राजनीति में इंडिया

भाजपा को उसी की तर्ज पर विपक्षी गठबंधन ने दे दी चुनौती विपक्ष ने अपने गठबंधन का नाम इंडिया (I.N.D.I.A.) रखकर भाजपा को असहज कर दिया है। धर्म और राष्ट्रवाद के सहारे राजनीति करने वाली भाजपा के इस एकाधिकार को विपक्ष ने इस बार अलग अंदाज़ में चुनौती दे दी है। विपक्ष ने अपने लिये नारा भी राष्ट्रवाद से जुड़ा चुना है- ‘जीतेगा भारत।’ विपक्ष ने इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव अलायंस (इंडिया) नाम बहुत सोच समझकर रखा है। विपक्ष के बड़े नेताओं की मानें, तो यह नाम राहुल गाँधी ने दिया है। सन् 2014 के बाद यह पहला अवसर है, जब विपक्ष को सिर्फ़ उसके नाम के ही आधार पर ऐसी चर्चा देश भर में मिल गयी है। विपक्ष ने हाल के दिनों में अपने गठबंधन को तेज़ी से आकार दिया है। यह इस बात से भी ज़ाहिर हो जाता है कि गठबंधन के 26 दलों में, जिनके सदस्य संसद में हैं; उन्होंने भाजपा (एनडीए) सरकार के ख़िलाफ़ साझा रणनीति अपनायी है। विपक्ष की तेज़ी का ही असर था कि भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन को भी लम्बे समय बाद साझी बैठक करनी पड़ी। हाल के दो लोकसभा चुनावों में भाजपा ने ख़ुद को हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद का चैम्पियन बताकर चुनाव लड़ा और उसे सफलता भी मिली। निश्चित ही 2019 के लोकसभा चुनाव और उसके बाद पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, गुजरात और 2023 में कर्नाटक के चुनाव में भाजपा ने खुलकर इस मुद्दे को अपनाया। लेकिन उसे सफलता मिली-जुली ही मिली। बंगाल, कर्नाटक और हिमाचल में उसे नाकामी मिली और दो जगह कामयाबी। भाजपा के इस राष्ट्रवाद को विपक्ष ने उसी की पिच पर जाकर चुनौती दी है। विपक्ष, जैसा कि राहुल गाँधी अक्सर कहते हैं कि ‘भाजपा के राष्ट्रवाद के विपरीत कांग्रेस (विपक्ष) का राष्ट्रवाद संवैधानिक सिद्धांतों पर आधारित है, जो भारत की धर्मनिरपेक्ष सोच पर आधारित है।’
देखें, तो राष्ट्रवाद वास्तव में कांग्रेस का नारा था। आज़ादी के समय से ही। लेकिन भाजपा ने बहुत चतुराई से इसे कांग्रेस से छीन लिया। आज़ादी से पहले की बात करें, तो स्वतंत्रता आन्दोलन में कांग्रेस की ही भूमिका था; आरएसएस की नहीं। नरम और गरम दल दोनों के ही अधिकतर नेता कांग्रेस की ही विचारधारा में पले, बढ़े; या फिर वामपपंथी तेवर के साथ, जिसमें देश के लिए जान भी दे देने का ज़ज़्बा शामिल था। आरएसएस तो कहीं तस्वीर में कभी रहा ही नहीं। लेकिन भाजपा ने पिछले दो दशक में राष्ट्रवाद का नारा कांग्रेस से चुराकर अपना बना लिया। हाँ, एक अंतर यह ज़रूर है कि भाजपा का राष्ट्रवाद ‘हिन्दू राष्ट्रवाद’ है, जबकि कांग्रेस का ‘समग्र राष्ट्रवाद’। यानी सभी धर्मों और समुदायों से मिलकर बना राष्ट्रवाद। गठबंधन को इंडिया नाम देकर विपक्ष ने इसी राष्ट्रवाद को अपनाकर भाजपा को चुनौती देने की ठानी है। विपक्षी गठबंधन के ‘इंडिया’ नाम रखने से भाजपा ख़ेमे में चिन्ता है। यह उसके नेताओं के बयान से साफ़ ज़ाहिर होता है। यहाँ तक कि प्रधानमंत्री अब अपने हर भाषण में ‘इंडिया’ नाम का ज़िक्र करने लगे हैं। एक बार उन्होंने विपक्ष के ‘इंडिया’ नाम की तुलना ‘इंडियन मुजाहिदीन’ और ‘ईस्ट इंडिया कम्पनी’ से कर दी। अगले भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा- ‘भ्रष्टाचार छोड़ो इंडिया, परिवारवाद छोड़ो इंडिया।’ भाजपा की कोशिश ‘विपक्ष के इंडिया’ को बदनाम करने की है, ताकि उसके ‘अपने इंडिया’ के लिए चुनौती पैदा न हो। लेकिन राहुल गाँधी समेत विपक्षी गठबंधन के नेता भाजपा की इस बेचैनी को समझ रहे हैं और उसी तर्ज में जवाब भी दे रहे हैं। लेकिन आख़िर में यह इंडिया (देश) की जनता होगी, जो यह तय करेगी कि वास्तव में किसका ‘इंडिया’ उसे पसन्द है- भाजपा का या विपक्ष का। अर्थात् ‘हिन्दू राष्ट्रवाद’ या ‘समग्र राष्ट्रवाद।’ देखा जाए, तो विपक्ष का यह इंडिया नामकरण कांग्रेस नेता राहुल गाँधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से उपजा है। राहुल का ‘द आइडिया ऑफ इंडिया’ समग्र राष्ट्रवाद की बात करता है- ‘एक ऐसा राष्ट्रवाद, जो देश के सभी धर्मों और समुदायों को समाहित करता है; न कि भाजपा के हिन्दू राष्ट्रवाद की तरह एक ही धर्म की बात करता है।’ कहा जा सकता है कि 2024 का चुनाव इस ‘समग्र राष्ट्रवाद’ और ‘हिन्दू राष्ट्रवाद’ के बीच होना है। विपक्ष इसी एजेंडे के साथ आगे बढ़ेगा और भाजपा विपक्ष (कांग्रेस) के इस राष्ट्रवाद को भ्रष्ट, परिवारवादी, देश-विरोधी आदि-आदि बताती जाएगी। साफ़ है कि विपक्ष ने अपने गठबंधन का नाम ‘इंडिया’ रखकर भाजपा के एकाधिकार को गम्भीर राजनीतिक चुनौती दे दी है। यह भाजपा के ‘हिन्दू राष्ट्र’ के एजेंडे को भी चुनौती होगी। हो सकता है भाजपा किसी ‘प्रॉक्सी’ के ज़रिये विपक्ष के इंडिया नाम के ख़िलाफ़ कोर्ट में पहुँचे और विपक्ष को ‘इंडिया’ नाम इस्तेमाल करने से रोकने की कोशिश करे। देखना दिलचस्प होगा कि यदि ऐसा होता है, तो उसका क्या नतीजा निकलता है? क़ानून के ज़्यादातर जानकार मानते हैं कि शायद ही अदालत विपक्ष को ऐसा करने से रोकेगी; क्योंकि देश में कई ऐसे राजनीतिक दल हैं, जिनके नाम में इंडिया शब्द इस्तेमाल होता है। राहुल गाँधी की कोशिश हाल के महीनों में भाजपा के राष्ट्रवाद को भेदभावपूर्ण, बहुसंख्यकवादी और हिंसक बताने की रही है। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का मक़सद भी उन्होंने यही बताया था और इसे ‘मोहब्बत की दुकान’ कहा है यानी देशज के हर नागरिक से प्यार, नफ़रत नहीं। ज़मीनी जानकारी बताती है कि राहुल गाँधी को इस यात्रा से अपनी छवि बदलने और ख़ुद को जनता की बीच पहुँचाने में सफलता मिली है। राहुल यह सन्देश देने में सफल रहे कि उनकी यात्रा सत्ता के लिए नहीं, बल्कि देश को बचाने की है। अब इंडिया नाम रखकर गठबंधन यही सन्देश दे रहा है। गठबंधन की रणनीति कांग्रेस इस महागठबंधन का नेतृत्व अभी नहीं कर रही; लेकिन बेंगलूरु की बैठक में जिस तरह सभी नेता कांग्रेस के इर्द-गिर्द दिखे, उससे साफ़ लगता है कि इन दलों ने यह महसूस कर लिया है कि कांग्रेस के ही नेतृत्व में भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर चुनौती दी जा सकती है। महागठबंधन अब मुम्बई की बैठक में आगे जाने की बड़ी चीज़ेंतय करेगा। यह बैठक 20-22 अगस्त तक होने की संभावना है। हालाँकि अभी तारीख़ तय नहीं की गयी है। बेंगलूरु बैठक के दौरान सीटों के बँटवारे को लेकर चर्चा नहीं हुई थी। बैठक में भाजपा का मुक़ाबला करने के लिए वैकल्पिक राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक एजेंडा देने पर ज़रूर सहमति बनी है। सीटों पर बँटवारे में शायद अभी व$क्त लगे। इंडिया गठबंधन के सभी दल एक समय में एक ही काम करने की रणनीति पर चल रहे हैं। संसद के मानसून सत्र में जिस तरह से विपक्ष ने कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार को मणिपुर और अन्य मुद्दों पर घेरा है, उससे ज़ाहिर है कि संसद में भी यूपीए की जगह ‘इंडिया’ सरकार से लड़ रहा है। शायद भाजपा को भी इसकी उम्मीद नहीं रही होगी। गठबंधन अब मुम्बई की बैठक में शायद गठबंधन के अध्यक्ष और संयोजक के अलावा अन्य पदाधिकारियों के नामों को अन्तिम रूप दे दे। गठबंधन के एक नेता ने ‘तहलका’ से बातचीत में कहा- ‘मुम्बई की बैठक में हम 11 सदस्यों वाली एक समन्वय समिति को अन्तिम रूप दे सकते हैं।’ गठबंधन अलग-अलग समितियाँ गठित करने पर भी काम कर रहा है, जो अलग-अलग मुद्दों को देखेंगी। मुम्बई में ‘इंडिया’ में शामिल 26 दलों के बीच सीट-बँटवारे, चुनाव की तैयारियों और प्रचार प्रबंधन को लेकर चर्चा होनी है। गठबंधन अपना मुख्य सचिवालय दिल्ली में बनाने पर भी सहमत हो सकता है। यह तय है कि गठबंधन 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले देश भर में बड़ा अभियान शुरू करेगा। देश के विभिन्न हिस्सों में बैठकें आयोजित होंगी और भाजपा पर प्रहार किया जाएगा। कोई चेहरा नहीं गठबंधन किसी एक नेता को अभी अपने चेहरे के तौर पर सामने नहीं करेगा। पिछली दो बैठकों में दिखा है कि ज़्यादातर दलों का झुकाव राहुल गाँधी की तरफ़ है। लेकिन उनकी लोकसभा सदस्यता का मामला अभी सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है। यदि उनकी सदस्यता बहाल हो जाती है, तो यह कांग्रेस ही नहीं गठबंधन के लिए भी बड़ी जीत होगी। राहुल गाँधी ही गठबंधन में ऐसे नेता हैं, जिनकी राष्ट्रव्यापी छवि है। बेंगलूरु की बैठक के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कह चुकी हैं कि वह प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवार नहीं हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी कुछ ऐसा ही कह रहे हैं। दिलचस्प बात यह भी है कि टीवी चैनलों के हाल में गठबंधन के नेता को लेकर किये सर्वे में भी अधिकतर लोग राहुल गाँधी को ही नेता के रूप में सबसे ज़्यादा वोट दे रहे हैं। वैसे इस दौड़ में ममता बनर्जी, शरद पवार, नीतीश कुमार से लेकर अरविन्द केजरीवाल तक का नाम लिया जाता है। लेकिन कांग्रेस के गठबंधन वाले यूपीए के मुख्यमंत्री भी राहुल गाँधी के ही हक में दिखते हैं, जिनमें तमिलनाडु के एम.के. स्टालिन से लेकर झारखण्ड के हेमंत सोरेन तक शामिल हैं। मुम्बई की बैठक में गठबंधन सोनिया गाँधी को अपना अध्यक्ष बनाने की घोषणा कर सकता है। बेंगलूरु की बैठक में सोनिया गाँधी ने जो सक्रियता दिखायी थी, उससे साफ़ है कि वह इस भूमिका को निभाने के लिए तैयार हैं। सोनिया गाँधी की उपस्थिति ने इस बैठक में मीडिया का ध्यान भी अपनी तरफ़ काफी खींचा था, जिससे विपक्ष में सोनिया गाँधी के महत्त्व का पता चलता है। भाजपा ने इसे कांग्रेस के गठबंधन को हाईजैक करने से जोड़ा और प्रचार भी किया कि नीतीश कुमार गठबंधन का नाम इंडिया रखे जाने से ख़ुश नहीं हैं। हालाँकि एक दिन के ही भीतर नीतीश कुमार ने बयान देकर साफ़ कर दिया कि यह बात सही नहीं है और सब मिलकर भाजपा को हराएँगे।