‘सरकार’ के सहारे बेड़ा पार!

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झारखंड में शिबू सोरेन की हैसियत से हर कोई वाकिफ है. उनका दल झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) राज्य का प्रमुख दल है. पिछले कुछ समय से वह ढलती उम्र और पार्टी पर घटते नियंत्रण को लेकर चिंतित थे. इस बीच बेटे हेमंत सोरेन को राज्य के मुख्यमंत्री की गद्दी मिलने से उनकी चिंता कुछ हद तक दूर हुई है, लेकिन यह राहत अस्थायी भी हो सकती है. उसकी पर्याप्त वजहें मौजूद हैं.

शिबू एक बार फिर सक्रिय हो गए हैं. हेमंत के मुख्यमंत्री बनने के बाद बंगाल के सिलिगुड़ी में एक सभा में उन्होंने कहा, ‘आदिवासियों के लिए एक अलग राज्य चाहिए, वैसा राज्य, जो आदिवासी बहुल हो और इसमें बंगाल, झारखंड, उड़ीसा आदि के आदिवासी इलाके शामिल हों.’ विश्लेषकों के मुताबिक शिबू के बेटे के मुख्यमंत्री बनने के बाद पार्टी की साख दांव पर लग गई है और इसीलिए वह आदिवासी राज्य का अपना राजनीतिक हथियार इस्तेमाल कर रहे हैं ताकि पार्टी के मूल मतदाताओं को जोड़े रख सकें.

अहम सवाल यह है कि क्या यह सरकार अपने कार्यकाल को पूरा करेगी. झामुमो के नेतृत्व में सरकार बनवाने और हेमंत को मुख्यमंत्री पद पर बिठाने के लिए कांग्रेस आगे आई है. उसका साथ लालू प्रसाद की पार्टी राजद और निर्दलीय विधायकों ने दिया है. सरकार को 43 विधायकों का समर्थन है. इसमें झामुमो के 18, कांग्रेस के 13, राजद के पांच, वाम विचारधारा आधारित पार्टी मार्क्सवादी समन्वय समिति के एक और छह निर्दलीय विधायक हैं. राज्य में निर्दलीय विधायकों के नखरे और कारनामे किसी से छिपे हुए नहीं हैं. इस बार हेमंत को पूर्व मंत्री हरिनारायण राय, एनोस एक्का जैसे वे निर्दलीय विधायक भी समर्थन दे रहे हैं जो पहले से खासे चर्चित हैं. हेमंत ने सरकार बनाने के लिए अब तक पुलिस की नजर में फरार चल रहे विधायकों सीता सोरेन, नलिन सोरेन और हत्या के आरोप में जेल की सजा काट रहे कांग्रेसी विधायक सावना लकड़ा के वोट का भी बंदोबस्त किया.

हालांकि सरकार का कुछ दिन चलना तय है क्योंकि कांग्रेस की मंशा लोकसभा चुनाव तक सरकार चलाने की होगी. लेकिन इससे झामुमो को क्या हासिल होगा? जानकारी के अनुसार कांग्रेस ने सरकार बनवाने के लिए यह शर्त भी रखी है कि वह 14 में से 10 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी. इससे असंतोष पनपना तय है. हेमंत को उम्मीद है कि लोकसभा चुनाव में वे कांग्रेस के छोटे भाई की भूमिका में होंगे तो विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उन्हें बड़े भाई की भूमिका में आने देगी. लेकिन यह सब तब होगा, जब लोकसभा चुनाव में झामुमो के सहयोग से कांग्रेस कोई करिश्मा कर पाएगी, वरना पहली गाज सरकार पर ही गिरनी है. प्रदेश भाजपा अध्यक्ष रवींद्र राय कहते हैं, ‘हेमंत को सत्ता की भूख ज्यादा हो गई थी. इसका फायदा कांग्रेस ले रही है. पहली बार हो रहा है कि राष्ट्रपति शासन के बाद जोड़-तोड़ से सरकार बन रही है. कांग्रेस को लोकसभा तक जाना है. हेमंत मोहरा बने हैं, जिसका इस्तेमाल कांग्रेस करेगी लेकिन वह भी दस सीटों का सपना ही देख रही है’.

हेमंत की सरकार बनवाने में वाम विचारधारा की पार्टी मार्क्सवादी समन्वय समिति यानी मासस के इकलौते विधायक अरूप चटर्जी भी समर्थन कर रहे हैं. मासस धाकड़ वामपंथी एके राय द्वारा स्थापित पार्टी है. राय एक समय में शिबू के मार्गदर्शक हुआ करते थे और मूल्यों की राजनीति के लिए जाने जाते हैं. सूत्रों के मुताबिक राय सरकार को समर्थन देने के लिए कतई तैयार नहीं थे लेकिन अरूप इसके लिए सहर्ष तैयार हो गए. अरूप तर्क गढ़ते हैं कि लाल और हरे झंडे का झारखंड में पुराना इतिहास है तथा एके राय और शिबू सोरेन साथ-साथ ही राजनीति करते रहे हैं. हालांकि इसी सवाल पर भाकपा माले के विधायक विनोद सिंह कहते हैं कि यह सरकार अनैतिक तरीके से बन रही है और हमारी पार्टी इसके पक्ष में नहीं है.

इस बीच राज्य में सरकार बनने के दुष्प्रभाव नजर आने लगे हैं. साफ संकेत हैं कि कांग्रेस हेमंत को मुख्यमंत्री बनाकर दिल्ली से झारखंड की सत्ता चलाएगी और जो शेष हिस्सा झारखंड से संचालित होगा उसमें कई सुपर सीएम होंगे. निर्दलीय हमेशा सत्ता के केंद्र बनते हैं, इस बार नहीं बनेंगे, ऐसा नहीं कहा जा सकता. कांग्रेस नेता राजेंद्र सिंह के पुत्र अनूप सिंह महत्वाकांक्षी हैं और हालिया दिनों में प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में लाठी-डंडा चलाने की वजह से चर्चित रहे हैं. जाहिर है कि जब इन सबका वर्चस्व रहेगा तो झामुमो में बेचैनी बढ़ना तय है.