
आपने जिंदगी भर हाड़तोड़ मेहनत करके एक मकान बनाने के लिए पूंजी जमा की है. जाहिर है आप इस पैसे से मकान खरीदने में काफी सावधानी बरतेंगे. निजी बिल्डरों से यदि आप मकान खरीद रहे हैं और वह कुछ गड़बड़ करता है तो आप अपने हक और गड़बड़ी के विरुद्ध हर स्तर तक लड़ने को तैयार रहेंगे. पर यही काम कम कीमत पर मकान उपलब्ध कराने वाली सरकारी संस्थाएं करने लगें तो आप क्या करेंगे? और खास तौर पर जब आम लोगों के हिस्से के मकान मुख्यमंत्री और उनकी राजनीतिक बिरादरी को परोस दिए जाएं तो आप कहां जाएंगे?
मध्य प्रदेश में पिछले कई सालों से ऐसा ही चल रहा है. यहां सरकारी संस्था मध्य प्रदेश गृहनिर्माण मंडल आम आदमी के बजाय राजनीतिक रसूखदारों के लिए माटी मोल जमीन तो बांट ही रहा है, औने-पौने भाव में आलीशान बंगले भी बना रहा है. 1972 में बनी इस सरकारी संस्था का पहला मकसद ही यही था कि संस्था आम लोगों को कम कीमत पर आवास उपलब्ध कराएगी. लेकिन बीते सालों में इसके काम-काज पर नजर डालें तो पता चलता है कि क्या सत्ता पक्ष, क्या विपक्ष, दोनों तरफ से लोगों ने मंडल की योजनाओं से भरपूर फायदा उठाया है. इनमें खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह, आवास मंत्री नरोत्तम मिश्र, गृहनिर्माण मंडल के अध्यक्ष रामपाल सिंह राजपूत और विधानसभा अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी जैसे कई नेता शामिल हैं.
कोई तीन साल पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राजधानी भोपाल की बैरसिया रोड पर बने हाउसिंग पार्क का शिलान्यास करते हुए घोषणा की थी कि महंगाई के इस जमाने में वे गरीबों के लिए उचित मूल्य के घर बनाएंगे. किंतु भोपाल की ही रिवेरा टाउन जैसी विशेष कॉलोनियां उनकी अपनी ही घोषणा को पलीता लगाती दिख रही हैं. यदि हमें ऐसी कॉलोनियों के पीछे छिपे राजनेताओं के गोरखधंधे को समझना है तो इसकी बुनियाद में जाना पड़ेगा. गौर करने लायक बात यह है कि मध्य प्रदेश में सभी विधायकों और सांसदों को सरकारी योजनाओं के तहत मिलने वाले भूखंडों और मकानों में 20 प्रतिशत का आरक्षण पहले ही मिला हुआ है. उन्हें सरकारी आवास भी मिलता है. इसके बावजूद राज्य की भाजपा सरकार आम आदमी के नुमाइंदों के लिए अलग से और जगह-जगह कई लंबी-चौड़ी कॉलोनियां और गगनचुंबी इमारतें बनवा रही है. इसी कड़ी में उसने राजधानी भोपाल के बीचोबीच और शहर के पॉश इलाके न्यू मार्केट के पास 14 एकड़ की रिवेरा टाउन कॉलोनी में 146 बंगले बनवाए हैं. रिवेरा टाउन 2003 में मध्य प्रदेश गृहनिर्माण मंडल की बनी ऐसी कॉलोनी है जिसकी शुरुआत सरकारी कर्मचारियों और आम आदमियों को मकान देने से हुई थी. लेकिन 2006 में राज्य की शिवराज सरकार ने इसके दूसरे हिस्से को सिर्फ विधायकों और सांसदों के लिए तैयार करवाया. साथ ही उसने इसे गृहनिर्माण मंडल के सभी कायदे-कानूनों से अलग रखते हुए कई तरह की छूट भी ले लीं.
लेकिन प्रदेश की राजनीतिक बिरादरी की भूख यहीं शांत होती तो क्या बात थी. इन दिनों राजधानी भोपाल के दूसरे पॉश इलाके महाराणा प्रताप नगर से सटे रचना नगर में भी राज्य के ही विधायक और सांसदों के लिए गृहनिर्माण मंडल और एक ग्यारह मंजिला इमारत बना रहा है. एक तरह से यह कॉलोनियां बना-बनाकर मनमर्जी की जगह और मनमर्जी की कीमतों पर आवास हथियाने का खेल है. विडंबना यह है कि इस खेल में कोई विरोधी टीम भी नहीं है. विधानसभा में कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह और उनकी मित्र मंडली भी इसी खेल का हिस्सा है. (देखें बॉक्स)
दूसरी तरफ, सुप्रीम कोर्ट का साफ आदेश है कि सरकार किसी भी सरकारी योजना में भूखंड और मकान पाने के लिए 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं दे सकती. मध्य प्रदेश में विभिन्न वर्गों (अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा, विकलांग आदि) के लिए 50 प्रतिशत का आरक्षण पहले से ही था. बावजूद इसके मध्य प्रदेश ऐसा राज्य है जहां सरकार ने आरक्षण की सीमा बढ़ाते हुए विधायकों और सांसदों को 20 प्रतिशत आरक्षण दिया है. यानी आरक्षण की सीमा 70 प्रतिशत तक बढ़ना जहां सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है वहीं इतना अधिक आरक्षण देने से सामान्य लोगों के पास सरकारी लाभ उठाने का मौका घटकर एक तिहाई से भी कम रह गया है.
रिवेरा टाउन का दूसरा बड़ा गड़बड़झाला यह है कि एक ही कॉलोनी में विधायकों और सांसदों को दिए जाने वाले मकानों की कीमत सरकारी कर्मचारियों और सामान्य लोगों को दिए गए मकानों की कीमत से कई गुना कम रखी गई है. यहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह और राज्य की सियासी मंडली को महज 28 लाख रु. में मकान बांटे गए. इनमें से ऐसों को भी मकान बांटे गए जिनके पास पहले ही एक से लेकर पांच-पांच मकान और अकूत संपत्ति है. वहीं सरकारी कर्मचारियों के लिए इन मकानों की कीमत 90 लाख रु. से एक करोड़ 20 लाख रु. तक रखी गई. सवाल है कि इस कीमत का मकान किस स्तर का सरकारी कर्मचारी खरीद सकता है. राज्य के एक प्रमुख सचिव का वेतन भी इतना नहीं होता कि वह एक करोड़ रुपये से अधिक का लोन ले सके. सवाल यह भी है कि जब गृहनिर्माण मंडल सरकार की ही संस्था है और यह गरीबों को आवास देने के नाम पर सस्ते दाम पर सरकार से जमीन खरीदता है तो कैसे सत्ता के शीर्ष पर बैठे चंद लोगों को सस्ती और सामान्य लोगों को उससे कई गुना महंगी जमीन बेच सकता है.