कवि, राजनेता अटल बिहारी वाजपेयी को देश का सलाम

अटल बिहारी वाजपेयी कवि, पत्रकार और राजनेता थे। वे दोस्त बनाना जानते थे। उनकी विशेषता थी कि वे विभिन्न विचारधाराओं के नेताओं को साथ लेकर चलते थे। वे एक जमाने में वामपंथी थे बाद में उन्हें लगा कि स्वयंसेवक बन कर वे ज्य़ादा काम कर सकते हैं तो वे उसमें सक्रिय हुए। बाद में वे जनसंघ में सक्रिय हुए। जब विभिन्न विचारधाराओं की पार्टियों को एक मंच पर वे ले आए तो उन्हें लगा कि एक नया राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी बनाई जाए जिसमें हिंदू संस्कृति पर ज्य़ादा ज़ोर बिना दिए पूरे देश को आंदोलन किया जाए। राजनेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी और विचारक दीनदयाल उपाध्याय से उनका बहुत अच्छा संपर्क था। उन्होंने इनके साथ अपने विचारों को सान दी। आज़ादी की लड़ाई में भागीदारी और देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से उनका सीधा संपर्क उन्हें समाज में सतत सक्रिय रख सका। उनके भाषण देने की कला की पंडित नेहरू ने काफी तारीफ भी की। देश में जब आपातकाल लगा तो देश में विपक्षी एकता भी परवान चढ़ी जिसे बनाने मेें अटल बिहारी वाजपेयी की खासी भूमिका रही।

भारत रत्न से अलंकृत अटल बिहारी वाजपेयी एक ऐसा नेता थे जो विरोधी दलों के साथ भी सही तालमेल रखते थे। वे देश के तीन बार प्रधानमंत्री रहे। उनके समय में भारत ने दूसरी बार परमाणु परीक्षण किया। ध्यान रहे पहला परमाणु परीक्षण भारत ने उस समय किया था जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं।

ग्वालियर में 25 दिसंबर 1924 को जन्में वाजपेयी सबसे पहले 1996 में प्रधानमंत्री बने पर उनकी सरकार केवल 13 दिन चली। इसके बाद वे 1998 से 1999 तक 11 महीने इस पद पर रहे। फिर वे 1999 से 2004 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। इसके अलावा वे 40 साल से ज़्यादा समय तक लोकसभा के सदस्य रहे इसके अलावा वे दो बार राज्यसभा के सदस्य भी रहे।

उनके प्रधानमंत्री काल में भारत ने 1998 में पोखरण में पांच परमाणु विस्फोट किए। उन्होंने ये परीक्षण अपने प्रधानमंत्री का कार्यभार संभालने के एक महीने के भीतर ही कर डाले। इन विस्फोटों के 15 दिन बाद पाकिस्तान ने भी परमाणु धमाके किए थे। उस समय रूस और फ्रांस ने भारत के इन धमाकों का समर्थन किया था पर अमेरिका, कनाडा, जापान, ब्रिटेन और यूरोपीय यूनियन ने भारत पर पाबंदियां लगा दी थीं।

वाजपेयी ने 1998 के अंत में पाकिस्तान के साथ कूटनीतिक रिश्तों की शुरूआत की थी। इसी प्रक्रिया में वे फरवरी 1999 में दिल्ली-लाहौर बस यात्रा पर भी गए। वाजपेयी की कोशिश थी कि पाकिस्तान के साथ कश्मीर समेत सभी मसले बातचीत के द्वारा हल कर लिए जाएं। इसी के तहत लाहौर घोषणा हुई इसमें आपसी बातचीत पर बल दिया गया। आपस में व्यापारिक रिश्ते बढ़ाने की बात हुई और आपसी दोस्ती के सहारे दक्षिण एशिया को परमाणु शस्त्र विहीन बनाने की बात भी रखी गई। इससे 1998 में परमाणु धमाकों के बाद बना तनाव काफी कम हो गया। ऐसा न केवल इन दोनों देशों में हुआ बल्कि पूरे विश्व पर इसका असर पड़ा। 1999 के मध्य में उनकी सहयोगी पार्टी एआईएडीएमके ने समर्थन वापिस ले लिया और 11 महीने में यह सरकार चली गई

वाजपेयी के समय में ही कारगिल युद्ध हुआ। आतंकवादियों और बिना वर्दी के पाकिस्तानी सैनिकों ने कश्मीर घाटी में घुसपैठ करके उन पहाड़ी चोटियों और भारतीय सेना के बंकरों पर कब्जा कर लिया जो भारतीय सेना ने खाली छोड़ी हुई थीं। इस तरह वे लोग कारगिल, बटालिक और अखनूर सेक्टरों में कार्रवाइयां चलाने लग गए। सियाचिन पर भी तोपों से गोलाबारी होने लगी। जून 1999 में ऑपरेशन विजय शुरू हुआ। भारतीय सेना का मुकाबला हजारों आतंकवादियों के साथ होता रहा। तीन महीने तक चली इस लड़ाई में 500 से ज़्यादा भारतीय सैनिक शहीद हुए। दूसरी ओर दुश्मन के भी लगभग 4000 लोगों की जानें गई। इसके साथ ही भारतीय सेना ने दुश्मन को अपने सारे इलाके से खदेड़ दिया। इस तरह भारत ने 70 फीसद इलाका वापिस ले लिया।

इसके बाद 1999 में चुनाव में वाजपेयी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने। उस समय एनडीए को लोकसभा में 543 में से 303 सीटें मिली। वाजपेयी ने 13 अक्तूबर को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। तीन महीने बाद ही एक बड़ी समस्या पैदा हो गई जब आतंकवादियों ने दिसंबर 1999 में काठमांडू से दिल्ली आ रहे इंडियन एअरलाइंस के विमान आईसी 814 का अपहरण कर लिया और उसे अफगानिस्तान ले जाया गया। आतंकवादियों की मांगों में मसूद अज़हर समेत कई आतंकवादियों को रिहा करने की मांग थी। सरकार इस दवाब के आगे झुक गई और तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह आतंकवादियों को अपने साथ ले जाकर वहां छोड़ आए और यात्रियों को वापिस ले आए।

वाजपेयी राष्ट्रवादी होने के साथ संवेदनशील मानववादी व्यक्ति थे। सही बात के लिए वे अपनी पार्टी के भी खिलाफ खड़े हो जाते थे। जब बाबरी मस्जिद 1992 में गिराई गई तो उन्होंने उसका विरोध किया था। उन्होंने गोधरा कांड और गुजरात दंगों, दोनों की ही निंदा की थी। तब के गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को उन्होंने राजधर्म अपनाने को कहा था। वे गुजरात के दंगों के भी खिलाफ थे। उनका दिल बड़ा था। परमाणु परीक्षण को लेकर उन्होंने कहा था कि खुद को सुरक्षित रखने के लिए अपनी सुरक्षा के इंतजाम पूरे होने चाहिए।

इसी दौरान उन्होंने आर्थिक सुधारों को और आगे बढ़ाया। उस समय देश की जीडीपी तेजी से बढ़ी और छह से सात फीसद के बीच पहुंच गई। विदेशी निवेश बढ़ा। सरकारी और निजी ढांचों का आधुनिकीकरण भी वाजपेयी ने किया। सरकार ने कर व्यवस्था में भी बदलाव किए। भाजपा की पूरी ताकत शहरों के मध्यवर्ग और युवाओं को अपने साथ जोडऩे में लगती गई। हालांकि इसके लिए उन्हें अपने ही संघ परिवार से जुड़े भारतीय मज़दूर संघ और भारतीय किसान संघ के विरोध का सामना करना पड़ा।

वाजपेयी 2003 में चीन की यात्रा पर गए और चीनी नेताओं से मिले। वहां उन्होंने तिब्बत को चीन का हिस्सा बताया। इसका चीनी नेताओं ने भरपूर स्वागत किया। इसके एक साल बाद उन्होंने सिक्किम को भारत का हिस्सा तस्लीम कर लिया। उसके बाद भारत-चीन संबंधों में काफी सुधार आया।

वाजपेयी ने कई विदेश यात्राएं भी की। 1965 में वह संसदीय सद्भाव यात्रा पर पूर्वी अफ्रीका गए। 1967 में सह राष्ट्रमंडल संसदीय एसोसिएशन की कनाडा में हुई बैठक में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे। 1980 में वह जांबिया गए। 1974 में वह इंटर पार्लियामेंट यूनियन कांफ्रेस के लिए भारतीय प्रतिनिधि के तौर पर जापान गए। इसके अलावा उन्होंने और भी कई देशों की यात्राएं की।

अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जनसंघ के शुरूआती सदस्यों में से एक थे। वह पहली बार 1957 में लोकसभा के लिए चुने गए। 1957 से 1977 तक वे संसद में भारतीय जनसंघ के नेता रहे। 1962में वे राज्यसभा के लिए चुने गए। 1967 में फिर लोकसभा के लिए चुनाव जीते। 1971 में वह तीसरी बार लोकसभा के सदस्य बने। 1977 में वह चैथी बार लोकसभा के सदस्य बने। 1977 से 1979 तक विदेश मंत्री रहे। 1980 में वह सातवीं लोकसभा के सदस्य चुने गए। 1980 से 1986 तक वे भाजपा के अध्यक्ष रहे। 1996-97 में लोकसभा में विपक्ष के नेता रहे।

एक परिचय

अटल बिहारी वाजपेेयी के पिता एक कवि और स्कूल अध्यापक थे। अटल ने शुरूआती स्कूली शिक्षा ग्वालियर के सरस्वती शिशुमंदिर स्कूल में ली। इसके पश्चात वे विक्टोरिया कालेज में पढ़े। इस कालेज का नाम अब लक्ष्मीबाई रख दिया गया हैै। उन्होंने एमए राजनीतिक विज्ञान में कानपुर के एंग्लो-वैदिक कालेज से की। वे 1939 में राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ (आरएसएस) में शामिल हो गए। वे 1947 में उनके प्रचारक बन गए। उन्होंने मासिक पत्रिका ‘राष्ट्रधर्मÓ में भी काम किया। इसके अलावा वे हिंदी पांचजन्य, डेली स्वदेश, और वीर अर्जुन से भी जुड़े। उन्होंने सारी उम्र विवाह न करने की ठानी।

वाजपेयी ने अपना राजनैतिक जीवन एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में शुरू किया। बाद में वे जनसंघ में शामिल हो गए। उस समय डाक्टर श्यामाप्रसाद मुखर्जी उनके प्रमुख थे। बाद में वाजपेयी उत्तरप्रदेश के लिए उत्तरी क्षेत्र के इंचार्ज बना दिए गए। 1968 में वे जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। नानाजी देशमुख, बलराज मधोक व लालकृष्ण आडवाणी के सहयोग से वे पार्टी को नई ऊंचाइयों पर ले गए।

अटल बिहारी वाजपेयी ने जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति आंदोलन में बढ़ चढ़ कर भाग लिया। जब 1955 में देश में ‘इमरजेंसीÓ लगी तो भी वे उसके विरोध में उतरे। 1977 में जनसंघ जनता पार्टी का एक हिस्सा बन गई। यह पार्टी इंदिरा गांधी के खिलाफ कई दलों ने मिल कर बनाई थी।

कांग्रेस की 1977 में हार के बाद मोरारजी देसाई के नेतंृत्व में जनता पार्टी ने सत्ता संभाली तो वाजपेयी केंद्रीय मंत्री बनाए गए। उन्हें विदेश मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया। विदेश मंत्री के तौर पर वे पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र की जनरल एसेंबली में हिंदी में भाषण दिया। पर उनका यह मंत्रालय लंबा नहीं चला। प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने 1979 में इस्तीफा दे दिया। वाजपेयी ने तब तक खुद को एक राजनैतिक नेता के रूप में स्थापित कर चुके थे।

वाजपेयी ने 1980 में लालकृष्ण आडवाणी, भैरो सिंह शेखावत और दूसरों के साथ मिल कर भारतीय जनता पार्टी का गठन कर लिया। वाजपेयी ने आपरेशन ब्लू स्टार का समर्थन नहीं किया और 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिखों का जो कत्लेआम हुआ उसका उन्होंने डट कर विरोध किया। भाजपा को 1984 के चुनाव में लोकसभा की मात्र दो सीटें ही मिली। इसके बाद भाजपा लगातार ऊपर ही जाती रही। यहां तक की 1996 में वे पहली बाद देश के प्रधानमंत्री बन गए। 2004 में चुनावों में हार के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीति को भी अलविदा कह दिया।