‘सत्यमं शिवं सुंदरम के बहाने झलकी भारतीयता

हैदराबाद में आयोजित साहित्यिक समारोह ‘हिंदी साहित्य एक विहंगम दृष्टिÓ के बहाने एक ही राज्य से अलग दूसरे राज्य की व्यथा, दो बिछड़े हुए दिलों को जोड़ कर भारतीय एकता की एक मिसाल के तौर पर दिखी। प्रस्तुत किया तेलंगाना की ज़मीन से जुड़े रहे आन्ध्र में पदेन वरिष्ठ पुलिस महानिरीक्षक कुमार विश्वजीत उर्फ सपन ने। उन्होंने ‘फेसÓ बुक पर ‘सत्यमं शिवमं सुन्दरमÓ मंच की स्थापना की है और अब हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं में पर देश भर के विभिन्न साहित्यकारों के आए विचारों को संग्रहीत करके, पुस्तक का रूप दे दिया है।

जिसका विमोचन हैदराबाद के गैं्रड होटल के सभागार में पिछले दिनों कवि गिरेन्द्र सिंह मदारिया ने किया। इस अवसर पर फेसबुक के रचनाकार साथियों में हरीओम श्रीवास्तव, विनोद सिंह नामदेव, श्रीकृष्ण बाबू, गुरुचरण मेहता, आदित्य कुमार तायल,ज्योत्सना सक्सेना, विश्वजीत सागर शर्मा, ब्रजनाथ श्रीवास्तव आदि थे।

विश्वजीत ‘सपनÓ ने आयोजन को संचालित भी किया। इन अवसर पर मंच से अपना संदेश देते हुए कवियित्री अहिल्या मिश्र ने खुद को विश्वजीत के साथ प्रांतीय संबंधों को जोड़ते बताया कि ‘मैं भी बिहारी हूं।Ó साहित्य संदर्भों को जताते हुए विश्वजीत सपन ने साफ कहा था कि मेरी दृष्टि में हर रचनाकार जब रचना करता है तो वह उसे बांटना नहीं चाहता। दु:ख पाकर दु:ख की आंच को समझना और उस आंच में तपते हृदयों के साथ ‘समवेदनाÓ स्थापित करना अलग बात है।

आन्ध्र से तेलंगाना का बंटवारा जब हुआ तो लगभग लाटरी से अधिकारियों का भी राज्यों में बंटवारा कर दिया गया। मंच पर जहां विश्वजीत सपन थे वहीं तेलंगाना एसआईटी की आईजी अभिलाषा थीं जो अपने नन्हे पुत्र के साथ श्रोताओं में थीं और पुत्र पिता से मिलने को आतुर हो रहा था। क्योंकि महीने में एक बार पिता के साथ बिताए क्षणों का आज वह साहित्य के बहाने आन्ध्र और तेलंगाना के साझा मंच पर साझा कर रहा था। इस दारूण क्षण को एक श्रोता अर्जुन सिंह ने भी महसूस किया। उन्होंने कहा कि बे्रेख्त के अनुसार ऐन फैसले के मौके पर ऐसे दृश्य कारुणिक बहुत हैं जो उदास भी करते हैं फिर भी यह यर्थात पूर्ण रचना और ममता का संगम है।