नेशन फ़ॉर फार्मर्स, अन्य संगठनों की ‘किसान आयोग’ गठित करने की घोषणा, सिफारिशें देंगे 

किसान आंदोलन के लगातार जारी रहने और मोदी सरकार के तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा के बीच नेशन फ़ॉर फार्मर्स और अन्य संगठनों और किसान समर्थक मंचों ने देश में कृषि की स्थिति के मूल्यांकन और प्रकाशन के लिए ‘किसान आयोग’ के गठन की प्रक्रिया की घोषणा की है। पी साईनाथ, जगमोहन सिंह और नवशरण सिंह जैसे बड़े किसान समर्थक चेहरों के साथ ‘नेशन फ़ॉर फार्मर्स’ ने इसकी घोषणा की है।

किसान आंदोलनों के अग्रणी यह सभी दिग्गज शुक्रवार को प्रेस क्लब आफ इण्डिया में जुटे थे, जहाँ उन्होंने किसानों के हक़ में एक प्रेस कांफ्रेंस को भी सम्बोधित किया। इसमें पी साईनाथ ने कहा कि – ‘डॉक्टर एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में गठित राष्ट्रीय किसान आयोग, जिसे हम स्वामीनाथन आयोग के नाम से बेहतर जानते हैं, उसका हश्र किसी से छिपा नहीं है। आज भी आयोग की अहम सिफारिशें देश भर के किसानों के बीच लोकप्रिय हैं, जिनमें से कुछ को- खासकर फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने से संबंधित- तत्काल संबोधित किए जाने की ज़रूरत है ताकि आंदोलनरत किसान अपने घर लौट सकें।’

उन्होंने कहा कि स्वामीनाथन आयोग को अपनी पांच में से पहली रिपोर्ट सरकार को जमा किए सोलह बरस हो गए। संसद में इन पर बहस करवाने की बार-बार मांग की गई लेकिन यूपीए और एनडीए दोनों की सरकारों ने इसके लिए न्यूनतम समय भी नहीं दिया। पिछले कई वर्ष से नेशन फ़ॉर फार्मर्स नाम का यह मंच मौजूदा कृषि संकट के संदर्भ में रिपोर्ट और संबंधित मसलों पर संसद में विशेष सत्र रख के बहस करवाने की मांग करता रहा है। यह कृषि संकट बीते दो दशकों में लाखों किसानों को जान ले चुका है।

इस मौके पर अन्य किसान नेताओं दिनेश अबरोल, अनिल चौधरी, निखिल डे, नवशरण सिंह, जगमोहन सिंह, एनडी जयप्रकाश, थॉमस फ्रांको और गोपाल कृष्ण ने कहा भारत में कृषि और उससे सम्बद्ध सभी क्षेत्रों में किसानों और खेतिहर आबादी के विभिन्न तबकों की आय के समक्ष खड़ी चुनौतियों के मद्देनजर किसान आयोग देश भर में विविध कृषि प्रणालियों से जुड़े संगठनों के साथ मिलकर सार्वजनिक जांच-पड़ताल की एक प्रक्रिया को चलाएगा।

इन किसान विशेषज्ञों ने कहा कि किसान आयोग की ज़रूरत क्या है? इसकी वजह ये है कि जब-जब सरकारों द्वारा गठित किये गए आयोगों की सिफारिशें सरकारों और कॉर्पोरेट ताकतों के खिलाफ गयीं, तब-तब उन सिफारिशों को दफना दिया गया। इसलिए अब किसान संगठनों के सामने यह चुनौती है कि वे विभिन्न मजदूर संगठनों, महिला संगठनों, पर्यावरण पर काम करने वाले समूहों, सामाजिक आंदोलनों और खाद्य व पोषण, समग्र स्वास्थ्य, रूपांतरकारी शिक्षा, सुरक्षित पर्यावरण, वन अधिकार और  ग्रामीण उद्योगों के पुनर्नवीकरण और स्थानीय स्तर पर चल रही मूल्यवर्धित कृषि गतिविधियों से जुड़े नागरिक समूहों के नेटवर्कों और अधिकार केंद्रित मंचों को एक साथ लाकर एक जन-केंद्रित व्यापक मंच बनावें।

उन्होंने कहा कि इसका उद्देश्य किसान संगठनों की सक्रिय भागीदारी से कृषि क्षेत्र में रूपांतरण की एक ठोस दृष्टि और रणनीति को विकसित करना है ताकि खाद्य विविधता, पारिस्थितिकीय सातत्य, समता व सामाजिक न्याय की राजनीति के एजेंडे को कॉर्पोरेट पूंजी से अप्रभावित रहते हुए कृषि रूपांतरण की प्रक्रिया में समाहित किया जा सके।

राष्ट्रीय किसान आयोग को लेकर इन नेताओं ने कहा, ‘कुछ प्रतिष्ठित किसान और कृषि विशेषज्ञ शामिल होंगे। इसकी अंतिम संरचना को तय करने में थोड़ा समय लगेगा। यह देश भर के किसानों की नुमाइंदगी करेगा। यह आयोग राज्यस्तरीय आयोगों के गठन को भी प्रोत्साहित करेगा जो कृषि आधारित समूहों और वर्गों के बीच देश भर में अध्ययन, तथ्यान्वेषण और सुनवाई कर सकें।’

उन्होंने कहा कि ‘स्वामीनाथन आयोग की पहली रिपोर्ट दिसंबर 2004 और आखिरी रिपोर्ट अक्टूबर 2006 में जमा की गई थी। इस देश के इतिहास में कृषि पर सबसे महत्वपूर्ण इस रिपोर्ट पर संसद में चर्चा के लिए एक दिन भी नहीं दिया गया। अब जबकि सोलह साल बीत गए हैं, पुराने लंबित मुद्दों और नई परिस्थितियों में पैदा हुए  जलवायु परिवर्तन, कर्ज़ आदि मुद्दों ने मिलकर स्थिति को और घातक बना दिया है। इस पर नए सिरे से एक रिपोर्ट लाए जाने की ज़रूरत है।’
कृषि जानकारों ने कहा – ‘इसी के साथ दूसरे ‘सरकारी’ आयोगों की निरर्थकता को भी देखा जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने किसानों की समस्याओं को समझने और समाधान सुझाने के लिए एक कमेटी गठित करने का निर्देश दिया था। इस कमेटी में कृषि कानूनों के स्वयंभू समर्थक भरे हुए थे। अब चूंकि सरकार कह रही है कि वह संसद में इन कानूनों को वापस लेगी, कमेटी के सदस्यों को उसकी अप्रासंगिकता का बोध हो गया है। इस दौरान मीडिया लगातार जोर देकर कहा रहा है कि सिर्फ कॉरपोरेट समर्थक उपायों को ही ‘सुधार’ कहा जा सकता है।’

उन्होंने कहा कि नेशन फ़ॉर फार्मर्स ने किसान आयोग का गठन शुरू कर दिया है। स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट सरकार द्वारा नियुक्त प्रतिष्ठित विद्वानों के अध्ययन व परामर्श का परिणाम थी जिन्होंने किसानों और अन्य से व्यापक रायशुमारी की थी। किसान आयोग का गठन किसानों द्वारा किया जाएगा और उसकी कमान किसानों के हाथ में ही रहेगी, जो विशेषज्ञों के साथ परामर्श करेंगे और फॉलो-अप के लिए ऐसे संयुक्त मंचों का गठन करेंगे जिन्हें सरकार या अदालतें खत्म नहीं कर पाएंगी। भारतीय कृषि की समस्याओं के बारे में हमें किसानों से बेहतर आखिर कौन बता सकता है?

इन नेताओं ने कहा कि यह आयोग भारतीय कृषि के भीतर मौजूद संकट और व्यापक खेतिहर समाज के संकटों पर एक समग्र रिपोर्ट तैयार करेगा और किसानों के समूहों, कृषि-खाद्य तंत्र से सम्बद्ध गैर-कॉरपोरेट इकाइयों और नागरिक समूहों को न्यायपूर्ण पारिस्थितिकीय और सामाजिक परिवर्तनों के लिए संघर्ष के उद्देश्य से एक साथ लाएगा। उन्होंने कहा कि भारत में उन वास्तविक सुधारों की ज़रूरत है जो किसानों और खेत मजदूरों और स्थानीय समुदायों के हित में हों, न कि कॉरपोरेट के हित में। आयोग इन सब मुद्दों पर सिफारिशें प्रस्तुत करेगा।