व्यर्थ का विरोध

इन दिनों फ़रमानी नाज़ द्वारा गाये गये भजन रूपी मंत्रों ‘हर-हर शम्भू, जय महादेवा, शिव महादेवा’ को लेकर ख़ासा हंगामा मचा हुआ है। हालाँकि असली ‘हर-हर शम्भू’ गाने वाली फ़रमानी नाज़ नहीं, बल्कि उड़ीसा की अभिलिप्सा पांडा हैं। मगर फ़रमानी नाज़ को लेकर हंगामे की असल जड़ वे उलेमा और मौलवी हैं, जो शरीअत का हवाला देकर यह रोना रो रहे हैं कि कोई मुस्लिम गीत गाये; इस्लाम में इसकी इजाज़त नहीं है। सवाल यह है कि एक कलाकार के लिए अगर इस तरह की बन्दिशें लगायी जा सकती हैं, तो फिर उन पर कितनी पाबंदियाँ लगनी चाहिए, जो यह दिखाते हैं कि वे दीन (धर्म) के पाबंद हैं? यह सवाल उन लोगों से है, जो धर्म की ठेकेदारी करते हैं और परदे की आड़ में या रात के अँधेरे में आदमीअत का चोला उतारकर हवस और हैवानियत की सारी हदें पार करने में ज़रा भी शर्म नहीं करते।

फ़रमानी नाज़ ने ठीक ही जवाब दिया कि कलाकार का कोई धर्म नहीं होता। वाक़ई एक कलाकार का धर्म तो सिर्फ़ कला है, बशर्ते उसमें कोई अश्लीलता या फूहड़पन न हो। आज ऐसे तथाकथित अ-कलाकारों की एक भीड़ है, जो न केवल कला की हत्या कर रही है, बल्कि असली कलाकारों का हक़ मारकर भी खा रही है। क्या कोई इस तथाकथित अ-कलाकारों की भीड़ के विरोध में आवाज़ उठाता है? एक सवाल फ़रमानी नाज़ पर फ़तवा जारी करने वाले उलेमाओं ओर मौलवियों से, जो फ़रमानी नाज़ ने भी पूछा है कि वे तब कहाँ थे? जब उसके शौहर ने उसे तलाक़ दिये बिना बदहाली में छोड़कर दूसरी शादी कर ली थी। क्या ऐसे लोगों के लिए शरीअत में कोई सज़ा नहीं है? यह कोई एक फ़रमानी नाज़ पर दबाव नहीं बना है। हर धर्म में ऐसे ठेकेदारों की भरमार है, जिन्होंने ऐसे लोगों के विचारों पर आपत्ति जताते हैं, जो पूरी दुनिया के लोगों को अपना घर मानकर सभी से प्यार करते हैं। धर्मों में ऐसे ही दकियानूसी लोगों की भरमार से केवल सभी धर्म और उनके मानने वाले भी ख़तरे में हैं।

सवाल यह है कि क्या वे लोग अपने सही मायने में धर्म की रक्षा कर रहे हैं, जिन्हें सभी धर्मों के लोगों से लगाव रखने वाले अपने ही धर्म के लोग दुश्मन नज़र आते हैं। इन दकियानूसी ठेकेदारों की इसी एक कमी की वजह से अपने ही कई विद्वानों, कलाकारों और गुणी लोगों को तिरस्कृत और अपमानित करके उनके अपने ही धर्म से बाहर फेंक दिया जाता है। इतिहास ऐसे विद्वानों, कलाकारों और गुणी लोगों के तिरस्कार और उनकी हत्या तक का गवाह रहा है। अगर एक कलाकार दूसरे धर्म का गुणगान करके अपराध कर रहा है, तो धर्म संसद के ठेकेदार धर्म संसद की बैठक में एक-दूसरे के धर्म की तारी$फों के पुल क्यों बाँघते हैं? वहीं मंचों पर ही आपस में क्यों नहीं लडऩे-मरने लगते हैं?