क्या बांग्लादेश तानाशाही की ओर जा रहा है?

अभी हाल में बांग्लादेश में हुए संसदीय चुनावों में शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग की जबरदस्त जीत पर कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए। सत्ताधारी पार्टी और प्रधानमंत्री ने अपनी जीत दर्ज करने के लिए हर प्रकार के सही और गलत हथकंडे इन चुनावों में अपनाए। उनका मकसद था कानूनविद कमल हुसैन के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन को परास्त करना जिनमें बंाग्लादेश नेशनल पार्टी (बीएनपी) एक मुख्य घटक थी। पर बीएनपी किसी भी प्रकार सत्ताधारी दल को चुनौती नहीं दे पाई क्योंकि उनकी प्रमुख नेता खालिदा जिया भ्रष्टाचार के एक मामले में जेल में है और पार्टी का कार्यकारी प्रमुख व खालिदा जिया का बेटा रहमान लंदन से पार्टी को चला रहा है।

किसी समय हुसैन (एक पूर्व मंत्री) लीग के संस्थापक बंगबंधु शेख मुजीर्बुर रहमान का दांया हाथ हुआ करते थे। अगस्त 1975 को मुजीर्बुर रहमान व उसके परिवार की हत्या सैनिकों ने कर दी थी। उस हमले में उनकी दो बेटियां – शेख हसीना और शेख रेहाना ही बची थी क्योंकि वे दोनों उस हमले के समय पश्चिम जर्मनी में थी। होसैन जो अपने लंबे राजनैतिक जीवन के दौरान लीग के साथ रहे पर बाद में वे हसीना के खिलाफ हो गए। उनका आरोप था कि शेख हसीना बंगबंधु के रास्ते से भटक कर तानाशाह बनती जा रही थी।

हुसैन सबसे ज़्यादा सम्मानित बुद्धिजीवी-राजनेता माने जाते हैं पर वे हसीना की लोकप्रियता के सामने कहीं नहीं टिकते। पर फिर भी उन्होंने आगे बढ़ कर विपक्षी मोर्चा का नेतृत्व किया। यदि सत्ताधारी दल ने बड़ी गिनती में विपक्षी कार्यकर्ताओं और नेताओं को गिरफ्तार न किया होता और बीएनपी के लोगों को न डराया-धमकाया होता तो विपक्ष का प्रदर्शन काफी बेहतर हो सकता था।

इस तरह विपक्षी मोर्चे के पास इन चुनाव परिणामों पर प्रश्नचिन्ह लगाने का मजबूत कारण है। इन चुनाव परिणामों के अनुसार लीग ने 300 में से 288 सीटें जीती और 98 फीसद वोट भी हासिल किए। बांग्ला देश की संसद में 50 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं।

लीग के नेतृत्व वाले गठबंधन का पूरा प्रयास रहा है कि ‘हाउस ऑफ पीपल्स’ में विपक्ष की उपस्थिति नगण्य हो। चुनावी जंग खत्म हो जाने के बाद भी दोनों संगठनों के बीच की कड़वाहट खत्म हो पाएगी इस बात की संभावना बहुत कम है। ऐसा लगता है कि यह इस गरीब राष्ट्र के लोगों के लिए लगातार समस्याएं खड़ी करती रहेंगी। चुनावों से पूर्व जो कुछ हुआ उससे स्पष्ट था कि शेख हसीना एक मजबूत विपक्ष में विश्वास नहीं रखती। वैसे भी विपक्ष की जितनी सीटें आई है, वह लोकतंत्र का मज़ाक ही तो है। इन हालात में जब वह दावा करती हैं कि बांग्लादेश में चुनाव पूरी तरह निष्पक्ष और स्वतंत्र तौर पर करवाए गए हैं तो उस पर विश्वास करना आसान नहीं होता।

जो परिस्थितियां बांग्लादेश में हैं उनमें स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हो ही नहीं सकते। ये चुनाव तो किसी कार्यवाहक प्रशासन के तहत होने चाहिए थे ताकि सत्ताधारी गठबंधन अपनी जोर जबरदस्ती नहीं चला सकता। सत्ताधारी दल ने कार्यवाहक प्रशासक की भूमिका में वही किया जिससे किसी भी तरह सत्ता उनके हाथ में बनी रहे।

इसमें कोई संदेह नहीं शेख हसीना की सरकार ने अपने दो कार्यकालों के दौरान आर्थिक मामलों में काफी अच्छा प्रदर्शन किया है। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि वह आतंक की राजनीति करें और एक तानाशाह की तरह का व्यवहार करें। विश्व समुदाय को चाहिए कि वह शेख हसीना को बता दे कि लोकतांत्रिक व्यवस्था पर किसी भी बहाने से किया गया प्रहार सहन नहीं होगा और साथ ही देश में विपक्ष को बिना भय के अपनी बात कहने से नहीं रोका जाना चाहिए। लोकतत्र में विपक्ष की सबसे बड़ी भूमिका है। वहां के आर्थिक विकास में भारत की भूमिका है और साथ ही वहां इस प्रकार का वातावरण तैयार करने में भी भारत की भूमिका है जिसमें वहां के लोकतंत्रिक संस्थान और मजबूत हों।

इस तरह भारत में बांग्लादेशी समस्या अपने आप ही खत्म हो जाएगी। वहां के विकास पर जोर देने से वहां गरीबी कम हो जाएगी और जो लोग गैर कानूनी तौर पर रोज़गार कमाने भारत आ जाते है, उन पर भी रोक लगेगी।

शेख हसीना के फिर से सत्ता में लौट आने के कारण भारत के लिए उनके अपने संबंध और मजबूत बनाने के भरपूर अवसर है। भारत की कोशिश होनी चाहिए कि वह बांग्लादेश को अपने विकास कार्यों के लिए चीन की ओर न जाने दे। चीन बांग्लादेश से माल आयात करने वाला सबसे बड़ा देश है। व्यापार के हिसाब से वह ढाका के साथ व्यापार करने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश है।

‘एक्सपोर्ट प्रोमोशन ब्यूरो ऑफ बांग्लादेश’ के अनुसार बांग्लादेश ने चीन को 2015-16 में 8081.40 लाख डालर का माल बेचा। जबकि 2010-11 में यह आंकड़ा 3196.60 लाख डालर था। इस तरह पिछले साल में इसमें 30 फीसद की बढ़ोतरी हो गई। पर अब इसमें थोड़ी कमी आई है। 2014-15 में यह छह फीसद थी जो 2015-16 में 2.2 फीसद रह गई। पिछले वित्त वर्ष में बांग्लादेश का चीन को किया गया निर्यात उसके कुल निर्यात का 2.4 फीसद था।

जहां तक भारत और बांग्लादेश के व्यापार की बात है तो यह पिछले कुछ सालों में काफी बढ़ गया है। 2013-14 में बांग्लादेश को भारत से निर्यात 6.1 अरब डालर का था जबकि इस अवधि में आयात 4629 लाख डालर का था। बांग्लादेश के साथ भारत का निर्यात 5.8 अरब डालर बढ़ा जबकि इसके आयात में 5180 लाख डालर की बढ़ोतरी हुई। इस प्रकार अगर और आंकड़ें देखें तो दक्षिण एशिया में बांग्लादेश भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी रहा है। इसमें बांग्लादेश के लिए चिंता की बात मात्र इतनी है कि दोनों देशों का व्यापार संतुलन भारत की ओर झुका लगता है। यहां भारत ने कुछ सुधारात्मक कदम उठाए और 2011 में साउथ एशियाई फ्री ट्रेड एशिया एग्रीमेंट (दक्षिण एशियाई मुफ्त व्यापार क्षेत्र समझौता) किया जिसके तहत बांग्लादेश से काफी सामान बिना ड्यूटी के भारत आने लगा। पर अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। बांग्लादेश में भारतीय कंपनियों के लिए एक विशेष आर्थिक ज़ोन बनाए जाने की योजना है। इससे दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ेगा।

व्यापार संतुलन को ठीक करने के साथ दोनों देश तीस्ता नदी पानी के बंटवारे पर भी बात कर रहे हैं। इसमें आने वाली अड़चनों को दूर कर लिया गया है। अब अंतिम समझौते में कुछ समस्या नहीं आनी चाहिए।

अवामी लीग के शासन के दौरान भारत विरोधी ताकतों को एहसास हो गया है कि उनके लोग अब भारत में कोई हरकत करके बांग्लादेश की सीमा में सुरक्षित नहीं रह सकते।

भारत-बांग्लादेश दोनों को अपने संबंध और मजबूत बनाने होंगे जो दूसरे देशों के लिए मिसाल हों।