अविश्वास और संदेह के बीच सबसे पहले रूस ले आया कोरोना वैक्सीन

हाल में अमेरिकी शोधकर्ताओं ने दुनिया को बताया कि औसत व्यक्ति के मन में रोज़ना कम-से-कम 6000 खयाल आते हैं। इन शोधकर्ताओं ने एमआरआई तकनीक की मदद से ऐसा तरीका ईजाद किया है, जिससे पता चलता है कि इंसान के दिमाग में कब कोई खयाल पनपता है और कब खत्म होता है? इस शोध का ज़िक्र यहाँ इस सन्दर्भ में किया जा रहा है कि बीते चार महीनों से लगभग सभी के दिमाग में अधिकतर खयालों का वास्ता कोरोना महामारी से ही होगा। लोगों का मानना है कि कोरोना महामारी के संक्रमण को रोकने के लिए मास्क, स्वच्छता, सामाजिक दूरी, वेबिनार, वर्क फ्रॉम होम (घर से काम) का अपना महत्त्व है; लेकिन कोविड-19 को हराने के लिए इसका कारगर इलाज दुनिया के पास होना चाहिए। इधर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि कोरोना वायरस का अचूक इलाज आ पाना मुश्किल है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के निदेशक टेड्रोस ऐडनम ने एक वर्चुअल प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि अभी इसका कोई रामबाण इलाज नहीं है और मुमकिन है कि आगे भी न हो। उन्होंने यह भी कहा कि हालात सामान्य होने में लम्बा वक्त लग सकता है। सभी मुल्कों से मास्क पहनने, सामजिक दूरी बनाये रखने, हाथ धोने और टेस्ट कराने जैसे कदम उठाने में सख्ती बरतने को कहा है। 11 अगस्त को रूस के राष्ट्रपति व्लीदिमीर पुतिन ने कोरोना वैक्सीन बनाने का ऐलान कर दिया। राष्ट्रपति पुतिन ने दावा किया है कि दुनिया की पहली कोरोना वैक्सीन ‘स्पुतनिक वी’ बन गयी है। उन्होंने वैक्सीन के कारगर होने पर मुहर लगाते हुए कहा कि पहला टीका उन्होंने अपनी बेटी को लगवाया है।

रूस के स्वास्थ्य मंत्री का दावा

रूस के स्वास्थ्य मंत्री मिखाइल मुराश्को ने दावा किया कि गामालेवा इंस्टीट्यूट द्वारा बनायी गयी वैक्सीन का परीक्षण पूरा हो चुका है और उसे अनुमति देने की प्रक्रिया चल रही है। गामालेवा संस्था के अधिकारियों का कहना है कि पंजीकरण के तीन से सात दिन के अन्दर यह टीका लोगों के लिए उपलब्ध होगा। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि पंजीकरण के बाद अक्टूबर माह से देश में बड़े पैमाने पर लोगों के टीकाकरण का काम शुरू किया जाएगा। वैक्सीन के लिए फंड देने वाले रूसी प्रत्यक्ष निवेश कोष के प्रमुख किरिल दिमित्रिण का कहना है कि वैक्सीन के तीसरे चरण का परीक्षण चल रहा है; लेकिन हम संतुष्ट हैं और जल्द ही वैक्सीन की अनुमति मिल जाएगी।

वैक्सीन निर्माण के लिए भारत समेत दुनिया के कई देशों से बातचीत चल रही है। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि हम हर महीने लाखों डोज तैयार करेंगे और सिन्तबर से नवंबर तक करोड़ों लोगों तक इसे पहुँचा देंगे। रूस ने तो सबसे पहले कोरोना वैक्सीन को लॉन्च करने का जो दावा किया है, उस पर दुनिया भर के वैज्ञानिकों को भरोसा नहीं है। यही नहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तो इस वैक्सीन को लेकर संदेह जताते हुए दुनिया को आगाह किया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रवक्ता क्रिस्टियन लिंडमियर ने कहा कि हमें ऐसी खबरों से सतर्क और सावधान रहना चाहिए। विशेषज्ञों और विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि वैक्सीन का तीन चरणों में मानव परीक्षण किया जाना ज़रूरी है। लेकिन रूस ने जो वैक्सीन बनायी है, उसका तीसरा मानव परीक्षण अब तक पूरा नहीं हुआ है। तीसरे चरण का परीक्षण किये बिना रूस इसे बाज़ार में उतारने की तैयार कर रहा है। लेकिन रूस के स्वास्थ्य मंत्री ने हाल ही में कहा था कि अक्टूबर से आम लोगों को वैक्सीन लगायी जाएगी और साथ-साथ तीसरे चरण का परीक्षण भी चलता रहेगा। यही नहीं जुलाई के तीसरे सप्ताह रूस से यह खबर भी आयी, जिसमें सूत्र रूस के राष्ट्रपति व्लादिमोर पुतिन, शीर्ष राजनेताओं, अधिकारियों और अमीरों को अप्रैल में ही कोरोना वैक्सीन लगा दिये जाने का दावा कर रहे हैं।

वैक्सीन को लेकर संदेह

विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रवक्ता क्रिस्टियन लिंडमियर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि अगर किसी वैक्सीन की तीसरे चरण का परीक्षण किये बिना ही उसके उत्पादन का लाइसेंस जारी कर दिया जाता है, तो इसे खतरनाक मानना ही पड़ेगा। दरअसल दुनिया में पहली कोरोना वैक्सीन तैयार करने और उसे बाज़ार में उतराने के रूस के दावों को शक की निगाह से देखा जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी वेबसाइट पर क्लीनीकल परीक्षण से गुज़र रही 25 वैक्सीन सूचीबद्ध की हैं, जबकि 139 वैक्सीन अभी प्री-क्लीनीकल स्टेज में हैं। प्रवक्ता ने स्पष्ट किया कि वैक्सीन के असरदार होने के संकेत मिलने और क्लीनिकल परीक्षण के सभी चरणों से गुज़रने में बहुत बड़ा अन्तर होता है। एक सुरक्षित वैक्सीन बनाने को लेकर कई नियम और दिशा-निर्देश बनाये गये हैं। इनका पालन करना बहुत ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया से हमें यह भी पता चलता है कि क्या किसी इलाज या वैक्सीन के साइड इफेक्ट हैं या फिर कहीं इससे फायदे के बजाय नुकसान तो नहीं हो रहा है। रूस सुरक्षित वैक्सीन बनाने के लिए बनाये गये नियमों और दिशा-निर्देशों का पालन नहीं कर रहा है। ब्रिटेन ने 5 अगस्त को कहा कि वह रूस से वैक्सीन नहीं लेगा। टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, इतनी तेज़ी से परीक्षण और स्वीकृति की प्रक्रिया के लिए आवेदन पर ब्रिटेन को शक है। दलील यह दी जा रही है कि जब बड़े सारे निर्माता अगले साल वैक्सीन तैयार होने की बात कर रहे हैं, तो रूस इतनी जल्दी वैक्सीन कैसे लॉन्च कर सकता है। गौरतलब है कि ब्रिटेन से पहले अमेरिका ने रूस की वैक्सीन लेने से इन्कार कर चुका है।

अमेरिका नहीं लेगा संदिग्ध वैक्सीन

अमेरिका के महामारी विशेषज्ञ एंथनी फॉसी ने कहा था कि वह रूस और चीन दोनों से ही वैक्सीन नहीं लेंगे; क्योंकि दोनों ही देशों ने इस बारे में पारदर्शिता नहीं बरती है। दुनिया कोरोना से क्यों डरी हुई है? आँकड़े इसकी तस्दीक करते हैं। इस महामारी ने अब तक सात लाख से अधिक लोगों की जान ले ली है। इस हिसाब से हर 15 सेकेंड में एक मरीज़ की मौत हो रही है। सर्वाधिक मौतें अमेरिका, ब्राजील, भारत और मैक्सिको में हुई हैं। कोरोना पीडि़तों की मौत की इतनी भयावह संख्या के साथ ही साथ मौत के बाद उनके साथ कैसा व्यवहार किया जाता है? ये खबरें अन्दर तक हिला देती हैं। इससे भी उनके परिजन बहुत दु:खी हैं। इसके अलावा मौतों की संख्या ने कई देशों में अन्तिम संस्कार तक का तरीका बदल दिया है। अमेरिका जहाँ सबसे अधिक मौतें हो रही हैं। वहाँ लोग दफनाने की बजाय दाह संस्कार को तरजीह दे रहे हैं, ताकि परिजनों की राख को ताउम्र अपने पास रख सकें या बाद में पूरे तौर तरीके से उनकी विदाई कर सकें। ब्राजील जो मौतों के आँकड़ें के मामले में दूसरे नम्बर पर है, वहाँ अपने तरीके से अन्तिम संस्कार करने की तो छूट है; लेकिन इसके लिए 10 मिनट का समय तय है। परिजनों का कहना है कि इतने वक्त में वे अपनों को आखरी वक्त देखकर ठीक से रो भी नहीं सकते। कोरोना के कारण लोगों में अवसाद बढ़ा है। करोड़ों बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। घर से काम करने ने भी कई समस्याओं को बढ़ाया है। लॉकडाउन में महिलाओं, बच्चों के खिलाफ हिंसा में वृद्धि हुई है। प्रवासी मज़दूरों की पीड़ा ने सरकारी तंत्र की पोल खोल दी। अर्थ-वयवस्था की हालत क्या है, सब जानते हैं। लिहाज़ा दुनिया इस महामारी को हराने के लिए और ज़िन्दगी को पटरी पर लाने के लिए कोरोना वैक्सीन के आने का बेसब्री से इंतज़ार कर रही है। इस बीमारी से सात लाख से अधिक मौतें हो चुकी हैं। वैश्विक अर्थ-व्यवस्था में 2020 के पहले छ: महीनों में 8 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। इस परिदृश्य में वैज्ञानिक इसका कारगर इलाज ढूँढने में तेज़ी से काम कर रहे हैं। जैसे-जैसे वैक्सीन के काम में प्रगति हो रही है, वैसे-वैसे राष्ट्रों के बीच वैक्सीन की अधिक-से-अधिक डोज हासिल करने की होड़ भी हो रही है। इस समय दुनिया भर में 150 कोरोना वैक्सीन पर काम हो रहा है। इनमें से छ: अन्तिम दौर में हैं। अमेरिका की मॅाडर्न इंक का मानव परीक्षण तीसरे चरण में है। अमेरिका जर्मनी कम्पनी फाइजर तीसरे चरण की इजाज़त मिलने का इंतज़ार कर रही है। चीन की सिनोवैक बायोटेक कम्पनी का वैक्सीन परीक्षण के अन्तिम चरण में है। ऑक्सफोर्ड वैक्सीन का दूसरे चरण का परीक्षण खत्म हो गया है।

वैक्सीन परीक्षण को भारत तैयार

गौरतलब है कि ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा तैयार कोरोना के टीके को भारत ने मानव परीक्षण की इजाज़त दे दी है। देश की कम्पनी सीरम इंस्टीट्यूट ने चरण-2 और चरण-3 के परीक्षणों के लिए मंज़ूरी हासिल कर ली है। भारत में यह तीसरी वैक्सीन है, जिसे मानवीय परीक्षण की मंज़ूरी मिली है। भारत बायोटेक और कैंडिला के दो वैक्सीन का परीक्षण पहले से ही जारी है। इन दोनों कम्पनियों के परीक्षण का पहला चरण पूरा हो गया है और दूसरा शुरू हो गया है। वैक्सीन पर शोध के लिए कई अमीर मुल्कों की सरकारों ने 74 हज़ार करोड़ से अधिक खर्च किये हैं। कई मुल्कों ने वैक्सीन की करीब चार अरब खुराकें पहले से ही खरीद ली हैं। ऐसा अनुमान है कि इनकी डिलिवरी अगले साल के अन्त तक हो जाएगी। लेकिन यहाँ पर कई सवाल भी साथ-साथ चल रहे हैं। क्या सभी वैक्सीन, जिन पर काम हो रहा है; सफल होंगी? शोधों की रिपोट्र्स बताती हैं कि यदि 10 या इससे अधिक वैक्सीनों का विकास हो रहा है, तो उनमें से केवल एक के असरकारक होने के 90 फीसदी आसार हैं। यह भी कहा जा रहा है कि जिन वैक्सीन का परीक्षण हो रहा है, उनके विफल होने की सम्भावना 20 फीसदी है। कुछ वैक्सीन पूरी सुरक्षा नहीं दे पाएँगी। कोरोना के इलाज के लिए वैक्सीन की एक डोज प्रभावशाली नहीं होगी। ऐसे में कई खुराक लेनी पड़ सकती हैं। वैक्सीन के सभी परीक्षण सफल होने के बाद जब उसे आम लोगों के लिए बाज़ार में उपलब्ध कराने के वास्ते उसके उत्पादन व आम लोगों तक किफायती कीमत पर उपलब्ध होने वाले बिन्दु अहम हैं। कई विशेषज्ञ बताते हैं कि अगले साल के अन्त तक दो अरब खुराकों की ही बिक्री हो पायेगी। वायल, सिरिंज और ज़रूरी केमिकल्स की कमी सामने आयेगी। इस कमी से निपटना एक बहुत बड़ी चुनौती होगी। इसके अलावा अमेरिका, चीन, रूस जैसे मुल्क अपने यहाँ बनी वैक्सीन पहले अपने नागरिकों को देंगे। इसके बाद दूसरे मुल्कों में सप्लाई होगी। जहाँ तक गरीब मुल्कों और वंचित तबकों के बच्चों को कोरोना वैक्सीन मुहैया कराने का सवाल है, वहाँ बिल एंड मेंलिडा गेट्स फाउडेशन मदद के लिए आगे आया है। वैक्सीन के लिए गठित ग्लोबल एलायंस फॉर वैक्सीन एंड इम्युनाइजेशन (गावि एलायंस) संस्था और गेट्स संस्था ने पुणे की सीरम इस्ंटीट्यूट ऑफ इंडिया के साथ गठजोड़ का ऐलान किया है। इसके तहत कम्पनी कम आय वाले मुल्कों के लिए 10 करोड़ डोज बनायेगी। वैक्सीन पहले किसे दिया जाएगा, इसे लेकर आम राय यह बनती नज़र आ रही है कि सबसे पहले फ्रंटलाइन वाले स्वास्थ्यकर्मियों को ही दी जाएगी; ताकि वे स्वस्थ व सुरक्षित रहें और दुनिया को स्वस्थ व सुरक्षित रखने में उनका योगदान बराबर बना रहे।