दुनिया में माँ को ईश्वर के बाद सबसे ऊँचा दर्जा दिया गया है। क्योंकि नया जीवन देने के लिए माँ जिस पीड़ा से गुज़रती है और मौत के मुँह से लौटकर आती है, वह असहनीय होती है। इसीलिए कहा जाता है कि माँ का क़र्ज़ स्वयं भगवान भी नहीं उतार पाये हैं। लेकिन बावजूद इसके दुनिया में लाखों माँओं की दुर्दशा आज हो रही है। हमारा देश भी इससे अछूता नहीं है। आँकड़े बताते हैं कि हमारे देश में हर साल हज़ारों माताओं की मौत असमय हो जाती है। इन मौतों को रोकने के लिए सरकार द्वारा कई योजनाएँ चलायी जाती हैं, लेकिन फिर भी मौतों का सिलसिला थम नहीं रहा है। देश में हर साल महात्मा गाँधी की पत्नी कस्तूरबा गाँधी की जयंती पर 11 अप्रैल को राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस मनाया जाता है। यह राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस व्हाइट रिबन एलायंस इंडिया (डब्ल्यूआरएआई) द्वारा गर्भवती महिलाओं की उचित देखभाल और प्रसव सम्बन्धी जागरूकता फैलाने के उद्देश्य शुरू की गयी एक पहल है।
ख़ास बात यह है कि भारत दुनिया का ऐसा पहला देश है, जिसने सामाजिक रूप से राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस की घोषणा की। लेकिन हैरानी की बात यह है कि गर्भावस्था, प्रसव और प्रसव बाद महिलाओं को अधिकतम स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित करने के लिए डब्ल्यूआरएआई द्वारा हर साल पूरे देश में मातृत्व की सुरक्षा के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाया जाता है, बावजूद इसके गर्भवती महिलाओं की मौत के आँकड़े चौंकाने वाले हैं।
गर्भवती महिलाओं की मौत के कारण
दुनिया में कब और किसकी मौत हो जाए इस बारे में कोई कुछ नहीं कह सकता। डॉक्टरों को भगवान कहा जाता है, लेकिन वह भी मरीज़ के इलाज के समय भगवान पर ही सब छोड़ देता है। फिर भी अगर किसी की मौत कम उम्र में हो, तो उसे असमय मौत ही कहा जाता है। गर्भवती महिलाओं की मौतों को भी इसी श्रेणी में रखा जाता है। लेकिन सवाल यह है कि आख़िर बड़ी तादाद में गर्भवती महिलाओं की मौत होती क्यों है? इस सवाल का सही जवाब तो कोई नहीं बता सकता, लेकिन इसके कई कारण हैं।
ख़ून की कमी और कुपोषण
हमारे देश में क़रीब 70 फ़ीसदी महिलाएँ कुपोषण की शिकार हैं, जिसके चलते उनमें ख़ून की कमी है यानी एनीमिया की शिकार हैं। इसके चलते जब वे माँ बनती हैं, तो या तो बीच में ही या प्रसव के दौरान कई महिलाओं की मौत हो जाती है। इसकी एक बड़ी वजह गर्भधारण करने के बाद उन्हें पौष्टिक आहार नहीं मिलना भी है। गर्भवती महिलाओं की प्रसव के दौरान मौत की एक वजह चिन्ता भी है। दूसरी वजह प्रसव के दौरान अत्यधिक ख़ून बह जाना भी है। इसे डॉक्टरी की भाषा में पीपीएच भी कहा जाता है।
कम उम्र में मौत की वजह
हैरानी की बात है कि आज विज्ञान की प्रगति का युग है और इसके बावजूद पाँच साल की बच्चियों तक के माँ बनने के मामले सामने आये हैं। हालाँकि ऐसे मामले बहुत ही कम देखे गये हैं, लेकिन इससे पता चलता है कि दुनिया में महिलाओं को हवसी मर्दों की नज़र किसी भी उम्र में बर्बाद करने से नहीं चूकती। किशोरियों के तो गर्भवती होने के हज़ारों मामले हर साल दुनिया में सामने आते हैं। ऐसे मामले दुनिया के हर देश में देखे गये हैं, जो केवल अनपढ़ और ग़रीब तबक़े के लोगों में ही नहीं, बल्कि पढ़े लिखे सम्भ्रांत लोगों में भी सामने आते हैं। यूरोप के देशों में तो हर साल हज़ारों मामले कम उम्र में माँ बनने के सामने आते हैं।