बालू निकालने के लिए नदियों का दोहन हो रहा है। इस खेल में राजनीतिक संरक्षण प्राप्त होने और लालफ़ीताशाही का साथ मिलने की बात से इनकार नहीं किया जा सकता। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा न्यायालय में फाइल चार्जशीट से भी इन सभी बातों की पुष्टि अब होने लगी है।

कोयले की काली कमायी

झारखण्ड में काले हीरे यानी कोयले का अवैध कारोबार कोई नया नहीं है। राज्य की ज़मीन के अन्दर दबी इस अकूत सम्पदा पर कई फ़िल्में भी बनी हैं। इसे लेकर वर्चस्व की लड़ाई को भी समय-समय देखा गया है। एकीकृत बिहार यानी जब झारखण्ड अलग नहीं हुआ था, तब भी कोयले के अवैध खनन का मामला उठा था। कोयले के अवैध कारोबार को लेकर सन् 1990 में बेरमो के प्रख्यात मज़दूर नेता व पूर्व विधायक स्वर्गीय राजेंद्र प्रसाद सिंह ने तत्कालीन केंद्रीय कोयला मंत्री को एक पत्र में लिखा था कि दक्षिण बिहार के कोयला खदानों से हर साल डेढ़ अरब रुपये के कोयले की चोरी होती है। उस समय उनके दावे पर काफ़ी शोर मचा था। जाँच भी हुई थी; लेकिन रिपोर्ट कभी सार्वजनिक नहीं हुई। झारखण्ड बनने के बाद कोयले के अवैध कारोबार का यह बाज़ार बढ़ता गया।

लौह अयस्क का धन्धा

कोयला के बाद लौह अयस्क का अवैध कारोबार भी काली कमायी का एक महत्त्वपूर्ण जरिया है। सारंडा इलाक़े में पाये जाने वाले लौह अयस्क या लाल मिट्टी की कहानी भी कम रोचक नहीं है। यहाँ अवैध खनन की जाँच के लिए सीबीआई से लेकर शाह आयोग तक बना; लेकिन बड़े मालिकों का कुछ नहीं हुआ। राज्य के विभिन्न ज़िलों से लौह अयस्क ओडिशा और बंगाल के साथ सीमा पार चीन तक पहुँचाया जाता है। इस अवैध खनन ने झारखण्ड के लोगों को बेघर किया। जंगलों को नष्ट कर दिया। पूँजीपतियों, माफ़िया और इससे जुड़े लोगों ने अरबों की कमायी की।

ग़ायब हो गये दर्ज़नों पहाड़

संताल क्षेत्र से एक-एक करके पहाड़ ग़ायब होते जा रहे हैं। वहाँ के रहने वाले लोग बताते हैं कि पिछले 22 वर्षों में इस इलाक़े के दर्ज़नों पहाड़ ग़ायब हो गये। साहिबगंज, दुमका, पाकुड़ व संताल के अन्य इलाकों से पहाड़ से पत्थर तोडक़र निकलाने का कारोबार धड़ल्ले से चलता है। यह पत्थर देश के अन्य हिस्सों तक नहीं बांग्लादेश तक भेजा जाता है। इसका ख़ुलासा ईडी ने भी किया है। ईडी ने साहिबगंज में एक बड़े जहाज़ को ज़ब्त किया। इस जहाज़ पर अवैध रूप से ट्रकों पत्थर लादकर भेजा जाता था। पत्थर का अवैध कारोबार इतना फैल गया कि हर तरफ़ क्रेशर मशीन दिखती हैं। छोटे-छोटे स्तर पर भी लोग इससे जुड़ गये हैं। इसी तरह राज्य की नदियों से बालू का अवैध खनन बदस्तूर जारी है। जिस वजह से नदियों की स्थिति दयनीय है।

बेशक़ीमती पत्थरों पर नज़र

राज्य की ज़मीन के अन्दर हीरा, पन्ना, प्लेटिनम, लिथियम, क्रोमियम, निकेल, मून स्टोन, ब्लू स्टोन समेत कई दुर्लभ और बेशक़ीमती खनिज छिपे हैं। सरकार अभी तक कोयला, लोहा और बॉक्साइट को लेकर अटकी हुई है। इस तरफ़ ध्यान नहीं है। वैध तरीक़े से इसकी नीलामी और खनन शुरू नहीं हुआ। जबकि इसके अवैध कारोबारी इन बेशक़ीमती पत्थरों को निकालकर चाँदी काट रहे हैं। सूत्रों की मानें तो झारखण्ड से निकलने वाले पन्ना की चमक जयपुर की जौहरी मंडी तक है। एक अनुमान के मुताबिक, केवल पन्ना का ही 800 करोड़ रुपये सालाना का अवैध कारोबार होता है। अन्य बेशक़ीमती खनिज सम्पदा के कारोबार का अंदाज़ा भी इसी से लगाया जा सकता है।

करोड़ों का कारोबार

राज्य में इन दिनों ईडी की कार्रवाई तेज़ है। ईडी अवैध खनन और मनी लॉन्ड्रिंग की जाँच कर रही है। ईडी ने गिरफ़्त में आये लोगों के बारे में न्यायालय में दाख़िल चार्जशीट और प्रेस विज्ञप्ति में 1,000 करोड़ के अवैध खनन का ज़िक्र किया है। यह कितने दिन या कितने महीने में हुआ है?

इस बारे में कुछ नहीं कहा गया है। एक बात साफ़ है कि चूँकि ईडी पत्थर के अवैध खनन का जाँच कर रहा, इसलिए यह रकम केवल पत्थर खनन से सम्बन्धित होगी। चूँकि राज्य में कोयला, अभ्रक, लौह अयस्क आदि का भी अवैध कारोबार चल रहा, इसलिए काली कमायी का अंदाज़ा लगाना आसान नहीं है।

एक ग़ैर-सरकारी संगठन द्वारा एकत्र आँकड़ों से पता चलता है कि झारखण्ड में खनिजों के अवैध कारोबार में हर महीने क़रीब 965 करोड़ रुपये से अधिक का लेन-देन होता है। इसमें अकेले कोयले का योगदान क़रीब 350 करोड़ रुपये का है। लौह अयस्क का 200 करोड़ रुपये और पत्थर का 200 करोड़ रुपये से ज़्यादा का हर महीने का अवैध कारोबार है। इसी तरह बालू, अभ्रक, अन्य बेशक़ीमती खनिजों का 200 करोड़ रुपये से अधिक का अवैध कारोबार है। अभ्रक का पूरा कारोबार सरकार की नज़रों में अवैध है।

इसी तरह बेशक़ीमती पत्थरों का कारोबार भी पूरा का पूरा अवैध ही है। हालाँकि कुछ जानकारों का कहना है कि सभी तरह के अवैध खनन का कारोबार कितने का होता है, इसका अंदाज़ा भी नहीं लगाया जा सकता है। यह कारोबार मनी लॉन्ड्रिंग का मुख्य स्रोत है। ईडी ने भी अपनी जाँच में मनी लॉन्ड्रिंग का भी ज़िक्र किया है।

गठजोड़ से हो रहा अवैध खनन

ईडी ने मनरेगा घोटाला से जाँच शुरू किया। जैसे-जैसे जाँच बढ़ी, मनरेगा घोटाला पीछे छूटता गया और अवैध खनन व मनी लॉन्ड्रिंग का मामला उभरता गया। ईडी के गिरफ़्त में राज्य के वरिष्ठ अधिकारी, कारोबारी, राजनीति से जुड़े लोग आने लगे। निलंबित आईपीएस पूजा सिंघल, कारोबारी अमित अग्रवाल, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्रा, राजनीतिक और ब्यूरोक्रेसी में पैठ रखने वाले बच्चू यादव व प्रेम प्रकाश जैसे लोग गिरफ़्त में आये, तो परत-दर-परत अवैध कारोबार के राज़ खुलने लगे।

राज्य के कई नेता, अधिकारी और कारोबारी ईडी के रडार पर हैं, जो कभी भी गिरफ़्त में आ सकते हैं। ईडी ने न्यायालय में गिरफ्तार लोगों के ख़िलाफ़ पाँच हजार से अधिक पन्नों का चार्ज शीट फाइल किया है। इसमें ईडी ने अवैध खनन और मनी लॉन्ड्रिंग का ज़िक्र किया है। दूसरी बात ईडी ने यह भी कहा है कि इस अवैध खनन को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है। तीसरी बार ईडी ने इसमें कई बड़े नेताओं और अधिकारियों के शामिल होने की आशंका जाहिर की है। इन सभी बातों ने झारखण्ड में खनिज सम्पदा के अवैध खनन और नेता-अधिकारी गठजोड़ की पुष्टि कर दी है।

पिस रही जनता

जल, जंगल, ज़मीन को अपना जीवन मानने वाली झारखण्ड की जनता इस माफ़िया तंत्र की चक्की में पिस रही है और उसे चौतरफ़ा घाटा हो रहा है। वैध तरीक़े से खनन में केंद्र व राज्य सरकार कई बातों का ध्यान रखती है। विकास के लिए निर्माण कार्य के साथ-साथ पर्यावरण का भी ख़याल रखा जाता है। सरकार को राजस्व भी मिलता है, जिससे विकास के कई काम होते हैं और जनता तक लाभ पहुँचता। अवैध खनन के कारोबार में राजस्व का घाटा तो है ही, जनता को कोई लाभ भी नहीं मिलता।

अवैध खनन की गहराई ज़मीन के अन्दर इतनी है कि कभी-कभार प्रशासनिक कार्रवाई में छोटी-छोटी मछलियाँ तो फँसती हैं; लेकिन बड़ी मछलियों तक जाँच की आँच भी नहीं पहुँचती। नेता, अफ़सर और बाहुबली गठजोड़ इस अवैध कारोबार को सींचता है। खनिज सम्पदाएँ अब अकूत नहीं रहीं। बेशुमार दोहन से इनके भण्डार भी तेज़ी से घट रहे हैं। लिहाज़ा प्रकृति के समक्ष पारिस्थतिकी तंत्र के सन्तुलन का संकट गहराने के साथ बड़ी आबादी के जीने का अधिकार भी ख़तरे में पड़ता जा रहा है। क्योंकि प्रकृति के ख़ज़ाने लूट लिये जाएँगे तो संविधान के अनुच्छेद-21 में दिये गये जीने के अधिकार के प्रावधान का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा। इसलिए अवैध खनन को योजनाबद्ध तरीक़े से रोकना आवश्यक है। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो झारखण्ड वासियों की जल, जंगल, ज़मीन बचाओ सिर्फ नारा ही रह जाएगा।