हमने तहलका क्यों नहीं छोड़ा

तहलका के पूर्व संपादक तरुण तेजपाल अब अपने खिलाफ लगे आरोपों का कानूनी तरीके से सामना कर रहे हैं. शोमा चौधरी, जिन पर तरुण को बचाने की कोशिशों के आरोप हैं अब तहलका की अंग्रेजी पत्रिका छोड़ चुकी हैं. तो क्या तहलका को छोड़कर जाने का अब भी कोई औचित्य है, जैसा कि कई लोग हमें करने को कह रहे हैं. कुछ उकसा भी रहे हैं.

लेकिन हमने तहलका तब भी तो नहीं छोड़ा जब तरुण के खिलाफ कानूनी मामला चलना शुरू नहीं हुआ था और शोमा भी तहलका में थीं.

इसकी वजह थी कि तहलका की हिंदी पत्रिका का बाकी तहलका, शोमा, यहां तक कि तरुण से भी नाममात्र से भी कम का लेना-देना था. तरुण ने कुछ नितांत गैर-अनुभवी लोगों के भरोसे, उनकी जिद पर इसे शुरू करने का फैसला लेने के बाद न तो इसमें कभी हस्तक्षेप किया, न ही इसके लिए ज्यादा कुछ किया. जब हिंदी पत्रिका इसमें काम करने वालों के अनथक प्रयासों की वजह से शुरू हुई, उन सबके असीमित उद्यम से यहां तक पहुंची तो उसे किसी एक या दो व्यक्तियों के कथित निजी कृत्यों की भेंट क्यों चढ़ा दिया जाना चाहिए? जिस पत्रिका के लिए हमने दिन-रात, शनिवार-इतवार, घर-बार और बाहर से लगातार मिलते रहे प्रलोभनों को नहीं देखा, उसे इतना गैर-महत्वपूर्ण कैसे मान लें कि जैसे ही मुसीबत का पहला बादल मंडराए हम उसे अपने दिलों से निकालकर अलग कर दें?

लेकिन तहलका से गलती भी तो हुई थी. उसकी गलती वह नहीं थी जिसके आरोप तरुण तेजपाल पर लग रहे हैं. वह एक व्यक्ति की गलती हो सकती है. तहलका की गलती थी कि तरुण पर लगे आरोपों के बाद उसकी आधिकारिक प्रतिक्रिया वैसी नहीं थी जैसी होनी चाहिए थी – न तो उचित-अनुचित के पैमाने पर, और न ही विचारों की ऐसी परिपक्वता के हिसाब से जिसकी तहलका जैसी पत्रिका से उम्मीद की जाती है.

तहलका की अंग्रेजी पत्रिका की पीड़ित पत्रकार ने अपनी संपादक से दो मांगें की थीं: एक विशाखा दिशानिर्देशों के मुताबिक कमेटी बनाकर मामले की जांच की जाए और दूसरी, तरुण ऑफिस के सभी लोगों की जानकारी में उनसे माफी मांगें. यदि ये मांगे नहीं की जातीं तब भी होना यह चाहिए था कि तुरंत एक कमेटी का गठन किया जाता और तरुण को तहलका से पूरी तरह से हटने को कहा जाता. इसके अलावा पीड़ित पत्रकार से पूछकर या खुद ही, मामले को पुलिस के हवाले भी किया जा सकता था. लेकिन शायद तब कमेटी का कोई मतलब नहीं रह जाता. जांच और माफी एक साथ तार्किक नहीं कहे जा सकते थे. क्योंकि न तो माफी इतने बड़े अपराध की पर्याप्त सजा हो सकती है और न ही जांच से पहले ही किसी व्यक्ति पर माफी मांगकर अपना अपराध कबूल करने का दबाव डाला जा सकता है.

इस दौरान हमने सामूहिक इस्तीफे तक पर विचार करने के बाद इस प्रकरण से संबंधित जो भी गलत था, है उसका हर उपलब्ध माध्यम से विरोध करने और दुनिया के सामने लाने का फैसला किया. हमने तहलका की हिंदी पत्रिका में बहुमूल्य योगदान देने वाले लेखकों से अनुरोध किया कि वे पत्रकारीय मर्यादा के मुताबिक जैसा चाहें तहलका, तरुण, शोमा, हम पर या हमसे जुड़ी चीजों पर लिखें. हमने जो तहलका में गलत हुआ था उसे पुरजोर तरीके से शोमा चौधरी और अंग्रेजी पत्रिका के वरिष्ठ लोगों के सामने रखा. इस प्रकरण की जांच के लिए जो कमेटी तहलका द्वारा बनाई गई है उसका एक सदस्य मैं भी हूं.

हमने कितनी भी कोशिश क्यों न की हो तहलका की सभी शाखाएं – जिसमें तहलका हिंदी भी शामिल है – आज अपने अस्तित्व के सबसे बड़े संकट में हैं. यह संकट और गहराए या कम हो, एक बात बिल्कुल साफ है कि इसके लिए हम अपने पत्रकारीय और अन्य मूल्यों से समझौता नहीं करेंगे.

अगर कभी ऐसा करने की मजबूरी आन पड़े या हमें लगे कि हमारे पाठक अब हमारी नीयत और पत्रकारिता पर विश्वास नहीं कर पा रहे हैं तो हम समझ जाएंगे कि कम से कम हमारे लिए तहलका हिंदी का वक्त पूरा हो गया है.

8 COMMENTS

    • Tehelka ke liye kaam karne waaley naukaron ki napunsakta ka ek aur pramaan- mere dwara ki gayi Tarun ka Manmohan singh ki press confrence par sampadakiye”” chaya Veer”ki alochana ko delete kar diya gaya parantu anya alochna ko rehne diya gaya.

      Napunsako Tarun ko uske kiye ka saamna karna ke liye lalkarney himmat hai tum logo main ke shareer , budhdhi aur atma sab ka malik Tarun ko maan liya hai.

      Kayar VEer Tarun aur uske napunsak saathi jo uskey naam ki daphlee peethey hain , agar paurush hai , nidar patrakarita ka maan hai toh prashno ka saamna kariye nahi to napunsak kehlaney se parhaij mat kariye.

      Napunsak paatrakarita ki ek aur nishani , mera comment sirf isliye delete kar diya gaya kyonke wo kuch prashn utha raha tha , tarun tejpal ki maansik sadandh ke paripekshya main.

      अवसरवादी गठबंधनों ka achcha zikr kiya isme wo avsarvadita bhi shamil hia jo aapney dikhai hai essar , adani aur anya vyaparik gharano ke vigyapan chala ke aur unke khilaaf likhe lagye lekho ko pratibandhit karke.

      doosron par teeka tipanni karne ke pehle ye batiye ke मन के दर्पण में झांकने पर aapko किस तरह का अक्स नजर आएगा?

  1. aapki napunksakta appki galti hai , tejpal jaise sant bankar hamne aisa kyon kiya aur ek uncha paidaan grahan karna ye aapki sankeern mansikta ki nishani hai. agar aapki patrakarita itni sachchi, imandar aur painee hai toh aap tehelka chod kar kahin bhi ja sakte the. sach to yeh hai ke app bhi dalal hai tarun ki tarah aur bhookhe hai satta aur rajnitik dukandaaro ki najdiki ke. Aap ne tarun tejpal se juda kya kaha ya likha apni abhi tak ki patrakarita mai jo aisa dambh bhar rahey hai. apney malik ki dhapli peetney ko patrakarita mat kahiye. aur haan hamney tehelka kyon nahi choda kehne ke pehle yeh bataiye ke aapko kahan kahan patrakarita ke avsar uplapdh hain.

  2. Sanjay Ji, those who can not even write their names must not be taken seriously. Internet par aise bina naam ke ya galat naam vaale logon ka kaam hi yahi hai. kya ye 1 bhi aisa udaharan bata sakte hain jab kisi patrkar ya sampadak ne apni patrika men uske malik ke khilaf aisa sampadkiya likha ho

  3. आप तहलका काम करते रहिए. तहलका जैसी पत्रिका भारत जैसै नितांत आवश्यक है. पिछडे तबको के लिए काम करने वाली एक भी पत्रिका नही ये बडे दुख से कहना पडता है. और अब की बार तो मोदी की सरकार है. ये तो अभी और जरूरी है.

  4. आप तहलका काम करते रहिए. तहलका जैसी पत्रिका भारत जैसै देश में नितांत आवश्यक है. पिछडे तबको के लिए काम करने वाली एक भी पत्रिका नही ये बडे दुख से कहना पडता है. और अब की बार तो मोदी की सरकार है. ये तो अभी और जरूरी है.

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