पानी बचाने के लिए ऊँटों की बलि

क्या इंसान और ऊँट की ज़िन्दगी की अलग-अलग कीमत है? ऑस्ट्रेलिया के एपीआई लैंड्स के एक फैसले की नज़र से देखा जाए, तो जवाब है- हाँ। पानी की कमी से इंसान की ज़िंदगी बचायी जा सके। इसलिए वहाँ के प्रशासन ने 10-12 नहीं 10 हज़ार से ज़्यादा ऊँटों को मारने का फैसला किया है। ऊँटों के गलती यह है कि वे पानी बहुत पीते हैं और ऑस्ट्रेलिया में पानी की भीषण कमी चल रही है। ऑस्ट्रेलिया की राष्ट्रीय कीट ऊँट प्रबंधन योजना का दावा है कि जंगली ऊँटों की आबादी हर नौ साल में दोगुनी हो जाती है।

यह पहला मौका नहीं है जब ऑस्ट्रेलिया में ऊँटों की शामत आयी हो। दिसंबर 2018 में भी वहाँ करीब 2500 जंगली ऊँटों को इसी कारण से गोलियों से भून दिया गया था। उनकी गलती यह रही कि वे पानी की तलाश में चरते-चरते बाड़ तोडक़र खेतों में घुस गये थे।

ऑस्ट्रेलिया में ऊँट बड़ी तादाद में हैं और एक अनुमान के अनुसार इनकी संख्या करीब 11 लाख है। वहाँ पानी की भी भीषण कमी चल रही है। वैसे सऊदी अरब गोश्त के लिए ऊँटों को ऑस्ट्रेलिया से आयात भी करता है। इसके बावजूद पानी की कमी के कारण ऊँटों पर गाज गिरने वाली है।

अब पानी की इस कमी के कारण जल्द ही दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया के अनंगु पीतजंतजतारा यनकुनितज्जतजरा लैंड्स (एपीआई) में 10 हज़ार से ज़्यादा जंगली ऊँटों को मार देने का आदेश जारी किया गया है। एपीआई के अबॉर्जिनल नेता (आदिवासी नेता) ने यह आदेश जारी किये हैं। आदेश में कहा गया है कि दक्षिण ऑस्ट्रेलिया में हेलीकॉप्टर से कुछ प्रोफेशनल शूटर इन जंगली ऊँटों को मार गिराएँगे, ताकि वहाँ पानी को इंसानों के पीने के लिए बचाया जा सके।

दरअसल, ऑस्ट्रेलिया में गर्मी का कहर पिछले कुछ साल से इस देश के एक बड़े हिस्से को परेशान किये हुए है। वहाँ आज भी जंगलों की आग तने भीषण तरीके से लगी है कि पिछले करीब कुछ समय में वहाँ 63 लाख हेक्टेयर के करीब जंगल जल चुके हैं। सैकड़ों लोगों की जान जा चुकी है और इतनी ही संख्या में घर जल चुके हैं।

आग ने इलाके में तापमान को भी ज़बरदस्त तरीके बढ़ाया है। ऐसा होना नया नहीं है और वहाँ यह पिछले एक दशक से ज़्यादा समय से चल रहा है। तापमान बढऩे से पानी की भीषण िकल्लत पैदा हुई है और इसका खामियाजा पशुओं को भी बड़े पैमाने पर झेलना पड़ा है। जंगलों में आग से भी और पानी की कमी से भी।

हाल में पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में तापमान 50 डिग्री तक पहुँच गया था। क्रिसमस के बाद से लेकर अभी तक करीब 3800 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में भी 1200 ऊँटों को गोली मारनी पड़ी है।

सितंबर से ऑस्ट्रेलिया के कई इलाके आग की चपेट में हैं। पिछले हफ्ते से आग और तेज़ हुई है। इसमें अब तक दर्जनों लोगों की मौत हो चुकी है। पानी की कमी से ही वहां हज़ारों जंगली घोड़ों और ऊँटों (जिन्हें मारने का आदेश अब दिया गया है) की जान गयी है। मध्य और पूर्वी ऑस्ट्रेलिया में गर्मी का कहर फिर शुरू होने से वहाँ वन्य जीवन पर बहुत खराब असर पड़ा है।

ऑस्ट्रेलिया के दक्षिण हिस्से को देखें, तो वहाँ तापमान 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच रहा है, जिससे गर्मी असहनीय हो रही है। लेकिन इससे पानी की कमी भी हो रही है। इंसानों को तो मुसीबत झेलनी ही पड़ रही है, बेज़ुबान पशुओं पर तो मानों कहर ही टूट पड़ा है। हाल ही में मध्य ऑस्ट्रेलिया में लगातार बढ़ रही गर्मी और सूखे का के कारण सांता टेरेसा की बस्ती में 40 जंगली घोड़े एक सूखे तालाब के पास मरे हुए मिले थे। यही नहीं बन अधिकारियों को 50 जंगली घोड़ों को गोली मारनी पड़ी।

नया साल शुरू होते ही न्यू साउथ वेल्स में इमरजेंसी लगा दी गयी है और वहाँ पार्क, कैंपिंग ग्राउंड और जंगलों से होकर गुज़रने वाले रास्ते बन्द करने पड़े हैं। नये साल पर वहाँ वकेशंस के लिए आये लोगों को वापस भेज दिया गया है और करीब 250 किलोमीटर क्षेत्रफल का इलाका खाली करवा लिया गया है।

दरअसल, दक्षिण ऑस्ट्रेलिया में ऊँटों को मारने का फैसला लोगों की उस शिकायत के आधार पर ही किया गया है, जिसमें उनका कहना था कि ये जानवर पानी की तलाश में उनके घरों में घुस जाते हैं। यही नहीं ऊँटों में आपस में ही पानी को लेकर ठन जाती है, जिससे उनमें झगड़ा होता है और इसकी कीमत लोगों को अपने घरों के नुकसान के रूप में चुकानी पड़ती है।

इन इलाकों में आदिवासी बड़ी संख्या में रहते हैं। लोगों की शिकायत के बाद ही वहाँ 10 हज़ार ऊँटों को मारने का फैसला किया गया है। आदिवासी नेताओं को चिन्ता है कि ये जानवर ग्लोबल वाॄमग बढ़ा रहे हैं; क्योंकि वो एक साल में एक टन कार्बन डाई ऑक्साइड के बराबर मीथेन का उत्सर्जन करते हैं। साथ ही पानी भी बहुत ज़्यादा पीते हैं।

ऑस्ट्रेलिया को वैसे वन्य जीवों के लिए जाना जाता है। भले वहाँ कंगारू को राष्ट्रीय पशु घोषित किया गया हो, वहाँ कंगारू के अलावा साँप और मकडिय़ाँ भी बड़ी संख्या में पाये जाते हैं। लेकिन यहाँ चूँकि बात ऊँटों की है तो बता दें कि दुनिया भर में सबसे ज़्यादा ऊँट भी ऑस्ट्रेलिया के इस हिस्से में ही हैं।

एक अनुमान के मुताबिक, ऊँटों की संख्या ऑस्ट्रेलिया में 11 लाख से कुछ ज़्यादा है। एक तरह से इन्हें आवारा ऊँट कहा जा सकता है। यह ऊँट आम लोगों के लिए अपनी गतिविधियों से कई मुसीबतें भी लाते हैं। वे उत्पात तो मचाते ही हैं, पानी के लिए लोगों के घरों में भी घुस जाते हैं और वहाँ तोड़-फोड़ भी करते हैं।

यह माना जाता है कि शिकारी न होने और मनुष्यों की आबादी कम होने से उन इलाकों में ऊँटों की संख्या बड़ी तादाद में बढ़ी। लेकिन जब इंसानों की आबादी भी बढ़ी, तो उनमें टकराव जैसी स्थिति बन गयी। चूँकि ऊँट एक ही बार में कई गैलन पानी डकार जाते हैं, इंसानों के लिए वहाँ पानी की भीषण काम पडऩे लगी, जो अब ऊँटों की मौत के रूप में सामने आने लगी है; क्योंकि इंसानों को पानी देना प्राथमिकता बन गया है। मीडिया रिपोट्र्स के मुताबिक, एपीआई के कार्यकारी बोर्ड, जिसने ऊँटों को मारने का आदेश दिया है; का कहना है कि ऊँट पानी के ज़खीरों और खेतों को नुकसान पहुँचा रहे हैं। वे सुरक्षित रखे पानी को खत्म कर रहे हैं। बोर्ड की बैठक में यह कहा गया कि ऊँटों के कारण एक बड़ी आबादी परेशानी महसूस कर रही है।

वैसे ऊँटों को इस बड़े क्षेत्र में एक समय तात्कालिक ज़रूरतों के लिए लाया गया था। काम की क्षमता के कारण। साथ ही ऊँटों को वहाँ के सुनसान क्षेत्रों की स्थिति में जीवित रहने के लिए विशेष क्षमता रखने वाला पशु माना जाता है। लेकिन दीर्घकालीन आधार पर वे अब मुसीबत बन गये हैं। एक अनुमान के मुताबिक, ऊँट ऑस्ट्रेलिया के 33 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में आवारा घूमते हैं। इनमें पश्चिम, दक्षिण और उत्तरी ऑस्ट्रेलिया के साथ क्वींस लैंड का इलाका भी शामिल है।

ऐसे लोग जो ऊँटों को पालने का व्यवसाय करते हैं, उनका कहना है कि मारने की जगह इन्हें मांस बेचने के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए। वैसे सऊदी अरब गोश्त के लिए ऊँटों को ऑस्ट्रेलिया से आयात करता है। वहाँ बड़े पैमाने पर ऊँट भेजे जाते हैं।

मीथेन का उत्सर्जन 

बहुत तादाद में पानी पीने के अलावा ऊँट हर साल सीओ-2 (कार्बन डाई ऑक्साइड) के एक टन के प्रभाव से मीथेन का उत्सर्जन करते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक, ऊँट जो मीथेन पैदा कर रहे हैं; वह सडक़ों पर चल रही कारों के अलावा चार लाख अतिरिक्त कारों के बराबर की कार्बन डाई ऑक्साइड है, जो पर्यावरण के लिए बहुत नुकसान दायक है। ऊँटों की कमी से ही इस मुसीबत से बचा जा सकता है। जानकार आश्चर्य होगा कि चरायी के नुकसान के साथ ऊँटों से होने वाले कुल नुकसान का आकलन वहाँ एक करोड़ आस्ट्रेलियाई डॉलर लगाया गया है।

वध का विरोध भी

ऐसा नहीं है कि ऑस्ट्रेलिया में ऊँटों को मारने (वध करने) के सभी समर्थक ही हैं। जानवरों के लिए काम करने वाली संस्था एमिमल ऑस्ट्रेलिया ऊँटों को मरने के आदेश की तुलना नरसंहार से कर रही है। उसका कहना है कि ऊँटों को मारने की जगह इसके लिए कोइ ठोस योजना बनायी जानी चाहिए। रॉयल सोसाइटी फॉर दी प्रिवेंशन ऑफ क्रूएलिटी टू एनिमल (आरएसपीसीए) का भी कहना है कि ऊँट प्रबंधन के लिए एक राष्ट्रीय योजना की सख्त ज़रूरत है, ताकि उनका नरसंहार रोका जा सके। जैव प्रणाली के लिए बड़ा मुद्दा बनने के बाद 10 साल पहले ऑस्ट्रेलिया सरकार ने जानवरों पर काबू पाने के लिए उन्हें खाने के लिए मारने की योजना बनायी, ताकि उनकी संख्या में कमी की जा सके। हज़ारों ऊँटों को प्रोजेक्ट के तहत बेचने और मारने के लिए रेटिंग के हिसाब से अलग किया गया।