गहलोत के तंज, राजे बेहाल

शुक्रवार 7 दिसम्बर को होने वाले विधानसभा चुनाव में अब गिनती के दिन शेष बचे हैं। सत्ताधारी भाजपा के लिए ये मौका अपनी जड़ें फिर से मजबूत करने और दोबारा फिर सरकार बनाने का है तो कांग्रेस के लिए यह मौका अपनी खोई जमीन फिर वापस पाने का है। इस महासंग्राम में भाजपा खासकर वसुंधरा राजे पर बेधड़क सवाल जवाब और तंजकशी के साथ कोई नेता सबसे ज्यादा आक्रामक है तो, वो है अशोक गहलोत। नतीजतन अहंकार की मांसपेशियां फुलाए रखने की अपनी आदत से मजबूर वसुंधरा राजे का दर्प ऊन के गोले की तरह खुलता जा रहा है। संकेतो की सान पर तराशी गहलोत की गुलेलबाजी ने मंगलवार 27 नवम्बर को राजे को सबसे ज्यादा मर्माहत किया कि,’वसुंधरा राजे और अमित शाह की उम्र में कोई ज्यादा फासला नहीं है तो भी वे शाह के आगे इस कदर झुकी जा रही है कि हर कोई हैरान है? डीडवाना की सभा में की गई गहलोत की इस तंजकशी पर राजे की तिलमिलाहट इन लफ्जों में मुखर हुई कि,’मैंने हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को झुककर प्रणाम किया तो गहलोत ने उस पर अमर्यादित टिप्पणी कर दी? जिस हल्के सोच में उन्होंने यह टिप्पणी की वो मेरा ही नहीं सभी महिलाओं का अपमान है। राजे का कहना था,’मैं महिला हूं इसलिए गहलोत ने जो मेरे बारे में कहा, उसे मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकती? कोटपुतली और सिकराय की जनसभाओं में गहलोत राजे की सामंती जीवन शैली पर भी तंज कसने से पीछे नहीं रहे कि,’कांग्रेस में जितने भी मुख्यमंत्री हुए डाक बंगलों में ही रहे जबकि राजे ने आलीशान महलनुमा महंगे होटलों में डेरा डाला?

गहलोत ने शाह के आगे राजे की प्रणाम मुद्रा को अवसरवाद खुरचने से तुलना करते हुए कहा,’अगर वे पांच साल सूबे की जनता के आगे सिर झुकाती तो शाह के आगे सिर झुकाने की नोबत नहीं आती? उन्होंने कहा कि, रंजिश इस कदर शासक को बेरहम कर सकती है? राजे की सामंतशाही इसकी नजीर है कि, उन्होंने हमारी जनहित की येाजनाओं पर ताले जड़ दिए? उन्होंने कहा कि,’हमारी अब भी यही सोच है कि हमारी सरकार बनने पर राजे सरकार की कोई योजना बंद नहीं की जाएगी। भरतपुर जिले के बैर क्षेत्र की चुनावी सभा को संबोधित करते हुए गहलोत राजे की रंग हिकारत की बखिया उधेडऩे से नहीं चूके कि, ‘मुख्यमंत्री काला कपड़ा देखकर भड़क जाती है जबकि नजर उतारने के लिए काले टीके को शुभ माना जाता है। गहलोत ने कहा,’राजस्थान की भाजपा सरकार प्रचंड बहुमत से सत्ता में क्या आई कि लगातार गिरते रसूख और औकात से बेखबर हो गई। उन्होंने कहा कि अहंकार ही तानाशाही और सर्वसत्तावाद को जन्म देता है, राजे सरकार में यही हुआ नतीजतन सुशासन ऊन के गोले की तरह बिखरता चला गया। गहलोतने खरी-खरी सुनाते हुए कहा,’ राजे अपने अधिकांश कार्यकाल में धोलपुर महल में ही रही, किसी से मिलना उनहें नागवार गुजरा। उन्होने कहा,लोकतंत्र को लज्जित करने वालों को जनता कुर्सी से धकेलने में देर नहीं करती। गहलोत ने राजे सरकार के झूठ-दर-झूठ के बखिए उधेड़ते हुए पैनी तंजकशी के साथ कहने में कसर नहीं छोड़ी कि ‘कहां है 15 लाख नौकरियों का वादा करने वाली भाजपा सरकार? गहलोत का तीखा वार इस कहावत को मुहरबंद कर गया कि,’सरकारों को जनता से डरना चाहिए , जनता को सरकारों से नहीं।’’ उन्होने कहा राजे की शासन प्रवृति ने नियामक संस्थानों की आजादी को सिकोड़ दिया? ताकत के दंभ में वसुंधरा सरकार नियामक संस्थाओं को निचोडऩे में पर तुल गई?

गहलोत के तंज ने इस अवधारणा केा मुहरबंद किया कि,’ताकतवर सरकार यह नहीं समझ पाती कि वो स्वयं भी लोकतंत्र की संस्था है और वह अन्य संस्थाओं की ताकत छीनकर कभी सफल ओर स्वीकार्य नहीं हो सकती? ऐसी चाहत के पीछे क्या गुरूर छिपा था कि, ‘अफसरों और न्यायाधीशों पर खबर लिखने से पहले उनसे पूछा जाए? आखिर क्या हुआ इस बेतुकी नाकेबंदी का?

भाजपा का ‘संकल्प पत्र’ या ‘प्रपंच पत्र’

च्ुानावी घोषणा पत्र वोटर की कडिय़ल औैर उम्मीदअफजा बारूदी जमीन पर राजनैतिक दलों की दक्षता का इम्तहान लेने वाले होती है। यह आगे चलकर सरकार केे काम-काज के मूल्यांकन का आधार बनता है। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने मंगलवार 27 नवम्बर को ‘गौरव संकल्प 18’ की संज्ञा के साथ भाजपा का घोषणा पत्र जारी करते हुए पिछले घोषणा पत्र के 95 फीसदी वादे पूरे करने का दावा भी किया है। इन वादों की जांच का समय तो फिलहाल है नहीं लिहाजा इस खोटी अठन्नी की जांच-परख का किस्सा भी क्यों छेड़ा जाए ? घोषणा पत्र में किए गए वादों को देखकर लगता है कि ‘पिछले पांच सालों में जो वर्ग सरकार से नाराज थे, उन्हें मनाने का अंतिम प्रयास किया गया है। घोषणा पत्र की सबसे दिलचस्प तुकबंदी इसमें पहली बार मठों का जिक्र है ? यह तड़का पूरी तरह से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की वैचारिक तरंगों से ओत-प्रोत लगता है। क्या इसलिए कि इस बार के चुनावों में योगी आदित्यनाथ भी गोरखपुर मॉडल के साथ मोैज्ूाद है ? घोषणा पत्र में उनका निवेश इस तरह है कि,’नाथ समाज के मठों का जीर्णोद्वार होगा। गुरू गोरखनाथ का स्मारक बनाया जाएगा तथा उनका जीवन चरित्र पाठ्य पुस्तकेां में पढ़ाया जाएगा।’’ वरिष्ठ टिप्पणीकार प्रताप भानु मेहता कहते हैं, ‘नाथों की अलग आध्यात्मिक परम्परा रही है, लेकिन उग्रनाथ योगियों का राजनीतिक इतिहास विखंडनकारी रहा है। नाथों को ओरंगजेब तक ने संरक्षण दिया और जोधपुर में सबसे ज्यादा प्रभावी रहे। उन्नीसवीं शताब्दी में राजा मानसिंह उनके शिष्य थे। वो अपनी रियासत को नाथों को अपर्ण बताते थे। उन्हें अक्सर पागलपन के दौरे पड़ते थे। वो पैनारॉयड थे, उनके पास शक्ति थी, लेकिन वे उसे काबू नही रख पाए। अब वसुंधरा राजे के घोषणा पत्र के मद्देनजर एक बार फिर राजनीति नाथों को अर्पण हो गई ?’’ भाजपा ने सत्ता बरकरार रखने के लिए एक बार फिर नए बोर्डों ओर आयोगों के जरिए जातियों को साधने का प्रयास किया है। इस बार 13 नए बोर्ड और आयोग गठित करने का वादा किया गया है। जबकि पिछली बार 7 बोर्ड-आयोग गठित करने का वादा किया था, लेकिन एक भी गठित नहीं किया। भाजपा चुनावों में हिन्दूत्व का एजेंडा लेकर उतरी है। पार्टी के घोषणा पत्र में यह लाइन साफ नजर आ रही है। भाजपा ने मुस्लिम प्रत्याशियों के टिकट चार से घटाकर एक करने के बाद अब घोषणा पत्र में अल्पसंख्यक समुदाय को साफ ही कर दिया है। वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मोहन की मानें तो, सरकार को यह छूट तो दी जा सकती है कि वह व्यवहारिक जरूरतों की तर्ज पर घोषणा पत्र पर कुछ छूट ले,किन्तु इसे भी भूल जाने की अनिवार्यता के साथ।’ विश्लेषकों का कहना है कि ए-फोर साइज वाले चवालीस पृष्ठों वाले घोषणा पत्र में ‘सोच नई, काम कई और’सबका साथ, सबका विकास जैसे नारों के साथ सचमुच स्वर्ग को धरती पर उतारने का वायदा तो है, लेकिन जब पिछली बार नहीं हुआ तो अब तो कांग्रेस की जुबान में यह ‘प्रपंच पत्र’ ही कहा जाएगा ?’’

वरिष्ठ पत्रकार गुलाब कोठारी कहते हैं,’नैतिकता का तकाजा तो यह है कि राजनीतिक दल जब भी नया घोषणा पत्र जारी करें मतदाता के सामने पिछले घोषणा पत्र की क्रियान्वयन की रिपोर्ट भी जारी करें और बताएं कि पिछले घोषणा पत्र में उन्होंने कितने वादे पूरे किए,कितने अधूरे हैं ? कोठारी कहते है, ‘आखिर क्यों वसुंधरा सरकार से नहीं पूछा जाना चाहिए कि, पिछली चुनावों के दोरान जो घोषणा पत्र जारी किए गए, उनकी क्या गति, सदगति या दुर्गति हुई ?