गज़लें

अरमान जोधपुरी की दो गज़लें

  1. जनम से पहले की खाता-बही की कैद में हूँ

            मैं एक बूढ़ी-सी पागल सदी की कैद में हूँ

            ये लोग कहते हैं मैं बुज़दिली की कैद में हूँ

            घिरा हूँ इश्क में, सो आशिकी की कैद में हूँ

            वो जिससे मौत निकालेगी एक दिन आकर

            तुम्हें खबर है उसी ज़िन्दगी की कैद में हूँ

            मैं जबसे निकला हूँ उस ला-मकाँ की चाहत में

            हर एक गाम किसी रौशनी की कैद में हूँ

            लो उसकी याद के पंछी उड़ा दिये मैंने

            अभी न कहना मुझे मैं किसी की कैद में हूँ

            अजीब बात है जिसकी असीर है दुनिया

            मुझे खबर ही नहीं, मैं उसी की कैद में हूँ

            समझ में कुछ नहीं आता मैं क्या करूँ ‘अरमान’

            बहुत दिनों से किसी अजनबी की कैद में हूँ

  1. पूछा किये सवाल यही ज़िन्दगी से हम

            कब तक तिरे गमों को छुपाएँ हँसी से हम

            तुमने फन-ए-सुखन को ही बेकार कह दिया

            पहचाने जा रहे हैं इसी शाइरी से हम

            मिलता नहीं सुकून हमें इस जहान में

            उकता चुके हैं कब के तिरी आशिकी से हम

            जैसे के कोई जाँ से गुज़रता है मेरी जाँ

            गुज़रे हैं ऐसे आज तुम्हारी गली से हम

            कैसे गुज़ारता है अकेले वो ज़िन्दगी

            पूछेंगे यह सवाल किसी दिन उसी से हम

            इज़हार उसने प्यार का हमसे किया है आज

            फूले नहीं समा रहे सुनकर खुशी से हम

पता –  जसवंत सागर बाँध, सुरपुरा,

मंडोर जोधपुर राजस्थान

 ज्योति ‘जलज’ की दो गज़लें

  1. पहले तो ख़्वाहिशों को बढ़ाती है ज़िन्दगी

            फिर उसके बाद खून रुलाती है ज़िन्दगी

            जाना है इस जहान से हम सबको एक दिन

            अक्सर ये याद हमको दिलाती है ज़िन्दगी

            आँसू दिये कभी तो कभी दे गयी खुशी

            क्या जाने कितने रंग दिखाती है ज़िन्दगी

            ऐसा न हो कि मौत चली आये यक-ब-यक

            अब आ भी जाओ तुमको बुलाती है ज़िन्दगी

            मरके तो एक बार ही जलता तन मगर

            जीवन में बार-बार जलाती है ज़िन्दगी

            दो रोटियों की िफक्र में कितनों को आज भी

            जाने कहाँ-कहाँ पे नचाती है ज़िन्दगी

            ‘ज्योति’ को तुमने जितना सताया है आज तक

            इतना कहाँ हुज़ूर सताती है ज़िन्दगी

  1. कभी आशिक, कभी मजनूँ, कभी पागल रहा हो

            उसी को प्यार मैं दूँगी जो मुझमें ढल रहा हो

            तुम्हारा ख्वाब आँखों में सनम यूँ पल रहा है

            कि जैसे दीप मंदिर में दुआ का जल रहा हो

            हमारे प्यार के पीछे ज़माना यूँ पड़ा है

            हमारा प्यार जैसे अब सभी को खल रहा हो

            किसी ने खत लिखा है खून से मुझको जिगर के

            ये मुमकिन है कि वो दिल फेंक या पागल रहा हो

            तेरा आना, तेरा जाना मुझे ऐसे लगे है

            कि जैसे आसमाँ में घूमता बादल रहा हो

            मचलता जा रहा है दिल किसी को देखकर ‘ज्योति’

            मेरे दिल में भी उसका प्यार गोया पल रहा हो

ग्राम व पोस्ट – चारूआ, दर्जी मोहल्ला, निकट- अग्रवाल मेडिकल,

तह.- खिरकिया, ज़िला- हरदा, पिन कोड- 461444 (म.प्र.)