गुजरात के विकास में चुनौतियाँ

गुजरात में इस बार रिकॉर्ड जीत हासिल कर लगातार 27 साल से सत्ता में आयी भाजपा के आगे अब अपने वादों को पूरा करने की चुनौती है। दूसरी बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने भूपेंद्र भाई पटेल को इन सभी चुनौतियों का सामना करना होगा। गुजरात विधानसभा चुनावों में प्रचंड जीत के बाद दोबारा राज्य के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनकी यह ज़िम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। भूपेन्द्र भाई पटेल की सरकार इन चुनौतियों से कैसे निपटेगी, इसके लिए उनके इस सरकार के पहले बजट को देखना होगा, जिसकी तैयारी गुजरात विधानसभा में शुरू हो गयी है। गुजरात सरकार का यह पहला बजट विधानसभा का बजट सत्र में पेश होगा, जिसके शुरू होने की उम्मीद 15 फरवरी के बाद की है। कहा जा रहा है कि गुजरात का बजट भूपेंद्र सरकार 20 फरवरी को पेश कर सकती है। वित्त मंत्री कनु देसाई ने राज्य का बजट पेश करने की तैयारियाँ शुरू कर दी हैं। लेकिन उन्हें ध्यान रखना होगा कि गुजरात पर क़रीब 3,00,000करोड़ से ज़्यादा का क़र्ज़ भी है, जो गुजरात के विकास में एक बड़ी चुनौती है।

कहा जा रहा है कि इस बार गुजरात विधानसभा का बजट सत्र थोड़ा लम्बा, क़रीब मार्च तक चलने वाला है। राज्य के वित्त विभाग ने दूसरे विभागों के साथ बैठकें शुरू कर दी हैं, जिसके तहत रोज़गार और आर्थिक मंदी जैसे मुद्दों पर सरकार कुछ घोषणाएँ कर सकती है। लोगों को उम्मीद है कि उनके द्वारा एक बार फिर भाजपा को इतना बड़ा मौक़ा देने के बाद चुनी गयी गुजरात सरकार उनके हित में काम ज़रूर करेगी। हालाँकि पुराने अनुभवों के आधार पर कहा जा सकता है कि गुजरात में विकास को लगा ब्रेक अब लगा नहीं रह सकेगा और सरकार चहुँ तरफ़ा विकास करने के लिए काम करेगी। इसकी एक वजह इस बार चुनावों में सरकार के ख़िलाफ़ मुखर आवाज़ों का होना है। प्रदेश में एक तीसरी पार्टी आम आदमी पार्टी ने जिस तरह विधानसभा में एंट्री की है, उससे सरकार को इसे गम्भीरता से लेते हुए काम तो करना ही होगा।

हालाँकि कहा जा रहा है कि सरकार के पहले बजट से लोगों की बड़ी राहत की उम्मीद कम ही है। लेकिन महँगाई के मोर्चें पर राहत की उम्मीद लोग कर रहे हैं। राज्य में हाल ही में सीएनजी की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है, जिससे महँगाई से तिलमिलाई जनता और भी परेशान है। हालाँकि दूसरी तरफ़ वित्त विभाग से जो संकेत मिल रहे हैं, उनसे माना जा रहा है कि बजट के गुलाबी होने की उम्मीद काफ़ी कम है। लेकिन इसके लिए कुछ अलग से बड़ा बजट पेश होगा, इसकी उम्मीद नहीं है, क्योंकि सरकार इसके लिए आर्थिक बोझ वाली योजनाओं को बन्द कर सकती है। हालाँकि भूपेंद्र सरकार अब चाहे जैसा बजट पेश करे, विरोध कम ही होगा, क्योंकि इस बार उसने कुल 182 में से 156 सीटें जीती हैं, जिससे विधानसभा में विपक्षी दल काफ़ी कमज़ोर पड़े हैं। कुछ लोग कह रहे हैं कि गुजरात सरकार हर साल की तरह इस बजट में भी लोकलुभावन वादे ही करेगी, क्योंकि उसे भी पता है कि विकास के लिए योजनाएँ बनाने और उन्हें पूरा करने में बहुत फ़र्क़ होता है, तो आश्वासन से काम चलता रहा है, चलता रहेगा। लेकिन वहीं कुछ लोग मान रहे हैं कि इस बार लोकलुभावन बजट की सम्भावना कम ही है। इस बार भूपेंद्र सरकार रोज़गार के मुद्दे पर अच्छे निर्णय ले सकती है। हालाँकि यह भी कहा जा रहा है कि सरकार आउटसोर्सिंग के कर्मचारियों की संख्या घटाकर नियमित भर्तियाँ बढ़ा सकती है। चतुर्थ श्रेणी वर्ग के लिए आउटसोर्सिंग चालू रहने की उम्मीद है।

कुल मिलाकर भाजपा की गुजरात सरकार के आगे अब अपने चुनावी वादों को पूरा करने की एक चुनौती है, जिसे अब बिना भेदभाव के करना होगा। इससे पहले गुजरात सरकार के सामने अभी अपने कुछ विधायकों को सन्तुष्ट करने की चुनौती बनी हुई है, जिसका वे इंतज़ार कर रहे हैं। किसी भी सरकार में सभी जातियों के विधायकों को मंत्रिमंडल में जगह देना पहली चुनौती होती है। इस बार चुनाव में भाजपा को जिताने में पिछड़ों, $खासकर पाटीदार और पटेल समुदायों ने बड़ा रोल निभाया, जिसे सरकार को नहीं भूलना चाहिए। लेकिन ऐसी शिकायतें बाहर आ रही हैं कि कुछ लोगों को मनमाफिक मंत्रिमंडल नहीं मिला है, तो कुछ अभी इसका इंतज़ार कर रहे हैं कि उन्हें भी कोई ज़िम्मेदारी मिले।

भूपेंद्र पटेल को बतौर मुख्यमंत्री चुनावी वादों को पूरा करने के साथ-साथ अपने विधायकों को साधने की भी चुनौती का सामना करना पड़ेगा। इससे भी बड़ी चुनौती यह है कि उन्हें भाजपा के बड़े नेताओं के दिशा-निर्देशों का पालन करना होगा, तो फिर वह अपनी मर्ज़ी हर काम में नहीं चला सकेंगे। अभी तक यही माना जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केंद्र की सत्ता में जाने के बावजूद गुजरात का रिमोट कंट्रोल अपने ही हाथ में रखते हैं, जो शायद उन्होंने अमित शाह को दे रखा है। गुजरात के विकास के लिए हज़ारों करोड़ रुपये सालाना ख़र्च करने की ज़रूरत गुजरात सरकार को पड़ेगी; लेकिन पैसे का इंतज़ाम तब ही हो सकेगा, जब आमदनी होगी।

गुजरात में इन दिनों सबसे बड़ी चुनौती है मंदी से उभरना और उद्योगों को दोबारा उसी गति से चालू रख पाना, जो गति कोरोना से पहले थी। कोरोना के अलावा जीएसटी ने जिस तरह गुजरात के उद्योग धंधे पर हथौड़ा चलाया है, उससे राज्य की आमदनी घटी है, रोज़गार घटे हैं और व्यापार में कमी आई है। कपड़ा उद्योग इससे बहुत प्रभावित हुआ है। क़र्ज़ के बोझ में गले तक डूबा गुजरात भाजपा के ही शासन में लगातार मूव कर रहा है। इसलिए सरकार यह भी नहीं कह सकती कि इसमें उसकी कोई $गलती नहीं है।

इस समय गुजरात सरकार को जो काम करने हैं, उनमें प्रमुख काम हैं गुजरात यूनिफॉर्म सिविल कोड कमेटी की सिफारिशों को लागू करना, गुजरात को एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाना, पश्चिमी भारत के सबसे बड़े आध्यात्मिक केंद्र के रूप में स्थापित करने के लिए देवभूमि द्वारका कॉरिडोर का निर्माण करना, एग्री-मार्केटिंग इन्फ्रा के लिए 10,000 करोड़ रुपये का इंतज़ाम करना, गुजरात ओलंपिक मिशन और गुजरात में 2036 ओलंपिक खेलों की मेजबानी के उद्देश्य से विश्व स्तरीय खेल बुनियादी ढाँचा तैयार करना, केजी से पीजी तक राज्य में सभी लड़कियों के लिए मुफ्त शिक्षा देना, राज्य में 20 लाख नए रोज़गारों का सृजन करना, महिलाओं के लिए एक लाख सरकारी नौकरियाँ देना, मोरबी पुल जैसी घटनाओं को रोकना, ग्रामीण विकास की ओर ध्यान देना, स्कूलों और अस्पतालों की दशा में सुधार करना आदि-आदि।

सवाल यह है कि क्या साढ़े तीन लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा के क़र्ज़ में डूबी सरकार के लिए क्या यह सब इतना आसान है? भाजपा ने गुजरात चुनाव के दौरान राज्य में 20 लाख नए रोज़गार देने का वायदा लोगों से किया था। गुजरात सरकार के आर्थिक सर्वे के मुताबिक, अक्टूबर 2021 तक 3.72 लाख बेरोज़गारों ने रोज़गार दफ्तर में पंजीकरण कराया था, जिनमें से 3.53 लाख लोग ग्रेजुएट थे। पिछले साल भी अक्टूबर तक 2.60 लाख लोगों ने रोज़गार दफ्तर में अपना नाम रजिस्टर्ड करवाया था। इसके अलावा एक लाख महिलाओं को सरकारी नौकरी देने का वादा भी सरकार को पूरा करना होगा। भूपेंद्र सरकार के सामने एक महिलाओं को सरकारी नौकरी देना एक बड़ी चुनौती है। एक लाख महिलाओं को नौकरी देने के लिए भूपेंद्र सरकार को हर साल एवरेज 20 हज़ार नौकरियाँ महिलाओं को देनी होंगी। इसके अलावा भूपेंद्र सरकार को उच्च शिक्षा की ओर भी ध्यान देना होगा। साल 2017 में गुजरात में मेडिकल कॉलेजों की संख्या 24 थी, जबकि साल 2021 में 31 मेडिकल कॉलेज राज्य में हो गये थे। लेकिन स्वास्थ्य बजट को सरकार को बढ़ाना होगा। साल 2022-23 में गुजरात का स्वास्थ्य बजट 12.2 हज़ार करोड़ रुपये था, जो कि काफ़ी कम है।

इसके अलावा गुजरात सरकार को बाहर से आकर बसे लोगों के लिए भी रोज़गार, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में राहत देनी होगी। गुजरात में दूसरे राज्यों से आकर बसे लोगों को अभी भी कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिसके चलते वे कमज़ोर आर्थिक हालात से गुज़रते हैं। बाहरी लोगों को राज्य सरकार की कोई सुविधा भी नहीं मिलती, जिससे उनके खर्चे ज़्यादा होते हैं और आमदनी कम ही रहती है।

गुजरात में प्राइवेट नौकरी करने वाली की औसत सैलरी 6-7 हज़ार रुपये महीना होती है, जो इस महँगाई में एक घर चलाने के लिहाज़ से बहुत कम है। अगर गुजरात सरकार इस तरह की चुनौतियों से निपट सकती है, तो गुजरात का दोबारा बेहतर विकास हो सकता है। वहाँ रहने वालों की अनेक समस्याओं का समाधान हो सकता है। जनता ने जिस तरह एक बड़ा मौक़ा गुजरात में भाजपा को दिया है, उसे ध्यान में रखते हुए भूपेंद्र सरकार को जनता के हित में काम करने ही चाहिए।