टीआरपी का खेल! ज़्यादा व्यूअरशिप दिखाकर विज्ञापन हथियाने का गोरखधंधा

चैनल्स की टीआरपी बढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर व्यूअरशिप बढ़ाने का खेल किया जाता है। इस खेल में मोटी रक़म भी ख़र्च की जाती है। इसी के चलते 13 जनवरी, 2022 को सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने बार्क को तत्काल प्रभाव से समाचार चैनल्स की व्यूअरशिप रेटिंग जारी करने के लिए कहा था। मीडिया उद्योग के अनैतिक खिलाड़ी टीआरपी में हेरफेर करने के लिए बेईमान अधिकारियों के साथ कैसे साँठगाँठ करते हैं? तहलका एसआईटी की जाँच रिपोर्ट :-

भारत जैसे देश में जहाँ कई टेलीविजन चैनल्स हैं। आप कैसे पता लगाते हैं कि कौन-से चैनल्स दूसरों की तुलना में अधिक देखे जाते हैं? इसके लिए टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट (टीआरपी) है। यह एक उपकरण है, जिसका उपयोग टेलीविजन कार्यक्रमों में दर्शकों की संख्या को मापने के लिए किया जाता है। सरल शब्दों में टीआरपी इस बात का अंदाज़ा लगाती है कि कितने लोग किसी विशेष कार्यक्रम या विज्ञापन को देख रहे हैं। लेकिन सवाल उठता है कि भारत में टीआरपी कितनी भरोसेमंद है? क्या इसे किसी विशेष चैनल के लाभ के लिए फिक्स किया जा सकता है? क्या टीआरपी रेटिंग सुधारने के लिए किसी चैनल या कार्यक्रम को देखने के लिए लोगों को रिश्वत दी जा सकती है?

सन् 2018 में ग्वालियर में सात लोगों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया गया था। इनमें से तीन लोगों को अवैध रूप से मध्य प्रदेश में एक विशेष हिन्दी टीवी समाचार चैनल के पक्ष में टीआरपी रेटिंग तय करने के लिए गिरफ़्तार किया गया। इस घोटाले में शामिल लोगों ने कई घरों में टीआरपी मीटर लगाये थे और उन्हें सिर्फ़ एक विशेष हिन्दी समाचार चैनल देखने के लिए आर्थिक लाभ की पेशकश की गयी थी। इसके पीछे का मक़सद कपटपूर्ण तरीक़ों से चैनल की टीआरपी रेटिंग बढ़ाना था।

इसी तरह सन् 2012 में भारत में टीआरपी रेटिंग देने के लिए ज़िम्मेदार एक अन्य एजेंसी पर टीवी रेटिंग तय करने के लिए एक अन्य प्रमुख हिन्दी समाचार चैनल ने मुक़दमा दायर किया गया था। बाद में प्रसारकों, विज्ञापनदाताओं और विज्ञापन एजेंसियों द्वारा गठित ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल (बार्क) इंडिया द्वारा इसे बदल दिया गया। वर्तमान में बार्क उद्योग को रेटिंग जारी करता है। अब बार्क द्वारा नियुक्त विक्रेता लोगों के घरों में स्थापित मीटर या बार-ओ-मीटर से चैनल्स को डाटा की आपूर्ति करते हैं, जो भारत में 32,000 करोड़ रुपये के विज्ञापन तय करते हैं।

अक्टूबर, 2020 में बार्क को कुछ प्रभावशाली प्रसारकों द्वारा चैनल रेटिंग में धाँधली के आरोपों के बाद रेटिंग को निलंबित करने के लिए मजबूर किया गया। टीआरपी के हेरफेर का यह खेल तब सामने आया, जब मुम्बई पुलिस ने संदिग्ध रुझानों के बारे में बार्क, एक उपभोक्ता अंतर्दृष्टि कम्पनी और एजेंसी के विक्रेताओं में से एक ‘हंसा’ से प्राप्त शिकायतों के आधार पर एक रैकेट का भंडाफोड़ किया। इसके बाद 13 जनवरी, 2022 को सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने बार्क को तत्काल प्रभाव से समाचार चैनल्स की व्यूअरशिप रेटिंग जारी करने के लिए कहा। इन आरोपों के मद्देनज़र भारत में टीआरपी रेटिंग फिक्स की जा रही थी। संदिग्ध रुझानों के बारे में बार्क और हंसा से प्राप्त शिकायतों के आधार पर मुम्बई पुलिस द्वारा एक रैकेट का भंडाफोड़ करने से पहले ‘तहलका’ एसआईटी टीम ने एक पड़ताल की। इस जाँच-पड़ताल में चौंकाने वाले ख़ुलासे हुए।

‘तहलका’ ने पूरे भारत में फैले कई टीआरपी खिलाडिय़ों से बातचीत की, जो पैसे के बदले में एक चैनल की रेटिंग तय करने के लिए तैयार हुए। इन लोगों के पास अलग-अलग रेट के अलग-अलग ऑफर हैं। नये लॉन्च किये गये समाचार चैनल के मालिक के रूप में हम पहली बार एक मल्टी सिस्टम ऑपरेटर (एमएसओ) से मिले, जिसके पास एक बड़े भारतीय राज्य की राजधानी में 1,50,000 से अधिक सेट टॉप बॉक्स थे। एमएसओ एक और कम्पनी का मालिक है।

वह अपनी कम्पनी के सीईओ राहुल शर्मा (बदला हुआ नाम) और अपनी सहयोगी कम्पनी के राष्ट्रीय प्रमुख राजीव सिंह (बदला हुआ नाम) के साथ दिल्ली में हमसे मिलने आया था। उनकी दोनों फर्म मीडिया वितरण और विज्ञापन बिक्री में लगी हुई थीं। नाम न बताने की शर्त पर एमएसओ पंकज सिंह (बदला हुआ नाम) को यह कहने में कोई झिझक नहीं हुई कि वह डिस्ट्रीब्यूशन (वितरण) और टीआरपी फिक्सिंग के काम से जुड़े हैं। उन्होंने कहा कि वह हमारे चैनल का डिस्ट्रीब्यूशन करेंगे और हमें ऐसे लोगों से मिलाने में मदद करेंगे, जो लोगों के घरों में मीटर लगाकर टीआरपी तय कर रहे हैं। पंकज सिंह ने ‘गो’ (किसी न्यूज चैनल का सांकेतिक काल्पनिक नाम) लेते हुए ‘तहलका’ को उसके बारे में बताया, जिसने ऑन एयर होते ही अपनी टीआरपी में हेराफेरी कर ली।

हमने पंकज से कहा कि हम दो चीज़ों पर आगे बढ़ रहे हैं। पहला डिस्ट्रीब्यूशन है और दूसरा यह है कि रेटिंग कैसे प्राप्त करें। हमने पंकज से कहा कि आप इसमें हमारी कैसे मदद कर सकते हैं? जवाब में पंकज ने कहा- ‘सर! मेरी नज़र में, और मैं ग़लत हो सकता हूँ; लेकिन मैं सिर्फ़ अपना सुझाव दे रहा हूँ। क्योंकि बाज़ार में एक धारणा है कि हम डिस्ट्रीब्यूशन और सेल्स दोनों में हैं। देखें कि उस चैनल को कब लॉन्च किया गया था; और इसमें कोई शक नहीं कि इसने बहुत पैसा लगाया। साथ ही उन्होंने उस रेटिंग वाले हिस्से के लिए भी आधार तैयार किया। हमारे यह पूछने पर कि क्या यह प्रबंधन करने में सक्षम था? क्या आपको यक़ीन है? पंकज ने कहा- ‘हाँ, हाँ; बिलकुल। बाज़ार में सब जानते हैं।’ यह पूछे जाने पर कि कैसे मैनेज किया? पंकज ने जवाब दिया- ‘ऐसा होता है सर! यह आसान है। यह कोई बड़ी बात नहीं है। यह किया जा सकता है।’ हमने पूछा कि आप कह रहे हैं कि चैनल ने टीआरपी का प्रबंधन किया? इसके जवाब में पंकज ने कहा- ‘टीआरपी? हाँ, ऐसा किया जा सकता है। बहुत-से लोग करते हैं।’

इसके बाद पंकज ने बताया कि रेटिंग कैसे तय की जाती है, और हमें अपने भविष्य के कथित समाचार चैनल के लिए इसे निष्पादित करने की भी पेशकश की। उन्होंने कहा- ‘यह (निश्चित रूप से) किया जाएगा। लेकिन हम इसे धीरे-धीरे करेंगे, क़दम-दर-क़दम; क्योंकि हर कोई देख रहा होगा। अगर हमारी रेटिंग किसी भी कारण या सामग्री के लिए (अचानक) पाँच से 10 फ़ीसदी बढ़ जाती है, तो लोग तुरन्त उस एजेंसी को लिखना शुरू कर देंगे, जो रेटिंग देती है; यह पूछते हुए कि स्पाइक कैसे हुआ?

यह पूछे जाने पर कि आप इसे कैसे कर रहे हैं? पंकज ने बताया- ‘नये कार्यक्रम के प्रचार अभियान का उपयोग उच्च रेटिंग को सही ठहराने के लिए किया जाता है। हमने पिछली बार क्या किया था। …उन्होंने हमें प्रोग्रामिंग में अलग-अलग सामग्री लॉन्च करने के लिए कहा था। यदि यह एक टॉक शो है और आप इसे किसी सेलिब्रिटी के साथ करते हैं, तो आपको अपने विज्ञापन के साथ-साथ कुछ समाचार पत्र (वाणिज्यिक) या होर्डिंग्स पर विज्ञापन लेकर आना होगा। और फिर वह आपको एक स्पाइक देंगे। मान लीजिए वह आपको 10 ग्रास रेटिंग प्वाइंट (जीआरपी) देते हैं। अगले सप्ताह वह जीआरपी में दो, तीन या चार अंक की कमी कर देंगे। फिर वह (वृद्धि के साथ) सात-आठ जीआरपी देंगे।’

दरअसल बार्क सर्वेक्षण देश के विभिन्न स्थानों पर घरेलू नमूनों पर आधारित है। प्रत्येक को बार-ओ-मीटर कहा जाता है। यह डिवाइस वास्तविक समय में टीवी ईवेंट से एम्बेडेड ऑडियो सिग्नल पकड़ता है। वास्तविक समय में टीआरपी को प्रोसेस्ड (संसाधित) करने के लिए उन्हें बार्क इंडिया सर्वर पर वायरलेस रूप से प्रेषित करता है। लेकिन पंकज की मानें, तो बार-ओ-मीटर लगाने में लगे ग्राउंड स्टाफ घरों को चुनिंदा चैनल या प्रोग्रामिंग देखने के लिए रिश्वत देते हैं। यह पूछे जाने पर कि मीटर के ज़रिये हेरफेर किया जा रहा है, या क्या है? पंकज ने जवाब दिया- ‘उनके पास लगे मीटर घरों की सूची हैं। वह उपभोक्ताओं से उस विशेष चैनल को देखने के लिए कहेंगे।’

अब पंकज ने टीआरपी की धाँधली में बिचौलियों की भूमिका निभाने का ऑफर दिया। उन्होंने हमसे कहा कि वह हमें उन लोगों से मिलवाएँगे, जो हमें इस बारे में एक प्रस्तुति देंगे कि टीआरपी कैसे तय की जाएगी? उनके पास अपने टैरिफ कार्ड हैं। तो यह कुछ भी बड़ा नहीं है। यदि किसी सम्पर्क के माध्यम से हम उनसे मिलते हैं, तो वह आपको पूरी प्रस्तुति देंगे कि चीज़ें कैसे काम करेंगी? जैसे हम जो चाहते हैं, उसके लिए प्रति सप्ताह उनकी लागत (क़ीमत) क्या होगी? जहाँ हम आपके चैनल्स की टीआरपी उनके मौज़ूदा स्तरों से लेना चाहते हैं, तो यह कोई बड़ी बात नहीं है। उन्होंने अपना टैरिफ चार्ट तैयार कर लिया है।’ यह पूछे जाने पर कि क्या वह हमारे लिए भी ऐसा करेंगे? क्या वह अन्य चैनल्स के लिए ऐसा कर रहे हैं? तो पंकज ने जवाब दिया- ‘यह पैसे का खेल है।’

पंकज ने ‘तहलका’ से कहा कि टीआरपी में हेराफेरी पैसे का खेल है। पंकज ने क़ुबूल किया कि वर्षों पहले उन्होंने ख़ुद एक न्यूज चैनल के लिए ऐसा ही किया था। उन्होंने कहा- ‘हमने इसे एक चैनल के लिए एक सप्ताह के लिए किया। हमारी उनसे बात हुई थी। तब भी उनकी दिलचस्पी थी। एक सप्ताह के लिए। उनके पास समान सामग्री थी और तीन-चार सप्ताह के लिए अतिरिक्त कुछ भी नहीं था। लेकिन मैंने उन्हें पाँच से 10 जीआरपी स्पाइक की पेशकश की। फिर मैंने उन्हें एक या दो सप्ताह के लिए दिया।’

पंकज ने क़ुबूल किया कि एक हफ़्ते तक उन्होंने एक ख़ास न्यूज चैनल की रेटिंग बढ़ा दी थी। उन्होंने कहा- ‘हाँ, मैंने उनकी रेटिंग बढ़ा दी। उन्होंने तुरन्त पैसे दिये, क्योंकि हमने उन्हें दिखाया कि क्या हुआ था। जब डील होती थी, तो हर हफ़्ते या 10 दिन में रेटिंग अपने आप बढ़ जाती थी। जब एजेंसी की रिपोर्ट आयी, तो बदलाव दिखायी दे रहा था।’

पंकज सिंह से चेन्नई में हमारी दूसरी मुलाक़ात हुई। इस बार मुलाक़ात के दौरान पंकज ने चौंकाने वाला दावा किया। उन्होंने दो हफ़्ते में धोखे से किसी भी चैनल की टीआरपी बढ़ाने की पेशकश की। उन्होंने कहा- ‘आप कोई भी एक चैनल लें, जो भी आप तय करें। हम पिछले छ: से आठ हफ़्तों की इसकी रेटिंग का अध्ययन करेंगे। फिर मैं उनसे बात करूँगा कि हम उस पर नंबर कैसे प्राप्त कर सकते हैं? वह कुछ समाधान प्रदान करेंगे।’ जब आगे यह स्पष्ट किया गया कि क्या हमें अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए किसी चैनल, हिन्दी या अंग्रेजी का सुझाव देना है? तो पंकज ने जवाब दिया- ‘हाँ; आपको देना होगा।’

दक्षिण में ही, हमें एक और बड़ा मल्टी-सिस्टम ऑपरेटर सुरेश बाबू (बदला हुआ नाम) मिला, जो टीआरपी में व्हीलिंग और डीलिंग में लगा हुआ था। हम उनसे पंकज सिंह के ज़रिये मिले थे। केबल कम्पनी के एक वरिष्ठ अधिकारी सुरेश ने दावा किया कि विभिन्न दक्षिणी क्षेत्रों में उनके वितरण के तहत 4,00,000 सेट-टॉप बॉक्स हैं। सुरेश ने भी स्वीकार किया कि उसे इस बात की पूरी जानकारी है कि सभी बार-ओ-मीटर कहाँ लगाये गये हैं।

एक बैठक आयोजित की गयी, जहाँ हमने सुरेश से कहा कि हम एक नया अंग्रेजी समाचार चैनल शुरू कर रहे हैं। हमारे अच्छे दोस्त हैं, जो पहले से ही यहाँ अपने चैनल्स चला रहे हैं; अंग्रेजी राष्ट्रीय और अखिल भारतीय चैनल। इसलिए हम चाहते हैं कि उनके चैनल्स की टीआरपी बढ़े; कैसे करूँ? इसलिए हम जानना चाहते हैं कि ऐसा करने में आप हमारी मदद कैसे करेंगे? इसके जवाब में सुरेश ने कहा- ‘उनके पास 40 से 50 फ़ीसदी से ज़्यादा बार-ओ-मीटर हैं। सुरेश ने पूछा- ‘आप कितनी रेटिंग चाहते हैं?’ हमने उनसे कहा कि हमें ज़्यादा-से-ज़्यादा टीआरपी चाहिए।

सुरेश ने न सिर्फ़ यह दावा किया- ‘हमारे पास बार-ओ-मीटर स्थानों के बारे में सारी जानकारी है, बल्कि उसके पास बूस्टिंग एक्स न्यूज (काल्पनिक नाम) रेटिंग भी है। लेकिन आजकल हम जो कर रहे हैं, उसके कारण एक्स न्यूज ने दूसरा स्थान हासिल किया है। यह तीन महीने के भीतर नंबर-एक पर आ जाएगा।’

यह पूछे जाने पर कि क्या तीन महीने के भीतर एक्स न्यूज नंबर-एक बन जाएगा? सुरेश ने जवाब दिया- ‘हाँ; क्योंकि आप जानते हैं, वह पिछले आठ महीनों में सातवें स्थान पर थे।’ यह पूछे जाने पर कि आप उस न्यूज चैनल की टीआरपी कैसे बढ़ा पाये? सुरेश ने जवाब दिया- ‘मैं लोगों के लिए एक निश्चित समय दूँगा। सुबह 7:00 बजे से 7:30 बजे तक। हम एक जगह जाते हैं, उनके पास 25 से अधिक बॉक्स (बार-ओ-मीटर) हैं। उन्हें हर दिन कहा जाता है कि आपको देखना चाहिए।’

यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें पता है कि बार्क मीटर कहाँ स्थित हैं? सुरेश ने उत्तर दिया- ‘हाँ; पूरे राज्य में। एक क्षेत्र में ही नहीं; पूरे राज्य में। मेरे पास जानकारी है।’ जैसे-जैसे बात आगे बढ़ी, सुरेश ने अपने तौर-तरीक़ों का ख़ुलासा किया। सुरेश ने बताया- ‘मैं अपनी टीमों को चुनिंदा टीवी प्रोग्रामिंग चालू करने के लिए रिश्वत देने के लिए मीटर वाले घरों के साथ आधार को छूऊँगा। उसके बाद मैं उपभोक्ताओं को कुछ संक्षिप्त जानकारी दूँगा।’ यह पूछे जाने पर कि क्या वह ख़ुद उपभोक्ताओं से मिलते हैं? सुरेश ने जवाब दिया- ‘नहीं। हम सीधे उनके पास नहीं जा रहे हैं। हमारे पास उस क्षेत्र में कुछ लोग- कुछ पुरुष और कुछ महिलाएँ हैं। मैं उनका चयन करूँगा, और फिर उन्हें जानकारी दी जाएगी।’

टीआरपी बढ़ाने की रणनीति साफ़ है। केबल वितरक अपने स्रोतों से बार-ओ-मीटर घरों के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं। फिर फील्ड स्टाफ को चुनिंदा ब्रॉडकास्टर्स की ओर से व्यूअरशिप ख़रीदने के लिए आउटसोर्स किया जाता है। सुरेश के शब्दों में- ‘यह सब एक व्यवसाय है।’ बातचीत के दौरान एक समय सुरेश हमसे जानकारी साझा करने को लेकर आशंकित दिखे। उन्होंने कहा- ‘मैं एक बात साफ़ करना चाहता हूँ। मैं इस बैठक से पहले नहीं जानता था कि आप कौन हैं? आप कहाँ से हैं? मुझे डर है। आप मुझसे मेरे व्यवसाय के रहस्य पूछ रहे हो। मुझे भी डर लगता है।’ लेकिन वह यह जानकर आश्वस्त हो गये कि पंकज सिंह और उनके दोस्त हमारे आने वाले चैनल के वितरण और बिक्री की देखभाल करेंगे। जब हमने उनसे कहा कि हमें उनसे सिर्फ़ उनके द्वारा ही मिलवाया गया था, तो वह आश्वस्त हो गये।

फिर हमने उनसे पूछा कि उन्हें मीटर के बारे में कैसे पता चला? मीटर कहाँ स्थित हैं? इसके जवाब में सुरेश ने कहा- ‘बस, मुझे इसके बारे में पता चला है। भविष्य में वह नये मीटर भी लगा सकते हैं। मैं उनके बारे में भी जानूँगा। वह संख्या बढ़ाएँगे। वह प्रति वर्ष 1,000 अधिक मीटर सम्मिलित करते हैं। जब मैंने शुरुआत की थी, तो उनके पास सिर्फ़ 800 से 1,000 बॉक्स थे। अब उनके पास दक्षिणी राज्य में 4,000 से अधिक बॉक्स हैं।

सुरेश ने न सिर्फ़ कार्यप्रणाली का ख़ुलासा किया, बल्कि एक समाचार चैनल का नाम भी बताया, जो उनके ग्राहकों में से एक है। उन्होंने कहा- ‘मैं कहता हूँ। …समाचार।’ लेकिन जब बताया गया कि ये क्षेत्रीय समाचार चैनल हैं, जिसके बारे में वह बात कर रहे थे। फिर हमने उनसे पूछा कि क्या क्षेत्रीय चैनल्स के अलावा कोई राष्ट्रीय समाचार चैनल उनका ग्राहक है? इसके जवाब में सुरेश ने कहा- ‘आठ महीने पहले मैंने ‘वाई’ (सांकेतिक नाम) चैनल के साथ काम किया था। लेकिन यह सीधे तौर पर नहीं आता था। यह कुछ अन्य दोस्तों के माध्यम से आता है।’ यह पूछे जाने पर कि क्या उन्होंने उस न्यूज चैनल को ज़्यादा टीआरपी दिलाने में मदद की? सुरेश ने कहा- ‘हाँ; अगर आपको अपना चैनल सुधारना है, तो न सिर्फ़ दक्षिणी राज्य में, बल्कि दक्षिण क्षेत्र में भी। मैं यह करूँगा।’

यह केबल-डिस्ट्रीब्यूशन एग्जीक्यूटिव कुछ समय के लिए थोड़ा झिझक गया। लेकिन जल्द ही उसे भरोसा हुआ और उसने नक़ली टीआरपी की माँग करने वाले ग्राहकों के लिए अपने भुगतान मॉडल का ख़ुलासा किया। सुरेश ने कहा- ‘भुगतान मोड सिर्फ़ साप्ताहिक है, क्योंकि रेटिंग गुरुवार को आती है। सम्भवत: भुगतान शुक्रवार की रात से पहले किया जाता है। क्योंकि तभी मैं शनिवार और रविवार को सारा पैसा वितरित कर पाऊँगा। इन दिनों बार्क के लोग नहीं आ रहे हैं। वह शनिवार, रविवार को पूरे क्षेत्रों का दौरा नहीं करते हैं। सबसे पहले यह अनिवार्य है कि आपको (प्रत्येक) शुक्रवार को भुगतान करना होगा, अगर हम (आपके लिए यह) कर रहे हैं। सुरेश ने अब उस राशि का ख़ुलासा किया, जो वह क्षेत्रीय समाचार चैनल्स से उनकी टीआरपी बढ़ाने के लिए वसूल रहे हैं। उन्होंने कहा- ‘…समाचार से मैं साप्ताहिक 4,00,000 रुपये चार्ज कर रहा हूँ। सिर्फ़ समाचार के लिए; …टीवी के लिए नहीं। मैं उन्हें कम-से-कम 20 टीआरपी की जमानत देता हूँ।’

अपनी ख़ुद की स्वीकारोक्ति से सुरेश ने बताया- ‘टीआरपी बढ़ाने के लिए न्यूज से उन्होंने एक सप्ताह में 4,00,000 रुपये वसूल किये। उन्होंने अब राष्ट्रीय समाचार चैनल के साथ अपनी व्यवस्था के बारे में बात की। …टीवी के साथ मुझे एक समस्या है। मेरे और उनके बीच में दो लोग थे।’ यह पूछे जाने पर कि क्या उनका राष्ट्रीय समाचार चैनल से सीधा सम्पर्क नहीं है? सुरेश ने जवाब दिया- ‘यह सीधा है। लेकिन दो मुख्य कारण हैं, जिनसे मुझे राहत मिली है। एक कारण यह है कि पैसे का भुगतान सही तरीक़े से और सही समय पर नहीं किया जाता है। और दूसरा, पैसा कम है। मेरे लिए कम मूल्य का पैसा।’

यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें कम राशि मिल रही है? सुरेश ने उत्तर दिया- ‘हाँ; कम राशि। क्योंकि मेरे और टीवी के बीच कुछ लोगों (दो लोगों) ने कमोबेश हमारा हिस्सा सुरक्षित कर लिया। सरल शब्दों में सुरेश ने राष्ट्रीय समाचार चैनल्स के लिए टीआरपी तय की; लेकिन बदले में इतनी राशि नहीं मिली? हाँ; सीधे शब्दों में कहें, तो मुझे प्रति सप्ताह सिर्फ़ 2,00,000 रुपये मिलते थे। मेरे हाथ में सिर्फ़ 2,00,000 रुपये आ रहे थे (आये), …टीवी से।’

यह पूछे जाने पर कि अगर हम तुम्हें 4,00,000 रुपये की एक निश्चित राशि देंगे, तो आप (सुरेश) लोगों के घरों में कितना पैसा बाँटोगे? सुरेश ने जवाब दिया- ‘मैं 70 से 75 फ़ीसदी वितरित करूँगा। मेरे और मेरे साथियों के लिए सिर्फ़ 25 फ़ीसदी ही बचेगा।’

अब हम मुम्बई में संदीप सोनकर (नाम बदला) से मिले, जिन्होंने एक शीर्ष एजेंसी में प्रबंधक होने का दावा किया था। यह मुलाक़ात पंकज सिंह के दो साथियों राहुल शर्मा और राजीव सिंह के ज़रिये हुई थी। दूसरों की तरह हमने संदीप से सीधे शब्दों में कहा कि हमें अपने आने वाले समाचार चैनल के लिए उच्च टीआरपी की आवश्यकता है। संदीप के अनुसार, कुछ लोगों के लिए रेटिंग चार्ट पर नंबर-एक की स्थिति बनाये रखने के लिए बेईमान अधिकारियों की नियमित रूप से मुट्ठी गर्म करना ज़रूरी होता है। उन्होंने कहा- ‘हाँ; अगर आप नंबर-एक पर बने रहना चाहते हैं, तो इसी तरीक़े से बने रह सकते हैं। आपको जीआरपी का खेल खेलते रहना है। मैं यही कह रहा हूँ, यह कोई टी-20 मैच नहीं है। यह एक उचित टेस्ट मैच है।’

जब आगे बात की गयी, तो संदीप ने सुझाव दिया कि वह राहुल या राजीव को उनके मीटर के स्थान के बारे में सूचित करेंगे। इसके बाद यह लोग सर्वे करके पता लगाएँगे कि हमारा चैनल उन इलाक़ों में उपलब्ध है या नहीं। उन्होंने कहा- ‘देखिए, आपके पास एक बॉक्स है; लेकिन आपका चैनल उपलब्ध नहीं है। तो मैं रेटिंग सुधारने के लिए वहाँ कैसे काम कर सकता हूँ? ये लोग वहाँ जाकर सर्वे करेंगे कि आपका चैनल उपलब्ध है या नहीं। और अगर हमारा चैनल वहाँ उपलब्ध नहीं है, तो वे इसे तुरन्त उन क्षेत्रों में प्रसारित कर देंगे,…ठीक। लेकिन अगर चैनल वहाँ नहीं दिखता है, तो इसका मतलब है कि यह कहीं और उपलब्ध है। इसलिए हम उस स्थिति में सुधार करेंगे।’

मीडिया उद्योग में अनैतिक खिलाड़ी बेईमान अधिकारियों के साथ साँठगाँठ करते हैं, जो बदले में बार-ओ-मीटर के स्थानों का ख़ुलासा करते हैं, ताकि वे उच्च टीआरपी के लिए अपने प्रसारण को देखने के लिए उन घरों में रहने वालों को रिश्वत दे सकें। यह पूछे जाने पर कि किस तरह के उपहार दिये गये? संदीप ने कहा- ‘यह नक़द या वस्तु के रूप में हो सकता है।’ एक निजी समाचार चैनल के एक शीर्ष कार्यकारी को शामिल करने वाले कथित ‘कैश फॉर रेटिंग्स’ घोटाले के बाद बार्क ने समाचार शैली पर रेटिंग को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया था। ‘तहलका’ ने पैसे के बदले टीआरपी तय करने के लिए तैयार समाचार उद्योग में फैले कई खिलाडिय़ों को पकड़ लिया। अक्टूबर, 2020 में टीआरपी हेराफेरी घोटाला सामने आने से पहले, टीआरपी कारोबार से जुड़े खिलाड़ी उन लोगों को पकडऩे के लिए तैयार थे, जो अपने चैनल्स की टीआरपी तय करना चाहते हैं। टीआरपी बढ़ाने के लिए उनके पास तरह-तरह के प्रस्ताव (ऑफर) के साथ रेट कार्ड तैयार हुआ करते थे। वे उन घरों में रह रहे लोगों को प्रेरित करके रेटिंग में हेराफेरी करने के लिए तैयार थे, जहाँ मॉनिटर लगाये गये थे। अक्टूबर, 2020 में टीआरपी घोटाला सामने आने और कई लोगों को गिरफ़्तार करने के बाद पुलिस ने भी यही आरोप लगाया था।

मुम्बई में मेगा टीआरपी घोटाला सामने आने के लगभग 17 महीने बाद बार्क ने व्यक्तिगत समाचार चैनल्स के लिए रेटिंग फिर से शुरू कर दी है। लोगों को उम्मीद है कि संशोधित स्वीकृत मानकों के साथ टीआरपी हेराफेरी से जुड़े ये खिलाड़ी अपने संशोधित रेट कार्ड के साथ पैसे के बदले टीआरपी के संशोधित प्रस्तावों के साथ फिर से सक्रिय नहीं होंगे।