निशाने पर राहुल

अचानक कांग्रेस के पीछे एकजुट हुआ विपक्ष

राहुल गाँधी की लोकसभा की सदस्यता जाने के बाद देश की राजनीति अचानक गरमा गयी है। विपक्ष कांग्रेस के पीछे एकजुट होता दिख रहा है। भाजपा राहुल गाँधी पर लगातार आक्रामक दिख रही है। कांग्रेस अडानी के मुद्दे को मुख्य मुद्दा बना चुकी है और सरकार पर उनसे मिलीभगत का आरोप लगाकर इसे भ्रष्टाचार से जोड़ रही है। इस साल विधानसभा के चुनावों पर राजनीति के इस बदलते माहौल का असर दिख सकता है। बता रहे हैं विशेष संवाददाता राकेश रॉकी :-

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डिसक्वालिफ़िएड एमपी (निष्कासित सांसद)। राहुल गाँधी ने अपने ट्विटर हैंडल के बायो को बदलकर लोकसभा एमपी (लोकसभा सांसद) की जगह यह तब लिखा, जब सूरत की निचली अदालत से उनके खिलाफ फैसला आने के अगले ही दिन उनकी लोकसभा की सदस्यता को खत्म कर दिया गया। 7 फरवरी को राहुल गाँधी ने लोकसभा में विवादों में फँसे गुजरात के व्यापारी गौतम अडानी के प्रधानमंत्री से रिश्तों को लेकर जोरदार शब्दों में सवाल पूछे थे, जिन्हें कुछ ही घंटे बाद सदन की कार्यवाही से हटा दिया गया था। इसके दो हफ्ते के बाद राहुल गाँधी की लोकसभा की सदस्यता ही कोर्ट का फैसला आने के बाद खत्म कर दी गयी। ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी के सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने राहुल गाँधी की सदस्यता खत्म करने को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कहकर आभार जताया कि ‘उन्होंने इस बहाने पूरे विपक्ष को एकजुट होने का मौका दे दिया है।‘ अब कांग्रेस और विपक्ष सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन कर रहे हैं। वर्तमान राजनीतिक करवट ने 2024 के लोकसभा चुनाव से एक साल पहले ही राजनीतिक माहौल को गरमा दिया है। इसका असर इस साल होने वाले सभी विधानसभा चुनावों पर दिख सकता है।

सरकार ने अब राहुल गाँधी को सरकारी मकान खाली करने का नोटिस दे दिया है और राहुल गाँधी आरोप लगा रहे हैं कि अडानी को बचाने के लिए उनके मित्र प्रधानमंत्री उनके (राहुल गाँधी) के पीछे पड़ गये हैं। राहुल गाँधी की रणनीति अडानी के मामले को सीधे प्रधानमंत्री मोदी से जोड़कर इसे भ्रष्टाचार का मुद्दा बनाने की है। राहुल गाँधी अदालत से जमानत मिलने के कारण एक महीने तक बाहर हैं और यदि तब तक उनकी याचिका का फैसला नहीं आता, तो उन्हें जेल जाना पड़ सकता है। इससे राजनीतिक माहौल और उबाल खाएगा। वैसे भी राहुल गाँधी की लोकसभा सदस्यता खत्म होने का मसला देश में ही नहीं, विदेश में भी चर्चा का विषय बन चुका है।

कांग्रेस और विपक्ष का एक बड़ा हिस्सा इस मामले में राहुल के साथ खड़ा दिख रहा है, जिससे देश की राजनीति अचानक गरमा गयी है। आज से कुछ दशक पहले इंदिरा गाँधी की लोकसभा की सदस्यता भी ऐसी ही वापस ली गयी थी। तब इंदिरा गाँधी ने कुछ महीने बाद ही सत्ता में जोरदार वापसी की थी। उनके पास जनता में मजबूत पैठ रखने वाले और रणनीति में माहिर नेताओं की बड़ी फौज थी। आज स्थिति तो वैसे ही है; लेकिन पार्टी के पास नेताओं की वैसी ताकत नहीं है। इसके बावजूद कांग्रेस यदि इसे मुद्दा बनाने में सफल हो जाए, तो भाजपा के लिए यह बड़ी परेशानी का सबब बन सकता है। इसमें दो-राय नहीं कि ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के बाद राहुल गाँधी जनता के बीच लगातार चर्चा में बने हुए हैं।

राहुल गाँधी की लोकसभा सदस्यता जाने का यह मामला तब हुआ है, जब देश में अडानी के खिलाफ विपक्ष एकजुट हो चुका है। संसद में विपक्ष लगातार मोदी सरकार पर अडानी से रिश्तों को लेकर हमला कर रहा है। हालत यह हो गयी है कि विपक्ष पर संसद न चलने देने का आरोप लगाने वाला सत्तापक्ष अब खुद संसद चलने से डरता दिख रहा है। लिहाज वह भी हंगामा कर रहा है, जिससे कार्यवाही लगातार स्थगित हुई है।

संसद में बोलने देने की इजाजत माँगने को लेकर राहुल गाँधी ने कहा- ‘मैं संसद में इस विचार के साथ गया था कि मैंने जो कहा है, वह सदन के पटल पर कह सकूँ। चार मंत्रियों ने संसद भवन में मेरे खिलाफ आरोप लगाये हैं। सदन के पटल पर बोलने की अनुमति मिलना मेरा अधिकार है। मैंने स्पीकर से अनुरोध किया। मैं उनके चेंबर में गया और मैंने उनसे रिक्वेस्ट की। मैंने उनसे कहा कि मुझे बोलना बहुत अच्छा लगेगा। मैंने उनसे कहा कि भाजपा के लोगों ने मुझ पर आरोप लगाये हैं और सांसद होने के नाते यह मेरा अधिकार है कि मैं बोलूं; लेकिन वह प्रतिबद्ध नहीं थे।‘

इस दौरान एक चीज हुई। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान श्रीनगर में कुछ पीड़ित महिलाओं ने अपना दर्द राहुल गाँधी से साझा किया था। इस मसले पर दिल्ली पुलिस राहुल गाँधी से पूछताछ करने उनके आवास पर पहुँच गयी। कांग्रेस ने दिल्ली पुलिस की राहुल गाँधी के आवास पर पहुँचने की निंदा की और कहा कि इसके पीछे केंद्र की उन्हें डराने की राजनीति की बू आ रही है।

कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने इसे लेकर कहा- ‘राहुल को डराने के कोशिश साफ दिख रही है; लेकिन वे डरने वाले नहीं हैं। निश्चित ही राहुल के घर पुलिस जाने का यह आदेश ऊपर से आया होगा। हम इस तरह की कार्रवाई की सख्त निंदा करते हैं। दिल्ली पुलिस ने इससे पहले 16 मार्च को राहुल गाँधी को दो पन्नों की एक प्रश्नावली भेजी थी, जिसमें उनसे छेड़छाड़ और घरेलू हिंसा की शिकार उन महिलाओं का ब्योरा माँगा गया था, जो भारत जोड़ो यात्रा के दौरान उनसे मिली थीं। राहुल गाँधी ने अपनी प्रतिक्रिया प्रस्तुत करने के लिए करीब 10 दिन का समय माँगा था। लेकिन पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी उससे पहले ही उनके आवास पर पहुँच गये। ऐसी भी क्या जल्दी है?’

राहुल गाँधी समझ गये हैं कि अडानी का मुद्दा सरकार की कमजोर कड़ी है। लिहाजा वह इसे अपना बड़ा हथियार बना रहे हैं। लोकसभा की सदस्यता से हटाये जाने के अगले ही दिन उन्होंने जो प्रेस कॉन्फ्रेंस की उसमें सबसे बड़ा सवाल यही रखा कि सरकार बताये कि अडानी की शेल कम्पनियों में जो 20,000 करोड़ रुपये की बड़ी रकम डाली गयी है, वह किसका पैसा है? फिलहाल उनके इस गंभीर आरोप का कोई जवाब नहीं मिल पाया है।

चूँकि यह मुद्दा अब जनता के बीच भी गर्म बहस का मुद्दा बन गया है, सरकार बैकफुट पर दिख रही है। राहुल गाँधी आरोप लगा रहे हैं कि उनकी सदस्यता खत्म करने की पूरी साजिश की गयी है; क्योंकि मोदी सरकार अडानी को बचा रही है और उन (राहुल गाँधी) से डर रही है। क्योंकि वे अडानी और सरकार के रिश्तों को बेनकाब कर रहे हैं। राहुल कह रहे हैं कि उनकी आवाज खामोश करने की कोशिश की जा रही है; लेकिन वह लगातार अडानी और जनता से जुड़े अन्य मुद्दे उठाते रहेंगे।

‘तहलका’ से बातचीत करते हुए कांग्रेस की सांसद प्रतिभा सिंह ने कहा- ‘सरकार जबरदस्त दबाव में है। राहुल गाँधी जनता के बीच लोकप्रिय हो चुके हैं और भाजपा को इसका डर सता रहा है। उन्हें एक षड्यंत्र से चुनाव की राजनीति से बाहर करने की कोशिश हो रही है; लेकिन जनता ऐसा नहीं होने देगी। इंदिरा जी के साथ भी ऐसा किया गया था; लेकिन जनता ने इसका जवाब दिया था। हमारे नेता (राहुल गाँधी) पूरी ताकत से उभरेंगे और 2024 के चुनाव में भाजपा को पटखनी देंगे।‘

भाजपा राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा से परेशान थी। यह तभी साबित हो गया था, जब दिसंबर में उन्हें बाकायदा चिट्ठी लिखकर देश के स्वास्थ्य मंत्री ने यह यात्रा इस आधार पर रोकने का सुझाव दे दिया था देश में कोरोना फैल रहा है। हालाँकि ऐसा कुछ था नहीं। अब अडानी के खिलाफ हिंडनवर्ग की रिपोर्ट आने के बाद राहुल गाँधी ने मोदी सरकार पर हमला किया है, उससे भाजपा परेशानी महसूस कर रही है। भाजपा जानती है कि अडानी का मुद्दा यदि सरकार से जुड़कर भ्रष्टाचार का मुद्दा बना, तो उसके लिए 2024 के लोकसभा चुनाव में बहुत मुसीबत बन जाएगी; क्योंकि भाजपा 2014 के बाद के आठ वर्षों में कांग्रेस को भ्रष्टाचार पर कोस कर ही अपना काम चलाती रही है।

अयोग्य करार और अधिनियम

राहुल गाँधी की लोकसभा सदस्यता चार साल पुराने एक आपराधिक मानहानि मामले में रद्द की गयी। लोकसभा सचिवालय ने एक अधिसूचना जारी कर बताया कि केरल की वायनाड लोकसभा सीट से सांसद राहुल गाँधी को सजा सुनाये जाने के दिन यानी 23 मार्च, 2023 से अयोग्य करार दिया जाता है। ऐसा भारतीय संविधान के अनुच्छेद-102(1) और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 के तहत किया गया है। गाँधी को सूरत की एक अदालत ने चार साल पुराने आपराधिक मानहानि के मामले में दो साल की सजा सुनाने के अलावा 15,000 का जुर्माना भी लगाया था। कोर्ट ने सजा को 30 दिन के लिए स्थगित किया था, जिससे कि राहुल गाँधी ऊपरी अदालत में अपील कर सकें। यह मामला सन् 2019 का था, जब कर्नाटक के कोलार में राहुल गाँधी ने कथित तौर पर कहा था कि ‘सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों है?’

गुजरात में भाजपा के विधायक और पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने राहुल गाँधी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दर्ज कराया था। पूर्णेश का आरोप था कि राहुल गाँधी की इस टिप्पणी से पूरे मोदी समुदाय की मानहानि की है जिस पर उनके खिलाफ भारतीय दण्ड संहिता की धारा-499 और 500 के तहत मामला दर्ज किया गया था। बता दें धारा-499 में आपराधिक मानहानि के मामलों में अधिकतम सजा दो साल की की है। लिहाजा राहुल गाँधी को जो सजा मिली वह अधिकतम है। सुनवाई के दौरान राहुल गाँधी ने कहा कि वो किसी समुदाय को अपने बयान से ठेस नहीं पहुँचाना चाहते थे।

लोकसभा में राहुल गाँधी का 7 फरवरी का भाषण अहम है। इस भाषण के बाद से 16 फरवरी को याचिकाकर्ता पूर्णेश मोदी ने हाई कोर्ट से स्टे वापस लेने की माँग की और 27 फरवरी को मामले की फिर सुनवाई शुरू हो गयी। स्वराज इण्डिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव कहते हैं- ‘नये जज 27 फरवरी को मामले को सुनना शुरू करते हैं और 23 मार्च को मामले में आदेश आ जाता है। इस मामले में राहुल गाँधी को अधिकतम सम्भव सजा देते हैं, आदेश आने के बाद लोकसभा सचिवालय 24 घंटे के भीतर इस मामले को संज्ञान में लेते हुए राहुल गाँधी की सदस्यता रद्द कर देता है। ये केस एक साल से रुका हुआ था, तब किसी को इसकी चिन्ता नहीं थी। अचानक कैसे इसकी चिन्ता शुरू हो गयी। ये केस ठंडे बस्ते में था, तो अचानक कैसे शुरू हो गया? केस से स्टे क्यों हटाया गया?’

राहुल गाँधी की सजा, जिसे उन्होंने चुनौती दी है; को यदि ऊपरी अदालत नहीं बदलती है, तो उन्हें दो साल की सजा होगी और इस सजा के और छ: साल तक वह चुनाव नहीं लड़ पाएँगे। और यदि सजा का फैसला बदला या अदालत ने सजा कम की तो राहुल की सदस्यता बहाल होने का रास्ता खुल जाएगा। इसके लिए राहुल को फिर अदालत जाना होगा। यहाँ एक पुराने मामले का जिक्र करना जरूरी है, जब मनमोहन सिंह सरकार एक अध्यादेश लायी थी, जिसमें प्रावधान था कि कुछ शर्तों के तहत अदालत में दोषी पाये जाने के बाद भी सांसदों और विधायकों को अयोग्य करार नहीं दिया जा सकेगा।

राहुल गाँधी, जो उस समय कांग्रेस के उपाध्यक्ष थे; ने इस अध्यादेश को बेतुका करार देते हुए इसका यह कहकर विरोध किया था कि प्रतिनिधियों में सुचिता जरूरी है और इसे फाड़कर फेंक देना चाहिए। उनके उस बयान में कहा गया था- ‘इस देश में लोग अगर वास्तव में भ्रष्टाचार से लड़ना चाहते हैं, तो हम ऐसे छोटे समझौते नहीं कर सकते हैं। जब हम एक छोटा समझौता करते हैं, तो हम हर तरह के समझौते करने लगते हैं।‘

विपक्ष को आयी समझ

दो हफ्ते पहले तक ममता बनर्जी और अरविन्द केजरीवाल राहुल गाँधी का नाम सुनने तक को तैयार नहीं थे। लेकिन जैसे ही उनकी लोकसभा की सदस्यता गयी, विपक्ष के नेता एक मत से उनके पीछे आ खड़े हुए। राजनीति के जानकार कहते हैं कि विपक्षी दलों को अब समझ आ गया है कि कांग्रेस को साथ लिए बिना काम नहीं चलेगा; क्योंकि जो राहुल गाँधी के साथ हुआ है, वह कल को उनके साथ भी हो सकता है। शायद उन्हें यह भी एहसास हो रहा है कि इन वर्षों में कांग्रेस को किनारे रखने की उनकी रणनीति सही नहीं थी।

राहुल गाँधी की सदस्यता जिस तरह निरस्त की गयी, उस पूरे घटनाक्रम ने उन विपक्षी दलों को भी कांग्रेस के साथ खड़ा कर दिया है, जिन दलों ने कांग्रेस से दूरी बनायी हुई थी। तृणमूल कांग्रेस, भारत राष्ट्र समिति, जनता दल (यूनाइटेड) और समाजवादी पार्टी ने संसद में चल रहे गतिरोध के दौरान अडानी के सवाल पर तो एकजुटता दिखायी थी; लेकिन राहुल गाँधी ने जब संसद में बोलने के सवाल पर सरकार को घेरा था, यह दल उनके साथ खड़े नहीं दिखे थे। कांग्रेस तो पूरी तरह राहुल गाँधी के साथ दिख ही रही है। हालाँकि अब आप भी साथ खड़ी दिख रही है।

‘सावरकर’ वाले राहुल के बयान का समर्थन नहीं करने के बावजूद शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे राहुल गाँधी का समर्थन कर रहे हैं। नीतीश कुमार की जद(यू), जो अभी तक चुप थी; राहुल के समर्थन में आ खड़ी हुई है। टीएमसी ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में हुई विपक्ष की बैठक में हिस्सा लिया। अब विपक्ष साझी रणनीति बनाता दिख रहा है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी दलों के बीच एकता स्थापित करने के प्रयास जारी हैं। विपक्ष के 18 दलों की सहमति बनी है कि सभी दल किसी अन्य विपक्षी दल और खासकर अपने सहयोगी दल के भावनात्मक मुद्दों (जैसे सावरकर) पर बयानबाजी नहीं करेंगे।

बैठक में फैसला किया गया कि विपक्ष पाँच बड़े मुद्दों की पहचान करेगा। बैठक में साफ कहा गया कि कांग्रेस को आगे आने की जरूरत है, क्योंकि वहीं अभी मुद्दों के बीच में है। कांग्रेस को सक्रियता बढ़ाने की जरूरत पर चर्चा की गयी। बैठक में फैसला हुआ कि कांग्रेस के नेता राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी विपक्षी नेताओं से मुलाकात करेंगे। जाहिर है विपक्ष कांग्रेस के पीछे एकजुट होता दिख रहा है। भाजपा के लिए यह चिन्ता की बात हो सकती है।

गलत निशाना!

क्या लोकसभा की सदस्यता खत्म होने के बहाने भाजपा की कोशिश राहुल गाँधी को कांग्रेस और विपक्ष में अलग-थलग करने की थी? बहुत-से राजनीतिक जानकार मानते हैं कि भाजपा अगले लोकसभा चुनाव से पहले राहुल गाँधी को राजनीतिक रूप से कमजोर सम्भव कोशिश कर रही है। भाजपा को पता है कि राहुल गाँधी के अलावा गैर-भाजपा विपक्ष के पास देशव्यापी छवि वाला और कोई नेता नहीं है। भाजपा ने राहुल गाँधी ही नहीं पूरे गाँधी परिवार को किनारे करने की कोशिश हाल के वर्षों में की है।

हालाँकि ज्यादातर राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि राहुल गाँधी की लोकसभा की सदस्यता खत्म करने का मामला भाजपा को उलटा पड़ सकता है। इसका कारण यह है कि राहुल गाँधी लगातार अडानी का मामला उठा रहे हैं और उन्हें प्रधानमंत्री का मित्र बता रहे हैं। जनता में यह सन्देश गया है कि चूँकि राहुल गाँधी अडानी से जुड़े विवादों को सामने ला रहे हैं, सरकार इससे परेशान है और वह राहुल को निशाना बना रही है। जनता का एक बड़ा वर्ग यह भी मान रहा है कि राहुल गाँधी को परेशान करने का मतलब है कि अडानी को लेकर मोदी सरकार कुछ छिपा रही है। जाहिर है अडानी का मुद्दा एक बड़ा मुद्दा बन रहा है और इससे सरकार की छवि भी प्रभावित हो रही है।

इसमें कोई दो-राय नहीं है कि भाजपा राहुल गाँधी को कमजोर और बदनाम करने की कोई कोशिश नहीं छोड़ती है। हालाँकि इस बार राहुल गाँधी जिस मजबूती से मैदान में डट गये हैं, उससे भाजपा खेमे में चिन्ता है। इसमें कोई दो-राय नहीं है कि एक पखवाड़ा पहले तक जो राहुल गाँधी विपक्ष के कई दलों में स्वीकार्य नहीं थे, उनके लोकसभा सदस्यता जाने के बाद वे सब अचानक राहुल गाँधी के समर्थन में उतर आये हैं। यदि भाजपा की रणनीति राहुल को कांग्रेस के भीतर और विपक्ष में अलग-थलग करने की थी, तो माना जाएगा कि वह इसमें सफल नहीं हुई है; उलटे जनता का समर्थन राहुल गाँधी को मिलता दिख रहा है।

राहुल गाँधी से जुड़े इस सारे प्रकरण में कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गाँधी एक अलग भूमिका में दिखी हैं और उन्होंने आगे आकर मोर्चा सँभाल लिया है। प्रियंका गाँधी के शब्द बताते हैं कि वह एक नयी भूमिका की तैयारी में हैं। क्योंकि उन्होंने कहा- ‘लोकतंत्र को मेरे परिवार ने खून से सींचा; न झुकेंगे, न पीछे हटेंगे; उसूलों पर डटे रहेंगे।‘ प्रियंका के यह तेवर नये हैं। प्रधानमंत्री मोदी को उन्होंने सीधे निशाने पर लिया है। वह भाजपा को सीधे चुनौती देती दिख रही हैं। उनका यह अंदाज कांग्रेस को नये तेवर के साथ भाजपा के सामने खड़ा करने में मदद कर सकता है।

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने ‘तहलका’ से बातचीत में कहा- ‘कांग्रेस का कार्यकर्ता अब और ताकत के साथ राहुल के साथ खड़ा है। अडानी मुद्दे पर भाजपा सरकार रक्षात्मक है और राहुल गाँधी जनता में एक बड़ी उम्मीद के रूप में उभर रहे हैं। उनके खिलाफ भाजपा के षड्यंत्र नाकाम होंगे और वे 2024 में कांग्रेस का नेतृत्व करते हुए भाजपा को धूल चटाएँगे।‘ कांग्रेस के सांसद डी.के. सुरेश ने ‘तहलका’ से बातचीत में कहा- ‘इस बार भाजपा का निशाना गलत लग गया है। उन्होंने पहले झूठ बोलकर राहुल गाँधी को का$फी बदनाम किया है; लेकिन अब जनता समझ गया है कि कुछ गड़बड़ है। राहुल गाँधी जनता में लोकप्रिय हुआ है और भाजपा पार्टी एक्सपोज हो गया है। कांग्रेस अगले आम चुनाव में मोदी सरकार के भ्रष्टाचर को सबसे बड़ा मुद्दा बनाएगी।‘

हालाँकि भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर कहते हैं- ‘यह कहना बिलकुल गलत है कि भाजपा राहुल गाँधी को लेकर अति-जुनूनी है। यह कांग्रेस है जो गाँधी परिवार के प्रभाव से बाहर नहीं आ पायी है। कांग्रेस ने संसद के मौजूदा बजट सत्र को पटरी से उतारने की कोशिश की, क्योंकि उसे एहसास हुआ कि भाजपा विदेशी धरती पर भारत को बदनाम करने वाली राहुल गाँधी की टिप्पणी के लिए उनसे मा$फी माँगने पर जोर देगी।‘ 

इसके बावजूद बहुत-से जानकार मानते हैं कि इस बार राहुल गाँधी को जिस तरह संसद से बाहर किया गया है, उससे भाजपा को नुकसान हो सकता है और उन्हें राजनीतिक रूप से घायल करने के लिए लगाया यह निशाना भाजपा को ही नुकसान करने की कुव्वत रखता है। जनता की सहानुभूति यदि राहुल गाँधी को मिली तो भाजपा के लिए स्थितियों को सँभालना मुश्किल हो सकता है। हो सकता है भाजपा राहुल गाँधी को अगले लोकसभा चुनाव तक कानूनी मसले में उलझाये रखने में सफल रहे; लेकिन कांग्रेस को इसका राजनीतिक लाभ मिलने की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

भारत में संसद से निष्कासन के मामले

भारत में राहुल गाँधी से पहले पिछले 72 साल में चार बार अलग-अलग कारणों से सांसदों की सदस्यता खत्म की गयी है। इनमें तीन बार एक-एक सांसद, जबकि एक बार 11 सांसदों की सदस्यता खत्म की गयी। इसके अलावा एक और मामले में अपनी ही यूपीए सरकार के समय ‘लाभ का पद’ लेने का आरोप लगने के बाद सोनिया गाँधी ने लोकसभा से इस्तीफा दे दिया था। सन् 1951 में कांग्रेस के एच.जी. मुद्गल देश के पहले ऐसे सांसद बने, जिनकी सदस्यता खत्म की गयी। स्वतंत्रता के बाद गठित अस्थायी संसद के कांग्रेस सदस्य मुद्गल पर 1951 में संसद में सवाल पूछने के बदले पैसे लेने का आरोप लगा। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने मामले की जाँच के लिए संसद में एक कमेटी बनाने का प्रस्ताव पारित कराया। कमेटी की जाँच में मुद्गल दोषी पाये गये और उनकी सदस्यता रद्द कर दी गयी। संसद में प्रस्ताव आने से पहले ही मुद्गल ने इस्तीफा दे दिया।

इसके बाद आपातकाल के दौरान सन् 1976 में जनसंघ के राज्यसभा सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी पर संसद और देश के अहम संस्थानों को बदनाम करने का आरोप लगा। आरोप के बाद 10 संसद सदस्यों की एक समिति गठित की गयी, जिसने 15 नवंबर को स्वामी को दोषी करार दिया और स्वामी को राज्यसभा से निष्कासित कर दिया। इसके दो साल बाद सन् 1978 में एक साल पहले ही सत्ता गँवाने वाली इंदिरा गाँधी पर जनता पार्टी की सरकार के दौरान विशेषाधिकार हनन और सदन की अवमानना का आरोप लगा। उन पर काम में बाधा डालने, कुछ अधिकारियों को धमकाने, शोषण करने और झूठे मुकदमे में फँसाने का आरोप भी लगाया गया। आरोपों के बाद संसद में प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के प्रस्ताव के बाद 20 दिसंबर को उनकी संसद सदस्यता खत्म कर दी गयी। यही नहीं सत्र चलने तक उन्हें तिहाड़ जेल भेजने का आदेश दिया गया।

एक महीने बाद लोकसभा ने उनका निष्कासन वापस ले लिया और 26 दिसंबर, 1978 को इंदिरा गाँधी को जेल से रिहा किया गया। हालाँकि दो साल बाद ही जनता पार्टी की सरकार टूटने के बाद हुए चुनाव में जनता ने इंदिरा गाँधी को जबरदस्त बहुमत देकर फिर सत्ता सौंप दी। एक और मामला संसद के 11 सदस्यों की सदस्यता एक साथ खत्म करने का है। सन् 2005 में सवाल पूछने के बदले पैसे लेने के आरोप में 11 सांसदों की सदस्यता खत्म की गयी। एक निजी टीवी चैनल के स्टिंग में अलग-अलग दलों के 10 लोकसभा और एक राज्यसभा सदस्य संसद में सवाल पूछने के लिए पैसे लेते दिखे। भ्रष्ट और अनैतिक आचरण दिखाने के आरोप में इन सभी को पवन कुमार बंसल के नेतृत्व वाली 5 सदस्यीय विशेष कमेटी ने दोषी पाया। कमेटी में भाजपा के वी.के. मल्होत्रा, सपा के राम गोपाल यादव, माकपा के मोहम्मद सलीम और डीएमके के सी. कुप्पुसामी थे।

उधर राज्यसभा में जाँच का जिम्मा आचार समिति के पास था। कमेटी की लोकसभा में पेश की गयी 38 पृष्ठों की रिपोर्ट में इन सांसदों को दोषी पाया गया, जिसके बाद संसद में एक प्रस्ताव पास कर  इन 11 सांसदों की सदस्यता खत्म कर दी गयी। एक और मामला सन् 2006 का है जब संसद में ‘लाभ के पद’ का मामला उठा। सरकार कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए की ही थी, इसके बावजूद आरोप लगने के बाद उस समय कांग्रेस अध्यक्ष और लोकसभा सदस्य सोनिया गाँधी ने रायबरेली सीट से इस्तीफा दे दिया। चूँकि सोनिया गाँधी यूपीए सरकार की गठित राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) की चेयरमैन भी थीं, इसे ‘लाभ का पद’ बताया गया।

इस्ती$फे के बाद सोनिया गाँधी ने उप चुनाव लड़ा और जनता ने उन्हें 4,17,888 वोटों के बड़े बहुमत से दोबारा जिताकर संसद में भेज दिया। अब उनके पुत्र राहुल गाँधी को मार्च, 2023 में गुजरात के सूरत की एक निचली अदालत से आपराधिक मानहानि मामले में दोषी पाये जाने के बाद लोकसभा से निष्काषित कर दिया गया।

कांग्रेस ने इसके खिलाफ अदालत में याचिका दायर की है। इसके अलावा भ्रष्टाचार के मामलों में सन् 2013 में कांग्रेस के रशीद मसूद की राज्यसभा सदस्यता तब चली गयी, जब उन्हें एमबीबीएस सीट घोटाले में दोषी ठहराया गया। उसी साल आरजेडी के लालू प्रसाद यादव चारा घोटाले में दोषी ठहराये गये और उनकी लोकसभा सदस्यता खत्म हो गयी। जद(यू)  के जगदीश शर्मा भी चारा घोटाले में दोषी ठहराये गये, उन्हें लोकसभा की सदस्यता छोड़नी पड़ी। 

भारत राज्यों का संघ है। ऐसी संवैधानिक व्यवस्था में ये जरूरी है कि केंद्र सरकार लगातार राज्यों के साथ विचार-विमर्श करती रहे। भारत के लोकतांत्रिक ढाँचे पर लगातार सरकारी हमले हो रहे हैं। संसद, न्यायपालिका और प्रेस पर लगातार दबाव बनाया जा रहा है। विपक्ष को बोलने से रोका जाता है। रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध में भारत की नीति अच्छी है; लेकिन चीन को लेकर भारत की विदेश नीति बेहतर नहीं। भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर को चीन से खतरे का अंदाजा नहीं है।

– राहुल गाँधी (लंदन दौरे के दौरान)

राहुल गाँधी को संसद की सदस्यता से अयोग्य ठहराया जाना गाँधीवादी दर्शन और भारत के गहरे मूल्यों के साथ गहरा विश्वासघात है। यह वह नहीं है, जिसके लिए मेरे दादाजी ने अपनी जिन्दगी के कई साल जेल में कुर्बान कर दिये थे।

– रो खन्ना, सांसद, भारतीय मूल के अमेरिकी (सिलिकॉन वैली)

यह कहना बिलकुल गलत है कि भाजपा सरकार अडाणी मुद्दे पर बचाव की मुद्रा में है। एसबीआई, एलआईसी, आरबीआई, सेबी ने इस मामले पर बयान दिये हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी इस मुद्दे पर बयान दिया है और उच्चतम न्यायालय की  नियुक्त की गयी समिति में जाँच चल रही है। कानून की तरफ से दो साल की सजा मिलने के बाद राहुल गाँधी अयोग्य घोषित हुए। आश्चर्य है कि कांग्रेस ने अपने किसी प्रतिष्ठित वकील से गाँधी के खिलाफ मानहानि के मामले में कोई मदद नहीं ली। क्या यह जानबूझकर किया गया था? क्या कांग्रेस के भीतर कोई साजिश है?

– अनुराग ठाकुर, केंद्रीय मंत्री

भारत ने मोदी के आलोचक राहुल गाँधी को संसद से निकाला। पिछले साल राहुल गाँधी ने एक लोकप्रिय ‘एकता मार्च’ निकाला था और मोदी सरकार पर देश को बाँटने का आरोप लगाया था। विपक्ष प्रधानमंत्री मोदी की राजनीतिक पार्टी (भाजपा) को हाल के वर्षों में मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ ‘हेट स्पीच’ और हिंसा को बढ़ावा देने का दोषी मानता है। हालाँकि भाजपा इन आरोपों से इनकार करती है और उनके समर्थक कहते हैं कि गुजरात से एक चाय बेचने वाले के बेटे ने देश की स्थिति में सुधार किया है।

– वॉशिंगटन पोस्ट (एक अमेरिकी अखबार)

भारत के विपक्षी नेता राहुल गाँधी को भाजपा एक ‘बच्चे और अनुभवहीन’ शख्स की तरह पेश करती है; लेकिन पिछले साल की 2200 मील की यात्रा से उनकी छवि में विश्वसनीयता और वजन आया है। राजनीतिक शोधकर्ता आसिम अली के हवाले से अखबार ने लिखा कि वो भाजपा के राहुल गाँधी पर ध्यान केंद्रित करने से हैरान हैं। अली कहते हैं कि मुझे नहीं समझ आ रहा है कि ये कैसी रणनीति है; क्योंकि इससे राहुल और कांग्रेस को ही फायदा हो सकता है। वो (कांग्रेस) बता सकती है कि भाजपा राहुल से असुरक्षित है और इससे कांग्रेस की ये बात साबित होती है कि सरकार मोदी की आलोचना बर्दाश्त नहीं कर सकती।

– द गार्डियन (एक ब्रिटिश अखबार)

राहुल गाँधी को मानहानि मामले में सजा मिलने के अगले दिन भारत की संसद से निष्कासित कर दिया गया। हाल के वर्षों में मोदी सरकार के आलोचक रहे विपक्षी नेताओं और संस्थाओं के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की गयी है। राहुल गाँधी पर भी दो मानहानि और एक मनी लॉन्ड्रिंग के मामले चल रहे हैं।

– रेडियो फ्रांस इंटरनेशनल (आरएफआई)