आरएसएस में आ रहा खुलापन

नई दिल्ली में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने अपने तीन दिन के प्रबोधन में जो कहा उससे बड़ी संख्या में लोगों में बेचैनी दिखने लगी है। उन्होंने जोरदार तरीके से कहा कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) को ज्य़ादा खुला होना चाहिए। उन्होंने कांग्रेस पार्टी की तारीफ की और कहा कि हिंदू राष्ट्र का मतलब यह कतई नहीं है कि देश में मुस्लिम नहीं रहेंगे। उन्होंने कई मुद्दों पर अपनी बात रखी कि आरएसएस भाजपा से दूरी रखते हुए भी उस पर नियंत्रण रखता है। उन्होंने कट्टर हिंदुत्व की जगह बतौर भारतीय सभी अल्पसंख्यकों तक पहुंच की राह भी बताई। देश में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ यानी आरएसएस की सक्रियता के 93 साल हो रहे हैं। ऐसे मौके पर हिंदुत्व की प्राचीन संस्कृति के हिमायती कहलाने वाले संस्थान के प्रमुख सर संघ चालक मोहन भागवत ने अपने प्रबेाधन में जो बातें कहीं वे नए भारत के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के द्वार पूरे तौर पर खोलती हैं। उनके तर्कों और मुद्दों का जायजा ले रहे हैं चरणजीत आहुजा और अब्दुल वासे।

‘हम तो विश्व बंधुत्व की बात करते हैं!’

ऐसा जब भी कहा जाएगा कि मुसलमानों की भारत मेें ज़रूरत नहीं है तो हिंदुत्व ही खत्म हो जाएगा। उन्होंने कहा कि यदि कोई खुद को हिंदू की बजाए भारतीय कहलाना चाहेगा तो मैं उसकी भावना का आदर करूंगा।

उन्होंने आर्यसमाज के एक कार्यक्रम में सैयद अहमद खान के भाषण का उल्लेख भी किया। पहले मुस्लिम बैरिस्टर होने पर उनका सम्मान समारोह हुआ था। उन्होंने कहा कि खान साहब ने अपने भाषण में कहा, ‘मुझे बड़ा दुख हुआ कि आपने हमको अपने में शुमार नहीं किया। क्या हम भारत माता के पुत्र नहीं हैं? अरे इतिहास में बदल गई हमारी पूजा की पद्धति और क्या बदला है? संघ प्रमुख ने कहा, अविभाजित भारत के लोगों में

1881 तक ऐसी ही भावना थी। लेकिन समय के साथ यह गायब हो गई।’ उन्होंने कहा, उसे वापस लाना पड़ेगा उसको आप-हम जैसा कहते हैं उसको, हिंदू मत कहो। आप उसको भारतीय कहो, ‘हम आपके कहने का सम्मान करते हैं।’

हम कहते हैं कि हमारा हिंदू राष्ट्र है, इसका मतलब इसमें मुसलमान नहीं चाहिए, ऐसा बिलकुल नहीं है। जिस दिन यह कहा जाएगा कि यहां मुसलमान नहीं चाहिए उस दिन वह हिंदुत्व नहीं रहेगा फिर वह तो विश्व कुटुंब की बात करता है!’ देश में अमूमन यह माना जाता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदुत्व समर्थन और दक्षिण पंथी सांस्कृतिक संस्था रही है। लेकिन नई दिल्ली के विज्ञान भवन में 19 सितंबर तक भारत का भविष्य, आरएसएस का नज़रिया, विषय पर चले अपने प्रबोधन सत्रों में जो बातें सामने आई उनसे लगा कि संघ अब समय के साथ चलने की कोशिश में है। संघ यह धारणा अब खत्म कर रहा है कि यह अल्पसंख्यक विरोधी है।

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने साफ तौर पर कहा कि सभी धर्म बराबर हैं। उन्होंने गौ सेवकों से भी कहा कि गाय के नाम पर हिंसा नहीं होनी चाहिए। इससे यह साफ है कि आरएसएस सब को साथ लेकर अब भारतीयता के रूप में अपनी भूमिका निभाने को है। उन्होंने कहा, ध्रुवीकरण के लिहाज से भाषा का प्रयोग नहीं होना चाहिए। कोई भी पार्टी यदि ध्रुवीकरण की बात करती है तो उसका समर्थन नहीं किया जा सकता। आरएसएस ने कभी हिंसा का सहारा नहीं लिया।

उन्होंने भारत की आज़ादी के आंदोलन में कांग्रेस की भूमिका को याद किया। देश में कांग्रेस के महत्व को स्वीकार किया। उन्होंने कहा कि आरएसएस कतई नहीं चाहता कि देश कांगे्रस मुक्त हो। हम लोग तो ‘सर्व लोक युक्त भारत’ वाले लोग हैं। ‘मुक्त’ वाले नहीं हैं। हम सबको साथ लेकर चलना चाहते हैं। हमारा भरोसा एकता में है। अगर विरोध है तो वह तार्किक होना चाहिए। संघ के लिए कोई पराया नहीं। जो हमारा विरोध आज करते हैं वे भी हमारे हैं। उनके विरोध से हमारी क्षति न हो इसकी भी चिंता हम ज़रूर करेंगे।

उन्होंने कहा, जब 1857 में स्वंतत्रता का संघर्ष नाकाम रहा तो देश के तब के दिग्गज नेताओं ने मिल बैठ कर समीक्षा की। उन्होंने देखा कि लोगों में राजनीतिक समझ का अभाव है। उसे पैदा करने की कोशिश की गई। कांग्रेस के जतन से सारे देश में एक बड़ा आंदोलन खड़ा हुआ। उसमें भी कई सर्वस्व त्यागी महापुरुष हुए जिनका व्यक्तित्व आज भी हमारे जीवन में पे्ररणा देता है। इसी देश में पैदा हुए वे सर्वसामान्य व्यक्ति, जिन्हें देश की स्वतंत्रता की राह पर खड़े करने का काम उस धारा ने तब किया। उनका यह बयान भाजपा की देश में कांग्रेस मुक्त मुहिम के एकदम विपरीत है। कांग्रेस के बड़े और लोकप्रिय नेताओं का संघ इसलिए भी सम्मान करता है क्योंकि कांग्रेस के जरिए भाजपा की राह बनती है। देश में जहां भी कांग्रेस कमज़ोर है वहां भाजपा हाशिए पर है। क्षेत्रीय पार्टियां हावी हैं। जैसे बिहार, आंध्र, ओडिसा आदि में।

भाजपा के कई नेताओं ने देश के संविधान को दुबारा या उसमें संशोधन की बात कई बार कही है। संघ प्रमुख ने अपने दूसरे दिन के प्रबोधन में कहा कि आरएसएस भारतीय संविधान के पक्ष में है। आरएसएस यह मानता है कि देश के सभी लोगों की इच्छा से यह बना और पारित हुआ। आरएसएस संविधान की व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित है। उन्होंने संविधान की भूमिका भी पढ़ी जिसमें ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द हैं।

उन्होंने समाज को अनुशासित रखने के साथ ही हिंदुओं को भी अनुशासित रहने पर ज़ोर दिया। ‘परीक्षा में जैसे हम सरल सवाल पहले और कठिन बाद में हल करते हैं। उसी तरह हमें पहले उन्हें अनुशासित करना होगा जो खुद को ‘हिंदू’ कहते हैं। फिर हमें शायद उनसे बात करनी पड़ेगी जो हमें अपना दुश्मन मानते हैं। हमें उनका सफाया नहीं करना है बल्कि उन्हें भी साथ रखना है। सही मायने में यही हिंदुत्व है। राम मंदिर पर संघ प्रमुख ने कहा कि केंद्र में भाजपा नेतृत्व की सरकार को साढ़े चार साल होने को आए। अब तक तो राम मंदिर बन कर तैयार हो जाना चाहिए था। एक भव्य मंदिर यदि बन गया होता तो मुसलमानों की ओर उंगली उठाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। हिंदुओं और मुसलमानों में तनाव ही नहीं रहता।

ऐसा आभास होता है कि जिस तरह संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप आदि देशों में जहां ईसाई हैं वहां सक्रिय राजनीतिक पार्टियों में अंदर ही अंदर ईसाईगत का महत्व है उसी तरह शायद संघ प्रमुख का इशारा भारतीय राजनीति में सक्रिय सभी पार्टियों में आंतरिक आधार पर हिंदुत्व को रखने पर है। कांग्रेस में थोड़ा बदलाव दिखने भी लगा है।

यह रेखांकित करते हुए कि संघ की राजनीति से दूरी है। उन्होंने भाजपा का बिना नाम लिए हुए कहा कि आरएसएस किसी भी पार्टी को कोई निर्देश नहीं देता और न उनसे यही कहता है कि वह संघ की राय या सोच पर अमल ही करें। लेकिन जब संघ को लगता है कि देशहित में कोई चीज अनुचित है तो यह अपनी राय ज़रूर देता है। उन्होंने कहा कि आम तौर पर विपक्षी दलों का यह आरोप रहता है कि भाजपा नेतृत्व की सरकारों का नियंत्रण आरएसएस के पास है। संघ प्रमुख ने कहा, वे आरएसएस के कार्यकर्ता है वे संघ से विचार लेते हैं। संघ उनकी गलतियों के प्रति सतर्क रहता है। संघ ने पिछले बीस साल के अपने काम का रिकार्ड बना कर रखा है। आरएसएस को अहमियत नहीं चाहिए। यदि देश में कोई अच्छी बात होती है तो वह साधारण लोगों के काम करने से ही होती है।

संघ प्रमुख ने कहा कि कुछ मुद्दे जिन पर हमें राय देना अनुचित नहीं जान पड़ता। हम राय ज़रूर देते हैं। ऐसे ही मुद्दों में भारत में आए घुसपैठियों का मुद्दा है।

आरएसएस के प्रमुख की बात पर तो प्रधानमंत्री ने अमल करना शुरू भी कर दिया। रांची में ‘आयुष्मान भारत’ की महती योजना का शुभांरभ करते हुए उन्होंने उपहास के तौर पर भी कांग्रेस का नाम नहीं लिया। लेकिन संघ प्रमुख के दूसरे प्रस्ताव संघ विचारों के नए स्कूल की बाते हैं। इन्हें संघ के पुराने विचारों से प्रशिक्षित कार्यकर्ता कितना अमल में ला पाते हैं यह अभी देखना है। उनमें ज्य़ादातर लोग राज्यों और केंद्र में जिम्मेदार पदों पर हैं।