
कई या उससे भी ज्यादा बार असाधारण लगने वाले व्यक्तियों के ऐसा बनने के पीछे उनकी कम और असाधारण परिस्थितियों की भूमिका ज्यादा होती है.
मोदी जिस तरह के विकास और सुशासन आदि के दम पर – अपने खिलाफ लगते रहे तमाम आरोपों के बाद भी – यदि राजनीति में लगातार आगे बढ़ते दिख रहे हैं तो इसका श्रेय केंद्र की यूपीए सरकार को भी जाता है. अनिर्णय, अराजकता और भ्रष्टाचार की जो स्थिति आज देश में दिख रही है यदि वह नहीं होती तो शायद राजनीतिक जमात के बड़े हिस्से से लोगों का इस कदर मोहभंग भी नहीं होता और तब जबरदस्त प्रचार पर टिका मोदी का ‘राजसूय यज्ञ’ भी इतना आगे नहीं बढ़ा होता.
नरेंद्र मोदी को आगे बढ़ाने में जितनी उनकी, उनके प्रचार और जबरदस्त ब्रांड बिल्डिंग की भूमिका है उतनी ही राजनाथ सिंह की सीमित क्षमताओं और महत्वाकांक्षाओं की भी है. राजनाथ को पता है कि भाजपा में उनकी स्थिति मजबूत कर सकने वाले केवल दो ही घटक हैं- संघ परिवार और मोदी को उनके दिए सहारे के एवज में उन्हें मिलने वाला मोदी का सहारा. बस वे इन दोनों ताकतों का इस्तेमाल करके इतिहास को तिहराने की जुगत भिड़ा रहे हैं. उन्हें लगता है कि जिस तरह से वे दो बार अध्यक्ष बने, वक्त आने पर प्रधानमंत्री भी बन सकते हैं.
इसमें कोई शक नहीं कि मोदी आज देश के सबसे प्रभावशाली नेताओं में हैं. ऐसा मानने वालों की भी कमी नहीं कि मोदी के नेतृत्व में भाजपा देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी. लेकिन अगर सब कुछ फिट भी बैठा तो भी मोदी भाजपा को सबसे बड़ी यानी 175-180 सासंदों वाली पार्टी तो बना सकते हैं मगर खुद या गठबंधन के बूते सरकार बना सकने वाली पार्टी नहीं. इसके लिए वाजपेयी या देवेगौड़ा या गुजराल सरीखे किसी व्यक्ति की जरूरत होगी. ऐसे में राजनाथ को अपना भविष्य उज्जवल लगने लगता है. उन्हें लगता है कि अभी मोदी के विश्वासपात्र होने या दिखने का इनाम उन्हें मौका आने पर प्रधानमंत्री पद के रूप में भी मिल सकता है.