हत्यारी कट्टरता
कट्टर व्यक्ति हमेशा घातक होता है। ऐसा व्यक्ति जिसके प्रति समर्पित होता है, उसके लिए न जान देने में सोचता है और न जान लेने में। वहशत उसके ख़ून में होती है। वह सोचने-समझने की क्षमता खो देता है। उसका विवेक ठीक उसी तरह मर जाता है, जिस तरह उसे अपने अस्तित्व का ज्ञान नहीं रहता। इसलिए हर कट्टर व्यक्ति ख़तरनाक हो जाता है। धर्मों में आज इसी तरह के कट्टर लोगों की भरमार है। लड़ाई-झगड़ा, ख़ून-ख़राबा इस कट्टरता का पैमाना बन चुका है। लेकिन यह कट्टर लोग इसे परम् भक्ति समझते हैं। जबकि यह सिर्फ़ दिखावा और एक ऐस भटकाव है, जिसका अन्त पतन के सिवाय कुछ नहीं है। भक्ति में तो व्यक्ति सिर्फ़ समर्पित होता है, वह अपना अस्तित्व तो मिटाने के लिए तैयार रहता है; लेकिन दूसरे को कष्ट भी नहीं पहुँचाता, उसका अस्तित्व ख़त्म करना तो दूर की बात। जबकि कट्टर लोग पहले दूसरे को कष्ट पहुँचाने और उनका अस्तित्व ख़त्म करने में विश्वास करते हैं।
दुनिया में इसी कट्टरता के चलते सबसे ज़्यादा हत्याएँ होती हैं। कट्टरपंथी जब किसी धर्म की अफ़ीम खा रहे हों, तो वे और भी ख़तरनाक हो जाते हैं। इस दौर में आतंकी संगठन इसी कट्टरता की देन हैं, चाहे वो किसी भी धर्म में पनप रहे हों। धार्मिकता और भक्ति की आड़ में ऐसी कट्टरता को बढ़ाना अब सभी धर्मों में आम बात है। कुछ लोग ख़ुद को पूज्यनीय और धनवान बनाये रखने के लिए इसे बढ़ावा दे रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि संसार के तमाम तथाकथित धर्मों में पनपे ये कट्टरपंथी अपने से विलग धर्म के लोगों के लिए ही ख़तरा हैं। ये कट्टरपंथी तो अपने धर्म के भी उन लोगों के लिए ख़तरा हैं, जो मानवतावादी हैं। दयालु हैं। इन कट्टरपंथियों को अपने धर्म के भी ऐसे लोग रास नहीं आते, जो जीओ और जीने दो की बात करते हैं। वे ऐसे मानवीय लोगों को अपने और अपने धर्म के लिए ख़तरा मानते हैं। जबकि सच्चाई यही है कि यही कट्टरपंथी लोग दूसरे धर्मों के लिए कम, बल्कि अपने-अपने धर्मों के लिए सबसे बड़ा हैं।