‘हम साधारण लड़कियां लड़ रही हैं अधिकारों के लिए

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की छात्राओं ने मूलभूत सुविधाओं और उनके साथ हो रहे भेदभाव के खिलाफ अपनी आवाज़ उठाई। जब वे अपनी मांगों को लेकर विश्वविद्यालय के परिसर में विरोध प्रदर्शन कर रही थीं तो उन पर लाठीचार्ज किया गया। उस समय इस विरोध को दबा दिया गया। वे सभी विश्वविद्यालय के उपकुलपति को हटाने की मांग कर रही थी।  परन्तु इतना समय बीत जाने के पश्चात् भी स्थिति वैसी ही बनी हुई है। अभी तक न तो उपकुलपति को बदला गया और न उनकी दूसरी मांगों को पूरा किया गया।  विश्वविद्यालय परिसर में लाठीचार्ज क्यों हुआ इस पर अपने अनुभव मनीषा ने जो इसी विश्वविद्यालय में बीए प्रथम वर्ष की छात्रा है रिद्धिमा मलहोत्रा और मुदित माथुर को दिए साक्षात्कार में बताए।

आप छुट्टियों में वाराणसी में क्यों रही। घर क्यों नहीं गई?

सभी छात्राओं को बिना किसी नोटिस के अचानक हॉस्टल खाली करने को कह दिया गया था। प्रदर्शन के दौरान मैं लाठीचार्ज से बचने के लिए वहां से भागी। मैं बेहोश को गई और मेरे दोस्त मुझे उठाकर ‘आपातकालिकÓ कमरे में ले गए। वहां से ‘डिस्चार्जÓ हो कर जब मैं अपने हॉस्टल वापिस लौटी तो मुझे हॉस्टल के भीतर प्रवेश नहीं करने दिया। सिर्फ उन लड़कियों को हॉस्टल से बाहर आने दिया जा रहा था जो अपना सामान लेकर घरों को जा रही थी। मैं नंगे पैर थी क्योंकि लाठीचार्ज के दौरान मेरी चप्पल कहीं छूट गई थी। मेरे सामान की बात तो छोड़ो उन्होंने मुझे मेरी चप्पल तक लेने कमरे में नहीं जाने दिया। इसलिए मैं वहीं अपनी एक मित्र केेे घर ठहर गई।

एक लड़की से छेडख़ानी के बाद इतना बड़ा विरोध प्रदर्शन क्यों हुआ?

बीएचयू में इस तरह की छेडख़ानी आम बात है। किसी लड़की से पूछा तो यह सभी के साथ होता है। इस बार एक लड़की के साथ जब्रदस्ती करने की कोशिश की गई। यह आम छेडख़ानी नहीं थी। उसे बाइक पर सवार युवकों ने हाथों से छूआ। जब उसने इसकी शिकायत की तो उलटा उसी पर आरोप लगाया गया कि वह छह बजे केे बाद बाहर क्यों घूम रही थी। इस पर लड़कियों मेें गुस्सा था। अब तो मामला अपनी हद पार कर गया था हमें कहा जा रहा था कि हम कपड़े ठीक नहीं पहनते और हम अपने लिए निर्धारित तथाकथित सीमाओं को पार करते हैं। हम अपने लिए एक सुरक्षित परिसर चाहते हैं जो हमें नहीं दिया गया।

     क्या आपने प्रशासन के साथ बातचीत कर इस मुद्दे को सुलझाने की कोशिश की?

प्रशासन लड़कियों के लिए कुछ भी करना नहीं चाहता। यहां के अफसर नारी से नफरत करने वाले हैं। हम बहुत लंबे समय से अपने लिए कुछ मूल सुविधाओं की मांग कर रहे हंै, पर उनके कान पर जूं तक नहीं रेंगती। मिसाल के तौर पर परिसर की सड़कों के कुछ हिस्सों में प्रकाश की व्यवस्था नहीं हैं,इसका लाभ उठा कर कुछ लड़के स्कूटरों और बाइक्स पर आते हैं और लड़कियों को ‘छूÓ कर छेडख़ानी कर भाग जाते हैं। अंधेरा इतना होता है कि उनकी गाडिय़ों के नंबर तक भी नहीं दिखते। पिछले सालों में ऐसी कई घटनाएं हो गई पर आज भी वहां सही रोशनी का इंतज़ाम नहीं हैं। हमने अपनी शिकायतें कई बाद अधिकारियों को की हैं, पर वे समस्या हल करने की बजाए हमें नैतिकता का पाठ पढ़ा कर वापिस भेज देते हैं।

     आप क्यों कहती हैं कि बीएचयू प्रशासन नारी विरोधी है?

इसके तो कई सबूत हैं यह जो सुविधाएं लड़कों के लिए हैं वे लड़कियों के लिए नहीं हैं। हमें लड़कों की तरह मांसाहारी भोजन नहीं दिया जाता। हमारे छात्रावासों में कफ्र्यू जैसी समयबद्धता है जबकि लड़कों पर कोई रोक नहीं। कई छात्रावासों में तो लड़कियां रात 10 बजे के बाद फोन पर बात भी नहीं कर सकतीं। कालेज प्रशासन को लगता है कि ‘वाई-फाईÓ और पुस्तकालयों की ज़रूरत केवल लड़कों को है, लड़कियों को नहीं। इस कारण ये दोनों सुविधाएं लड़कों के लिए हैं, लड़कियों के लिए नहीं। यदि लड़कियां घुटनों तक की निक्कर भी पहन लें तो वार्डन उन्हें प्रताडि़त करती है। एक बार हमारे उपकुलपति गिरीश त्रिपाठी(जो कि अब नही हैं) ने एक बैठक में कहा था कि भारतीय सभ्यता लड़कों नहीं, बल्कि लड़कियों के हाथ में है और एक आदर्श भारतीय लड़की वह है जो समझती है कि उसके भाई का भविष्य उसके अपने भविष्य से ज़्यादा महत्वपूर्ण है। क्या आप इस बयान पर विश्वास कर सकते हैं।

     क्या बाकी शिक्षक भी ऐसी बातें करते हैं?

सभी तो नहीं पर उनमें से बहुत से करते हैं और कई तो अश्लील बातें भी कर लेते हैं। कई हॉस्टल वार्डन लड़कियों को उनके कपड़ों के लिए बेइज्जत करती हंै। हमारे पुरूष दोस्तों को तो प्रताडि़त किया जाता है उनको नहीं जो लड़कियों को परेशान करते हैं। एक बार हमारे एक शिक्षक ने तो यहां तक कह दिया था कि अगर उन्हें अपन े शरीर पर हक चाहिए तो उन्हें नगें घूमना शुरू कर देना चाहिए। यहां का वातावरण लड़कियों के लिए घुटन भरा है।