पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी के मुख्यमंत्री बनने के बाद नियुक्तियों को लेकर हो रही थी खींचतान, दोनों के रिश्ते पटरी पर आने से आलाकमान को हुई तसल्ली
विधानसभा चुनाव से पहले पंजाब की राजनीति दिलचस्प मोड़ ले रही है। माँगें माने जाने के बाद पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने अपने पद पर दोबारा काम करना शुरू कर दिया दिया है, जिससे आलाकमान की जान-में-जान आ गयी है। मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी पहले ही अपने मंत्रिमंडल के ज़रिये लोगों को रियायतें देने की कई घोषणाएँ कर चुके हैं।
इस तरह पंजाब में आख़िर सत्तारूढ़ दल के दोनों बड़े नेताओं- मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के बीच क़रीब दो महीने से चल रहा शीतयुद्ध ख़त्म हो गया है। कांग्रेस अब मान कर चल रही है कि चन्नी और सिद्धू की जोड़ी मिलकर राजनीतिक रूप से पंजाब में कांग्रेस को दोबारा सत्ता में ले आएगी। पार्टी को यह भी महसूस हो रहा है कि बतौर मुख्यमंत्री दो महीने के कम समय में भी जनहित में काम करके चन्नी अपनी अलग छवि बनाने में सफल दिख रहे हैं।
चन्नी-सिद्धू के बीच जंग ख़त्म होने से कांग्रेस को लग रहा है कि सिद्धू के प्रदेश अध्यक्ष के रूप से अब काम सँभाल लेने से अब संगठन की सक्रियता में तेज़ी आएगी; जबकि चन्नी सरकार पहले से ही सक्रिय है। अब तक चन्नी सरकार ने कई बड़े फ़ैसले लिये हैं। कांग्रेस महसूस कर रही है कि चुनाव से पहले दोनों में तनाव ख़त्म होना पार्टी के लिए सुकून वाली ख़बर है।
चन्नी सरकार बनने के बाद हुए कुछ फ़ैसलों से सिद्धू नाराज़ थे। इसका कारण यह था कि जो वादे पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने किये थे, उनमें से कई पर कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार के समय में अमल नहीं हुआ। कुछ ऐसे फ़ैसले या नियुक्तियाँ भी थीं, जिनसे सिद्धू इसलिए असहमत थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि इससे जनता में ग़लत संकेत जाएगा।
यहाँ यह बताना भी ज़रूरी है कि बतौर मुख्यमंत्री चन्नी ने अपने फ़ैसलों पर दृढ़ता दिखायी और कभी नहीं लगा कि वे किसी के दबाव में काम कर रहे हैं। इसकी उनकी छवि एक प्रशासक के रूप में भी मज़बूत बनी है। भले डीजीपी के बाद अब अधिवक्ता जनरल एपीएस देओल का इस्तीफ़ा मंज़ूर कर लिया गया है; पर इसे पार्टी हित में किया फ़ैसला माना जा सकता है, न कि किसी दबाव में। हालाँकि इन फ़ैसलों से यह अवश्य ज़ाहिर हुआ है कि चन्नी के राहुल गाँधी के काफ़ी क़रीब होने के बावजूद सिद्धू भी दोनों युवा गाँधी नेताओं के क़रीब हैं और उनकी बात सुनी जाती है। चन्नी और सिद्धू विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद के सबसे बड़े दावेदार हैं। सिद्धू को लेकर तो पंजाब कांग्रेस के पिछले प्रभारी हरीश रावत ने चन्नी के मुख्यमंत्री बनने के बाद यह तक कह दिया था कि उनके नेतृत्व में ही कांग्रेस अगला चुनाव लड़ेगी। हालाँकि यह भी सच है कि चन्नी पिछले क़रीब दो महीने में अपनी अलग छवि गढऩे में सफल रहे हैं, जिससे उनका राजनीतिक कौशल झलकता है।
तनातनी के दो बड़े मुद्दों- एडवोकेट जनरल और डीजीपी की नियुक्तियाँ तनाव का बड़ा कारण बनी हुई थीं। डीजीपी के पद पर इकबाल प्रीत सिंह सहोता को हटाने की सिद्धू की माँग को स्वीकार करते हुए चन्नी ने पहले ही यूपीएससी से पैनल मिलते ही नये डीजीपी की नियुक्ति की बात कह दी थी। इस तरह ये मसले अब हल हो गये हैं। मुख्यमंत्री चन्नी और सिद्धू के बीच लगातार दो सुलह बैठकों के सकारात्मक नतीजे सामने आये; मुख्यमंत्री चन्नी ने बताया कि अटॉर्नी जनरल देओल का इस्तीफ़ा मंज़ूर कर लिया गया है, पंजाब पुलिस के नये डीजीपी की नियुक्ति भी यूपीएससी पैनल के मिलते ही हो जाएगी।
नरम हुए सिद्धू
पंजाब विधानसभा में तीन कृषि क़ानूनों के खिलाफ प्रस्ताव पास करने को लेकर काफ़ी हंगामा हुआ। इस दौरान पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को लेकर नवजोत सिंह सिद्धू के सुर बदले हुए नज़र आये। सिद्धू ने तीन कृषि क़ानूनों के लिए अकाली दल को ज़िम्मेदार ठहराया। साथ ही सिद्धू का कहना था कि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने किसानों के लिए अच्छा काम किया।
सदन की कार्रवाई के दौरान सिद्धू ने अकाली दल पर जमकर हमला बोला। पंजाब विधानसभा में सन् 2013 के कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग एक्ट के ख़िलाफ़ भी नया क़ानून लाया गया है। सिद्धू ने कहा- ‘तीन कृषि क़ानूनों को लाने के लिए अकाली दल ज़िम्मेदार है। अकाली सरकार सन् 2013 में कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग को लेकर क़ानून लायी। भाजपा की केंद्र में सरकार भी वैसा ही क़ानून लायी है।’
सिद्धू ने इस दौरान दावा किया कि कांग्रेस किसानों के लिए काम करती है। मनमोहन सरकार ने किसानों का 72,000 करोड़ रुपये का क़र्ज़ माफ किया। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पंजाब का मुख्यमंत्री रहते हुए किसानों का क़र्ज़ माफ़ किया। अमरिंदर सिंह ने कई अच्छे काम भी किये। पंजाब में पानी को लेकर क़ानून लाया गया।
यह पहला मौक़ा था, जब सिद्धू इस तरह से कैप्टन अमरिंदर सिंह की तारीफ़ करते नज़र आये। इससे पहले सिद्धू ने अमरिंदर सिंह पर बेअदबी के मामले में कार्रवाई नहीं करने के आरोप लगाये थे और भाजपा के साथ मिले होने के आरोप भी लगा दिये थे। सिद्धू के साथ तकरार के चलते ही अमरिंदर सिंह को सितंबर में मुख्यमंत्री की कुर्सी गँवानी पड़ी।