विधायक कुलदीप बिश्नोई को जब कांग्रेस ने धक्का दिया, तो भाजपा ने लगा लिया गले
तत्कालीन कांग्रेस के विधायक कुलदीप बिश्नोई का ट्वीट कि ‘फन कुचलने का हुनर आता है मुझे, साँप के ख़ौफ़ से जंगल नहीं छोड़ा करते…’ बहुत कुछ कह जाता है। इसके हरियाणा के राजनीतिक गलियारों में कई मायने रहे। फन कुचलने के हुनर का तो वह दावा करते हैं; लेकिन साँप कौन? जवाब में इसे वह मुस्कुराकर टाल देते हैं कि उन्होंने किसी का नाम तो नहीं लिया। इसके आधार वह सीधे आर-पार की लड़ाई का सन्देश देते दिखते हैं और ऐसा उन्होंने कर भी दिखाया है।
राज्य की राजनीति की थोड़ी बहुत भी जानकारी रखने वाले जानते हैं कि उनका इशारा किस तरफ़ था। जिस तरफ़ था, उन्हें कांग्रेस आलाकमान मतलब गाँधी परिवार का पूरा समर्थन है। लिहाज़ा पार्टी में रहते हुए कुलदीप के लिए पानी में रहकर मगर से बैर जैसी उक्ति साबित हो रही थी। उनकी राजनीति कांग्रेस में एकला चलो जैसी रही। वह काफ़ी समय से अपने को पार्टी में सहज महसूस नहीं कर रहे थे; लेकिन अन्य कोई विकल्प भी उनके सामने नहीं थे। राजनीति में स्थितियाँ तेज़ी से बदलती हैं और कुलदीप बिश्नोई के मामले में ऐसा ही हुआ। उपेक्षा से आहत उपजी ख़ुन्नस ने उन्हें विकल्प दे दिया।
दो बार के सांसद और चार बार के विधायक कुलदीप बिश्नोई और उनकी पत्नी रेणुका बिश्नोई अब कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो चुके हैं। विधायक पद से उनका इस्तीफ़ा मंज़ूर हो चुका है। अब छ: माह के अन्दर आदमपुर उपचुनाव होगा। कुलदीप अपने बेटे भव्य बिश्नोई को मैदान में उतारने की इच्छा रखते हैं। देखना होगा कि पार्टी किसे टिकट देती है। उप चुनाव में हार जीत पर कुलदीप का राजनीतिक भविष्य तय होगा। कांग्रेस के पास खोने को ज़्यादा नहीं; लेकिन कुलदीप के लिए यह अग्निपरीक्षा जैसा होगा। भाजपा में आने के बाद कुलदीप अपने को इसमें एडजस्ट कर लें, तो यह अपने में बड़ी बात होगी। अति महत्त्वाकांक्षी कुलदीप उपेक्षा से आहत हो जाते हैं, तब वे कुछ भी सुनाने से नहीं चूकते। जहाँ अवसर मिलता है, वे उसे भुना भी लेते हैं।
अनुभवी होने के नाते वे कुछ बड़ा करना चाहते हैं; लेकिन कांग्रेस में उनके लिए ऐसी स्थिति बन नहीं पा रही है। वे उपेक्षा नहीं, बल्कि पार्टी में अहम पद चाहते हैं; लेकिन राह बनती नहीं दिख रही है। पार्टी बदलने के बाद यह स्थिति तो उनके लिए भाजपा में भी रहेगी, ऐसे में उनके लिए मुश्किलें बनी रह सकती हैं। बहरहाल उनके भाजपा में जाने से राज्य की राजनीति में किसी उलटफेर होने की सम्भावना बिल्कुल नहीं है। उनका अपने परम्परागत विधानसभा क्षेत्र आदमपुर या हिसार ज़िले के कुछ हिस्से में ही प्रभाव है। लिहाज़ा भाजपा को निकट भविष्य में इससे कोई बड़ा फ़ायदा नहीं मिलेगा, जबकि कांग्रेस को थोड़ा नुक़सान उठाना पड़ सकता है।
प्रदेश में कांग्रेस पर फ़िलहाल दो बार मुख्यमंत्री रह चुके भूपेंद्र सिंह की पकड़ है और कुलदीप के पार्टी छोडऩे से वह ज़्यादा चिन्तित नहीं है। एक तरह से कहें, तो उनकी एक बड़ी बाधा अब दूर हो गयी है। पार्टी में अब उन्हें सीधे चुनौती देने वाला गाँधी परिवार के समर्थन से राज्य कांग्रेस में उनकी ही बात सुनी जाती है। ऐसे में प्रदेशाध्यक्ष अगर उनकी पसन्द का न हो, तो उन्हें मुश्किल होती है। इसका सामना वह काफ़ी समय से कर चुके हैं। गाँधी परिवार की करीबी कुमारी शैलजा के प्रदेशाध्यक्ष रहते हुड्डा ऐसे दौर से गुज़र चुके हैं, ऐसे में अब वह अपनी ही पसन्द के नेता को चाहते हैं। उनकी यह इच्छा उदयभान के रूप में पूरी हो जाती है, क्योंकि कुलदीप तो इस कसौटी पर जरा भी खरा नहीं उतरते। उदयभान की नियुक्ति का सबसे बड़ा झटका कुलदीप बिश्नोई को लगा।
कुलदीप के मुताबिक, राहुल गाँधी ने उन्हें प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपने की बात कही थी; लेकिन उनकी जगह एक अनजान से चेहरे को दायित्व सौंप दिया। इसके बाद हुड्डा और कुलदीप के बीच जैसे 36 का आँकड़ा बन गया। दोनों एक दूसरे को अपरोक्ष तौर पर चुनौती भी देने लगे थे। भाजपा में जाने के बाद कुलदीप अब सीधे हुड्डा को चुनौती देने लगे हैं कि इस्तीफ़ा देने के बाद होने वाले आदमपुर उप चुनाव में कांग्रेस जीतकर दिखाए। यह हलका उनके पिता और राज्य के कई बार मुख्यमंत्री रहे भजनलाल का पारम्परिक हलक़ा है। दशकों से उनके परिवार का कोई-न-कोई सदस्य यहाँ से जीत हासिल करता रहा है। ऐसे में उप चुनाव में उनकी या उनके परिवार के किसी सदस्य की जीत कोई बड़ी बात नहीं होगी; लेकिन अप्रत्याशित नतीजा तो उनके राजनीतिक भविष्य पर सवालिया निशान लगा देगा।