एक पुरानी कहावत है- ‘प्रेम और युद्ध में सब कुछ जायज़ है।” कुछ ऐसी ही हालत टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट (टीआरपी) के खेल की है। चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा टीवी बाज़ार भारत में है। आज टीवी शायद किसी भी व्यवसाय के लिए किसी भी घर में प्रवेश का सबसे बड़ा ज़रिया है।
यहाँ मंत्र यह है कि जो ख़ुद को दिखा सकता है, वह बिकता है; और जो बिकता है, वह बच जाता है। बच जाने का यह दबाव ही टीआरपी में धाँधली की सबसे बड़ी वजह है। टीआरपी सीधे तौर पर किसी चैनल की विज्ञापनों से होने वाली कमायी से जुड़ी हुई चीज़ है। कुल राजस्व का लगभग 60 फ़ीसदी विज्ञापन और 40 फ़ीसदी सब्सक्रिप्शन से आता है। इसकी दरें भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण नियंत्रित करता है। डाटा बताता है कि भारत में हर हफ़्ते 800 मिलियन से अधिक लोग, जबकि क़रीब 600 मिलियन लोग रोज़ाना टीवी देखते हैं और प्रतिदिन लगभग 3.45 घंटे टीवी देखते हैं। टीआरपी से यह ज़ाहिर होता है कि किस शो को ज़्यादा लोग देख रहे हैं।
किसी चैनल की रेटिंग जानने के लिए चुनिंदा जगहों पर पीपल्स मीटर नाम का एक ख़ास डिवाइस लगायी जाती है। ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल (बार्क) चुनिंदा घरों में टीवी में बार-ओ-मीटर का इस्तेमाल करके टीआरपी रिकॉर्ड करती है। जो कोई भी एक मिनट से अधिक समय तक टीवी देखता है, उसे दर्शक माना जाता है।