रहस्यमय कथा, चलती रेल के डिब्बे ग़ायब!


महज़ सात साल में ग़ायब हुए चलती मालगाड़ी के खाद्यान्न से भरे 500 से अधिक डिब्बे

देश में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हैं कि इन्हें उखाड़ फेंकना आसान नहीं है। खाद्यान्न भ्रष्टाचार भी ऐसा ही एक बड़ा भ्रष्टाचार है, जिसकी गहरी जड़ों तक पहुँचना आसान नहीं है। हद तो यह है कि खाद्यान्न ले जाने वाली मालगाडिय़ों के डिब्बे तक भ्रष्टाचारियों द्वारा ग़ायब किये जा रहे हैं। हैरानी की बात है कि यह सब वर्षों से हो रहा है और सरकार को इसकी भनक तक नहीं है। यहाँ तक कि अधिकारी भी इसका जवाब तलाश रहे हैं। इसी रहस्यमय कथा पर तहलका एसआईटी की जाँच रिपोर्ट :-

भारतीय खाद्य निगम (एफएसआई) से सम्बन्धित एक मालगाड़ी गेहूँ और चावल लेकर ट्रैक पर तेज़ी से दौड़ रही है। इसे दो-तीन दिन में हज़ारों किलोमीटर की दूरी तय करके अपने गंतव्य तक पहुँचना है। लेकिन जब यह ट्रेन गंतव्य पर पहुँचती है, तो पता चलता है कि इस मालगाड़ी के 40 डिब्बे ग़ायब हैं! यह किसी फ़िल्म की कहानी नहीं है, और न ही कोई सपना; बल्कि यह एक हक़ीक़त है। वर्षों से भारत में खाद्य निगम के खाद्यान्न ले जाने वाली मालगाडिय़ों के कुछ डिब्बे बीच में ही ग़ायब हो रहे हैं। हम सभी ने ट्रक, कार, मोटरबाइक, ट्रैक्टर आदि के लापता होने की घटनाओं के बारे में ज़रूर सुना है। इसके मामले भी दर्ज होते हैं; मगर कभी ट्रेन की बोगियों (डिब्बों) के लापता होने की ख़बर नहीं सुनी होगी। लेकिन अविश्वसनीय रूप से ऐसा वर्षों से होता आ रहा है।

‘तहलका’ के इस ख़ास ख़ुलासे को पढऩे के बाद आप सोच में पड़ जाएँगे कि ट्रेन के डिब्बों की चोरी भला कैसे सम्भव है? क्या इतने वर्षों तक लोहे के इन बड़े डिब्बों को कहीं छिपाना सम्भव और आसान है? इस अपराध के लिए कौन लोग ज़िम्मेदार हैं? ये भरी हुई बोगियाँ आख़िर गयीं कहाँ? यह सब रहस्य बना हुआ है। ट्रेन के डिब्बों के ग़ायब होने की रहस्यमय कथा किसी जादू भरी रहस्यमय कथा से कम नहीं लगती। लेकिन यह सच है।

‘तहलका एसआईटी’ ने कई आरटीआई के जवाबों के आधार पर की अपनी श्रमसाध्य जाँच की मदद से भारत में मालगाड़ी के लापता डिब्बों की दास्ताँ सामने रखी है। इस तरह की जाँच न पहले कभी हुई है, और न ही अब तक इस तरह की ख़बर सुनने को मिली है।

आमतौर पर मालगाडिय़ों में 42 से 58 डिब्बे होते हैं। इन्हें स्पेशल ट्रेन और रैक भी कहा जाता है। जब भी डिब्बों के लापता होने की ये घटनाएँ होती हैं, तो एफसीआई के लोग मामले की जाँच शुरू कर देते हैं। भारतीय रेलवे को भी इसकी जानकारी दे दी जाती है। इसके बाद मामला एफसीआई और भारतीय रेलवे के बीच फँस जाता है। ट्रेन की बोगियों के लापता होने की गुत्थी को सुलझाने के लिए दोनों विभाग इस मामले की जाँच में जुट गये हैं। कुछ मामलों में तो घटना को हुए 35 साल से ज़्यादा हो चुके हैं; लेकिन डिब्बों के लापता होने का मामला अनसुलझा है। जब एफसीआई अपने लापता (गेहूँ और चावल से भरे) डिब्बों का कोई सुराग़ पाने में विफल रहता है, तो विभाग भारतीय रेलवे के समक्ष खोये हुए सामान के मुआवज़े के लिए एक मामला बनाता है।

जानकारों के मुताबिक, एक बोगी (डिब्बे) में क़रीब 60 टन अनाज होता है। हमारे देश में गेहूँ और चावल की विभिन्न क़िस्में हैं। इन अनाजों की क़ीमत ट्रेन में लदे गेहूँ और चावल की गुणवत्ता के हिसाब से तय की जाती है। अनुमान है कि एक डिब्बे में कम-से-कम 15 से 20 लाख रुपये का माल होता है। डिब्बों के लापता होने की ऐसी घटनाएँ वर्षों से होती आ रही हैं; लेकिन पिछले चार साल से आरटीआई दाख़िल होने के बाद ही यह मामला सामने आया है। न्यायालयों में अभी भी आरटीआई दायर की जा रही हैं।

हालाँकि यह एक गम्भीर मामला है। लेकिन एफसीआई के बहुत कम क्षेत्रीय (जोनल) कार्यालय इस मामले की रिपोर्ट देने के लिए आगे आये हैं। अभी तक कुछ अंचल कार्यालयों की शिकायतों के आधार पर ही आरटीआई दायर की गयी है। गुवाहाटी के क्षेत्रीय कार्यालयों ने अन्य की तुलना में अधिक शिकायतें दर्ज करायी हैं।

भारत में रेल पटरियों पर मालगाड़ी का गुज़रना एक जाना-पहचाना दृश्य है। इन ट्रेनों के माध्यम से भारी मात्रा में मुख्य रूप से माल का परिवहन किया जाता है। एफसीआई की वेबसाइट पर जाने के बाद हमने पाया कि गेहूँ और चावल का परिवहन मुख्य रूप से मालगाडिय़ों के माध्यम से किया जाता है। हालाँकि हमने इन अनाजों का परिवहन रोडवेज के ज़रिये भी देखा है; लेकिन मालगाडिय़ों की तुलना में उसकी क्षमता बहुत कम है। इसका पूरा डाटा एफसीआई की वेबसाइट से प्राप्त किया जा सकता है।

साल 2021-22 में गेहूँ और चावल के अनाज को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने वाली रेलों की संख्या 39,773 थी। एफसीआई के पाँच क्षेत्रीय कार्यालय हैं- उत्तर-पूर्व, पूर्वी क्षेत्र, दक्षिण क्षेत्र, उत्तर क्षेत्र और पश्चिम क्षेत्र। ये सभी स्पेशल मालगाडिय़ाँ इन्हीं क्षेत्रों में गयीं। उत्तर पूर्व क्षेत्र में पहुँचने वाली विशेष ट्रेनों की संख्या 2,333 थी, जबकि 15,762 को उत्तर क्षेत्र में भेजा गया था।

इस मामले में 14 जून, 2022 को दायर आरटीआई के अनुसार, गुवाहाटी स्थित एफसीआई के उत्तर-पूर्व क्षेत्र कार्यालय ने डिब्बों के गुम होने की शिकायत दर्ज करायी गयी थी। उनके द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार, 21 जून, 2003 को एक विशेष ट्रेन / रैक नंबर / 23/342612 (केएनएन) पंजाब के खन्ना रेलवे स्टेशन से असम में (एनबीक्यू) नये बोंगाईगाँव जंक्शन के लिए रवाना हुई। इस विशेष ट्रेन में थोक में चावल ले जाया जाता था। प्रत्येक डिब्बे में चावल के क़रीब 1,156 से 1,184 बड़े बोरे होते थे। एक बोरे का वज़न 50 किलोग्राम था। इन ट्रेनों में केएनएन से एनबीक्यू का सीक्रेट कोड लिखा हुआ था। हालाँकि एफसीआई द्वारा प्रदान की गयी जानकारी यह स्पष्ट नहीं करती है कि ट्रेन में कुल कितने डिब्बे थे, ट्रेन के असम पहुँचने के बाद ही पता चला कि इस मालगाड़ी के 40 डिब्बे ग़ायब हो गये थे। कुछ लापता डिब्बों, जैसे- एससी-38655, एसई-108285 और एसआर-181117 आदि की संख्या आरटीआई में दर्ज है।

सात साल में 500 से अधिक डिब्बे ग़ायब















14 जून, 2022 को इस सम्बन्ध में एक आरटीआई दायर की गयी थी। इसके जवाब में दी गयी जानकारी में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि 2003-04 में उत्तर पूर्व क्षेत्र में पहुँची मालगाडिय़ों के 143 डिब्बे ग़ायब पाये गये थे। गुवाहाटी डिवीजन का कहना है कि 17 साल से अधिक समय बीत चुका है; लेकिन इन खोये हुए डिब्बों का अब तक कोई सुराग़ नहीं है। एफसीआई, गुवाहाटी के उत्तर-पूर्व क्षेत्रीय कार्यालय ने 2000-01 से 2005-06 तक आरटीआई में खोये हुए डिब्बों की पूरी सूची दी है, जिसका उल्लेख नीचे किया गया है :-

साल 2000-01 : इस साल अनाज के 66 डिब्बे अपने गंतव्य तक नहीं पहुँच पाये, जिनमें से 59 चावल के और सात डिब्बे गेहूँ के थे। 01 दिसंबर, 2000 को आरआर03/054367 नंबर वाली एक विशेष ट्रेन से 16 डिब्बे ग़ायब पाये गये। प्रत्येक डिब्बे में चावल की 620-639 बोरियाँ थीं। प्रत्येक डिब्बे का वज़न 95 किलोग्राम था।

साल 2001-02 : इस साल विशेष ट्रेनों से 68 डिब्बे ग़ायब पाये गये, जिनमें से 54 में चावल और शेष 14 में गेहूँ लदा हुआ था। 03 सितंबर, 2001 को 20 डिब्बों का पता नहीं चल सका और वे सभी एक ही समय में लापता हो गये। इस स्पेशल ट्रेन का नंबर, जिसने अपने 20 डिब्बों को खो दिया, वह आरआर13/211770 था। प्रत्येक डिब्बे में 610 से 1,158 बोरियाँ चावल की थीं और ये बोरियाँ 50 किलो, 75 किलोग्राम और 95 किलोग्राम के अलग-अलग वज़न की थीं।

साल 2002-03 : इस साल 111 डिब्बे अपने गंतव्य तक नहीं पहुँच पाये, जिसमें 99 चावल के थे; जबकि 12 डिब्बे गेहूँ के थे। इसी तरह 21 जून, 2002 को 11 डिब्बे एक साथ ग़ायब पाये गये। इस स्पेशल ट्रेन का नंबर आरआर04/119643 था। प्रत्येक डिब्बे में 1,162 से 1,195 बोरियाँ चावल की थीं, जिनमें से प्रत्येक का वज़न 50 किलोग्राम था। इसी वर्ष 01 अगस्त को आरआर 08/138029 नंबर वाली एक अन्य विशेष ट्रेन से 11 डिब्बे ग़ायब पाये गये। प्रत्येक डिब्बे में 1,097 से 1,204 चावल की बोरियाँ थीं, जिसमें प्रति बोरी का वज़न 50 किलोग्राम था। 02 अगस्त, 2002 को आरआर15/211921 नंबर वाली एक अन्य ट्रेन की 11 डिब्बे ग़ायब हो गये। प्रत्येक डिब्बे में चावल की 742-758 बोरियाँ थीं, जिनमें से प्रत्येक का वज़न 75 किलोग्राम था। 09 नवंबर, 2002 को एक और विशेष ट्रेन के 12 डिब्बे ग़ायब पाये गये, जिसमें प्रत्येक डिब्बे में 884 से 1,180 बोरियाँ चावल की थीं और प्रत्येक बोरी का वज़न 75 किलोग्राम था।

साल 2003-04 : इस वर्ष के दौरान क़रीब 143 डिब्बे ग़ायब पाये गये। इनमें से 132 डिब्बों में चावल की बोरियाँ थीं, जबकि 11 में गेहूँ की बोरियाँ लदी थीं। वहीं 21 जून, 2003 को विशेष ट्रेन (आरआर 23/342612) के 40 डिब्बे ग़ायब हुए, जिनका कोई सुराग़ नहीं मिला। इसमें क़रीब 1,156 से 1,184 बोरियाँ चावल की थीं और प्रत्येक बोरी का वज़न क़रीब 50 किलोग्राम था।

साल 2004-2005 : इस साल भी एक मालगाड़ी की 96 डिब्बे ग़ायब पाये गये। इसमें 83 चावल की थीं; जबकि शेष 13 गेहूँ की बोरियाँ थीं। विशेष ट्रेन (आरआर06/030994) के 18 डिब्बे क़रीब 1,163 से 1,186 बोरी चावल के साथ ग़ायब हो गये।

साल 2005-2006 : इस साल एक विशेष ट्रेन के 28 डिब्बे ग़ायब हुए। इनमें चावल के 23 डिब्बे और गेहूँ के पाँच डिब्बे थे।

साल 2006-07 : इस साल एक मालगाड़ी के सात डिब्बे ग़ायब हो गये। इनमें चार डिब्बे चावल के थे और तीन गेहूँ के थे।

ऊपर दी गयी सूची से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि यह चोरी कितनी गम्भीर है और इस मामले को सुलझाना कितना मुश्किल है। ऐसे सभी लापता डिब्बों का विवरण एफसीआई के पास पंजीकृत है। उनके दस्तावेज़ों में इस कथित चोरी की सारी जानकारी है। एफसीआई विभाग अपनी ओर से शोध करने के बाद भारतीय रेलवे में शिकायत दर्ज कराते हैं। दोनों विभागों के आला अधिकारी आपस में बैठकर मामले पर चर्चा करते हैं, जिसे वे सुलह बैठक कहते हैं। बैठक में दोनों विभागों के सम्बन्धित अधिकारियों ने विशेष ट्रेनों के लापता डिब्बों और इस मार्ग से ले जाये जा रहे खाद्यान्न के विवरण पर चर्चा की। सुलह बैठक और आपसी समझ के बाद एफसीआई भारतीय रेलवे के पास खोये / लापता डिब्बों की शिकायत दर्ज कराता है, और उनके खोये हुए खाद्य भण्डार के लिए मुआवज़े की माँग करता है। ऐसे डाटा का विवरण नीचे दिया गया है।

भारतीय रेलवे के अधिकारियों और क्षेत्रीय कार्यालय गुवाहाटी की पहली बैठक 3 मई, 2005 को मालेगाँव में मुख्य वाणिज्यिक प्रबंधक (दावा) कार्यालय में हुई थी। बैठक में भाग लेने वाले एफसीआई के अधिकारी संयुक्त प्रबंधक आन्दोलन एम.एल. सोलंकी, एजी प्रथम (डी) और एस.बी. शर्मा थे; जबकि डिप्टी सीसीएम (दावा), एस.के. करमाकर और सीआईजी गुहा राय ने रेलवे का प्रतिनिधित्व किया।

इस बैठक का एजेंडा वर्ष 1996-98 में चावल के 220 डिब्बों और गेहूँ के 46 डिब्बों के ग़ायब हो जाने पर चर्चा करना था। इस मामले को आगे सुलह के लिए भेजा गया था। फिर 13 अप्रैल, 2005 को भी मुख्य वाणिज्य प्रबंधक कार्यालय, मालेगाँव में रेलवे और क्षेत्रीय अधिकारियों गुवाहाटी के बीच एक बैठक आयोजित की गयी थी। इस बैठक का एजेंडा सन् 1986 से सन् 1996 तक लापता डिब्बों पर चर्चा करनी थी, जिसमें क़रीब 5,100 चावल की बोरियाँ और 2,178 गेहूँ की बोरियाँ ले जायी गयी थीं। इसमें 28 दिसंबर, 2004 तक के ही आँकड़ों पर चर्चा की गयी थी। बैठक में मैनेजर मूवमेंट एम.एल. सोलंकी, एजी प्रथम (डी) और एफसीआई से एस.बी. शर्मा, रेलवे से डिप्टी सीसीएम (दावा) एस.के. कर्मकार और सीआईए चट्टोपाध्याय ने भाग लिया था।

इसके बाद 22 फरवरी, 2007 को भी रेलवे अधिकारियों और एफसीआई के क्षेत्रीय अधिकारियों (गुवाहाटी) के बीच ऐसी ही एक बैठक हुई। इस बैठक का मक़सद उन डिब्बों पर चर्चा करना था, जो 2000-01 और 2004-05 के बीच ग़ायब हो गये थे। इस दौरान 427 डिब्बे चावल और 57 डिब्बे गेहूँ ग़ायब पाये गये।

बैठक में भाग लेने वाले एफसीआई के अधिकारी संयुक्त प्रबंधक आन्दोलन एम.एल. सोलंकी, एजी प्रथम (डी) एस.बी. शर्मा और एजी सेकेंड (एम) आर.एन. दत्ता थे। मालेगाँव में मुख्य वाणिज्य प्रबंधक (दावा) कार्यालय में हुई बैठक में रेलवे की ओर से एस.के. करमाकर और सीईओ ए.के. प्रसाद ने हिस्सा लिया।

सबसे अधिक असुरक्षित क्षेत्र
मालगाडिय़ों के डिब्बे गुम होने के मामले में जो आरटीआई दायर की गयी है, उससे पता चलता है कि 2000-2001 से 2004-05 तक क़रीब 500 से अधिक डिब्बे खाद्यान्न ग़ायब हो गये; जिनमें से अधिकांश डिब्बे चावल से लदे थे। आरटीआई के मुताबिक, एफसीआई और रेलवे के अधिकारी अब तक 5,500 से अधिक डिब्बों के लापता होने पर चर्चा कर चुके हैं। ‘तहलका’ को अपने स्रोतों और आरटीआई से जो विवरण मिला है, उसमें उत्तर-पूर्वी एफसीआई जोन ने अब तक डिब्बों के गुम होने की सबसे अधिक शिकायतें दर्ज करायी हैं।

लापता डिब्बों की सूची
1. आरटीआई से मिले जवाब के मुताबिक, 3 दिसंबर, 2021 को एफसीआई, कर्नाटक के क्षेत्रीय कार्यालय ने भारतीय रेलवे को 54 डिब्बों का दावा दायर किया। ये 54 डिब्बे सन् 2015 और सन् 2020 के बीच की अवधि के दौरान ग़ायब हो गये थे। इसके अलावा एक अन्य आरटीआई में एफसीआई अधिकारियों ने 28 फरवरी, 2019 से 20 मार्च, 2019 तक चावल के चार और डिब्बों के लापता होने की शिकायत दर्ज करायी है। आरटीआई से पता चला है कि पश्चिम क्षेत्र मुम्बई कार्यालय (एफसीआई) ने 20 मई को लापता डिब्बों की जानकारी दी है। इसी तरह 15 मार्च, 2011 को एफसीआई पश्चिम क्षेत्र, मुम्बई के अधिकारियों और रेलवे अधिकारियों ने मुम्बई में एक बैठक की, जिसमें डिब्बों के लापता होने के मामले पर चर्चा की गयी। बैठक में एम.एल. सहगल (जीएम मूवमेंट), के.के. बरुआ (डीजीएम मूवमेंट), बी.के. त्यागी (एजीएम मूवमेंट), कामना ज्ञान (मैनेजर मूवमेंट) ने एफसीआई जबकि एस.आर. सेठी (टीसी दावा), वीरेंद्र कुमार, (एसओ) ने टीसी तृतीय की तरफ़ से और सीएमआई अनिल कुमार गुप्ता ने रेलवे की तरफ़ से हिस्सा लिया।

2. इस बैठक में मुख्य रूप से 1986-96 से 1996-2000 तक के गुम डिब्बों के मामलों पर चर्चा की गयी। इस सम्बन्ध में मुम्बई, गोवा, मैसूर और कोलकाता में पहले ही बैठकें हो चुकी हैं। कुल 51 डिब्बे ग़ायब पाये गये। सन् 1986 से सन् 1996 के दौरान 15 डिब्बे ग़ायब हो गये, जिनमें से केवल 10 गेहूँ के डिब्बे थे और पाँच चावल के डिब्बे थे। 1996-2000 की अवधि के दौरान क़रीब 36 डिब्बे ग़ायब हुए, जिसमें गेहूँ के 20 थे और 16 डिब्बे चावल के थे।

इसके बाद 13 मार्च, 2019 की एक अन्य आरटीआई में हमने पाया कि एफसीआई के पश्चिम क्षेत्र कार्यालय ने पाँच लापता डिब्बों के लिए रेलवे के सामने दावा किया है। 25 फरवरी, 2004 को विशेष ट्रेन (396427) में ईआर39873 (बीसीएक्सटी) संख्या वाले एक डिब्बे में 1,098 अनाज की बोरियाँ थीं। अनाज की क़ीमत क़रीब 3.34 लाख रुपये थी। यह ट्रेन पंजाब के फ़िरोजपुर से महाराष्ट्र के गोंदिया के लिए रवाना हुई थी। 15 जुलाई, 2018 को 2620000366 नंबर वाली एक विशेष ट्रेन लक्ष्य बन गयी, जिसके तीन डिब्बे डब्ल्यूएन ईसीओआर74377, डब्ल्यूआर18115, एनडब्ल्यूआर96310 से क्रमश: 1,155; 1,150 और 1,149 बोरियाँ खाद्यान्न की ग़ायब हो गयीं। इस अनाज की क़ीमत क़रीब 39.19 लाख रुपये थी। यह ट्रेन हरियाणा के नरवाना से महाराष्ट्र के बारामती के लिए रवाना हुई थी।

21 जुलाई, 2018 को विशेष ट्रेन (262000360) की संख्या एफसीआरओ42692 के साथ एक और डिब्बा, जिसमें 1,274 बोरियाँ थीं ग़ायब हुआ। यह ट्रेन हरियाणा के सफीदों से महाराष्ट्र के परली के लिए रवाना हुई; लेकिन अपने गंतव्य तक पहुँचने से पहले ही डिब्बा ग़ायब हो गया। अनाज की क़ीमत क़रीब 14.23 लाख रुपये थी।

3. इस तरह की कई गुमशुदगी घटनाएँ केरल में भी हुई थीं; लेकिन केरल के कोल्लम ज़िले ने ऐसी कोई शिकायत दर्ज नहीं की थी। यह तभी हुआ, जब आरटीआई कार्यकर्ताओं ने उनसे अपील की, तो वे आगे आये और एनडब्ल्यूआर बीसीएनए10994 नंबर के साथ एक डिब्बे के लापता होने का मामला दर्ज कराया। यह जानकारी 10 अप्रैल, 2019 को दी गयी थी। 22 फरवरी, 2019 से डिब्बे और उनमें लदी खाद्यान्न की बोरियाँ ग़ायब हुई थीं, जिनका कोई विवरण नहीं दिया गया था कि ये बोरियाँ गेहूँ की थीं या चावल की थीं। आरटीआई के मुताबिक, चेन्नई के अंचल कार्यालय ने बताया कि 28 फरवरी, 2019 तक दो डिब्बों में लदा 30.45 लाख रुपये क़ीमत का खाद्यान्न ग़ायब हो गया था। उन्होंने यह भी कहा कि पिछले छ: वर्षों में परिवहन के दौरान 2,503 मीट्रिक टन गेहूँ और चावल बर्बाद हो गया है। लेकिन अनाज का नुक़सान कैसे हुआ, और खोई हुई गाडिय़ाँ कैसे वापस मिलीं? इसे लेकर उसकी तरफ़ से ऐसी कोई जानकारी नहीं दी गयी।

4. 13 मार्च, 2019 को भुवनेश्वर के क्षेत्रीय कार्यालय ने 26000702 नंबर वाली एक विशेष ट्रेन से एक लापता डिब्बे एसई98210 के बारे में जानकारी दी। यह डिब्बा 29 अप्रैल, 2018 से ग़ायब था। इसमें 1,275 बोरियों में 63.32 मीट्रिक टन खाद्यान्न ले जाया गया था। इस अनाज की क़ीमत क़रीब 17.80 लाख रुपये थी।

5. एफसीआई गुरदासपुर (पंजाब) के क्षेत्रीय अधिकारी के अनुसार, 30 जुलाई, 2018 को डिब्बा एसएनएफ एबीसीएनए60056, संख्या आरआर150 के साथ एक विशेष ट्रेन के हिस्से के रूप में गुरदासपुर से पश्चिम बंगाल की ओर जा रहा था। लेकिन जब यह स्पेशल ट्रेन अपने गंतव्य पर पहुँची, तो यह डिब्बा नहीं मिला। ट्रेन में खाद्यान्न ले जाने के बारे में कोई विवरण नहीं है। जब आरटीआई दायर की जा रही थी, तब भी एफसीआई के रिकॉर्ड में डिब्बा ग़ायब था। उन्हें कोलकाता बुलाया गया। कोलकाता के एफसीआई के क्षेत्रीय कार्यालय को भी लापता डिब्बों की जानकारी प्रदान करने के लिए कहा गया था। लेकिन अधिकारियों ने एक पत्र में जवाब दिया कि उनके पास ऐसी कोई जानकारी नहीं है। आरटीआई में कहा गया है कि एक अधिनियम का हवाला देते हुए उन्हें ब्योरा देने के लिए कोलकाता बुलाया गया था।

हो रही सीबीआई जाँच
9 फरवरी, 2018 को, सीबीआई के पटना कार्यालय ने एक प्राथमिकी (आरसी 02320180004) दर्ज की। यह प्राथमिकी पूर्वी रेलवे के मुख्य सतर्कता अधिकारी ने दर्ज की थी। आरटीआई की दूसरी अपील का ज़िक्र करते हुए रेल मंत्रालय ने कहा है कि पश्चिम बंगाल के जमालपुर के आरपीएफ पोस्ट पर दर्ज प्राथमिकी में साफ़तौर पर कहा गया है कि स्पेशल ट्रेनों के 86 डिब्बे ग़ायब थे।

केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) अब इन गुमशुदा डिब्बों के मामले की जाँच कर रहा है। सीबीआई की प्राथमिकी में लापता डिब्बों की संख्या 100 है और इनकी क़ीमत क़रीब 34 करोड़ रुपये है। अभी रेलवे इन डिब्बों का इस्तेमाल नहीं कर रहा है। हालाँकि ये डिब्बे अब रेलवे की दूसरी तरफ़ यानी धोबीघाट पर हैं, जहाँ मरम्मत का काम किया जाता है। ‘तहलका’ सूत्रों के मुताबिक, इन डिब्बों के पहिये और अन्य हिस्सों को हटा दिया गया है।

तीन दशक से अधिक समय से लटके मामले
यह जानकर वास्तव में आश्चर्य होता है कि इतनी बड़ी संख्या में मालगाड़ी के डिब्बे इतने वर्षों से ग़ायब हैं और अभी भी उनके ठिकाने का कोई सुराग़ नहीं है। क़रीब 32-33 साल से ज़्यादा का समय हो गया है; लेकिन अभी भी लापता डिब्बों का कोई पता नहीं चला है।

यह जानकारी आपको चौंका देगी और शायद आपको हँसी भी आये कि जब पूरी ट्रेन अपने ट्रैक पर चल रही है, तो कुछ डिब्बे कैसे ग़ायब हो सकते हैं? आख़िर ये लोहे के बड़े-बड़े बक्से हैं और इन्हें किसी के लिए भी ले जाना कैसे असम्भव होगा? क्योंकि ये किसी पार्क में खड़े नहीं रहे होते, और न ही इतने हल्के होते हैं कि कोई आसानी से पार कर सके। कम-से-कम कहने के लिए तो यह चौंकाने वाली बात ही है कि सन् 1987 और सन् 2019 के बीच ग़ायब हुए डिब्बों का कोई सुराग़ नहीं है।

आरटीआई के अनुसार, छत्तीसगढ़ से केरल के एर्नाकुलम जाने वाली एक विशेष ट्रेन आरआर310625 का ईआरसी22283 नंबर वाला एक डिब्बा भी ग़ायब था। इस स्पेशल ट्रेन में 24.5 मीट्रिक टन वाले 256 बोरी चावल लदे हुए थे। हैरानी की बात यह है कि एफसीआई का दावा अभी भी रेलवे के पास लम्बित है।

48 करोड़ की चीनी ग़ायब
एफसीआई न केवल गेहूँ और चावल, बल्कि अन्य खाद्यान्न और खाद्य भण्डार का भी परिवहन करता है। इन्हें विशेष ट्रेनों से दूसरे राज्यों में भी भेजा जाता है। इससे पहले एफसीआई ने चीनी का भण्डार दूसरे राज्यों में भी पहुँचाया था। गेहूँ और चावल की तरह चीनी के डिब्बों को भी एक राज्य से दूसरे राज्य में भेजा जाता था। चीनी के डिब्बों के ग़ायब होने के मामले भी सामने आये हैं और पूर्वोत्तर के जोनल कार्यालय ने आरटीआई में इस सम्बन्ध में विवरण पहले ही दे दिया है। वर्ष 1984-85 से 1994-95 तक चीनी लदी कई विशेष ट्रेनें उत्तर-पूर्व क्षेत्रों में भेजी गयीं; लेकिन कुछ डिब्बे गंतव्य तक पहुँच ही नहीं सके।

एफसीआई ने रेलवे को इस नुक़सान के बारे में कई लिखित शिकायतें भेजी हैं; लेकिन कोई सन्तोषजनक जवाब नहीं मिला है। 24 मार्च, 2015 को एफसीआई ने रेलवे को 48.18 करोड़ रुपये के दावे के बारे में याद दिलाने के लिए एक और पत्र भेजा। एफसीआई के क्षेत्रीय कार्यालय की अभी भी रेलवे से चर्चा जारी है; लेकिन अभी तक कोई सन्तोषजनक जवाब नहीं मिला है। आरटीआई में कहा गया है कि सन् 1993 से सन् 1997 के बीच में चीनी के आठ डिब्बे ग़ायब हैं, जो पहली जनवरी, 2008 को रेलवे को भेजे गये पत्र में उल्लिखित हैं।

सम्भावित कारण
रेलवे सूत्रों के अनुसार, डिब्बों के ग़ायब होने का कारण एक्सल बॉक्स का गर्म या अधिक गर्म होना हो सकता है। रेलवे वाहन में हॉट एक्सल बॉक्स तब होता है, जब अपर्याप्त व्हील बेयरिंग ल्यूब्रिकेशन के कारण तापमान में वृद्धि होती है। यदि पता नहीं चले, तो तापमान में वृद्धि जारी रह सकती है; जब तक कि कोई बर्न ऑफ न हो, जो पटरी से उतरने या आग लगने का कारण हो सकता है। तो यह कारण हो सकता है कि इन विशेष ट्रेनों से कुछ डिब्बों को अलग कर दिया जाता है; लेकिन हम इस सम्भावना से इनकार नहीं कर सकते हैं कि हॉट एक्सल घटना की आड़ में कुछ और डिब्बों को भी हटाया जा सकता था।

जानकारों के मुताबिक, रेलवे उन सभी ट्रेनों का रिकॉर्ड रखता है, जो पटरियों पर चल रही हैं या यार्ड में खड़ी हैं। ये ब्योरा (रिकॉर्ड) भारतीय रेलवे के सेंटर फॉर रेलवे इंफार्मेशन सिस्टम (सीआरआईएस) विभाग द्वारा बनाये रखा जाता है। वे (सीआरआईएस के कर्मचारी) इसकी सभी ट्रेनों का ऑनलाइन रिकॉर्ड रखते हैं। वे ट्रेनों के सभी मार्गों से अवगत हैं। जब ये ट्रेनें अपने गंतव्य पर पहुँचती हैं और जब विशेष ट्रेनों को लोड और अनलोड किया जाता है। जब सब कुछ ऑनलाइन रखा जाता है, तो यह कल्पना करना कठिन है कि विशेष ट्रेनों के इन डिब्बों को कैसे हटाया जा सकता है? ऐसे में यह अविश्वसनीय चोरी की सम्भावना बेहद चौंकाने वाली है।