दिदेश की राजनीति का स्तर दिन-ब-दिन गिरता जा रहा है। लोग अब राजनीति में दिलचस्पी ले ज़रूर रहे हैं; लेकिन उनका मोहभंग भी राजनीति से ही हो रहा है। आजकल लोग जब भी कहीं राजनीति की चर्चा करते हैं, तो उनमें एक ग़ुस्सा होता है। मौज़ूदा केंद्र सरकार की नीतियों का विरोध भी इसी तरह बढ़ता जा रहा है। हाल यह है कि जन-आक्रोश सड़कों पर देखने को मिल रहा है। इस बारे में ‘तहलका’ संवाददाता को कई राजनीतिक विश्लेषकों और जानकारों से लेकर जनता ने अपने मन की बात बतायी।
लोगों का कहना है कि देश में चाहे कांग्रेस की सरकार रही हो, अन्य दलों की सरकार रही हो या अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार हो; सभी ने कुछ-न-कुछ ऐसा किया है, जिसका विरोध जनता ने किया है। लेकिन मौज़ूदा सरकार का जिस क़दर विरोध देखने को मिल रहा है, उतना विरोध किसी सरकार को देखने को नहीं मिला है। हाल यह है कि भाजपा का नाम आये या भाजपा सरकार का उस सबमें मोदी का ही नाम हो रहा है और मोदी को ही बदनामी मिल रही है। अगर कोई काम अच्छा होता है, तो समर्थक मोदी की ही तारीफ़ करते हैं, चाहे वो भाजपा शासित किसी भी राज्य में काम हुआ हो। ऐसे ही अगर कोई काम ख़राब होता है, तो विरोधी, जिसमें आम लोग भी बड़ी संख्या में अब हो गये हैं; मोदी का ही होता है। यानी अब भाजपा शासन में तारीफ़, रोष, विरोध का केंद्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हो चुके हैं।
राजनीतिक विश्लेषक एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. हंसराज का कहना है कि सन् 2019 में शाहीन बाग़ में एनआरसी सहित सीएए क़ानून के विरोध में जमकर मोदी सरकार की नीतियों के ख़िलाफ़ महीनों तक धरना-प्रदर्शन चलता रहा है। लेकिन अचानक 2020 में कोरोना वायरस के कहर के चलते शाहीन बाग़ का विरोध-प्रदर्शन समाप्त हो गया। फिर कोरोना वायरस के बीच ही केंद्र सरकार तीन कृषि क़ानून ले लायी, जिनका किसानों ने जमकर विरोध किया। सरकार की किसान विरोधी नीतियों के विरोध में यह आन्दोलन एक साल से अधिक चला।
इस आन्दोलन को ख़त्म करने के लिए सरकार ने किसानों की आधी-अधूरी माँगों को मानकर बाक़ी माँगें जल्द पूरी करने का वादा कर दिया और जैसे-तैसे आन्दोलन ख़त्म कराया। हालाँकि किसानों में रोष है कि सरकार ने उनकी माँगें पूरी नहीं कीं। किसान के आन्दोलन जब स्थगित हुआ, तो लोगों ने सोचा कि सरकार अब कोई ऐसा क़दम नहीं उठाएगी, जिससे लोग फिर से विरोध-प्रदर्शन करें। लेकिन अब अग्निपथ योजना को लेकर जिस तरह देश भर आगजनी और हिंसा हुई है, उससे पूरे देश को कई दिनों तक बड़ा हिंसक आन्दोलन झेलना पड़ा। इससे देश की निजी सम्पत्ति का करोड़ों रुपये का नुक़सान हुआ है। प्रो. हंसराज का कहना है कि सरकार जिस तरह से अपनी मर्ज़ी से नये अंदाज़ में नये क़ानून व योजनाएँ ला रही है, उससे जनाक्रोश तो बढऩा लाज़मी है।
अग्निपथ योजना के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन ठीक से थमा नहीं, तब तक महाराष्ट्र सरकार को लेकर सियासी ड्रामा शुरू हो गया। महाराष्ट्र मामले में भले ही भाजपा ने कुछ नहीं कहा; लेकिन देश की जनता यही मान रही है कि केंद्र सरकार इशारे के बिना यह सब सम्भव नहीं हो सकता। दिल्ली की राजनीति के जानकार सुरेश सिंह का कहना है कि मौज़ूदा सरकार की राजनीतिक दलों में ही नहीं, बल्कि आमजन में यह पहचान बनती जा रही है कि जो दल या अधिकारी सरकार के अनुसार नहीं चलते हैं, उनके ख़िलाफ़ ईडी और सीबीआई की छापेमारी सहित अन्य प्रकार के क़ानूनी डंडे चलने लगते हैं। यह सरकार की हेकड़ी को दिखाती है।