सोच बदलें घाटा सहते किसान

इस बार जिस तरह से पूरे देश के किसानों को बेमौसम वर्षा एवं ओलावृष्टि से हानि हुई है उससे हर किसान बेहाल है। किसानों के साथ इस तरह की प्राकृतिक घटनाएँ कोई नई बात नहीं हैं। वे हर साल कई बार ऐसी आपदाओं का आसान शिकार होते हैं। मगर इनसे बचने के उपाय किसी के पास नहीं हैं। इसीलिए कृषि को जुए की तरह ही सबसे कच्चा धंधा माना गया है। भौजीपुरा के कमुआं गाँव के मास्टर नंदराम कहते हैं कि ये भारतीय किसानों का दुर्भाग्य ही है कि कृषि प्रधान देश में सबसे अधिक हानि सहने वाले किसान हैं, जो कभी प्रकृति का प्रकोप तो कभी सरकारों के सौतेले व्यवहार का शिकार होते हैं। दिनोंदिन खेती करना महँगा होता जा रहा है एवं फ़सलों के सही दाम भी किसानों को नहीं मिलते हैं। भारत देश में सबसे अधिक मेहनती और सबसे अधिक दु:खी अगर कोई है, तो वो किसान ही हैं। मगर किसानों में भी जो समझदार हैं एवं उत्तम खेती करने वाले किसान हैं, वो सुखी भी हैं। लाभ की खेती करें किसान कृषि जानकार नरेश गंगवार कहते हैं कि यह सच है कि दुर्दिनों में सरकारें किसानों का साथ नहीं देतीं। अगर देती भी हैं, तो दिखावे भर के लिए। ऐसे में किसानों को सोचना होगा कि भले ही सरकारें किसानों के साथ न हों, मगर वे लाभ की खेती कैसे करें। क्योंकि लाभ की खेती ही अब किसानों के आँसू पोंछ सकती है। उदाहरण के लिए अगर किसान कुछ ऐसी फ़सलें उगाएँ, जो बेमौसम वर्षा होने से, सूखा पडऩे से भी ख़राब नहीं होतीं। इससे किसान पूरी तरह हानि से भले ही न बचें, मगर बहुत बड़ी हानि से बच सकते हैं। जैसे हल्दी, अलसी, लहसुन, मिर्च, अरहर, गन्ना, अदरक, सेम, बींस, ग्वार, मकई, ज्वार, तोरी, कटहल, आंवला आदि। इसी प्रकार फलों में अंगूर, आड़ू, पपीता, अनार, नींबू, अंजीर, बेर आदि। बिना फल वाली फ़सलों में  पटसन, शीशम, सागौन, महोगनी, कीकर, नीम, तुन आदि के पेड़ों को भी उगाया जा सकता है। ये सभी फ़सलें वो फ़सलें हैं, जो न तो सूखा पडऩे से ख़राब होती हैं एवं न अत्यधिक वर्षा होने से शीघ्र ख़राब होती हैं। आज देश के कई ऐसे किसान हैं, जो उत्तम एवं लाभ की खेती कर रहे हैं। आज दुनिया भर के समझदार किसान उनसे खेती-बाड़ी करने की विधियाँ सीखने जाते हैं। उत्तम खेती करने वाले ये किसान प्रति वर्ष लाखों-करोड़ों रुपये कमा रहे हैं। छोटे किसान क्या करें? किसान सदैव कहते दिखते हैं कि छोटी खेती वाले किसान दु:खी ही रहते हैं। यह सच है कि बड़ी जोत के किसान संपन्न होते हैं मगर प्राकृतिक आपदा में बड़ी जोत वाले किसानों को हानि भी बड़ी ही होती है। उनकी लागत भी अधिक लगती है। उनके पास फ़सलों की विविधता होती है, जिससे एक तरह की फ़सल में हुआ घाटा दूसरी फ़सल से पूरा हो जाता है। छोटे किसान के पास कई प्रकार की फ़सलें उगाने के भूमि नहीं है एवं एक फ़सल सदैव उसे डर में रखती है कि पता नहीं वो कब नष्ट हो जाए। छोटा किसान छोटे वेतन के कर्मचारी की तरह सदैव हिसाब जोड़ता रहता है कि इस बार अगर इतनी फ़सल हो गयी, तो वो ये काम करेगा वो काम करेगा, ये ऋण देगा, वो आवश्यकता पूरी करेगा आदि आदि। मगर कभी भी छोटा किसान अभाव की दलदल से बाहर नहीं आ पाता एवं सदैव दु:खी ही रहता है। छोटी जोत के किसान रामेश्वर कहते हैं कि किसी के पास कम भूमि हो, तो वो उसे खींचकर तो बढ़ा नहीं सकता, मगर उसमें अच्छी खेती करके लाभ कमा सकता है। रामेश्वर कहते हैं कि उनके पास मात्र चार बीघा खेत है मगर वे सब्ज़ियाँ उगाते हैं एवं उन्हें सीधे अपने हाथ से बाज़ारों में बेचते हैं। इससे उन्हें सही भाव भी मिल जाता है एवं पैसा भी हाथ में आता रहता है। वो अधिकतर दो-दो फ़सलें एक साथ करते हैं। चार बीघा खेत में चार-पांच तरह की सब्ज़ियाँ एक साथ उगाते हैं। जैविक खेती सबसे उत्तम जैविक खेती भारतीय जलवायु के लिए सबसे उत्तम होती है। जैविक खेती करने से पौधों की जड़ें भी गहरी एवं तने मोटे होते हैं, जिससे कम पानी में भी फ़सलें उगायी जा सकती हैं, अधिक पानी में भी वे ख़राब नहीं होतीं एवं आँधी में भी उनके गिरने का खतरा कम रहता है।