किसानों की कोई सुनवाई नहीं

कोरोना वायरस के चलते देश भर में हुए लॉकडाउन में भले ही केंद्र और राज्य सरकारों ने किसानों को राहत दी है, ताकि वे खेतों फसलें उठाकर अनाज की बिक्री कर सकें। सरकार की मंशा पर किसी को कोई शंका नहीं है, पर व्यावहारिकता कुछ और है। जैसे गेहूँ की खरीदारी सरकार 1925 रुपये प्रति क्विंटल की दर से कर रही है। लेकिन सरसों और चना की खरीदारी नहीं हो रही है। सरकार ने चने का भाव 4800 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। मुश्किल यह है कि किसानों का अनाज सरकारी केंद्रों पर खरीदा तो जा रहा है, पर हकीकत में उन्हें उसका सही दाम नहीं मिल पा रहा है। क्योंकि ज़िला और तहसील स्तर पर सरकार द्वारा बनाये गये खरीद केंद्र काफी दूर-दूर हैं। यहाँ तक कि चना और सरसों की बिक्री की खरीदारी ठीक से नहीं हो रही है। इसके कारण किसान काफी परेशान हैं। देश में जब भी कभी संकट आया या भुखमरी जैसे हालात पैदा हुए हैं, तब कृषि और कृषक ही देश की टूटती अर्थ-व्यवस्था में सहारा देने में मज़बूत स्तम्भ के रूप में सामने आये हैं। वहीं सरकार किसानों को उनकी उपज का उचित भुगतान करने में हिचकिचाती रही है। आज भी सरकारें तमाम दावे भले ही करें कि वो किसानों की अनदेखी नहीं कर रही हैं, लेकिन यह भी सच है कि किसानों का अनाज खरीदने में कम-से-कम आनाकानी तो ही रही है। इसी पर तहलका के विशेष संवाददाता राजीव दुबे की पड़ताल :-

यह सच है कि लॉकडाउन में ऑनलाइन के तहत अनाज की बिक्री को बढ़ावा दिया गया है, ताकि किसानों के साथ किसी प्रकार की धाँधली न हो सके और पारदॢशता बनी रहे; लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है। किसानों को कई सरकारी केंद्र्रों में या तो रिश्वत देनी पड़ रही है या दलालों के सहारे अनाज बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है। इसके एवज़ में दलाल किसानों से जमकर पैसा वसूल रहे हैं।

अगर उत्तर प्रदेश की बात करें, जहाँ पर लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन प्रकिया के तहत किसानों का अनाज, खासकर गेहूँ सरकारी केंद्र्रों पर खरीदा जा रहा है। यहाँ किसानों को कई-कई दिनों के बाद का ऑनलाइन नम्बर मिल रहा है। ऐसे हालात में किसानों को काफी परेशानी का सामना तो करना ही पड़ रहा है, बल्कि रिश्वत देने को मजबूर होना पड़ रहा है। क्योंकि टोकन सिस्टम की प्रकिया में तो किसानों का नम्बर 10 से 15 दिनों के बाद का आ रहा है। मौज़ूदा हालात तो ऐसे हैं कि किसानों की माली हालत काफी खराब है। क्योंकि मज़दूरी और दैनिक कमाई का हरेक ज़रिया पूरी तरह से बन्द है। बाँदा ज़िले के किसान किशनपाल का कहना है कि कभी भी किसी किसान ने सोचा नहीं था कि उनकी ज़िन्दगी में कभी ऐसा दिन भी आएगा कि उनको अपना ही अनाज बेचने में इस कदर दिक्कत होगी। अपना खून-पसीना बहाकर छ: महीने में उगाये अनाज को उन्हें सिफारिश लगाकर, रिश्वत देकर या फिर दलालों के सहारे बेचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। 43 बीघा खेत के मालिक  किशनपाल ने इस बार गेहँू और चने की फसल बोयी थी। अब जब बड़ी मुश्किल से अनाज उठकर घर आया है, तो उसे बेचने में तमाम परेशानियाँ आड़े आ रही हैं। सरकारी केंद्र्रों पर मची धाँधली को लेकर उन्होंने सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया है। किशनपाल कहते हैं कि सरकार के कुछ लोग अपने चहेतों का अनाज जल्दी बिकवाने में लगे हैं, जिसकी वजह से सीधे-सादे किसानों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि चने की खरीदारी न होने के कारण उनका परिवार हताश है। क्योंकि उन्होंने फसल की बुवाई के समय पर साहूकार से कर्ज़ लिया था; लेकिन उसकी अदायगी नहीं कर पा रहे हैं।

ललितपुर ज़िले के किसान प्रकाश ने बताया कि बिक्री केंद्रों पर जो टोकन किसानों को दिये जा रहे हैं, वो किसानों के साथ एक प्रकार का धोखा है। क्योंकि मात्र टोकट मिलने से किसानों के साथ न्याय नहीं हो पा रहा है, जिसकी सरकार बात कर रही है। वहीं अनाज बिकने के बाद भी कई दिनों के बाद किसानों को पैसा दिया जा रहा है। किसान नेता जगत सिंह ने बताया कि केंद्र्र सरकार ने देश की आॢथक व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए रबी की फसल को खेत से बाज़ार तक लाने का जो काम किया है, वह सराहनीय है। लेकिन इस प्रक्रिया में किसानों के अधिकारों को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है। जैसे किसानों अनाज को आसानी से बाज़ार / बिक्री केंद्रों तक लाने में काफी परेशानी हो रही है। इस प्रक्रिया में उन्हें पुलिस से जूझना पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि सरकार आँकड़ेबाज़ी के खेल में माहिर है। वह बस जनता और किसानों को यह बता रही है कि सरकार उनके हित में कितना काम कर रही है। आँकड़ों का खेल यह है कि हर रोज़ यह बताया जा रहा है कि आज 1,000 क्विंटल अनाज खरीदा गया है। लेकिन भुगतान करने में आनाकानी का ब्यौरा नहीं दे रही है।

मध्य प्रदेश के किसानों की अपनी अलग ही व्यथा है। किसानों का कहना है कि कोरोना वायरस के कहर से सारी दुनिया परेशान है। इस हालात में वे पूरी तरह सरकार के साथ है और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन भी कर रहे हैं।  सरकारी और प्राइवेट खरीद केंद्र्रों पर जो सुविधा दी जा रही है, उससे भी किसान को कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन किसानों की व्यथा यह है कि वे अपने अनाज को अपने तरीके से नहीं बेच पा रहे हैं; जैसे कि पहले बेचते रहे हैं। पहले वे ज़रूरत होने पर उसी हिसाब से अनाज बेचते रहे हैं। अब ऐसा नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि इस बार यह कहा जा रहा है कि अगर अभी अनाज नहीं बिक पाया, तो आगे उसे बेचने में दिक्कत आ सकती है। यहाँ के किसानों का यह भी कहना है कि ज़िला और तहसील स्तर पर अनाज खरीदा जा रहा है। लेकिन अनाज को दूर-दूर बने बिक्री केंद्रों पर लाने में काफी भाड़ा लग रहा है। इसके कारण उनको परेशानी हो रही है। सागर ज़िले के रेहली, बंडा और सतना ज़िले के किसान राघव सिंह और पुनीत पाल का कहना है कि किसानों के लिए सरकार कोई अलग से आयोग बनाए, ताकि किसान अपनी बात वहाँ रख सकें। अन्यथा जिस प्रकार किसानों, खासकर छोटे और मँझोले किसानों की हालत काफी दयनीय रही है, उसी तरह आगे भी रहेगी।

दिल्ली में कोरोना वायरस को लेकर जो हालात हैं। इसको लेकर यहाँ की नरेला अनाज मण्डी, जो कि एशिया की बड़ी अनाज मण्डियों में से एक है; में सन्नाटा पसरा हुआ है। नरेला अनाज मण्डी के थोक और फुटकर अनाज की खरीदारी और बिक्री करने वाले व्यापारी रतन जैन का कहना है कि इस महामारी के दौर में व्यापार पूरी तरह से चौपट है। इस बार न तो रबी की फसल में पैदा होने वाले अनाज की कोई आवक है और न ही बिक्री हो रही है; कुल मिलाकर काम बिल्कुल मन्दा पड़ा है। पूरे देश का थोक व्यापार यहीं से होता रहा है, लेकिन इस साल लॉकडाउन के कारण छोटे और बड़े वाहनों का आना-जाना लगभग बन्द-सा है। यहाँ के दूसरे व्यापारी विमल गुप्ता का कहना है कि सरकार की पहल पर नरेला अनाज मण्डी में खरीदारों की कुछ रौनक बढ़ी थी, मगर दिल्ली की आज़ादपुर फल-सब्ज़ी मण्डी में एक व्यापारी की मौत कोरोना वायरस से हो गयी। इसके कारण व्यापारियों में काफी डर बैठ गया है।

बता दें कि नरेला और आज़ादपुर की मण्डियों से प्रतिदिन बड़े पैमाने पर अनाज, फल और सब्ज़ियों की सप्लाई दिल्ली के अलावा आस-पास के राज्यों में होती है। इस बारे में दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया का कहना है कि सरकार की पहली प्राथमिकता यह है कि व्यापार के साथ-साथ स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान दिया जाए, जिससे लोगों का जीवन सुरक्षित रहे।

वहीं हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का कहना है कि किसानों को कोरोना वायरस की समस्या के दौरान यह वचन दिया था कि किसानों के अनाज का एक-एक दाना सरकार खरीदेगी। अपना वादा पूरा करते हुए सरकार किसानों के गेहूँ को 1925 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से खरीद रही है। साथ ही किसानों को कोई दिक्कत न हो, इसके लिए अनाज खरीद केंद्र्रों की संख्या पाँच गुना बढ़ायी गयी है। वहीं हरियाणा के किसान राजकुमार सिंह मान का कहना है कि सरकार अपनी तारीफ भले ही कर रही है, लेकिन सच्चाई यह है कि किसान बहुत परेशान हैं। बिक्री केंद्रों पर चने और सरसों की खरीदारी न के बराबर हो रही है। इस बारे में किसान उदित नारायण का कहना है कि सारा देश जानता है कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। फिर भी सरकार किसानों की समस्याओं को नज़रअंदाज़ करती है। सरकार किसानों को न ही समय पर फसल बीमा देती है और न ही फसल खराब होने पर मुआवज़ा; जिसके कारण किसान अक्सर परेशान रहते हैं।