कोरोना वायरस की मार पर पंजाब के किसान भारी

भारतीय अर्थ-व्यवस्था में पंजाब के किसानों का महत्त्वपूर्ण योगदान है। देश पर जब-जब संकट आया है, तब-तब पंजाब के किसानों ने मोर्चा सँभाला है। इस बार भी कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने और लॉकडाउन जैसी विषम परिस्थिति में पंजाब के किसानों ने हिम्मत नहीं हारी और मज़दूरों के अभाव में कड़ी मेहनत करके खेतों से अनाज उठाया है। पंजाब के किसानों की इस हिम्मत और मेहनत की पड़ताल करती राजू विलियम की यह रिपोर्ट :-

ऐसे समय में जब पंजाब में औद्योगिक और व्यापारिक गतिविधियाँ ठप हैं, कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व की सरकार कोविड-19 महामारी के बीच अर्थ-व्यवस्था के पहिये को चालू रखने के लिए किसानों पर भरोसा कर रही है। यह हमेशा होता है कि जब हम अभूतपूर्व संकट से घिरे होते हैं, मूल भोजन गेहँू, चावल, सब्ज़ियाँ या दालों के मसीहा के तौर पर हमारी नज़र किसानों की ही तरफ जाती है। यह किसान ही हैं, जो तालाबन्दी के इस दौर में हमें ज़िन्दा रहने की खुराक प्रदान कर रहे हैं।

पंजाब में गेहूँ की चल रही खरीद की योजना जिस समझदारी से बनायी गयी और जिस तरह इसे संचालित किया जा रहा है, वह सरकार और अन्य हितधारकों के लिए इसके महत्त्व का पर्याप्त प्रमाण है। विस्तारित लॉकडाउन के कारण 22,000 करोड़ रुपये के आसन्न राजस्व नुकसान का सामना करते हुए, एकमात्र उम्मीद गेहूँ की बिक्री के माध्यम से लगभग 30,000 करोड़ रुपये की कमाई से है; जो सीएम अमरिंदर सिंह के अनुसार, राज्य की अर्थ-व्यवस्था के लिए इस समय एक महत्त्वपूर्ण योगदान है। पिछले महीने 23 अप्रैल तक मण्डियों में कुल 29 लाख टन से अधिक गेहूँ की आवक हो चुकी थी, जिसमें से 27 लाख टन से अधिक की खरीद की गयी है। यह खरीद हर साल सामान्य रूप से होने वाली तारीख पहली अप्रैल के बजाय 15 अप्रैल से शुरू हुई थी। पंजाब ने पिछले साल रिकॉर्ड 182 लाख टन गेहूँ का उत्पादन किया था।

कहावत है कि असाधारण पस्थितियों में असाधारण प्रतिक्रियाओं की आवश्यकता होती है। इस बार गेहूँ की खरीद के संचालन के लिए अवधि पहले के 20 दिन की जगह बढ़ाकर 45 दिन कर दी गयी और इसमें 17 लाख से अधिक किसान 4300 मण्डियों और 26,000 कमीशन एजेंट के ज़रिये जुड़े। मण्डियों की यह संख्या कोविड-19 के पूर्व के काल से 1834 ज़्यादा (दोगुनी से भी ज़्यादा) है।

यह स्थिति पंजाब मण्डी बोर्ड (पीएमबी) के लिए एक बड़ी चुनौती थी, जिसने परेशानी मुक्त खरीद की सुविधा के लिए अब तक बेजोड़ प्रौद्योगिकी को इस्तेमाल किया है। इसके सचिव गतिशील आईएएस अधिकारी और प्रौद्योगिकी प्रेमी रवि भगत ने बताया कि इस बार कोरोना वायरस खतरे के कारण देश भर में प्रचलित अनोखी स्थिति को ध्यान में रखते हुए सभी खरीद व्यवस्थाएँ की गयी थीं। उन्होंने कहा कि इसीलिए ई-टोकन प्रणाली को तैयार किया गया था, ताकि आपसी दूरी के मानदण्डों का सख्ती से पालन हो सके और किसानों की उपज के साथ मण्डियों में भीड़ न जुटे। अब वे कहे जाने पर ही मण्डियों में आ रहे हैं। मण्डियों में संक्रमण को रोकने के लिए हमने अब तक 30,000 लीटर सैनिटाइजर और 2 लाख मास्क वितरित किये हैं। साथ ही 34 अधिकारी एक नियंत्रण कक्ष चला रहे हैं। मण्डियों को अलग-अलग क्षेत्र के हिसाब से विभाजित किया गया है और गेहूँ के प्रत्येक ढेर के बीच पर्याप्त जगह छोडऩा सुनिश्चित किया जा रहा है।

भगत के मुताबिक, स्वच्छता सहित संचालन की नियमित निगरानी सुनिश्चित करने के लिए ड्रोन तैनात किये गये हैं। हमारे लिए मुख्य चुनौती मण्डियों में गेहूँ से लदी ट्रॉलियों के प्रवाह को विनियमित करना था, ताकि आपसी दूरी बनाये रखी जा सके। साथ ही यह भी सुनिश्चित करना कि जगह साफ रहे, किसानों को सुविधाएँ मिलें और उपज की समय पर खरीद हो।

यहाँ यह बताना भी दिलचस्प है कि भगत ने अब तक 36 एप विकसित किये हैं। इस लेखक ने ज़मीनी स्थिति जानने के लिए संगरूर ज़िले के गाँव उप्पली के एक किसान अमरजीत सिंह चीमा से बात की। उन्होंने कहा कि हम विनियमित खरीद संचालन की सरकार की कोशिशों का समर्थन करते हैं। किसान भी सुरक्षा  प्रोटोकॉल का पालन उतनी ही मुस्तैदी से कर रहे हैं। किसानों को जारी किये गये पास की प्रणाली भी अच्छी तरह से काम कर रही है। चीमा ने बताया कि वे अपनी उपज सुबह मण्डी में ले गये और उसी शाम खरीद के बाद वापस घर लौट आये। किसी भी किसान के लिए सबसे बड़ी राहत परेशानी से मुक्त भुगतान का भरोसा होता है। मैंने 17 एकड़ में गेहूँ बोया था और आधा अब तक बेच चुका हूँ।

मण्डियों में भीड़ को रोकने के लिए एक और महत्त्वपूर्ण उपाय करते हुए पीएमबी ने गाँवों के लॉकडाउन के कारण बन्द पड़े स्कूलों और चावल मिलों को अस्थायी खरीद केंद्रों में तब्दील कर दिया है। भारत-पाक सीमा के अन्दर लगभग 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित फिरोज़पुर ज़िले के गाँव गोहलु का मोर के जगदीश थिंड को इस बार मण्डी जाने के लिए 6 किलोमीटर की दूरी नहीं नापनी पड़ी। उनके मुताबिक, कमीशन एजेंट ने हमारे गाँव के बाहरी इलाके में एक स्कूल के परिसर से हमारी उपज को उठाने की व्यवस्था की। कोरोना वायरस से सुरक्षा के सभी उपायों को बनाये रखा गया।

पंजाब की कृषि अर्थ-व्यवस्था और इस बार आयी परेशानियों को लेकर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से बातचीत के प्रमुख अंश :-

इस संकटकाल में केंद्र से पंजाब को कोई मदद मिली?

कैप्टन सिंह- केंद्र से हमें कोई मदद नहीं मिली।

कोरोना वायरस महामारी के प्रभाव के बीच आज राज्य की अर्थ-व्यवस्था के लिए गेहूँ की खरीद कितनी महत्त्वपूर्ण है?

पंजाब की अर्थ-व्यवस्था कृषि प्रधान है, जिसमें गेहूँ और चावल दो प्रमुख फसलें हैं। यह हमारा मज़बूत कृषि आधार है, जिसने भारत को भोजन के मामले में आत्मनिर्भर बनाया है। अनाज की खरीद हमारे लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। इस बार कोविड-19 संकट के कारण यह और महत्त्वपूर्ण हो गया है। सभी स्वास्थ्य सुरक्षा प्रोटोकॉल को सुनिश्चित करते हुए मेगा प्रोक्योरमेंट ऑपरेशन को सुरक्षित रूप से पूरा करने में जिन चुनौतियों का सामना है, वह तो है ही; तथ्य यह है कि अचानक तालाबन्दी से लाखों भारतीय भूखे रह रहे हैं या भूख से मर रहे हैं। अब जो अनाज हम खरीद रहे हैं, वह न केवल राज्य का, बल्कि पूरे देश का पेट भरने में मदद करेगा। पंजाब देश के आवश्यक बफर स्टॉक को सुनिश्चित करने के लिए केंद्रीय पूल के लिए खरीदे गये गेहूँ का लगभग 30-35 फीसदी दे रहा है। यह केवल अर्थ-व्यवस्था के बारे में नहीं है, बल्कि देश के लिए एक सामाजिक ज़रूरत भी है। जहाँ तक पंजाब की अर्थ-व्यवस्था का सम्बन्ध है, उद्योग और व्यापार बन्द होने और राजस्व प्राप्तियाँ- जैसे-जीएसटी, वैट, उत्पाद शुल्क आदि के बहुत कम हो जाने से हमें जो भी सिस्टम पूरा करने के लिए चाहिए, उसमें हमें पैसा लगाना होगा; ताकि हम तत्काल कोविड-19 की चिकित्सा चुनौतियों का सामना कर सकें।

इस साल मण्डियों में कितना गेहूँ के आने की उम्मीद है?

रबी 2019-20 के दौरान हम करीब 18.5 मिलियन मीट्रिक टन गेहूँ की फसल की उम्मीद कर रहे हैं और बाज़ार की आवक लगभग 13.5 मिलियन मीट्रिक टन होने की सम्भावना है। मैं किसानों को आश्वस्त करता हूँ कि भले ही कोरोना संकट के कारण जितनी दिक्कतें हों, गेहूँ के एक-एक दाने की खरीद की जाएगी।

आपकी सरकार यह कैसे सुनिश्चित कर रही है कि किसानों को परेशानी से मुक्त भुगतान मिले?

इस साल हम नियमों में संशोधन करके किसानों के भुगतान को सीधे बैंक में हस्तांतरित कर रहे थे। लेकिन कोरोना संकट और लॉकडाउन के कारण हम सीधे आढ़तियों के ज़रिये भुगतान करने की प्रणाली वापस लाये हैं। हम सुनिश्चित कर रहे हैं कि खरीद के 48 घंटे के भीतर आढ़तियों को उनका भुगतान हो जाए और उन्हें यह निर्देश दिये हैं कि वे भी 48 घंटे के भीतर किसानों को ई-पेमेंट कर दें।

केंद्र सरकार से आपको क्या मिला? सरकार और क्या खर्च रही है किसानों के लिए?

जैसा कि मैंने बताया कि केंद्र से बिल्कुल कुछ नहीं मिला। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि अभूतपूर्व संकट के इस समय में भी हमें सीसीएल जारी होने के अलावा केंद्र से कोई समर्थन नहीं मिला है। हमने किसानों से मण्डियों में खरीद को कम करने के लिए प्रोत्साहन के रूप में अतिरिक्त बोनस के लिए कहा था, लेकिन वह भी नहीं आया। हम चाहते हैं कि किसान इस समय थोड़ी अधिक अवधि के लिए अपने अनाज का भण्डारण करें और सभी एक ही समय में मण्डियों में न आयें। हमने केंद्र से अप्रैल के बजाय मई में अपनी उपज लाने वालों के लिए 100 रुपये प्रति क्विंटल और उससे अधिक एमएसपी की घोषणा करने के लिए कहा था, लेकिन यह भी नहीं हुआ। बारिश और ओलावृष्टि के कारण किसानों को नुकसान हुआ है। अतिरिक्त खर्च हम पर मास्क, सैनिटाइटर आदि का आया है, लेकिन हम इसे कर रहे हैं।