रातोंरात प्रसिद्ध होने का पागलपन

आज की पीढ़ी रातोंरात प्रसिद्ध होने के चक्कर में क्या कुछ नहीं करना चाहती। वह भी बिना मेहनत के, बिना समय गँवाये। सोशल मीडिया पर रातोंरात प्रसिद्ध होने की चाहत आज की युवा पीढ़ी में इस क़दर घर कर चुकी है कि सेल्फी लेने और वीडियो बनाने के चक्कर में कई की जान तक चली गयी है, तो कई बार ऐसे लोग दूसरों की जान लेने वाले साबित हुए हैं।

यह चाहत बच्चों से लेकर बड़ों तक में सवार है। इसमें कोई दो-राय नहीं कि सोशल मीडिया कई लोगों के लिए बड़ी उपलब्धि साबित हुआ है। कुछ लोग जिन्हें कोई जानता भी नहीं था, सोशल मीडिया के ज़रिये रातोंरात स्टार बन गये। लेकिन यह सही सोच के साथ सही काम और मेहनत का भी नतीजा है। जो लोग रातोंरात प्रसिद्ध होने वालों की पीछे की मेहनत को समझे बग़ैर, बिना मेहनत के रातोंरात एक क्लिक से प्रसिद्ध होने की चाहत रखते हैं, उनमें से न जाने कितने ही देश के युवा ज़िन्दगी के उस मोड़ पर लगातार जा रहे हैं, जहाँ उनमें से कई गुमनामी, पागलपन या फिर किसी हादसे का शिकार हो रहे हैं।

इन दिनों सोशल मीडिया की सभी साइट्स पर ऐसी वीडियो की भरमार देखने को मिल जाती है। ताज़ूब की बात यह है कि जहाँ लाखों युवा ख़ुद को प्रसिद्ध करने के लिए सोशल मीडिया पर दिन-रात लगे रहने और वीडियो बनाकर उस पर अपलोड करते रहने के चक्कर में अपने करियर को चौपट कर रहे हैं, वही हज़ारों युवा उन वीडियोज को देखने में अपना समय और करियर दोनों बर्बाद कर रहे हैं। एक शोध में यह बात सामने आयी है कि सोशल मीडिया अकाउंट से लोगों की दिमाग़ी हालत का पता चलता है कि वे किस स्थिति में पहुँच चुके हैं। इससे न केवल वे चिढ़चिढ़े, गुस्सैल, काम न करने की इच्छा वाले, फास्ट फूड ज़्यादा खाने वाले, आलसी और लापरवाह होते जा रहे हैं, बल्कि इससे उनमें आँखों, दिमाग़, लीवर, किडनी, रक्तचाप, शुगर और थाइराइड जैसे रोग भी बढ़ रहे हैं। यहाँ तक कि इस तल में पडक़र कई लोग ख़ुदकुशी तक कर लेते हैं। कुछ डॉक्टरों ने तो चेतावनी तक दी है कि मोबाइल का कम इस्तेमाल करना चाहिए और सोशल मीडिया का तो और भी कम इस्तेमाल करना चाहिए। इससे न केवल कई ज़िन्दगियाँ बच सकती हैं, बल्कि बहुत-से बच्चों का भविष्य बच सकता है। इसकी पहली ज़िम्मेदारी माँ-बाप की बनती है कि वे अपने बच्चों का इस बारे में सही मार्ग-दर्शन करें।

सोशल मीडिया से हो रहे मानवीय नुक़सान के बारे में शोध (रिसर्च) की भारी कमी है। दुनिया में काफ़ी कुछ इस बारे में कहा गया है; लेकिन फिर भी कोई ठोस और ज़मीनी शोध इस मामले में अभी तक नहीं किया गया है। इससे बड़ी बात यह है कि सोशल साइट्स को अभी तक किसी भी मौत के लिए या किसी के किसी बुरी दशा में चले जाने के लिए दुनिया में कहीं भी ज़िम्मेदार नहीं ठहराया गया है। माना जा रहा है कि सोशल मीडिया पर छाये रहने के इस दिमाग़ी जूनून के रोगियों को डॉक्टर और मनोचिकित्सक भी ठीक नहीं कर पा रहे हैं।

क्योंकि सोशल मीडिया पर छाये रहने की चाहत में लोग पागलपन की उस हद तक चले जाते हैं, जहाँ मौत तक हो जाती है। हाल ही में मोहब्बत के शहर आगरा में ऐसा ही नज़ारा देखने को मिला। स्थानीय सूत्रों से पता चला है कि यहाँ अपना वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर अपलोड करने के शौक़ीन कुछ स्थानीय बच्चों ने ख़तरनाक क़दम उठा डाला।

रेलवे पुलिस फोर्स और स्थानीय रेलवे सूत्रों के मुताबिक, राजामंडी और बिल्लोचपुरा स्टेशन के बीच सिकंदरा पुलिया के पास लगभग 12 से 15 वर्ष के कुछ नाबालिग़ बच्चों ने राजामंडी और बिल्लोचपुरा स्टेशनों के बीच सिकंदरा पुलिया के पास कर्नाटका एक्सप्रेस, ट्रेन संख्या 06249 और हबीबगंज से हज़रत निज़ामुद्दीन तक चलने वाली भोपाल एक्सप्रेस, ट्रेन संख्या-02155 पर फुल स्पीड में चलते समय वीडियो बनाने के लिए लगातार पत्थर बरसाये। उपद्रवी बच्चों का मक़सद वीडियो बनाकर उसे सोशल मीडिया पर अपलोड करना था। सूत्रों ने बताया कि इन बच्चों में से कुछ बच्चे सुबह क़रीब 5:45 बजे इन दोनों चलती ट्रेनों पर सामने से मोटे-मोटे पत्थर पूरी ताक़त से फेंक रहे थे और कुछ अपने चेहरे के साथ वीडियो बना रहे थे। इस वारदात को अंजाम देने वाले बच्चों की इस ख़तरनाक हरकत से ट्रेनों के इंजन और बोगियों के शीशे टूट गये। यात्री बाल-बाल बच गये। इस घटना का पता रेलवे विभाग और रेलवे पुलिस फोर्स (आरपीएफ) को तब चला, जब घबराये ट्रेन चालक ने तत्काल ऑपरेटिंग कंट्रोल रूम को सन्देश भेजकर हमले से बचाव की गुहार लगायी। इसके बाद आरपीएफ की एक बड़ी टीम मौक़े पर पहुँची; लेकिन उसके पहुँचते-पहुँचते कुछ बच्चे वहाँ से भाग निकले, फिर भी पुलिस की गिरफ़्त में चार बच्चे आ गये। पूछताछ में उन्होंने अपने बाक़ी साथियों का नाम और पता भी बता दिया, जिसके बाद आरोपी सात और बच्चों को पकड़ा गया।

आरपीएफ सूत्रों के मुताबिक, हिरासत में लिये गये बच्चों में तीन ने चलती ट्रेनों पर पत्थर बरसाने और वीडियो बनाने की बात स्वीकार की। इन सभी पर रेलवे अधिनियम के तहत कार्रवाई की गयी है। बाक़ी के सात बच्चों को चेतावनी देकर उनके परिवार वालों को उन पर क़ाबू रखने की बात कहकर सौंप दिया गया। सभी बच्चे सेक्टर-11 के रहने वाले हैं।

आरपीएफ के मुताबिक, बच्चे नाबालिग़ ज़रूर हैं; लेकिन इतना समझते हैं कि उनकी इस हरकत से ट्रेनों और उनमें बैठे यात्रियों को नुक़सान पहुँच सकता है। बच्चों की हरकत भी इतनी ख़तरनाक थी कि इससे ख़ुद बच्चों की जान जाने से लेकर दूसरा कोई भी बड़ा हादसा हो सकता था, यहाँ तक कि ट्रेन के पलटने या ग़लत ट्रैक पर चल पडऩे या ट्रैक पर से उतरने जैसा भी। बच्चों की इस ख़तरनाक हरकत से कर्नाटका एक्सप्रेस का सामने का और बग़ल में लगा लुकिंग ग्लास टूट गया, वहीं भोपाल एक्सप्रेस की बी-1 बोगी की खिडक़ी का शीशा टूट गया।

इसी तरह पिछले साल उत्तराखण्ड के अल्मोडा के सल्ट इलाक़े के मोहित बिष्ट नाम के एक युवक ने टिकटॉक पर रातोंरात प्रसिद्ध होने के चक्कर में अपना वीडियो बनाने के लिए जंगल में ही आग लगा दी। हैरत की बात यह है कि आग जंगल में फैलती गयी और वह युवक आग के साथ अपना वीडियो बनाता रहा, जिसे उसने टिकटॉक पर अपलोड भी किया। आग लगने की ख़बर लोगों में फैल गयी; लेकिन आग कैसे लगी यह तब पता चला, जब उस युवक का वीडियो वायरल हुआ। दिल्ली के श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स के हिन्दी विभाग अध्यक्ष एवं एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. रवि शर्मा कहते हैं कि ऐसी मूर्खता का जन्म शिक्षा के अभाव से होता है। शिक्षा का अर्थ केवल विद्यालय में पढऩा-लिखना नहीं है, बल्कि घर में भी अच्छे संस्कारों से भी है। इसीलिए प्रत्येक माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों को विद्यालयों में तो पढ़ाएँ ही, घर में भी संस्कारित करें और उन्हें बताएँ कि मूर्खतापूर्ण हरकतों से उनका क्या नुक़सान हो सकता है? जो कि एक अपराध की श्रेणी में भी आ सकता है। साथ ही यह भी बताएँ कि निजी या सरकारी सम्पत्ति को नुक़सान पहुँचाने से उनकी अपनी भी क्या हानि है? इस सवाल पर कि क्या कोरोना-काल में स्कूलों के बन्द होने से बच्चे इस तरह की हरकतें करने लगे हैं? डॉ. रवि शर्मा कहते हैं कि नहीं, कोरोना-काल में विद्यालयों के बन्द होने से पढऩे वाले बच्चों में चिढ़चिढ़ापन एवं छोटी-मोटी हरकतें तो बढ़ी हैं, परन्तु ट्रेनों पर पत्थर फेंकने तथा दूसरी इसी तरह की बड़ी हरकतें तो वही बच्चे करते हैं, जिनके पास न शिक्षा है और न ही उनके घर से उन्हें किसी तरह के संस्कार मिले होते हैं। इस तरह के बच्चों को यह पता ही नहीं होता कि वे जो कर रहे हैं, वह कितना हानिकारक सिद्ध हो सकता है। ऐसे में ज़रूरी है कि माता-पिता अपने-अपने बच्चों को शिक्षित करें, घर पर भी और विद्यालय भेजकर भी।

सेल्फी और वीडियो तो पढ़े-लिखे लोग भी बनाते हैं, जिसके चलते कई लोगों की जान जाने तक के हादसे देश भर में हो चुके हैं? इस सवाल पर डॉ. रवि शर्मा कहते हैं कि इस तरह का क़दम आत्ममुग्धता के चलते लोग उठा बैठते हैं। ऐसे लोगों के मन-मस्तिष्क में लोगों के बीच प्रसिद्ध होने की सोच घर कर जाती है, जिससे वे इतने आत्ममुग्ध हो जाते हैं। अर्थात् स्वयं को प्रसिद्ध करने की चाह में इतने डूब जाते हैं कि उन्हें यह ज्ञान ही नहीं रहता कि उनके ऐसा करने से कोई दुर्घटना भी हो सकती है। ऐसे कई मामले सामने आते रहते हैं, जिनमें सेल्फी लेने अथवा वीडियो बनाने वालों की जान तक चली गयी है।

इसका एक कारण यह भी है कि सेल्फी लेने और वीडियो बनाने की सनक जिन लोगों में होती है, उन्हें इसमें स्वयं को दूसरों के बीच अलग तरह से प्रस्तुत करने और उस पर लाइक, कमेंट्स पाने का जूनून सवार रहता है। उन्हें इसमें अपनी एक दुनिया दिखायी देती है, जिसकी न कोई लम्बी आयु है और न ही बहुत महत्त्व। पिछले 8-10 साल में जबसे सेल्फी और वीडियो का चलन हमारे देश में बढ़ा है। यह देखा गया है कि बहुत-से लोगों की जान सेल्फी और वीडियो बनाने के चक्कर में तो गयी ही है, साथ ही दूसरों के लिए भी ऐसे हादसे ख़तरा बने हैं। इसी साल जुलाई में हॉन्गकॉन्ग की इंस्टाग्राम स्टार सोफिया मशहूर पाइनएप्पल माउंटेन साइट पर स्थित झरने के साथ सेल्फी लेने के चक्कर में 16 फीट नीचे जा गिरी। इत्तेफ़ाक़ से सोफिया पानी में गिरी, तो बच गयी; लेकिन फिर भी उसे काफ़ी चोट आयी और अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। दिल्ली में भी सेल्फी लेते समय जान जाने के कई हादसे हो चुके हैं। इसलिए ऐसी हरकतों से लोगों को बचना चाहिए, ताकि वे ख़ुद भी सुरक्षित रह सकें और दूसरों की जान भी जोखिम में न पड़े।