पैसों के बदले शर्तिया नौकरी की बात सामने आने से मची खलबली
ऐसे आरोप लगते रहे हैं कि हरियाणा में आज भी सरकारी नौकरियाँ बिकती हैं। हालाँकि पहले इनकी पुष्टि नहीं हो पा रही थी; लेकिन अब पैसों के बदले शर्तिया नौकरी की बात पुष्ट हो गयी है। अब सरकार न केवल विपक्ष के निशाने पर है; बल्कि युवाओं का भरोसा चयन करने वाले आयोग से भी कुछ हद तक टूटा है। अब तक यही प्रचारित होता रहा है कि राज्य में भाजपा की सरकार बनने के बाद नौकरी मामले में खुला खेल फ़र्रूख़ाबादी वाला चलन बन्द हो गया है और अब योग्य व्यक्ति अपने बूते नौकरी पा सकता है।
अब चयन के लिए किसी सिफ़ारिश या रिश्वत की नहीं, बल्कि योग्यता साबित करने की ज़रूरत है। राज्य में नौकरी पाने के लिए पर्ची (सिफ़ारिशी पत्र) और ख़र्ची (रिश्वत) की पुरानी व्यवस्था बन्द हो गयी है। लेकिन यह बात सिर्फ़ खोखली साबित हुई।
कुल मिलाकर आया राम, गया राम की राजनीति की परम्परा वाले हरियाणा में नौकरी में योग्यता से ज़्यादा दो पैमाने- पर्ची और ख़र्ची के रहे हैं। राज्य में ऐसा भी दौर रहा है, जब चयन प्रक्रिया शुरू होने से पहले सिफ़ारिशी या पैसा दे चुके युवा को उसका सूची (मैरिट) में स्थान बता दिया जाता था और लगभग वही स्थान आता था।
हरियाणा स्टाफ सिलेक्शन कमीशन (एचएसएससी) की अपेक्षा हरियाणा लोक सेवा आयोग (एचपीएसी) की साख कुछ हद तक ठीक थी। एचएसएसपी छोटे दर्जे की नौकरियों की भर्ती करने का काम करती है, जबकि एचएसएसपी का काम श्रेणी-1 (वन ग्रेड) जैसे पदों के लिए भर्ती करना है। इसी अच्छी साख वाले हरियाणा लोक सेवा आयोग में धाँधली के ऐसे बड़े मामले का पर्दाफ़ाश हुआ है कि सरकार की साख पर बट्टा लगता नज़र आ रहा है। दरअसल स्वास्थ्य विभाग में दन्त चिकित्सक (डेंटल सर्जन) की रिक्तियाँ थीं। इन्हें भरने की प्रक्रिया चल रही थी। लेकिन जो अभ्यर्थी योग्य थे, उनके चयन के सपने को पलीता लग गया। दरअसल अन्दरखाते बड़े स्तर पर योग्यता को दरकिनार कर लाखों रुपये देने वाले वाले अभ्यर्थियों को चुने जाने का खेल चल रहा था। उधर सरकार नौकरियों में पूरी पारदर्शिता के दावे करती नहीं अघा रही थी। इधर करोड़ों के वारे-न्यारे हो रहे थे।
योग्य और सक्षम अभ्यर्थियों में से शिकायत पहुँची, जिसका सरकार ने संज्ञान लिया और त्वरित कार्रवाई कर पड़े रहस्य से पर्दा उठा दिया। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर जो चाहे दावे करें; लेकिन सरकारी नौकरियों में पारदर्शिता और योग्यता अब भी पीछे है। अलग-अलग पदों के भाव तय हैं। जो काम पहले खुलेआम होता था, अब गुप्त तरीक़े से चलता है; लेकिन होता है। इससे किसी को इन्कार नहीं होना चाहिए। अब तो मुख्यमंत्री भी शायद इस ख़ुशफ़हमी में नहीं हैं कि उनकी सरकार में भ्रष्टाचार पर शून्य स्तर (जीरो टोलरेंस) पर है और नौकरियों में पूरी पारदर्शिता बरती जा रही है।
हरियाणा लोक सेवा आयोग में उपसचिव अनिल नागर को राज्य सतर्कता विभाग की टीम ने 90 लाख रुपये लेते गिरफ़्तार किया है। टीम ने अब तक नागर समेत तीन लोगों को गिरफ़्तार करके दो करोड़ रुपये से ज़्यादा की नक़दी बरामद की है। यह पैसा दन्त चिकित्सक की भर्ती के लिए बटोरा गया था। नागर की उपसचिव पद पर नियुक्ति के बाद कई पदों पर भर्ती हो चुकी है। ज़ाहिर है उनमें भी बहुत कुछ किया गया हो। उनमें कितना माल इकट्ठा किया गया होगा यह भी जाँच के दायरे में रहेगा। सवाल यह कि क्या राज्य प्रशासनिक स्तर का एक अधिकारी ही इतने बड़े काम को अंजाम दे रहा था या फिर उसे कोई राजनीतिक संरक्षण हासिल था? इसका ख़ुलासा राज्य सतर्कता विभाग नहीं, बल्कि कोई केंद्रीय जाँच संस्था ही कर सकती है।
चयन प्रक्रिया काफ़ी लम्बी होती है और यह कई चरणों में पूरी होती है। कोई एक व्यक्ति, एक अधिकारी और कुछ दलाल इतने बड़े काम को अंजाम नहीं दे सकते। बिना राजनीतिक संरक्षण के यह सम्भव नहीं जान पड़ता। अगर पहले की तरह राजनीतिक संरक्षण की बात सामने आती है, तो यह बेहद गम्भीर मामला बनता है। लोक सेवा आयोग (एचपीएससी) स्टेट विजिलैंस विभाग ने आयोग के उपसचिव अनिल नागर समेत तीन लोगों को गिरफ़्तार कर इनके क़ब्ज़े से फ़िलहाल दो करोड़ रुपये से ज़्यादा की बरामदगी की है। इससे मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की भ्रष्टाचार पर शून्य स्तर पर और भर्ती में पारदर्शिता का दावा झूठा साबित हुआ है।
सरकारी विज्ञापनों में इसे ख़ूब प्रचारित किया जाता रहा है कि अब हरियाणा में नौकरियाँ सिफ़ारिश और पैसों से नहीं, बल्कि योग्यता के आधार पर मिलती हैं। चयन के बाद नियुक्ति पत्र सौंपने के कई कार्यक्रमों में मुख्यमंत्री बहुत गर्मजोशी से ऐसे दावा करते थे, मानो अब राज्य में नौकरी भर्ती का पुरानी व्यवस्था ख़्त्म हो गयी है। ऐसे कई कार्यक्रमों में चयनित युवाओं ने बताया कि अगर पहले जैसी व्यवस्था होती, तो उन्हें कभी नौकरी मिलने की उम्मीद नहीं थी। वे अपनी योग्यता साबित कर नौकरी हासिल कर सके हैं। उन्हें बिना किसी सिफ़ारिश या पैसे के नौकरी मिली है, जिसके लिए वे इस सरकार को बधाई देते हैं। इसके बाद मुख्यमंत्री अपने सम्बोधन में विशेषतौर पर इसे अपनी सरकार की उपलब्धि बताते, तो ऐसा लगता मानो अब सब कुछ ठीक हो गया है।