पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले से खनन माफिया की उड़ी नींद

पंजाब में अवैध खनन को गम्भीरता से लेते हुए पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय (हाई कोर्ट) ने राष्ट्रीय राजमार्गों से एक किलोमीटर और राज्य-मार्गों से आधा किलोमीटर की दूरी पर खनन गतिविधियों पर रोक लगा दी है। ये निर्देश 12 सितंबर, 2020 को न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति हरिंदर सिंह सिद्धू की खंडपीठ ने बख्शीश सिंह द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिये, जिसमें उन्होंने कहा था कि नवांशहर, लुधियाना और जालंधर के कई गाँव में सतलुज नदी के किनारे बड़े स्तर पर अवैध खनन गतिविधियाँ चलने से बाढ़ का खतरा पैदा हो गया है।

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के वक्त फैसले ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार समेत उन राज्यों की सरकारों और खनन माफिया के होश उड़ा दिये हैं, जहाँ इससे कम दूरी पर खनन की अनुमति का प्रावधान है। अगर पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के इस फैसले को लेकर पर्यावरणविद् और सामाजिक कार्यकर्ता दबाव बनाते हैं, तो ऐसे राज्यों की अनेक खदानें बन्द हो जाएँगी।

क्या है उच्च न्यायालय का फैसला

जालंधर निवासी बख्शीश सिंह ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर करके कहा कि नवांशहर, लुधियाना और जालंधर के कई गाँव में सतलुज नदी के किनारे बड़े स्तर पर अवैध खनन गतिविधियाँ की जा रही हैं। उन्होंने कहा कि अवैध खनन गतिविधियाँ इस कदर चल रही हैं कि माफिया ने नदी का मार्ग बदल दिया है; जिससे बाढ़ जैसी स्थिति बन गयी है।

नदी के तल से रेत की खुदाई के लिए भारी मशीनरी तैनात की गयी थी, और अधिकारियों ने अवैध खनन की जाँच के लिए याचिकाकर्ता द्वारा की गयी शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की। मामले को सुनने के बाद अदालत ने कहा कि नदियों को पूरा अधिकार है कि वो बिना बाधा के बहें। खनिजों की अत्यधिक निकासी से पुलों / राष्ट्रीय राजमार्गों, राज्य राजमार्गों को गम्भीर खतरा है। प्रमुख पुलों से एक किलोमीटर और छोटे पुलों से आधा किलोमीटर की दूरी तक खनन गतिविधियाँ प्रतिबन्धित हैं। इसी तरह राष्ट्रीय राजमार्गों से एक किमी और राज्य के राजमार्गों से आधा किलोमीटर की दूरी पर कोई भी खनन गतिविधि नहीं होगी।

उच्च न्यायालय ने नदी के तल से रेत और बजरी निकालने के लिए जेसीबी आदि जैसे भारी मशीनरी के इस्तेमाल और नदी के तल में तीन मीटर तक खनन गहराई को प्रतिबन्धित करने का निर्देश दिया। साथ ही अदालत ने पंजाब के तीन ज़िलों- नवांशहर, लुधियाना और जालंधर के डीसी और एसएसपी को राज्य में अवैध खनन की जाँच करने और 30 सितंबर को या उससे पहले स्थिति पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए विशेष फ्लाइंग स्क्वाड (उडऩ दस्ता) गठित करने का भी निर्देश दिया। स्क्वाड में पुलिस विभाग के अधिकारियों के अलावा रेवेन्यू और खनन विभाग के अधिकारियों को भी शामिल किये जाने के निर्देश दिये गये। अदालत ने पंजाब सरकार को निर्देश दिये कि राज्य में रेत और बजरी की खरीद-फरोख्त और कालाबाज़ारी को रोकने के लिए ज़रूरी कदम उठाये जाएँ और अवैध खनन गतिविधियों को रोक पाने में असमर्थ अधिकारियों पर राज्य सरकार कड़ी कार्रवाई करे। साथ ही उसे आदेश दिया कि भारी मशीनरी से हो रहे अवैध खनन की जाँच के लिए ड्रोन का भी इस्तेमाल करे और छ: महीने के लिए पुनर्पूर्ति अध्ययन सहित नदी ऑडिट भी करना चाहिए।

चुनौतियाँ

भारत लगभग 64 प्रकार के खनिजों का उत्पादन करता है। देश के अनेक हिस्सों में अक्सर समय-समय पर अवैध खनन से सम्बन्धित मामले अक्सर प्रकाश में आते रहते हैं, जैसे यह आम बात हो। इससे जहाँ सरकार को काफी राजस्व का नुकसान होता है, वहीं दूसरी ओर पर्यावरण, पारिस्थितिकीय तंत्र और जनजीवन को भी प्रभावित करता है। अवैध खनन से तात्पर्य है- बिना लाइसेंस के खनन करना; लाइसेंस प्राप्त क्षेत्र से बाहर खनन करना; स्वीकृत मात्रा से अधिक खनिजों का उत्खनन और लाइसेंस का नवीकरण लम्बित होने के बावजूद खनन करना।

अवैध खनन में सबसे अधिक रेत का खनन होता है। सीमेंट और कंकरीट के निर्माण कार्र्यों में रेत का उपयोग अपरिहार्य है। आबादी बढऩे के साथ-साथ आवास, स्कूल, अस्पताल, सड़क हो या पेयजल भण्डारण से जुड़ी ज़रूरतें सभी कि निर्माण में रेत, सीमेंट, कंकरीट आदि की माँग तेज़ी से बढ़ी है। रेत में भी प्राथमिकता में माँग नदियों से निकलने वाली रेत की है। इसलिए भारत सहित दुनिया भर में ही नदियों से रेत खनन अत्यधिक होने लगा है। गैर-कानूनी रेत खनन का कारोबार पूरे देश में ही आपराधिक हिंसक प्रवृत्तियों के साथ जड़ें जमा चुका है।

गुजरात में साबरमती नदी में रेत का इतना अवैध खनन होता रहा है कि अहमदाबाद, साबरकंठा, गाँधीनगर ज़िलों में इन पर निगाह रखने के लिए 2018 में ड्रोन से निरानी तक की गयी। यह स्थिति तब है, जब 2016 के बाद साबरमती नदी में गाँधीनगर और अहमदाबाद के बीच रेत खनन पूरी तरह से रोक दिया गया था, और इस बीच के क्षेत्र को संवेदनशील घोषित कर दिया गया था। गुजरात सरकार ने स्वीकार किया था कि राज्य में अवैध खनन बहुत गम्भीर समस्या है।

अन्य राज्य भी इस समस्या से बचे नहीं हैं। राज्य विधानसभाओं में भी इस पर चर्चा होती है; लेकिन अवैध रेत खनन नहीं हो रहा है, ऐसा न सत्तारूढ़ दल कहता है और न विपक्ष।

अवैध खनन से खतरा

अवैध अथवा अत्यधिक बालू तथा बजरी का खनन नदी की धारा (बहाव) के साथ-साथ नदी के क्षरण का कारण बनता है। यह जलधारा के तल को हरा कर देता है, जिसके कारण तटों का कटाव बढ़ जाता है। धारा की तली तथा तटों से बालू हटने के कारण नदियों तथा ज्वारनदमुख (पंक मैदान) की गहराई बढऩे से नदी के मुहानों तथा तटीय प्रवेशिकाओं को विस्तारित करती है और नदी के तटीय क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा नदी में समाहित हो जाता है। अत्यधिक बालू खनन पुलों, तटों तथा नज़दीकी संरचनाओं के लिए खतरा पैदा करता है।

इससे भूमित जल स्तर भी प्रभावित होता है। अत्यधिक धारा रेखीय बालू खनन के कारण जलीय तथा तटवर्ती आवासों को नुकसान पहुँचता है। इसके प्रभाव में नदी तल का क्षरण, नदी तल का कठोर हो जाना, नदी तल के समीप जलस्तर में कमी होना तथा जलग्रीवा की अस्थिरता इत्यादि शामिल हैं। लगातार खनन नदी तल को पूर्ण रूप से खनन की गहराई तक नुकसान पहुँचाता है। इससे बरसात के दिनों में जहाँ बाढ़ की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं, वहीं गर्मी के दिनों में लोगों को सूखा और पानी की िकल्लत से जूझना पड़ता है।

क्या आसान है अवैध खनन रोकना?

अवैध रेत खनन पर शिकंजा कस पाना आसान नहीं है। मध्य प्रदेश में नर्मदा समेत अनेक नदियों से अवैध रेत खनन या अन्य खनन के अनेक मामले सामने आते रहते हैं। नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेधा पाटेकर भी इस मामले को कई बार सरकार के समक्ष रख चुकी हैं।

अनेक पर्यावरणविद्, सामाजिक कार्यकर्ता भी समय-समय पर इन मामलों को उठाते रहे हैं। लेकिन मध्य प्रदेश में अवैध खनन पर शिकंजा नहीं कसा जा सका है। अवैध खनन का मामला सिर्फ मध्य प्रदेश ही नहीं, बल्कि लगभग सभी राज्यों में समय-समय पर प्रकाश में आते रहते हैं।

माफिया का बोलबाला

पिछले साल अप्रैल, 2019 में आंध्र प्रदेश सरकार के अवैध रेत खनन रोकने में असमर्थ रहने पर राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने कुछ निर्देशों के साथ उस पर 100 करोड़ रुपये का अंतरिम दण्ड भी लगाया था। राज्य के मुख्य सचिव को अनियमित रेत खनन पर तुरन्त रोक लाने के आदेशों के साथ-साथ यह भी चेताया गया था कि राज्य प्राकृतिक संसाधनों का ट्रस्टी है और उन्हें पूर्ण संरक्षण प्रदान करना उसकी ज़िम्मेदारी है। निस्संदेह एनजीटी यह जानता है कि रेत खनन का अवैध कारोबार पूरे देश में आपराधिक तत्त्वों और माफिया के कब्ज़े में है और उसके पहले के निर्देश भी विभिन्न राज्यों में दिखावे के लिए स्वीकार की जाती रही हैं।

अवैध खनन में माफिया का इस तरह बोलबाला है कि खनिज ढुलाई वाहन पार-पत्र पर दर्शाये गये माल से दो गुना-तीन गुना माल लेकर बेरोक-टोक बाहर निकाले जाते हैं; लेकिन उस पर किसी की कोई निगरानी नहीं रहती है। ज़्यादातर जगहों पर तो इन ढुलाई वाहनों पर नंबर प्लेट भी नहीं होती। पूरे देश में अवैध रेत खनन का कारोबार माफिया और आपराधिक तत्त्वों के हाथ में है। जो ईमानदार अधिकारी और कर्मचारी रेत माफिया के खिलाफ अभियान चलाते हैं, उन पर रेत से भरे ट्रक, ट्रैक्टर चढ़ा देना, हत्या कर देना, उनका तबादला करवा देना माफिया के लिए आम है। माफिया में ऐसी हिम्मत उनके राजनेताओं, भ्रष्ट अफसरों व आपराधिक तत्त्वों के साथ जग-ज़ाहिर सम्बन्धों से आती है।

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के इस फैसले का मूल उद्देश्य खनिजों का संरक्षण, अवैध खनन की रोकथाम के लिए सुरक्षात्मक कदम उठाना, बालू और बजरी को कानूनी रूप से पर्यावरण हेतु धारणीय और सामाजिक रूप से उत्तरदायी तरीके से सुनिश्चित करना; निकाले गये खनिज की निरानी व परिवहन की प्रभावशीलता में सुधार करना; नदी की साम्यावस्था एवं इसके प्राकृतिक पर्यावरण के लिए पारिस्थितिकी तंत्र के जीर्णोद्धार तथा प्रवाह को सुनिश्चित करना; तटवर्ती क्षेत्रों के अधिकारों तथा आवास की पुनस्र्थापना और पर्यावरण मंज़ूरी की प्रक्रिया को मुख्यधारा में शामिल करना है। यदि इस फैसले को अन्य राज्यों के पर्यावरणविद् एवं सामाजिक कार्यकर्ता मुद्दा बनाते हैं, तो निश्चित ही राजनीतिक मशीनरी पर दबाव बनेगा। लेकिन अवैध खनन पर रोक तभी लगेगी, जब इसके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए राजनीतिक मशीनरी की इच्छाशक्ति, सख्त विनियमन के साथ-साथ विभिन्न हितधारकों को शामिल किया जाए।