शपथ और कपट

क्या यह जो चल रहा है, मोदी सरकार उसे बदलने का कोई इरादा रखती है? क्या वह संस्कृत या दूसरी भारतीय भाषाओं को अंग्रेजी के मुकाबले खड़ा करके एक तरह की देशज प्रतिभा को उचित पोषण देने की सोच रही है? दुर्भाग्य से ऐसा कुछ नहीं होने जा रहा है. संस्कृत या भारतीय भाषाएं उसके लिए एक जज्बाती मुद्दा भर हैं जिनमें शपथ लेकर वह खुद को जड़ों के करीब महसूस करती है. लेकिन सच्चाई यह है कि इन जड़ों पर लगातार मट्ठा डालने की जो प्रक्रिया चल रही है, उसे वह जान-बूझ कर अनदेखा करती है. कभी हिंदी-हिंदू-हिंदुस्तान को अपना नारा बनाने वाले जनसंघ की कोख से निकली भाजपा को यह सीखने में समय लगा कि मामला सिर्फ हिंदी का नहीं, भारतीय भाषाओं का भी है, लेकिन उससे कहीं ज्यादा तेजी से उसने यह सीख लिया कि इन्हें भुलाकर अंग्रेजी को बढ़ावा देकर ही वह नई दुनिया से अपने लिए मुहर हासिल कर सकती है. सच तो यह है कि भारत का पूरा प्रशासनिक तंत्र जैसे अंग्रेजी के बिना एक कदम बढ़ने को तैयार नहीं है. वह अपने प्रधानमंत्री या दूसरे मंत्रियों के लिए दुभाषिए का इंतजाम कर लेगा, उनके लिए फाइलों के हिंदी में संक्षिप्त नोट तैयार करवा लेगा, लेकिन पूरे राजकाज की भाषा बदलने को तैयार नहीं होगा.

क्योंकि ऐसा होगा तो सिर्फ भाषा नहीं बदलेगी, सारा राजकाज ही बदल जाएगा. अचानक वह विशेषाधिकार टूट जाएगा जो अंग्रेजी की आड़ में एक बहुत छोटे से तबके ने हासिल कर रखा है और जिसके बूते वह देश के सबसे ज्यादा संसाधनों पर काबिज है. सच तो यह है कि अंग्रेजी की इस भाषिक हैसियत ने भारत को एक नए उपनिवेश में बदल डाला है जिसकी प्रच्छन्न गुलामियां दिखाई नहीं पड़तीं. यह भाषिक गुलामी हमें आजादी का भ्रम देती है, लेकिन हमारे संसाधन हमसे छीन ले रही है. इन संसाधनों में हिस्सेदारी की प्राथमिक शर्त यही है कि हम अपनी भाषा की पगडंडियां छोड़ अंग्रेजी के राजपथ पर उतर आएं. यह भाषा नहीं, मनुष्य को और उसकी संस्कृति को बदलने की प्रक्रिया भी है।

इस पूरी प्रक्रिया की अनदेखी कर जो लोग सिर्फ संस्कृत में शपथ लेकर या कहीं हिंदी में भाषण देकर संतोष हासिल करते हैं या वाहवाही लूटते हैं वे दरअसल गहरे सांस्कृतिक अर्थों में बेहद नादान और उथले राजनीतिक अर्थों में बहुत सयाने लोग हैं- वे भाषाओं को मां बताते हैं और फिर मां की अनदेखी करते हैं- कहीं इस विश्वास और अभ्यास से भरे कि मां के साथ हर तरह की छूट ली जा सकती है, उसकी उपेक्षा भी की जा सकती है.

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